आखिरकार इजरायल द्वारा ईरान पर रणनीतिक हमला किए जाने के वैश्विक मायनों को ऐसे समझिए

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कमलेश पांडे । Jun 14 2025 1:13PM

समझा जाता है कि ईरान की बार-बार की बन्दरघुड़की का इजरायल ने करारा जवाब दिया है। इस्राइल ने ईरान के 'परमाणु कार्यक्रम ठिकानों' पर अचानक हमला करके न केवल सबको चौंका दिया है बल्कि इस पूरे क्षेत्र को एक बार फिर से अनिश्चितता के जद्दोजहद में धकेल दिया है।

लीजिए एक और युद्ध का आगाज हो गया। इससे हथियार निर्माता कम्पनियों की बाछें पुनः खिल गई। कहते हैं कि मरता क्या नहीं करता? आखिरकार बत्तीस दांतों के बीच घिरी जिह्वा की तरह मुस्लिम देशों से घिरे एकमात्र यहूदी मुल्क इजरायल ने अपने रणनीतिक हिफाजत के लिए मुस्लिम वर्ल्ड के सरगना देश ईरान पर निर्णायक हमला बोल दिया है, ताकि उसके परमाणु कार्यक्रमों पर ब्रेक लगाकर संभावित परमाणु हमलों से इजरायल के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। 

समझा जाता है कि ईरान की बार-बार की बन्दरघुड़की का इजरायल ने करारा जवाब दिया है। इस्राइल ने ईरान के 'परमाणु कार्यक्रम ठिकानों' पर अचानक हमला करके न केवल सबको चौंका दिया है बल्कि इस पूरे क्षेत्र को एक बार फिर से अनिश्चितता के जद्दोजहद में धकेल दिया है। इससे महंगाई और बर्बादी दोनों बढ़ेगी। वहीं, गुटीय युद्ध से बचने के लिए अमेरिका ने तत्काल यह साफ किया है कि इस कार्रवाई में वह शामिल नहीं है। वहीं, अब यह भी लगभग तय माना जा रहा है कि रूस और चीन की रजामंदी के बाद ईरान भी पुरजोर जवाबी कार्रवाई करेगा। इससे तीसरा विश्वयुद्ध भी भड़क सकता है।

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दरअसल, इजरायल ने ईरान के खिलाफ अपनी कार्रवाई को ऑपरेशन राइजिंग लायन नाम दिया है, जो बताता है कि यह अपने आप में महज एक कार्रवाई नहीं बल्कि नया सिलसिला हो सकता है। हमलों का व्यापक रूप भी इसकी गंभीरता को स्पष्ट कर देता है। यह हमला भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ छेड़े गए ऑपरेशन सिंदूर की कार्रवाई जैसा है, लेकिन अपने दृढ़ संदेश में ऑपरेशन राइजिंग लायन एक मजबूत संदेश देता है, जिससे इस्लामिक देशों की चूलें हिल चुकी हैं। 

वहीं, ईरान ने भी यह माना है कि इन हमलों में उसके कम से कम छह परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। यही नहीं, ईरान के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉप्स के चीफ हुसैन सलामी के भी मारे जाने की खबर है। इससे ईरान ने जवाबी कार्रवाई का इरादा भी जता दिया है।

वहीं, इस्राइली कार्रवाई के वैश्विक दुष्प्रभावों का संकेत इसी एक तथ्य से मिल जाता है कि पहले हमले के कुछ घंटों के अंदर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें 13% बढ़ गई। जबकि कुछ शेयर बाजार रॉकेट की तरह भागे, और कुछ धराशायी हो गए। 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस्राइल लंबे समय से कहता रहा है कि ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से हर हाल में रोका जाए और जरूरी हो तो उसके लिए बल प्रयोग से भी हिचका न जाए। क्योंकि उसका यह कहना है कि ईरान इस स्थिति में आ गया था कि कुछ दिनों के अंदर ही वह 15 परमाणु बम बना सकता था। जो इजरायल के खिलाफ ही उपयोग होता। ऐसे में उसने निर्णायक हमले किए। 

यह बात दीगर है कि इस्राइल के इन आरोपों की स्वतंत्र तौर पर पुष्टि नहीं हुई है। वहीं यह बात भी सत्य है कि इस मसले पर अमेरिका से ईरान की बातचीत चल रही थी। 15 जून रविवार को भी दोनों पक्षों में अगले दौर की वार्ता होनी थी। ऐसे में इस्राइल की अचानक की गई इस कार्रवाई के बाद सभी पक्षों की नजरें इस पर टिक गई हैं कि आगे घटनाक्रम कैसा रूप लेता है।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि ईरान की जवाबी कार्रवाई का स्वरूप कैसा और उसका दायरा कितना बड़ा होता है। क्या वह खुद को इस्राइल के खिलाफ सांकेतिक कार्रवाई तक सीमित रखता है या फिर अमेरिकी दूतावासों व अन्य ठिकानों को भी अपनी जद में लेता है या होरमुज की खाड़ी से गुजरते जहाजों को भी निशाना बनाता है जहां से 21% ग्लोबल तेल की सप्लाई होती है।

गौरतलब है कि इजरायली हमले के बाद वहां के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि इजरायल ने ईरान की मुख्य संवर्धन सुविधा, परमाणु विज्ञानियों और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को निशाना बनाया। उन्होंने ईरान पर हमले के बाद यह साफ कर दिया कि ऑपरेशन राइजिंग लॉयन अभी खत्म नहीं हुआ है। इजरायली हमले में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख हुसैन सलामी के मारे जाने की पुष्टि हुई है।

वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा कि ईरान पर हुए इजरायली हमलों में अमेरिका शामिल नहीं है। साथ ही उन्होंने तेहरान को अमेरिकी हितों और कर्मियों को निशाना बनाने के खिलाफ चेतावनी दी। जबकि इजरायली रक्षा अधिकारी ने दावा किया कि हमलों में ईरान के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल मोहम्मद बाघेरी और उनके कई शीर्ष सैन्य अधिकारी मारे जा चुके हैं।

ईरान पर इजरायली हमले के बाद अमेरिका ने एक आपात बैठक बुलाई। डोनाल्ड ट्रंप की अध्यक्षता में यह बैठक हुई। इसमें अद्यतन स्थिति की समीक्षा करते हुए आगे की एहतियाती रणनीति तय की गई। चूंकि तेहरान में हुए धमाकों के बाद इराक और ईरान ने अपना एयरस्पेस बंद कर दिया है। इससे वैश्विक वायुयान सेवाओं पर भी असर पड़ना लाजिमी है। 

वहीं, इजरायल ने ईरान में हमले के बाद देशभर में इमरजेंसी लागू की। इसके अलावा इस्राइल ने दुनिया भर में अपने दूतावास बंद करने का एलान किया है। साथ ही इस्राइल ने अपने नागरिकों से सतर्क रहने और सार्वजनिक स्थानों पर यहूदी या इस्राइली प्रतीक न दिखाने की अपील की है। 

मालूम हो कि विगत कई दशकों से गाजा पट्टी में इजरायल के खिलाफ संघर्षरत फिलिस्तीनियों और हमास के आतंकियों को जहां ईरान, सीरिया, जॉर्डन आदि मुस्लिम देश खुला समर्थन दे रहे हैं, वहीं पाकिस्तान-तुर्किये-अजरबैजान जैसे कुख्यात मुस्लिम देश भी उन आतंकियों को गुप्त शह प्रदान कर रहे हैं। लिहाजा इजरायल ने अब तय कर लिया है कि उसके खिलाफ षड्यंत्र में शामिल मुस्लिम देशों को अब बारी-बारी से भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। 

शायद इसलिए इजरायल ने अब ऐसे मुल्कों की जड़ों पर ही हमला बोलने का निश्चय किया है, जिसकी खौंफनाक शुरुआत भी कर दी है। जिसके बाद पश्चिम एशिया के दो कट्टर विरोधियों के बीच एक व्यापक युद्ध की आशंका तेज हो गई है। इसे 1980 के दशक में इराक के साथ युद्ध के बाद ईरान पर सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। 

जानकारों की मानें तो पहाड़ों में भी ईरान के परमाणु ठिकाने हैं, जिसे अमेरिकी मदद के बिना इजरायल खत्म नहीं कर पाएगा। उनका कहना है कि इजरायल सिर्फ ईरानी

परमाणु ठिकाने को ही नहीं, बल्कि उसकी खुमैनी सरकार को भी हटाना चाहता है। इसलिए इतना खतरनाक हालात पैदा किए हुए है। जाहिर है कि बिना अमेरिका, यूरोप व एशिया के नाटो देशों के इशारे के वह ऐसी हिमाकत कदापि नहीं कर सकता है। 

वहीं, हमले के बाद आईडीएफ  ने कहा कि ईरान लगातार इजरायल के खिलाफ प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है और अपने प्रॉक्सी गुटों के जरिए क्षेत्र में अस्थिरता फैला रहा है। इससे साफ है कि देर सबेर वह दूसरे मुस्लिम सरगना देश तुर्किये और तीसरे इस्लामिक आतंकवादी सरगना देश पाकिस्तान के ऊपर भी हमला अवश्य करेगा। फिलवक्त चूंकि पाकिस्तान व तुर्किये अमेरिका के सरपरस्त देश हैं, इसलिए इनकी बारी कब आएगी, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। सिर्फ वक्त का इंतजार करना ही श्रेयस्कर होगा। 

इस प्रकार देखा जाए तो इजरायल-ईरान विवाद से जुड़े इस पूरे मसले पर वर्ल्ड इस्लामिक काउंसिल (ओआईसी) के लगभग 56 मुस्लिम सदस्य देश भी आपस में विभाजित हैं, क्योंकि जो अमेरिका के सरपरस्त हैं, वो चुप्पी साधे बैठे हैं। वहीं जो रूस-चीन-उत्तर कोरिया के समर्थक हैं, वो ईरान के पक्ष में एकजुट हो सकते हैं। चूंकि अमेरिका ने बड़ी सफाई से खुद को अलग कर लिया है, इसलिए अब यह रूस-चीन के ऊपर है कि वो खुलकर मैदान में आएंगे या नहीं। जबकि गुटनिरपेक्ष देश भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह इजरायल-ईरान युद्ध में भी अपनी तटस्थता बरकरार रखी है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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