रिश्वत लेकर सवाल पूछने का नेताओं काला इतिहास रहा है

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा का मामला अभी भी देश के लोगों की स्मृति से मिटा भी नहीं है। महुआ मोइत्रा ने रियल एस्टेट कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के व्यवसायिक हितों की रक्षा के लिए संसद में सवाल पूछे।

देश के नेताओं ने आजादी के बाद से भ्रष्टाचार के इतने काले कारनामे किए हैं कि यदि कोई नेता ईमानदारी से अच्छा भी काम करे तब भी उस पर सहज भरोसा करना मुश्किल होता है। देश के लोगों की याद से नेताओ के काले कारनामे की छाप मिटे, इससे पहले ही कोई न कोई नया कांड ऐसा सामने आता है और पूरे तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो जाते हैं। नया मामला राजस्थान का है। भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के एक विधायक जयकृष्ण पटेल को राजस्थान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने विधानसभा में सवाल पूछने के बदले 20 लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। राजस्थान की इस क्षेत्रीय पार्टी के दो विधायक और एक सांसद हैं। आदिवासियों के उत्थान के आहवान के साथ इस पार्टी का गठन किया गया। इस पार्टी ने 2023 के विधानसभा चुनाव मे कुल चार सीटें जीती, तीन सीटें राजस्थान मे और एक सीट मध्यप्रदेश मे जीती। बीएपी की टिकट पर डूंगरपुर बांसवाड़ा संसदीय सीट जीतने वाले राजकुमार रोत लोकसभा से सांसद बने। रिश्वत लेने के आरोपी बीएपी विधायक पटेल ने विधानसभा में बीते सत्र के दौरान 11 जुलाई 2024 को अवैध खनन, फार्म हाउस, वन्य जीव और नशा तस्करी को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कुछ सवाल किये गए थे। विधानसभा में इन्हीं खनन से जुड़े सवालों को हटवाने को लेकर रिश्वत का खेल शुरु हुआ। बीएपी विधायक ने इन सवालों को हटाने के लिए 10 करोड़ की डिमांड की थी। अंतत: 20 लाख में सौदा तय हुआ और विधायक पटेल को रंगे हाथों दबोच लिया गया। यह पहला मौका नहीं है जब किसी जनप्रतिनिधि ने सदन की पवित्रता को तार-तार किया है। इससे पहले भी मामले सामने आ चुके हैं, जब विधानसभा हो या लोकसभा में सवाल पूछने या नहीं पूछने के ऐवज में रिश्वत मांग कर समूचे लोकतंत्र को कलंकित करने का काम किया गया है। 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा का मामला अभी भी देश के लोगों की स्मृति से मिटा भी नहीं है। महुआ मोइत्रा ने रियल एस्टेट कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के व्यवसायिक हितों की रक्षा के लिए संसद में सवाल पूछे। आरोप था कि महुआ मोइत्रा ने हीरानंदानी के इशारे पर 61 सवालों में 50 में अंबानी और अडानी को टारगेट किया। दर्शन हीरानंदानी ने खुलासा किया कि महुआ मोइत्रा ने अपनी संसद लॉगिन और पासवर्ड उनके साथ साझा किया था। उन्होंने महुआ की ओर से सवाल पोस्ट किए थे। एथिक्स कमेटी ने 6-4 के बहुमत से महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता खत्म करने की सिफारिश कर दी। टीएमसी सांसद मोइत्रा से पहले भी जनप्रतिनिधियों के ऐसे कृत्यों से देश में राजनीतिक बवंडर उठ चुके हैं। वर्ष 2005 में ऐसे ही एक अन्य मामले में लोकसभा के 10 और राज्यसभा के एक सांसद की सदस्यता रद्द हुई थी। तब एक वेब पोर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन किया था। स्टिंग में 11 सांसद सवाल के बदले में कैश का ऑफर स्वीकार करते दिखे थे। इनमें लोकसभा के 10 और राज्यसभा के 1 सदस्य को निष्कासित कर दिया गया था। तब केंद्र में डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-1 की सरकार थी। संसद की सदस्यता गंवाने वालों में 6 बीजेपी के थे, 3 बीएसपी के और 1-1 कांग्रेस के सांसद थे। स्टिंग में सबसे कम कैश 15000 रुपये की भाजपा सांसद छत्रपाल सिंह लोढ़ा के सामने पेशकश की गई थी जबकि सबसे ज्यादा कैश 1,10,000 रुपये आरजेडी के सांसद मनोज कुमार को ऑफर की गई थी। 

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24 दिसंबर 2005 को संसद में वोटिंग के जरिए आरोपी सभी 11 सांसदों को निष्कासित कर दिया गया। लोकसभा में प्रणब मुखर्जी ने 10 सांसदों के निष्कासन का प्रस्ताव रखा था जबकि राज्यसभा में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने एक सांसद को निष्कासित करने का प्रस्ताव रखा था। वोटिंग के दौरान भाजपा वॉकआउट कर गई थी। पार्टी के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष एलके आडवाणी ने कहा था कि सांसदों ने जो कुछ किया वह करप्शन कम, मूर्खता ज्यादा है। इसके लिए निष्कासन बहुत ही कठोर सजा होगी। जनवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सांसदों के निष्कासन के फैसले को सही ठहराया था। उसी साल दिल्ली हाई कोर्ट के निर्देश में दिल्ली पुलिस ने इस मामले में केस भी दर्ज किया था। न्यूज पोर्टल के दो पत्रकारों के खिलाफ भी चार्जशीट दाखिल हुई। संसद राज्यसभा हो या लोकसभा, सदन में सत्र की कार्यवाही के दौरान असहज कर देने वाली घटनाओं का पुराना इतिहास रहा है। पहले भी ऐसी कई घटनाओं का गवाह बना है चाहे वो पैसे के लेन-देन को लेकर आरोप लगाने का मामला हो या फिर नोटों की गड्डियां लहराने का। ऐसे कई किस्से हैं जब सदन की गरिमा को तार-तार किया गया। 22 जुलाई, 2008 को मनमोहन सरकार के विश्वासमत हासिल किए जाने के दौरान लोकसभा में एक करोड़ रुपए के नोटों की गड्डियां लहरा कर सनसनी फैला दी गई थी।   

नोट लहराने वालों में भाजपा के तीन सांसदों अशोक अर्गल, महावीर भागौरा और फग्गन सिंह कुलस्ते शामिल थे। तीनों सांसदों ने आरोप लगाया था कि समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने विश्वास मत में हिस्सा नहीं लेने के बदले रुपए देने की पेशकश की थी। जबकि इन दोनों ने इन आरोपों से इनकार किया था। इसी तरह राज्यसभा में 5 दिसंबर 2024 को कांग्रेस सांसद की बेंच से नोटों के बंडल मिलने का मामला सामने आया। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इसे गंभीर मामला बताया। साथ ही इसकी जांच कराने की बात कही है। यह सीट तेलंगाना से सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की थी। देश के लोकतंत्र पर कालिख पोतने वाली ऐसी घटनाओं से जाहिर है कि कानून बना कर देश चलाने वाले जनप्रतिनिधियो पर आम लोगों का पूरा भरोसा नहीं है। इस भरोसे के दरकने के लिए नेता जिम्मेदार हैं। दरअसल नेता और जनप्रतिनिधी जब तक खुद को कानून से ऊपर समझते रहेंगे तब तक ऐसी शर्मनाक पुनरावृत्ति से देश शर्मसार होता रहेगा।

- योगेन्द्र योगी  

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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