दक्षिण एशियाई देश अब समझ चुके हैं कि चीन से मिली मदद देती है सिरदर्द

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चीन ने कई देशों को अपनी महत्वाकांक्षी सीपीईसी (आर्थिक गलियारा) योजना में भी शामिल कर एक और कर्ज के जाल में फंसाया है। अब तो इनमें से कुछ देश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए हैं। इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व तक फलफूल रहीं थीं।

भारत के पड़ोसी देशों यथा- श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, अफगानिस्तान, लाओस एवं कुछ अफ्रीकी देशों की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है और ऐसा शायद इनमें से कुछ देशों द्वारा भारत के ही एक अन्य पड़ोसी देश चीन से लिए गए बहुत बड़ी राशि के कर्ज के चलते हो रहा है। चीन ने इन देशों को पहले तो अपने प्रभाव में लिया एवं फिर इनके यहां अधोसंरचना सम्बंधी सुविधाएं विकसित करने के उद्देश्य से ऊंची ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया और जो योजनाएं विकसित करने हेतु चुनी गईं उनसे अब इतनी आय भी अर्जित नहीं हो पा रही है कि इन ऋणों के ब्याज का भुगतान भी किया जा सके।

दूसरे, चीन ने इनमें से कई देशों को अपनी महत्वाकांक्षी सीपीईसी (आर्थिक गलियारा) योजना में भी शामिल कर एक और कर्ज के जाल में फंसाया है। अब तो इनमें से कुछ देश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए हैं। इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व तक फलफूल रहीं थीं। विशेष रूप से श्रीलंका तो एक तरह से सम्पन्न देश की श्रेणी में शामिल होने की स्थिति में पहुंच गया था क्योंकि यहां अंतरराष्ट्रीय पर्यटन बहुत अच्छी गति से आगे बढ़ रहा था। परंतु श्रीलंका के चीन के जाल में फंसते ही श्रीलंका की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई और आज श्रीलंका की सामाजिक, आर्थिक एवं सामरिक परिस्थितियां हमारे सामने हैं। श्रीलंका सरकार ने तो अपना हंबनटोटा बंदरगाह का नियंत्रण भी चीन को 99 वर्षों के लिए पट्टे पर दे दिया है और इस प्रकार आज चीन की श्रीलंका में हंबनटोटा से कोलम्बो तक आसान उपस्थिति हो गई है। यही हाल पाकिस्तान का भी है। पाकिस्तान आज चीन के बने जाल में इस प्रकार फंस गया है कि, सुना तो यहां तक जा रहा है कि, पाकिस्तान आज अपने विदेशी ऋणों के ब्याज एवं किश्तों का भुगतान करने हेतु, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि करने के उद्देश्य से, अपने देश की कई अहम संपत्तियों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीलामी करने पर विचार कर रहा है। इस प्रकार चीन ने जिस किसी देश की आर्थिक मदद की है, उन देशों की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय स्थिति में पहुंचा कर उस देश की परिसंपत्तियों पर अपना कब्जा करने का प्रयास किया है। इसीलिए अब तो यह भी कहा जा रहा है कि चीन एक उपनिवेशिक मानसिकता वाला देश है एवं अपने पड़ोसियों को गुलाम बनाने के लिए उक्त प्रकार के काम करता रहता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव, लाओस आदि देशों को अपने जाल में फंसाने के बाद बांग्लादेश, नेपाल, भूटान जैसे देशों को भी अपने प्रभाव में लेने का प्रयास चीन कर रहा है।

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भारत की तुलना में आज चीन आर्थिक दृष्टि से अधिक मजबूत राष्ट्र है। परंतु, चीन अपने पड़ोसी एवं अन्य देशों की मदद एक खास मकसद को प्राप्त करने के उद्देश्य से करता है, जैसे कि किस प्रकार इन पड़ोसी देशों को अपने कब्जे में लिया जाये और इनकी परिसंपत्तियों पर अपना हक जमाया जाये। इसके ठीक विपरीत भारत अपने पड़ोसी एवं अन्य देशों की आर्थिक मदद निस्वार्थ भाव से करता है। आज तक का इतिहास देखने पर ध्यान में आता है कि भारत ने कभी भी किसी भी देश का एक इंच मात्र भूमि का टुकड़ा भी नहीं हथियाया है। हालांकि भारत की आर्थिक परिस्थितियां चीन की तुलना में उतनी मजबूत नहीं हैं कि अपने पड़ोसी देशों की खुलकर मदद कर सके परंतु फिर भी भारत ने अपना बड़ा हृदय दिखाते हुए विपरीत परिस्थितियों के बीच भी हाल ही के समय में श्रीलंका की वास्तविक मदद की है। चाहे वह अनाज, तेल आदि जैसे पदार्थों को श्रीलंका की जनता को उपलब्ध कराना हो अथवा श्रीलंका सरकार को लगभग 3.5 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना हो। भारत आज श्रीलंका के लिए एक देवदूत के रूप में उभरा है। भारत ने श्रीलंका को अभी तक 40 हजार मीट्रिक टन डीजल एवं 40 हजार टन चावल उपलब्ध कराए हैं। भारत ने इसी प्रकार तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान को भी मानवीय आधार पर 50 हजार टन गेहूं, 13 टन जीवनरक्षक दवाइयां, चिकित्सीय उपकरण और पांच लाख कोविड रोधी टीकों की खुराकों के साथ अन्य आवश्यक वस्तुएं (ऊनी वस्त्र सहित) भी उपलब्ध कराईं हैं। अब तो भारत के सभी पड़ोसी देशों को भी यह समझ में आने लगा है कि केवल भारत ही उनके आपत्ति काल में उनके साथ खड़े रहने की क्षमता रखता है। विशेष रूप से पिछले 8 वर्षों के खंडकाल में भारत के लिए परिस्थितियां तेजी से बदली हैं एवं भारत पुनः वैश्विक स्तर पर एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। अब भारत कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करते हुए अपने पड़ोसी देशों की सहायता में बहुत आगे आ रहा है। हाल ही के समय में भारत अपने कई पड़ोसी देशों का संकटमोचक बना है।

ऐसा आभास होता है कि श्रीलंका के साथ ही उक्त वर्णित अन्य देशों से भी अपने मित्र राष्ट्र चुनने में कहीं न कहीं कुछ चूक हुई है। इन देशों के भारत के साथ संबंध जब तक मजबूत रहे एवं भारत की ओर से इनको भरपूर सहायता एवं सहयोग मिलता रहा तब तक ये सभी राष्ट्र सुखी एवं सम्पन्न राष्ट्र बने रहे। क्योंकि भारत ने कभी भी इन देशों की किसी भी मजबूरी का गलत फायदा उठाने की कोशिश नहीं की। इसके ठीक विपरीत जब जब ये देश अपनी नजदीकियां चीन से बढ़ाने लगे तो स्वाभाविक तौर पर इनके आर्थिक रिश्ते भी चीन के साथ मजबूत होते चले गए। चीन ने इन देशों के आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो रहे रिश्तों का भरपूर लाभ उठाया और इन्हें अपनी सबसे बड़ी बेल्ट एवं रोड परियोजना में शामिल कर लिया एवं इन देशों को भारी मात्रा में कर्ज उपलब्ध कराकर अपने जाल में फंसा लिया।

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चीन ने भारत को घेरने के लिए दक्षिण एशियाई देशों की बड़ी मदद करनी शुरू कर दी थी और इन्हें अपनी महत्वाकांक्षी आर्थिक गलियारा योजना में भी शामिल कर लिया था लेकिन इसके बदले में चीन इन देशों से जो कीमत वसूल रहा है वह इन देशों को बहुत ही भारी पड़ रही है। आज जो श्रीलंका में हालात हैं वैसा ही कुछ थोड़े समय पहले मालदीव में भी दिख रहा था जोकि चीन के कर्ज के जाल में बुरी तरह फंस चुका था। वह तो भारत ने सही समय पर आगे आकर मालदीव की आर्थिक मदद की थी जिसके चलते मालदीव इस आर्थिक संकट से बाहर आ गया। कुछ समय पूर्व नेपाल का झुकाव भी चीन की ओर दिखाई दे रहा था एवं चीन की शह पर नेपाल भारत से भी अपने सम्बन्धों को खराब करता नजर आ रहा था। लेकिन बहुत शीघ्र ही नेपाल को यह समझ में आ गया कि चीन उसको निगलने की फिराक में है। भूटान तो चीन के कई परियोजना प्रस्तावों को ठुकरा चुका है। बांग्लादेश भी समझ रहा है कि चीन आजकल क्यों उस पर ज्यादा मेहरबान होता दिख रहा है। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो वह भी चीन के कर्ज के जाल में बुरी तरह उलझा हुआ है और अपनी आर्थिक जरूरतों को पूर्ण करने के लिए आवश्यकता से अधिक चीन पर निर्भर हो गया है। लेकिन कई विशेषज्ञों का मत है कि पाकिस्तान के लिए जल्द ही वह दिन आने वाला हे जब वह चीन से दोस्ती की बड़ी कीमत अदा करता नजर आएगा।

परंतु अब तो कई देशों का भारत पर विश्वास बढ़ता जा रहा है एवं ये देश भारत की सहायता से अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने के ओर अग्रसर हैं। जैसे कि फिलीपींस ने अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने के उद्देश्य से भारत से 37.49 करोड़ डॉलर के ब्रह्मोस मिसाइल क्रय करने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है। भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के सम्बंध में इसी प्रकार के निर्णय वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और सिंगापुर भी शीघ्र ही लेने वाले हैं। इसी प्रकार अभी हाल ही में भारत का स्वदेशी निर्मित तेजस हल्का लड़ाकू विमान मलेशिया की पहली पसंद बनाकर उभरा है। मलेशिया ने अपने पुराने लड़ाकू विमानों के बेड़े को बदलने के लिए प्रतिस्पर्धा की थी। जिसमें चीन के जेएफ-17, दक्षिण कोरिया के एफए-50 और रूस के मिग-35 के साथ-साथ याक-130 से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद मलेशिया ने भारतीय विमान तेजस को पसंद किया है। आज देश की कई सरकारी एवं निजी क्षेत्र की कंपनियां विश्व स्तर के रक्षा उपकरण भारत में बना रही हैं एवं उनके लिए विदेशी बाजारों के दरवाजे खोले दिए गए हैं। इस कड़ी में 30 दिसम्बर 2020 को आत्म निर्भर भारत योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने स्वदेशी मिसाइल आकाश के निर्यात को अपनी मंजूरी प्रदान की थी। आकाश मिसाइल भारत की पहचान है एवं यह एक स्वदेशी (96 प्रतिशत) मिसाइल है। दक्षिणपूर्व एशियाई देश वियतनाम, इंडोनेशिया, और फिलिपींस के अलावा बहरीन, केन्या, सऊदी अरब, मिस्र, अल्जीरिया और संयुक्त अरब अमीरात ने आकाश मिसाइल को खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है। आकाश मिसाइल के साथ ही कई अन्य देशों ने तटीय निगरानी प्रणाली, राडार और एयर प्लेटफार्मों को खरीदने में भी अपनी रुचि दिखाई है।

-प्रह्लाद सबनानी 

सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक 

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