नरसिंह यादव को तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था!
इस पहलवान को उसके विरोधियों की बजाय अपने ही लोगों ने हरा दिया। वाकई यह सिर्फ नरसिंह की हार नहीं है बल्कि उसको अपने ही लोगों ने हरा दिया जो नहीं चाहते थे कि वह ओलंपिक में भाग ले सके।
रियो ओलंपिक में जब देश दो भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन और पदक जीतने की खुशी मना रहा था उसी बीच एक दुर्भाग्यपूर्ण खबर ने दस्तक दी कि भारतीय पहलवान नरसिंह यादव को खेल पंचाट ने राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी द्वारा उन्हें दी गई क्लीन चिट को खारिज करते हुए ओलंपिक से बाहर करने के साथ-साथ डोप टेस्ट में नाकाम रहने के कारण चार साल का प्रतिबंध लगा दिया। नरसिंह के साथ यदि साजिश हुई है तो यह साइ सेंटरों में खिलाड़ियों की सुरक्षा पर सवाल होने के साथ साथ हमारी पुलिस और जाँच एजेंसियों की कार्यक्षमता और खेल प्रशासन के द्वारा की जाने वाली व्यवस्थाओं पर भी सवाल है।
दरअसल नरसिंह मामले की सुनवाई करते समय जाँच समिति यह जानना चाहती थी कि यदि कोई साजिशकर्ता है तो उसे भारतीय कानून के मुताबिक क्या सजा दी गई है। जवाब ना में रहा तो यह बात साबित नहीं हो पाई कि नरसिंह के साथ कोई साजिश हुई है। इसलिए माना जा सकता है कि यदि आज गुनहगार जेल में होता तो फैसला हमारे पक्ष में आ सकता था। यही नहीं जब भारतीय दल को 15 अगस्त को खेल पंचाट से नरसिंह मामले में नोटिस मिला तो यह भी व्यवस्था नहीं थी कि कोई बड़ा वकील नरसिंह का पक्ष रखने के लिए तुरंत रियो पहुंच सके। भारतीय ओलंपिक संघ के वकील ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पक्ष रखा और नाडा के वकील रियो पहुंचे भी तो पूरी तैयारी के साथ नहीं जबकि खेल पंचाट के वकील पूरी तैयारी के साथ मौजूद थे।
देश का सिर शर्म से झुका देने वाले इस मामले की सीबीआई से जाँच करानी चाहिए और असल गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा सुनिश्चित की जानी चाहिए यदि इस मामले को अभी यूँ ही रफा-दफा कर दिया गया तो भविष्य में भी ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति देखने को मिल सकती है। इस मामले में नरसिंह पर भी जो बीती उसकी सहज कल्पना ही की जा सकती है। नाडा से क्लीन चिट मिलने के बाद वह रियो पहुँच तो गये थे लेकिन उनकी किस्मत ने तब फिर पलटी खा ली जब खेल पंचाट के समक्ष एक आपात याचिका दायर कर उनको मिली क्लीन चिट को चुनौती दी गई। नरसिंह ने अब अपनी लड़ाई खुद को बेकसूर साबित करने पर केंद्रित करने की बात कही है। उनके मामले को यदि चुनौती दी जाती है तो ज्यादा से ज्यादा प्रतिबंध की अवधि कुछ कम हो सकती है लेकिन वर्षों से जिस सपने को पूरा करने के लिए वह दिन-रात कड़ी मेहनत कर रहे थे उस पर अंतिम समय में पानी फिर जाने से उनके साथ ही देश के भी करोड़ों लोगों को दुःख पहुँचा है।
भारतीय ओलंपिक संघ ने सही ही कहा है कि इस पहलवान को उसके विरोधियों की बजाय अपने ही लोगों ने हरा दिया। वाकई यह सिर्फ नरसिंह की हार नहीं है बल्कि उसको अपने ही लोगों ने हरा दिया जो नहीं चाहते थे कि वह ओलंपिक में भाग ले सके। कहा जा रहा है कि साजिश की तसवीर साफ है क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमा जीतने के बाद सोनीपत स्थित साइ सेंटर से एक फोन आया जिसमें डोपिंग की बात कही गई जिसके बाद छापा मारा गया और नरसिंह का नमूना पाजीटिव पाया गया। यह इत्तेफाक नहीं हो सकता। नरसिंह मामले में एक मशहूर शेर याद आता है, 'हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था, मेरी कश्ती थी डूबी वहाँ जहाँ पानी कम था।'
रियो ओलंपिक में भाग लेने को लेकर इस बार भारतीय कुश्ती शुरू से ही विवादों में रही। पहले सुशील कुमार बनाम नरसिंह यादव विवाद देखने को मिला और फिर नरसिंह यादव के डोप टेस्ट में नाकाम हो जाने से नया विवाद खड़ा हो गया और आखिरकार वह ओलंपिक से बाहर हो गये। वाकई यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ओर खिलाड़ी दिन रात कड़ी मेहनत करके देश के लिए पदक जीतने के लिए खुद को तैयार करते हैं तो दूसरी तरफ उनका हौसला बढ़ाने की बजाय उन्हें प्रतियोगिता में ही भाग लेने से रोक देने के लिए साजिश होती है। यही नहीं कुछ लोग अनर्गल ट्वीट करके भी खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने की बजाय गिराते हैं। किसी भी खिलाड़ी का मनोबल गिराने के लिए यह काफी है। खेल मंत्रालय को इस मुद्दे पर और सक्रिय भूमिका दिखानी चाहिए क्योंकि यह देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ मामला भी है।
-नीरज कुमार दुबे
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