- |
- |
विपक्ष कम करना चाहता है मोदी की जीत का अंतर
- अजय कुमार
- मई 17, 2019 11:43
- Like

राजनीतिक पंडितों की मानें तो इस बार मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ जा रहा है। महागठबंधन से कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है। तेज बहादुर के मैदान में होने से मुस्लिम वोट दोनों में बंट सकता था, इसके अलावा भूमिहार वोटर भी बंट सकते हैं।
बीजेपी पूरी तरह आश्वस्त। विपक्षी जातीय गणित के सहारे खेल बिगाड़ने में लगे। वाराणसी और आसपास की सीटों पर पिछले तीन दशक से हर चुनाव में जातीय समीकरण हावी रहते हैं। इसके आगे विकास और बेहतरी के दावे भी असर नहीं कर पाते। इसलिए भाजपा का पूरा ध्यान इस ओर भी है कि सभी जातियों के मतदाताओं को अपने पक्ष में किया जाए। जैसे−जैसे मतदान की तिथि करीब आती जा रही है, सोशल इंजीनियरिंग पर पूरा फोकस किया जा रहा है।
इसे भी पढ़ें: पहाड़ी राज्य हिमाचल की जनता किसे देगी आशीर्वाद?
इसी रणनीति के तहत पार्टी ने अपना दल के साथ गठबंधन किया ताकि रोहनिया और सेवापुरी के पटेल मतदाताओं को जोड़ा जा सके। इसके लिए अपना दल की राष्ट्रीय महासचिव और रोहनिया विधायक अनुप्रिया पटेल को मीरजापुर संसदीय सीट से लड़ाने का फैसला किया गया। इसके चलते वहां से टिकट की दावेदारी कर रहे प्रदेश के पूर्व काबीना मंत्री ओमप्रकाश सिंह के पुत्र अनुराग सिंह ने नाराज होकर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और ओमप्रकाश सिंह भी इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। वहीं, भूमिहार मतदाताओं को रिझाने के लिए कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय, पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर समेत हाल ही में कांग्रेस छोड़ पार्टी में शामिल हुए डॉ. अवधेश सिंह, संजय राय जैसे लोगों को लगाया गया है। इनका पूरा ध्यान सेवापुरी विधानसभा के गांवों में रहने वाले भूमिहार मतदाताओं पर है। चौरसिया समाज के लोगों को पक्ष में करने के लिए पार्टी के सह प्रदेश प्रभारी रामेश्वर चौरसिया ने मंगलवार को ही पान दरीबा इलाके में लोगों से जनसंपर्क किया।
वहीं, ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर होर्डिंस पर प्रमुखता से आगे की गई है। इसके अलावा स्थानीय चेहरों को भी पार्टी ने सामने कर रखा है। वैश्य मतदाताओं के लिए तो कई नामों की लंबी−चौड़ी फेहरिस्त है जो अपनी जाति के मतदाताओं से मेलजोल बढ़ा रहे हैं। इनके साथ ही यादव, दलित, कायस्थ समेत अन्य जातियों के लिए भी पार्टी ने पूरी तैयारी कर रखी है। मुस्लिम मतदाताओं में पैठ बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। अल्पसंख्यक मोर्चा के विभिन्न प्रदेशों के नेताओं समेत गुजरात हज कमेटी के चेयरमैन तक को मुस्लिम बस्तियों में लगाया गया। वहीं, गुजरात से ही बड़ी संख्या में आए मुस्लिम समुदाय के लोग शहर और ग्रामीण क्षेत्रों की बुनकर बहुल इलाकों में जनसंपर्क कर रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: मोदी-योगी सहित कई दिग्गजों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा दांव पर
राजनीतिक पंडितों की मानें तो इस बार मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ जा रहा है। महागठबंधन से कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है। तेज बहादुर के मैदान में होने से मुस्लिम वोट दोनों में बंट सकता था, इसके अलावा भूमिहार वोटर भी बंट सकते हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की जोरदार कैंपेनिंग, रोड शो और महागठबंधन के उम्मीदवार तेज बहादुर का नामांकन रद्द होना मोदी के जीत के फासले को कम कर सकता है।
गठबंधन प्रत्याशी शालनी यादव और कांगे्रस के अजय राय मजबूती के साथ मोदी को टक्कर देते नहीं दिख रहे हैं, शालिनी और अजय राय को जीत के बजाए, वोट प्रतिशत बढ़ने पर ही संतोष करना पड़ेगा। बता दें कि 1996 में पहली बार अजय राय बीजेपी के टिकट पर वाराणसी की कोइलसा विधासनभा सीट से चुनाव लड़े. उन्होंने 9 बार के सीपीआई विधायक उदल को 484 मतों के अंतर से हराया था। 2002 और 2007 का भी चुनाव अजय राय बीजेपी के टिकट पर इसी विधानसभा क्षेत्र से लड़े और जीते. 2009 में अजय राय वाराणसी लोकसभा सीट से बीजेपी का टिकट चाहते थे। पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना किया तो वह बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। बाद में अजय कांग्रेस में आ गए।
चुनाव आयोग ने पिछले दिनों वाराणसी लोकसभा सीट से तेज बहादुर यादव के नामांकन को रद्द कर दिया था। पहले वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन बाद में उन्हें महागठबंधन ने अपना उम्मीदवार घोषित किया था। महागठबंधन का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद तेज बहादुर फिर से सुर्खियों में आ गए थे, लेकिन कुछ रोज बाद चुनाव आयोग ने उनका नामांकन रद्द कर दिया। इसके खिलाफ बहादुर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने नामांकन रद्द करने के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उनकी याचिका में कोई मैरिट नहीं है।
इसे भी पढ़ें: मायावती पर प्रधानमंत्री मोदी के कारण अखिलेश का यूटर्न
मोदी 2014 में काशी के साथ वडोदरा से भी चुनाव लड़े थे। दोनों ही जगह से जीत हासिल की थी, लेकिन उन्होंने वाराणसी को अपने संसदीय क्षेत्र के रूप में चुना। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के बीच था।
2014 में 42 प्रत्याशियों ने अपनी चुनौती पेश की थी. इसमें 20 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय मैदान में थे। नरेंद्र मोदी ने आसान मुकाबले में केजरीवाल को 3,71,784 मतों के अंतर से हराया था। मोदी को कुल पड़े वोटों में 581,022 (56.4रू) वोट हासिल हुए जबकि आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अरविंद केजरीवाल के खाते में 2,09,238 (20.3रू) वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय रहे जिनके खाते में महज 75,614 वोट ही पड़े।
वाराणसी सीट का जातीय आंकड़ा
वैश्य−3.5 लाख, ब्राह्मण−2.50 लाख, मुस्लिम−3 लाख, भूमिहार−1 लाख, राजपूत−1 लाख, पटेल−2 लाख, चौरसिया व अन्य−3.50 लाख, दलित−1.20 लाख
- अजय कुमार
सच की रक्षा करने का जो आह्वान बाइडेन ने किया है उसमें पूरी दुनिया शामिल हो
- नीरज कुमार दुबे
- जनवरी 21, 2021 14:34
- Like

बाइडेन के सामने चुनौतियाँ बहुत बड़ी-बड़ी हैं लेकिन वह उन पर खरा उतरने का माद्दा रखते हैं। इसको दो उदाहरणों के जरिये समझते हैं। पहला- जो बाइडेन बराक ओबामा के कार्यकाल में आठ साल तक अमेरिकी उपराष्ट्रपति रह चुके हैं इसलिए प्रशासन की बारीकियों को बेहद करीब से जानते हैं।
अमेरिका में ट्रंप युग का समापन और बाइडेन युग की शुरुआत धूमधड़ाके के साथ हुई है। अमेरिका ने ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने डोनाल्ड ट्रंप जैसे सनकी नेता से 'लोकतंत्र की ताकत' के बलबूते ही निजात पाई है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में भले जो बाइडेन की जीत हुई थी लेकिन वहाँ चुनावों से पहले ही यह दिख रहा था कि अमेरिकी जनता अपनी उस गलती को सुधारने के लिए आतुर है जो उसने 2016 के राष्ट्रपति चुनावों के वक्त कर दी थी। चार साल के अपने कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने जिस सनकीपने से अमेरिका को चलाया उसने दुनिया के इस सबसे समृद्ध और विकसित देश को वर्षों पीछे धकेल दिया। ट्रंप ने अपने मनमाने फैसलों की बदौलत अमेरिका को दुनिया में अलग-थलग तो कर ही दिया था साथ ही अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर अंतिम समय तक मंत्रियों व अधिकारियों को अचानक ही बर्खास्त कर देने, अधिकारियों पर गलत कार्य के लिए दबाव बनाने, चुनावों में हार नहीं मानने, असत्य बोलने का रिकॉर्ड बनाने, राष्ट्रपति चुनावों में विजेता को औपचारिक रूप से बधाई नहीं देने, सोशल मीडिया पर अमेरिकी राष्ट्रपति को प्रतिबंधित कर दिये जाने, दो-दो महाभियोग झेलने वाला पहला अमेरिकी राष्ट्रपति बनने, लोकतंत्र पर भीड़तंत्र के जरिये कब्जा करने का नाकाम प्रयास करने का जो इतिहास अपने नाम पर दर्ज करवाया है वह अमेरिका के लिए सदैव शर्म का विषय बना रहेगा।
इसे भी पढ़ें: जो बाइडन, कमला हैरिस ने अमेरिका के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली
बाइडेन के समक्ष कई बड़ी चुनौतियाँ
बाइडेन ने बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति अपने पहले भाषण में लोकतंत्र की सर्वोच्चता कायम रखने सहित जो भी बातें कही हैं, उन पर उन्हें खरा उतरना ही होगा क्योंकि उनकी ताजपोशी कोई सामान्य स्थिति में नहीं हुई है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब दुनियाभर में विश्व का सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका मखौल का विषय बना हुआ है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब अमेरिका यूनाइटेड नहीं डिवाइडेड स्टेट्स नजर आ रहा है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब दुनियाभर में कोरोना के मामले उतार पर हैं लेकिन अमेरिका में महामारी अपने चरम पर बरकरार है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब विश्व के अन्य देशों की मदद करने वाले अमेरिका की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब दुनियाभर में नये-नये वैश्विक मंच बन रहे हैं और अमेरिका पुराने वैश्विक मंचों से कट चुका है।
बाइडेन के सामने चुनौतियाँ बहुत बड़ी-बड़ी हैं लेकिन वह उन पर खरा उतरने का माद्दा रखते हैं। इसको दो उदाहरणों के जरिये समझते हैं। पहला- जो बाइडेन बराक ओबामा के कार्यकाल में आठ साल तक अमेरिकी उपराष्ट्रपति रह चुके हैं इसलिए प्रशासन की बारीकियों को बेहद करीब से जानते हैं। यही नहीं जरा 3 नवंबर 2020 के बाद के हालात से अब तक के घटनाक्रम पर गौर करिये। राष्ट्रपति चुनाव परिणाम आने के बाद से डोनाल्ड ट्रंप इस बात पर अड़े हुए थे कि चुनाव में धांधली हुई है और वह इसे स्वीकार नहीं करेंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि वह परिणामों को अदालत में चुनौती देंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि वह बाइडेन को व्हाइट हाउस में घुसने नहीं देंगे। ट्रंप रोजाना बाइडेन के खिलाफ अनर्गल बातें तो करते ही रहे साथ ही चुनाव परिणामों को भी नकारते रहे जबकि राज्यों के चुनाव अधिकारी ट्रंप की टीम द्वारा दर्ज कराई गयी आपत्तियों को सुबूतों के अभाव में खारिज करते रहे। ट्रंप ने इलेक्टोरल कॉलेज की गिनती में भी बाधा डलवाने के कथित प्रयास किये लेकिन बाइडेन एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह धैर्य से सारी स्थितियों का सामना करते रहे। वह ट्रंप पर आक्रामक नहीं हुए क्योंकि उन्हें लोकतंत्र की ताकत पर भरोसा था, उन्हें अमेरिकी संविधान पर भरोसा था। ट्रंप के गुस्से का जवाब बाइडेन ने जिस प्यार से दिया है उसी प्यार से उन्हें ट्रंप समर्थकों का दिल भी जीतना होगा क्योंकि जाते-जाते भी ट्रंप विभाजन की रेखा खींच गये हैं।
कमला हैरिस का विश्वास
इसके अलावा कमला देवी हैरिस ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति बन कर जो इतिहास रचा है उससे ना सिर्फ सभी भारतीय बल्कि दुनियाभर में बसे भारतवंशी भी गौरवान्वित हुए हैं। महिला, अश्वेत, विदेशी मूल आदि तमाम बाधक तत्वों पर विजय पाते हुए कमला देवी हैरिस ने जो कर दिखाया है वह अभूतपूर्व है। कमला हैरिस ने पदभार ग्रहण करते हुए जिस आत्मविश्वास का प्रदर्शन किया है वह बेहतर भविष्य की झलक दिखाता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने जिस प्रकार नस्ली एवं आर्थिक न्याय के लिए लड़ाई लड़ी उस कड़ी को निश्चित रूप से कमला हैरिस आगे ले जाएंगी।
मीडिया को भी आत्ममंथन करने की जरूरत है
डोनाल्ड ट्रंप जैसे व्यक्ति सर्वोच्च पद तक यदि पहुँचते हैं तो उसमें मीडिया का भी बड़ा हाथ होता है। वैसे बतौर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मीडिया के साथ सहज रिश्ते शुरुआत से ही नहीं रहे और सोशल मीडिया कंपनियों ने तो ट्रंप पर प्रतिबंध लगा कर नया इतिहास ही रच दिया। लेकिन इस समय वाहवाही लूट रही इन अमेरिकी मीडिया कंपनियों से यह भी पूछा जाना चाहिए कि ट्रंप का इतना बड़ा कद बनाया किसने था। 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान मीडिया विभाजित नजर आ रहा था और खुले तौर पर एक वर्ग हिलेरी क्लिंटन और एक वर्ग डोनाल्ड ट्रंप के साथ नजर आ रहा था। अचानक से एक अराजनीतिक व्यक्ति को ना सिर्फ मीडिया ने अपने सिर पर बैठा लिया था बल्कि अमेरिका की बड़ी पार्टी ने भी उन्हें नेता के रूप में स्थापित करने में मदद कर दी जिसका अंजाम पूरी दुनिया ने भुगता। डोनाल्ड ट्रंप प्रकरण से दुनियाभर के मीडिया को सबक लेने की जरूरत है। जैसे मीडिया जनता के बीच यह जागरूकता फैलाता है कि सोच समझकर अपना वोट दें या सही प्रत्याशी को ही चुनें, इसी प्रकार मीडिया को भी नेता बनने के आकांक्षी लोगों की कवरेज के समय बहुत सोच समझकर काम करना चाहिए। क्योंकि किसी को भी रातोंरात 'बड़ा' बना देने का अंजाम कई बार बहुत बुरा होता है।
इसे भी पढ़ें: राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडेन ने दिया 21 मिनट का भाषण, बोले- लोकतंत्र की हुई जीत
बहरहाल, जो बाइडेन ने अपने कार्यकाल के पहले दिन जिन 15 कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किये उनसे साफ हो गया है कि वह अपना पूरा ध्यान अमेरिकी जनता से किये गये वादों को पूरा करने में लगाने वाले हैं। बाइडेन के शुरुआती फैसलों की बात करें तो उन्होंने 100 दिन मास्क लगाने, पेरिस जलवायु समझौते में अमेरिका के फिर से शामिल होने, डब्ल्यूएचओ में अमेरिका की वापसी, मुस्लिम देशों के लोगों की अमेरिका यात्रा पर लगे प्रतिबंध को हटाने सहित मैक्सिको सीमा पर दीवार निर्माण पर तत्काल रोक लगाना आदि शामिल हैं। उम्मीद है आने वाले दिनों में बाइडेन विदेश और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित ट्रंप प्रशासन के कई बड़े फैसलों को पलटेंगे या उनमें संशोधन करेंगे। हालांकि बाइडेन को यह भी ध्यान रखना होगा कि सिर्फ ट्रंप के फैसलों को पलटने से काम नहीं चलेगा बल्कि अमेरिका के माहौल को पूरी तरह बदलना होगा। वैसे सच की रक्षा करने और झूठ को हराने का जो आह्वान बाइडेन ने किया है उसमें पूरी दुनिया को शामिल होने की जरूरत है।
-नीरज कुमार दुबे
Related Topics
Joe Biden US Politics Donald Trump Jill Biden US President kamala Harris Trump US india relations S Jaishankar Paris agreement joe biden inauguration news updates joe biden oath ceremony paris agreement who biden first orders mexico wall us news america news us joe biden inauguration us inauguration 2021 us inauguration day us president inauguration us president inauguration 2021 us presidential inauguration biden inauguration biden inauguration news joe biden inauguration time inauguration of joe biden joe biden live us media अमेरिका जो बाइडेन डोनाल्ड ट्रंप वाशिंगटन अमेरिका समाचार कमला देवी हैरिस बराक ओबामाकांग्रेस की सावरकर विरोधी मुहिम से गरमाई उत्तर प्रदेश की सियासत
- अजय कुमार
- जनवरी 21, 2021 13:12
- Like

पिक्चर गैलरी का अनावरण करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महिमा गान करते हुए कहा कि सावरकर का व्यक्तित्व सभी देशवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस पर कांग्रेस की ओर से कड़ा एतराज जताया गया।
किसी राष्ट्र का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि देश को आजादी दिलाने वाले नायकों पर ही सियासत शुरू हो जाए। देश को आजाद कराने के लिए दिए गए उनके बलिदान को थोथा साबित कर दिया जाए और यह सब इसलिए किया जाए जिससे कुछ लोगों की न केवल सियासत चमकती रहे बल्कि उनके पूर्वजों का कद भी ऊंचा रहे, जिन्होंने कभी भी आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देने की बात बढ़-चढ़कर प्रचारित-प्रसारित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। यहां तक की इतिहास तक पलट दिया गया। यही वजह है जिन्होंने आजादी के पूरे आंदोलन के दौरान कभी जेल की हवा नहीं खाई, गोरे सिपाहियों ने जिन पर लाठी नहीं चलाई वह ताल-तिकड़म से आजादी के महानायक बन गए और जिन्होंने दस वर्षों तक सेलुलर जेल में काला पानी की सजा काटी, उन्हें कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। ऐसे ही देश के महान सपूत वीर सावरकर आजकल कांग्रेस की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। कांग्रेस एक तरफ देश भर में आजादी के नायक वीर सावरकर के खिलाफ जहर उगलती फिरती है वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र में उस शिवसेना सरकार का हिस्सा बन जाती है जो महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को अपना नायक मानती है।
खैर, वीर सावरकर (विनायक दामोदर सावरकर) से कांग्रेस का दुराव पुराना है। वीर सावरकर को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच भी तलवारें खिंची रहती हैं। दरअसल, बीजेपी आजादी की लड़ाई में वीर सावरकर को नेहरू जैसे तमाम नेताओं से बड़ा और सच्चा नायक मानती है। इसीलिए योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद की नवसृजित पिक्चर गैलरी में जैसे ही महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर का चित्र लगाया तो कांग्रेस बिफर गई। परिषद में पार्टी के दल नेता दीपक सिंह ने सभापति रमेश यादव को पत्र लिखकर सावरकर के कार्यों को देश विरोधी बताया और फोटो हटाकर भाजपा के संसदीय कार्यालय में लगाने की मांग की है। पूर्व सपा नेता और सभापति रमेश यादव, जिनका कार्यकाल इस माह के अंत में खत्म हो रहा है, ने भी सियासी गोटियां बिछाते हुए प्रमुख सचिव को तथ्यों की जांच करने के निर्देश देने में देरी नहीं लगाई।
इसे भी पढ़ें: UP विधान परिषद का इतिहास अत्यंत गौरवशाली है, योगी आदित्यनाथ ने विधान मंडल को लोकतंत्र का मंदिर बताया
दरअसल, हाल ही में उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सुंदरीकरण कराने के साथ ही वहां पिक्चर गैलरी बनाई गई है, जिसमें तमाम स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों के चित्र लगाए गए हैं। इनमें वीर सावरकर की तस्वीर भी शामिल है। पिक्चर गैलरी का अनावरण करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महिमा गान करते हुए कहा कि सावरकर का व्यक्तित्व सभी देशवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस पर कांग्रेस की ओर से कड़ा एतराज जताया गया। कांग्रेस के विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह ने सभापति को पत्र लिखकर कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के बीच सावरकर का चित्र लगाना उन महापुरुषों का अपमान है। अंग्रेजों से माफी मांगने वाले, उनके साथ मिलकर देश के विरुद्ध लड़ने वाले, मोहम्मद अली जिन्ना की तरह दो राष्ट्र की मांग उठाने वाले को सिर्फ भाजपा की स्वतंत्रता सेनानी मान सकती है। विधान परिषद में प्रशिक्षण-भ्रमण पर आने वाले अधिकारी और छात्र यहां से क्या प्रेरणा लेंगे। कांग्रेस ने मांग की कि सावरकर के चित्र को विधान भवन के मुख्य द्वार से हटाकर भाजपा के संसदीय कार्यालय में लगा दिया जाए।
बहरहाल, कांग्रेस की सोच जो भी हो लेकिन वीर सावरकर को लेकर देश की बड़ी आबादी की सोच कांग्रेस से बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखती है। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी वीर सावरकर को भारत रत्न देने की बात कर उन्हें महान देशभक्त बताती है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस उन्हें अंग्रेजों का पिट्ठू करार देकर लगातार विरोध करती रहती है। हालांकि तमाम किन्तु-परंतुओं के बीच यह जान लेना भी जरूरी है कि एक समय ऐसा भी था जब कांग्रेस और वीर सावरकर एक-दूसरे के प्रबल समर्थक हुआ करते थे। वीर सावरकर ने एक समय कांग्रेस को आजादी की मशालवाहक तक करार दिया था। और तो और वीर सावरकर के जेल से छूटने के बाद कांग्रेस के कई नेताओं ने कई शहरों में वीर सावरकर के स्वागत में कार्यक्रम तक रखे थे, लेकिन समय के साथ काफी कुछ बदल गया और कांग्रेस ने वीर सावरकर से दूरी बनाकर उन्हें अपमानित करना भी शुरू कर दिया।
वीर सावरकर से कांग्रेस का विरोध जगजाहिर है, लेकिन इतने मात्र से सावरकर का कद छोटा नहीं हो जाता है। आधुनिक भारत में हिंदुत्व राष्ट्रवाद के पुरोधा माने जाने वाले सावरकर का बाल गंगाधर तिलक, दादा भाई नौरोजी, महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस और नरीमन जैसे नेता भी समय-समय पर तारीफ करते रहे थे। वीर सावरकर हमेशा गोरी सरकार की आंख की किरकिरी बने रहे थे। इसीलिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने काला पानी की सजा देकर सेलुलर जेल में बंद कर दिया था। 1920 में गांधी, वल्लभभाई पटेल और तिलक ने ब्रिटिश शासकों से सावरकर को बगैर शर्त छोड़ जाने की मांग रखी थी, लेकिन इस सबके बावजूद वीर सावरकर और कांग्रेस एक घटना को लेकर इस तरह आमने-सामने आए कि दोनों के बीच दुश्मनी की दीवार खड़ी हो गई।
हुआ यह कि नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविन्स में कुछ हिंदू युवतियों का अपहरण हो गया। इस अपरहरण कांड को लेकर तमाम तरह की खबरें फैल रही थीं। इसी में एक खबर यह भी थी कि कुछ स्थानीय नेताओं जिसमें डॉ. खान साहिब के नाम से मशहूर अब्दुल जफ्फार खान का भी नाम शामिल था, ने अगवा की गई युवतियों को वापस मुस्लिम अपहरणकर्ताओं को सौंपे जाने की मांग की थी। उनकी इस मांग का कांग्रेस के नेताओं ने अपनी सभा में समर्थन किया था। इससे क्रोधित वीर सावरकर ने कांग्रेसी नेताओं को कथित रूप से ‘राष्ट्रीय हिजड़े’ ही उपाधि दे दी। इसके बाद कांग्रेस और वीर सावरकर एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए। उस समय कांग्रेस ने वीर सावरकर का विरोध करते हुए कहा था कि वह जिस घटना को आधार बनाकर कांग्रेस पर लांछन लगा रहे हैं, वह घटना काल्पनिक है।
इस पूरे प्रसंग का उल्लेख करते हुए वैभव पुरंदरे ने अपनी पुस्तक ‘सावरकर द ट्रू स्टोरी ऑफ फादर ऑफ हिंदुत्व’ में लिखा कि उक्त प्रकरण के बाद पुणे में सावरकर के जेल से छूटने के बाद होने वाले स्वागत कार्यक्रम के प्रभारी कांग्रेसी नेता एनवी गाडगिल ने स्वागत प्रभारी पद छोड़ दिया और सावरकर पर आरोप लगाया कि उन्होंने (सावरकर) जिस खबर पर कड़ी प्रतिक्रिया दी, वही झूठी थी। पुरंदरे ने अपनी किताब में लिखा कि गाडगिल ने कहा था कि डॉ. खान साहिब के नाम से मशहूर अब्दुल जफ्फार खान ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया कि लड़कियां अपहरणकर्ताओं को सौंपी जानी चाहिए। अब्दुल गफ्फार खान सीमांत गांधी के नाम से मशहूर गफ्फार खान के भाई थे। ये उनके नाम से छपा जरूर था। गाडगिल के इस बयान के बाद रिपोर्टिंग को लेकर सवाल खड़े हुए थे।
इसे भी पढ़ें: गरीब की जिंदगी बदलने की प्रधानमंत्री की सोच ले रही है मूर्त रूप: योगी
गाडगिल के इस कदम के बाद सावरकर ने कहा कि अगर खान साहिब के नाम से छपा ये बयान वास्तविक नहीं हुआ तो मुझसे ज्यादा खुशी किसी और को नहीं होगी। पुरंदरे लिखते हैं कि सावरकर ने इस मुद्दे पर कई तरह से सफाइयां दीं और कांग्रेस के साथ कई किस्म की बातचीत हुई, लेकिन सावरकर को कांग्रेस ने ब्लैकलिस्ट में डाल दिया। सावरकर का जो भी कार्यक्रम होता, वहां कांग्रेसी काले झंडे लेकर विरोध प्रदर्शन करने पहुंच जाते थे। इस पूरे घटनाक्रम के बाद सावरकर और कांग्रेस के बीच फिर कभी बात नहीं बनी। सावरकर भी बाबा साहेब आंबेडकर को छोड़ नेहरू, गांधी और सभी प्रमुख कांग्रेसी नेताओं की समय-समय पर आलोचना करते रहे। उधर, कांग्रेस भी पूरी ताकत से सावरकर के विरोध में खड़ी होकर सावरकर को धीरे-धीरे भारतीय राजनीति से दरकिनार करती चली गई। वीर सावरकर की ऐसी छवि बना दी गई मानो वह हिन्दू राष्ट्र के पक्षधर हों। सावरकर के बारे में कांग्रेस ने अनर्गल प्रचार करके उनकी छवि धूमिल करने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा और यह सिलसिला आज तक जारी है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी तो वीर सावरकर को लेकर निम्न स्तर की सियासत पर उतर आते हैं।
-अजय कुमार
Related Topics
Veer Savarkar Congress Uttar Pradesh Legislative Council Hindutva Nationalism Bal Gangadhar Tilak Yogi Sarkar Yogi Adityanath Dada Bhai Naoroji Mahatma Gandhi Uttar Pradesh Congress Congress Legislative Council Member Deepak Singh Ramesh Yadav Politics of Uttar Pradesh Uttar Pradesh News Bharat Ratna वीर सावरकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश विधान परिषद हिंदुत्व राष्ट्रवाद बाल गंगाधर तिलक योगी सरकार योगी आदित्यनाथ दादा भाई नौरोजी महात्मा गांधी उत्तर प्रदेश कांग्रेस कांग्रेस विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह रमेश यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति उत्तर प्रदेश समाचार भारत रत्न योगी सरकारजो गोपनीयता व्हाट्सएप की जान थी उसे फेसबुक खत्म करने में लगा है
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
- जनवरी 20, 2021 13:23
- Like

अभी भी व्हाट्साप पर स्वास्थ्य-जांच रपटें, यात्रा और होटल के विवरण तथा व्यापारिक लेन-देन के संदेशों को भेजने की खुली व्यवस्था है। ‘फेसबुक’ चाहती है कि ‘व्हाट्साप’ की समस्त जानकारी का वह इस्तेमाल कर ले ताकि उससे वह करोड़ों रुपए कमा सकती है।
आजकल व्हाट्साप को दुनिया के करोड़ों लोग रोज इस्तेमाल करते हैं। वह भी मुफ्त! लेकिन पिछले दिनों लाखों लोगों ने उसकी बजाय ‘सिग्नल’, ‘टेलीग्राम’ और ‘बोटिम’ जैसे माध्यमों की शरण ले ली और यही क्रम कुछ महीने और चलता रहता तो करोड़ों लोग ‘व्हाट्साप’ से मुंह मोड़ लेते। ऐसी आशंका इसलिए हो रही है कि व्हाट्साप की मालिक कंपनी ‘फेसबुक’ ने नई नीति बनाई है जिसके अनुसार जो भी संदेश व्हाट्साप से भेजा जाएगा, उसे फेसबुक देख सकेगा याने जो गोपनीयता व्हाट्साप की जान थी, वह निकलने वाली थी। व्हाटसाप की सबसे बड़ी खूबी यही थी और जिसका बखान उसे खोलते ही आपको पढ़ने को मिलता है कि आपकी बात या संदेश का एक शब्द भी न कोई दूसरा व्यक्ति सुन सकता है और न पढ़ सकता है। यही वजह थी कि देश के बड़े-बड़े नेता भी आपस में या मेरे-जैसे लोगों से दिल खोलकर बात करना चाहते हैं तो वे व्हाट्साप का ही इस्तेमाल करते हैं।
इसे भी पढ़ें: WhatsApp प्राइवेसी पॉलिसी के बारे में सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं
इसका दुरुपयोग भी होता है। आतंकवादी, हत्यारे, चोर-डकैत, दुराचारी और भ्रष्ट नेता व अफसरों के लिए यह गोपनीयता वरदान सिद्ध होती है। इस दुरुपयोग के विरुद्ध सरकार ‘व्यक्तिगत संवाद रक्षा कानून’ ला रही है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता की रक्षा तो करेगा ही लेकिन संविधान विरोधी बातचीत या संदेश को पकड़ सकेगा। मैं आशा करता हूं कि इस महत्वपूर्ण कानून को बनाते वक्त हमारी सरकार और संसद वैसी लापरवाही नहीं करेगी, जैसी उसने कृषि-कानूनों के साथ की है।
अभी भी व्हाट्साप पर स्वास्थ्य-जांच रपटें, यात्रा और होटल के विवरण तथा व्यापारिक लेन-देन के संदेशों को भेजने की खुली व्यवस्था है। ‘फेसबुक’ चाहती है कि ‘व्हाट्साप’ की समस्त जानकारी का वह इस्तेमाल कर ले ताकि उससे वह करोड़ों रुपए कमा सकती है और दुनिया के बड़े-बड़े लोगों की गुप्त जानकारियों का खजाना भी बन सकती है। व्हाटसाप इस नई व्यवस्था को 8 फरवरी से शुरू करने वाला था लेकिन लोगों के विरोध और क्रोध को देखते हुए उसने अब इसे 15 मई तक आगे खिसका दिया है।
इसे भी पढ़ें: WhatsApp ने प्राइवेसी पॉलिसी पर दी सफाई, कहा- हम आपकी निजी चैट या कॉल नहीं देख सकते
फेसबुक को व्हाट्साप की मिल्कियत 19 अरब डालर में मिली है। वह इसे कई गुना करने पर आमादा है। उसे पीछे हटाना मुश्किल है लेकिन ‘यूरोपियन यूनियन’ की तरह भारत का कानून इतना सरल होना चाहिए कि नागरिकों की निजता पूरी तरह से सुरक्षित रह सके लेकिन मेरा अपना मानना यह है कि जिन लोगों का जीवन खुली किताब की तरह होता है, उनके यहाँ गोपनीयता नाम की कोई चीज़ ही नहीं होती। वे किसी फेसबुक से क्यों डरें ?
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

