जम्मू-कश्मीर राज्यसभा चुनाव में उलटफेर ने भाजपा की मजबूती और विपक्ष की कमजोरी उजागर कर दी

Omar Abdullah Sat Sharma
ANI

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि चार विधायकों ने जानबूझकर गलत प्राथमिकता क्रम अंकित कर अपने वोट अमान्य किए और भाजपा की मदद की। वहीं, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने इसे “फिक्स मैच” बताते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस और भाजपा की मिलीभगत करार दिया।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में शुक्रवार को उस समय हलचल मच गई जब राज्यसभा चुनाव में अप्रत्याशित परिणाम सामने आए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी अपेक्षा से अधिक समर्थन पाकर एक सीट जीत ली, जबकि INDIA गठबंधन (राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी) ने शेष तीन सीटें अपने नाम कीं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सत शर्मा ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी डार को हराया, जबकि भाजपा के पास महज 28 विधायक हैं लेकिन सत शर्मा को 32 वोट मिले। चार अतिरिक्त वोट कहां से आए, यह अब सबसे बड़ा राजनीतिक सवाल है।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि चार विधायकों ने जानबूझकर गलत प्राथमिकता क्रम अंकित कर अपने वोट अमान्य किए और भाजपा की मदद की। वहीं, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने इसे “फिक्स मैच” बताते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस और भाजपा की मिलीभगत करार दिया। यह चुनाव इसलिए भी खास था क्योंकि एक दशक से अधिक समय बाद जम्मू-कश्मीर में राज्यसभा चुनाव हुआ है। 88 में से 86 विधायकों ने मतदान किया, जिसमें एक वोट डाक से डाला गया। एनसी के उम्मीदवार चौधरी मोहम्मद रमजान और साजिद किचलू पहली दो सीटों पर आसानी से विजयी रहे, जबकि तीसरी सीट पर पार्टी को कांग्रेस और पीडीपी का समर्थन मिला।

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कांग्रेस इस बार पहली बार राज्यसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतार सकी, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उसे केवल चौथी “असुरक्षित” सीट देने का प्रस्ताव दिया था। भाजपा ने अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए विपक्षी खेमे में सेंधमारी की और अंततः अपने प्रदेश अध्यक्ष सत शर्मा को जिताने में सफल रही।

सबसे बड़ी बहस इस बात पर है कि वह चार विधायक कौन थे जिन्होंने विपक्ष को समर्थन का वादा करने के बावजूद भाजपा के पक्ष में वोट दिया या अपने मत जानबूझकर अमान्य किए। चूंकि राज्यसभा चुनाव में मतदान गोपनीय नहीं होता, फिर भी निर्दलीय विधायकों को अपने मत पत्र दिखाने की बाध्यता नहीं है।

राजनीतिक दृष्टि से देखें तो यह परिणाम विपक्षी एकता के भीतर विश्वास के संकट की ओर संकेत करता है। INDIA गठबंधन की कथित मजबूती अब प्रश्नों के घेरे में है। जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में, जहां क्षेत्रीय दलों की राजनीति पहचान और अस्मिता के सवालों से जुड़ी होती है, ऐसे परिणाम गठबंधन की नैतिक साख पर असर डाल सकते हैं।

देखा जाये तो नेशनल कॉन्फ्रेंस को इस परिणाम के बाद आत्ममंथन करना होगा। उसने कांग्रेस और पीडीपी के साथ मिलकर तीन सीटें तो जीत लीं, लेकिन चौथी सीट पर पराजय से यह स्पष्ट है कि उसकी पकड़ पूरी तरह मजबूत नहीं रही। “असुरक्षित सीट” पर हार ने यह भी दिखाया कि एनसी को अपने सहयोगियों पर भरोसा नहीं था और शायद यही रणनीतिक गलती भारी पड़ी।

जम्मू-कश्मीर में भाजपा का यह परिणाम राजनीतिक पुनर्स्थापन के संकेत देता है। 2019 के बाद से जबसे अनुच्छेद 370 हटाया गया, भाजपा को स्थानीय राजनीति में “बाहरी दल” की तरह दिखाने का अभियान विरोधी दलों की ओर से चलाया गया। लेकिन इस चुनाव में क्रॉस वोटिंग के सहारे सीट जीतकर भाजपा ने यह संदेश दिया है कि वह अब भी क्षेत्रीय सत्ता संतुलन को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।

यह परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर भी INDIA गठबंधन के लिए झटका है। यह दिखाता है कि विपक्ष की एकता केवल औपचारिक है; जमीनी स्तर पर मतभेद और स्वार्थ राजनीति पर हावी हैं। कांग्रेस की भूमिका विशेष रूप से कमजोर दिखी क्योंकि वह न तो अपने राज्य इकाई की बात मनवा सकी, न ही चौथी सीट पर जोखिम लेने का साहस दिखा सकी। साथ ही सज्जाद लोन की “फिक्स मैच” वाली टिप्पणी केवल राजनीतिक बयान नहीं बल्कि स्थानीय राजनीति में अविश्वास के बढ़ते माहौल का संकेत है। जब जनता यह देखती है कि विधायकों की निष्ठा किस दिशा में झुकती है, तो लोकतंत्र पर भरोसा कमजोर पड़ता है।

बहरहाल, राज्यसभा चुनाव का यह परिणाम केवल एक संसदीय उपलब्धि नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में विश्वास, गठबंधन और वैचारिक प्रतिबद्धता के नए परीक्षण का प्रतीक है। भाजपा ने दिखा दिया कि वह अभी भी अप्रत्याशित समीकरण बनाकर खेल पलट सकती है। वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस और उसके सहयोगियों को यह समझना होगा कि केवल भाजपा-विरोध की राजनीति अब पर्याप्त नहीं है।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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