Local ही नहीं, Global Terrorism का भी सबसे बड़ा Champion है Pakistan

पाकिस्तान को भारत इस बार करारा सबक सिखाने की तैयारी कर चुका है। माना जा सकता है कि इस बार इस्लामाबाद और रावलपिंडी में बैठे लोगों की हेकड़ी इस कदर निकलेगी कि पाकिस्तानी आतंकवाद से सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि दुनिया को भी राहत मिलेगी।
पाकिस्तान कह रहा है कि पहलगाम आतंकी हमले में हमारा हाथ नहीं है। पाकिस्तान कह रहा है कि हम तो खुद ही आतंकवाद के खिलाफ हैं इसलिए आतंकवाद को कैसे फैला सकते हैं। जबकि असलियत यह है कि दुनिया के किसी भी कोने में होने वाले आतंकवादी हमले के तार कहीं ना कहीं पाकिस्तान से जुड़े हुए नजर आते हैं। आप तमाम तथ्यों पर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि पाकिस्तान का आतंकवाद को प्रायोजित करने, शरण देने और निर्यात करने का जोरदार रिकॉर्ड है। पाकिस्तान सिर्फ सीमा पार से भारत में ही आतंकवादियों को नहीं भेजता बल्कि यह देश दशकों से अपनी ज़मीन का इस्तेमाल दुनिया भर में आतंकवाद, विद्रोह और कट्टरपंथी विचारधारा के लिए एक लॉन्चपैड के रूप में करता है। पाकिस्तान के नेता और अधिकारी भी समय-समय पर इस बात को स्वीकारते रहे हैं कि आतंकवाद वहां की सरकारी नीति रही है।
हम आपको याद दिला दें कि 2018 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने संकेत दिया था कि 2008 के मुंबई हमलों में जोकि पाकिस्तान-आधारित इस्लामी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए गए थे, उसमें पाकिस्तानी सरकार की भूमिका हो सकती है।
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हम आपको याद दिला दें कि परवेज़ मुशर्रफ़ ने स्वीकार किया था कि उनकी सेना ने कश्मीर में भारत से लड़ने के लिए आतंकवादी समूहों को प्रशिक्षण दिया था। उन्होंने माना था कि सरकार ने जानबूझकर आंखें मूंद लीं थीं क्योंकि वह भारत को बातचीत के लिए मजबूर करना और इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहती थी।
यही नहीं, अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने स्वीकार किया था कि देश ने तीन दशकों से अधिक समय तक आतंकवादी समूहों का समर्थन किया। उन्होंने इसे अमेरिका-नेतृत्व वाली विदेश नीति से जुड़ी एक "भूल" भी बताया।
वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के निर्यात का पाकिस्तान का रिकॉर्ड देखेंगे तो वह भी 'शानदार' रहा है। आस-पड़ोस छोड़िये, दूरदराज के देशों तक को पाकिस्तान ने नहीं छोड़ा है। अफगानिस्तान की ओर देखें तो पता चलता है कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को फंडिंग, प्रशिक्षण और सुरक्षित पनाह मुहैया कराई। जिससे इन समूहों ने अफगान नागरिकों, सरकारी ठिकानों और अंतरराष्ट्रीय बलों पर कई घातक हमले किए, जिनमें 2008 का काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमला और 2011 का अमेरिका दूतावास पर हमला भी शामिल है। वरिष्ठ पत्रकार कार्लोटा गॉल ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि "इस हमले को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया गया था और इसकी निगरानी की गई थी।''
यही नहीं, रूस के मॉस्को में पिछले साल कॉन्सर्ट हॉल हमले की जांच के दौरान इस साल हमले में पाकिस्तान से जुड़ा लिंक सामने आया। रूसी अधिकारियों ने मास्टरमाइंड को एक ताजिक नागरिक के रूप में पहचाना और पाकिस्तान से संभावित कनेक्शन की जांच शुरू की है। रिपोर्ट्स में कहा गया कि हमलावरों को लॉजिस्टिकल या वैचारिक समर्थन पाकिस्तानी नेटवर्क से मिला हो सकता है।
ईरान की ओर देखें तो सामने आता है कि पाकिस्तान स्थित सुन्नी उग्रवादी समूह जैश उल-अदल ने ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में बार-बार ईरानी सुरक्षा बलों पर हमले किए। इसके जवाब में ईरान ने 16 जनवरी 2024 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में मिसाइल और ड्रोन हमले किए, जिनमें जैश उल-अदल के ठिकानों को निशाना बनाया गया था। ईरान नियमित रूप से पाकिस्तान पर सुन्नी आतंकवादियों को शरण देने और उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाता रहा है।
ब्रिटेन में 2005 के लंदन बम धमाके को भी याद कीजिये। 7 जुलाई 2005 को लंदन में हुए बम धमाकों को अंजाम देने वाले चार ब्रिटिश इस्लामी आतंकवादियों का संबंध पाकिस्तान में प्रशिक्षण और कट्टरपंथी विचारधारा से था। जांच में यह बात सामने आई थी कि तीन हमलावर— मोहम्मद सिद्दीक़ ख़ान, शहज़ाद तनवीर और जर्मेन लिंडसे ने 2003 से 2005 के बीच पाकिस्तान में समय बिताया था।
यही नहीं, आतंकवाद से लड़ाई में पाकिस्तान कितना दोहरा रवैया अपनाता है इसका खुलासा तब हुआ था जब 2011 में अमेरिका ने अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में मार गिराया था। ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान की सैन्य अकादमी के पास एक सुरक्षित परिसर में वर्षों तक रहा, जिससे ISI की मिलीभगत सामने आई। एक ओर ओसामा को ढूँढ़ने के नाम पर पाकिस्तान अमेरिका से अरबों डॉलर ऐंठता रहा तो दूसरी ओर ओसामा को खुद ही सुरक्षित पनाहगाह में छिपाकर रखे रहा।
पाकिस्तान ने बांग्लादेश को भी नहीं बख्शा। आज भले बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार का पाकिस्तान पर प्रेम उमड़ रहा हो लेकिन असलियत यही है कि इस्लामाबाद ने ढाका को अस्थिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जरा बांग्लादेश में जमात-उल-मुजाहिदीन (JMB) की गतिविधियाँ याद कीजिये। पाकिस्तान की ISI पर प्रतिबंधित इस्लामी संगठन JMB को फंडिंग और प्रशिक्षण देने का आरोप है, जिसने 2016 के ढाका गुलशन कैफे पर हमले के दौरान 20 बंधकों की हत्या को अंजाम दिया था। यही नहीं, 2015 में बांग्लादेशी अधिकारियों ने पाकिस्तानी राजनयिकों को देश से तब निकाल दिया जब उन्हें JMB के एजेंटों को पैसा ट्रांसफर करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था। इसके अलावा, साल 2020 की एक खुफिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि ISI ने बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार स्थित शिविरों में 40 रोहिंग्या शरणार्थियों को JMB के ज़रिए प्रशिक्षित किया था ताकि उन्हें भारत में घुसपैठ के लिए तैयार किया जा सके। हम आपको बता दें कि JMB का नेटवर्क, खाड़ी देशों के NGO और पाकिस्तानी बिचौलियों के जरिए फंडिंग पाता है और पश्चिम बंगाल, केरल जैसे भारतीय राज्यों में यह अपने सक्रिय स्लीपर सेल बनाए हुए है।
पाकिस्तान प्रायोजित "आतंकवाद के स्कूलों'' की बात करें तो आपको बता दें कि इसके तहत सैन्य और खुफिया नेटवर्क द्वारा सैनिकों को जिहादी प्रशिक्षक बना दिया गया है और पूरे दक्षिण एशिया में दशकों से आतंक फैलाया जा रहा है। पाकिस्तान अपने पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा, वज़ीरिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) जैसे प्रांतों में आतंकवाद प्रशिक्षण शिविरों का नेटवर्क चलाता है। इन शिविरों का संचालन लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM), हिज्बुल मुजाहिदीन (HM) और आईएसआईएस-खोरासन जैसे संगठनों द्वारा किया जाता है। पूर्व पाकिस्तानी सैनिक अक्सर इन प्रशिक्षणों में सहायता करते हैं, जिससे इन अभियानों की घातक क्षमता और बढ़ जाती है।
हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिकी विदेश विभाग की 2019 की आतंकवाद पर रिपोर्ट में पाकिस्तान को एक ऐसा देश बताया गया था, जो "क्षेत्रीय रूप से केंद्रित आतंकवादी समूहों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बना रहा"। इसके अलावा, Pakistan Army and Terrorism: An Unholy Alliance शीर्षक वाली रिपोर्ट में यूरोपीय फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज़ ने पाकिस्तान की सैन्य, ISI और कट्टरपंथी धार्मिक नेताओं के बीच गहरे संबंधों को उजागर किया था। यही नहीं, सितंबर 2019 में ब्रिगेडियर शाह ने एक पाकिस्तानी निजी चैनल 'हम न्यूज़' पर पत्रकार नदीम मलिक को दिए साक्षात्कार में खुलासा किया था कि सरकार ने जमात-उद-दावा (JuD) जैसे आतंकी संगठनों को मुख्यधारा में लाने के लिए उन पर लाखों रुपये खर्च किए। इसके अलावा, एक अन्य साक्षात्कार में परवेज़ मुशर्रफ़ ने स्वीकार किया था कि कश्मीरियों को पाकिस्तान में "मुजाहिदीन" के रूप में प्रशिक्षित किया गया, ताकि वे जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना से लड़ सकें। उन्होंने आगे कहा था कि जिहादी आतंकवादी पाकिस्तान के "हीरो" हैं। उन्होंने ओसामा बिन लादेन, अयमान अल-जवाहिरी और जलालुद्दीन हक्कानी जैसे वैश्विक आतंकवादियों को "हीरो" की संज्ञा दी थी।
बहरहाल, पहलगाम हमला मामले से अपना पलड़ा झाड़ रहे पाकिस्तान को भारत इस बार करारा सबक सिखाने की तैयारी कर चुका है। माना जा सकता है कि इस बार इस्लामाबाद और रावलपिंडी में बैठे लोगों की हेकड़ी इस कदर निकलेगी कि पाकिस्तानी आतंकवाद से सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि दुनिया को भी राहत मिलेगी।
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