हरियाणा में कांग्रेस क्या वाकई 'वोट चोरी' के चलते हारी? हमने जो ग्राउण्ड पर देखा वो चौंकाने वाला था

हरियाणा चुनाव परिणाम के एक साल बाद अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हरियाणा में “वोट चोरी” का आरोप लगाते हुए ‘एच-फाइल्स’ जारी करते हुए दावा किया है कि राज्य में हर आठवां मतदाता फर्जी है। लेकिन उन्होंने इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं पेश किये हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत को वोटों की चोरी और हेरफेर का परिणाम बताया है। राहुल गांधी ने एक तरह से सवाल उठाते हुए कहा है कि कांग्रेस की स्पष्ट चुनावी जीत की संभावना के बीच भाजपा आखिर कैसे स्पष्ट बहुमत हासिल कर सकती है? राहुल गांधी ने भारतीय निर्वाचन आयोग और भाजपा पर जो सवाल उठाये हैं उससे पहले उन्हें इस बात का जवाब देना चाहिए कि आखिर क्यों कांग्रेस को हरियाणा विधानसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त करने में एक साल का समय लग गया? आखिर क्यों कांग्रेस हरियाणा में हुड्डा परिवार से बाहर के किसी नेता को नेतृत्व नहीं सौंप पाती? राहुल गांधी को समझना होगा कि समस्या मतदाता सूची में नहीं बल्कि उसके राज्य नेतृत्व में है।
राहुल गांधी को हरियाणा में भाजपा की जीत के कारणों पर ध्यान देने की बजाय इस बात पर आत्ममंथन करना चाहिए कि कांग्रेस की करारी पराजय के कारण क्या रहे? सवाल उठता है कि हरियाणा की जिस जनता ने विधानसभा चुनावों से कुछ माह पहले लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस को अच्छा जन समर्थन दिया था उसने विधानसभा चुनावों में पार्टी से क्यों मुँह मोड़ लिया?
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प्रभासाक्षी की टीम ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में पूरे राज्य में घूम घूमकर प्रचार को कवर किया था। सबसे पहली बात जो धरातल पर नजर आ रही थी वह यह थी कि कांग्रेस की हवा सिर्फ मीडिया में है जमीन पर नहीं। दूसरी बात यह थी कि हुड्डा गुट ने जिस तरह पूरी कांग्रेस पर कब्जा किया हुआ था उससे पार्टी के अन्य गुट बेहद नाराज थे। खासकर टिकटों के बंटवारे, चुनाव प्रचार में भूमिका आदि के मामले में जिस तरह कुमारी शैलजा के साथ कांग्रेस नेतृत्व ने भेदभाव किया था उसके चलते गुस्सा सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मन में ही नहीं बल्कि समाज के भीतर भी दिख रहा था। खुद कुमारी शैलजा जिस तरह चुनावों के बीच नाराज चल रही थीं उससे हुड्डा गुट के प्रति गुस्सा उभर रहा था। कई सीटों पर मैंने देखा कि कांग्रेस के उम्मीदवार अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ सिर्फ चुनाव नहीं लड़ रहे थे बल्कि वह पार्टी के भीतर मौजूद दूसरे गुटों से भिड़ने में ज्यादा समय लगा रहे थे। उनके चुनाव कार्यालय में बैठे लोग अपने प्रतिद्वंद्वी से ज्यादा पार्टी के ही नेताओं के खिलाफ बयानबाजी करने में मशगूल रहते थे।
इसके अलावा, कांग्रेस ने कई ऐसे प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था जोकि अपने पैसे के बलबूते ही जीत की उम्मीद कर रहे थे। मैंने देखा कि ऐसे दो कांग्रेस उम्मीदवारों का सारा जोर सिर्फ फिल्मी सितारों से प्रचार करवाने में है। एक दो सभा के बाद वह अपनी आरामगाह में चले जाते थे और फिर शाम को ही प्रचार के लिए निकलते थे। प्रचार के लिए निकलने से पहले मुद्दों को समझने की बजाय उनका ज्यादा जोर 'अच्छा दिखने' पर रहता था। एक कांग्रेस उम्मीदवार तो ऐसे भी दिखे जोकि दिन में ही इतना नशा कर लेते थे कि प्रचार करने की हालत में नहीं रहते थे, ऐसे में प्रचार की कमान उनके बेटे ने संभाल रखी थी। एक कांग्रेस उम्मीदवार का सारा जोर सिर्फ इसी बात पर था कि मतदाताओं को कैसे 'खुश' किया जाये। हालांकि बातचीत में वह यह तक नहीं बता पा रहे थे कि उनके क्षेत्र की समस्याएं क्या हैं और उनकी पार्टी ने जो घोषणापत्र जारी किया है उसमें क्या वादे किये गये हैं।
कई विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस उम्मीदवारों की सभाओं में बच्चों की अच्छी खासी संख्या दिखती थी। पूछने पर बच्चे बताते थे कि उनके परिजन तो भाजपा को वोट देंगे। यही नहीं, एक कांग्रेस उम्मीदवार की रैली में उम्मीदवार का जोरदार अंदाज में स्वागत करने वाली गांव की सरदारी ने भी मुझसे बातचीत में कहा कि गांव तो भाजपा को वोट देगा लेकिन सबका सम्मान करना हमारी परम्परा और संस्कृति है इसलिए किसी को निराश नहीं करते। इसके अलावा, हरियाणा में एक कांग्रेस उम्मीदवार ने पार्टी की सरकार बनने पर सरकारी नौकरियों के आवंटन को लेकर विवादित बयान दे डाला था जिससे कांग्रेस बैकफुट पर आ गयी थी। साथ ही एक बात पूरे हरियाणा में देखने को मिल रही थी कि हुड्डा पिता-पुत्र की रैलियों या रोड शो में आये कार्यकर्ता जिस तरह का हुड़दंग कर रहे थे उसके चलते लोगों के मन में खासतौर पर पिछड़ी जातियों के मन में खौफ पैदा हो रहा था। इस सबके अलावा, कांग्रेस हरियाणा में उसी अति-आत्मविश्वास की शिकार हुई जिसने 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुँचाया था।
वहीं हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के कारणों को देखें तो सबसे बड़ा और अहम कारण यह रहा कि आरएसएस और भाजपा के बीच समन्वय बहुत बेहतर था। पूरे हरियाणा में कोई ऐसा विधानसभा क्षेत्र नहीं था जहां भाजपा के प्रवासी कार्यकर्ताओं की टोली चुनाव प्रबंधन से जुड़े कार्य नहीं संभाल रही हो। भाजपा उम्मीदवारों के चुनाव कार्यालय में पार्टी कार्यकर्ता सिर्फ इसी बात में मशगूल दिखते थे कि मतदाता पर्चियां मतदाताओं तक और बस्ते बूथ एजेंटों तक समय से पहुँच जायें। इसके अलावा, हरियाणा में लगभग सवा नौ साल तक मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ उपजी नाराजगी को भांप कर भाजपा नेतृत्व ने भले उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा कर दिल्ली की राजनीति में स्थापित कर दिया था लेकिन खट्टर का मन हरियाणा में ही लगा देख कर ऐन चुनावों के समय एक और बड़ा निर्णय लेते हुए पूरे चुनाव प्रचार अभियान से खट्टर का नाम और उनकी तस्वीर गायब कर दी गयी। हमने पाया कि भाजपा की हर चुनावी रैली अथवा जनसभाओं के दौरान मंच पर या उसके आसपास लगने वाले पोस्टरों, बैनरों और होर्डिंगों में खट्टर का नाम और तस्वीर नहीं थी। यही नहीं हरियाणा सरकार की जिन उपलब्धियों के सहारे भाजपा ने चुनाव लड़ा उसमें भी खट्टर की तस्वीर नहीं लगायी गयी। भाजपा ने साधारण लोगों की तस्वीरों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार सामग्री में किया। जैसे युवाओं की तस्वीरों के साथ लिखा गया कि बिना खर्ची पर्ची नौकरी दी गयी। किसानों की तस्वीरों के साथ लिखा गया कि 24 फसलों का एमएसपी दे रही हरियाणा सरकार, महिलाओं की तस्वीरों के साथ लिखा गया कि तमाम योजनाओं का लाभ दे रही भाजपा सरकार। इसी प्रकार अन्य उपलब्धियों का बखान करते हुए भी प्रचार सामग्री तैयार करवायी गयी जिसमें आम लोगों की तस्वीरें प्रकाशित की गयी थी।
इसके अलावा, हरियाणा में कांग्रेस सिर्फ हवा में है जमीन पर नहीं, इस बात का पता जैसे ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को चला वैसे ही उसने प्रचार के अंतिम 10 दिनों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार जनसभाएं कराई गयीं और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत तमाम मुख्यमंत्रियों को चुनाव प्रचार में उतार दिया गया। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने 70 से ज्यादा रैलियां और जनसभाएं कीं। जवाब में भाजपा ने 150 सभाएं और रैलियां कर माहौल को पूरी तरह बदल दिया।
इसके अलावा, हरियाणा में कांग्रेस ने जमीन तक इस बात को पहुँचाने में सफलता हासिल कर ली थी कि 'कांग्रेस आ रही है, भाजपा जा रही है'। भाजपा ने इस हवा की चाल को धीमा करने के लिए परिवारवाद को मुद्दा बनाया और भूपिंदर सिंह हुड्डा के पिछले शासन की याद दिलाई जिससे माहौल बदलने लगा। भाजपा ने जनता के बीच इस धारणा को मजबूत किया कि अगर कांग्रेस आई तो निश्चित रूप से हुड्डा को कमान सौंपी जाएगी। कांग्रेस नेतृत्व ने भी बार-बार हुड्डा को ही कमान सौंपने के संकेत दिये जिससे फायदा होने की बजाय नुकसान होता दिखा क्योंकि हुड्डा को अपने पिछले कार्यकाल में सिर्फ रोहतक का सीएम माना जाता था और उन पर अपने आलाकमान को खुश रखने के लिए प्रदेश के संसाधनों का दुरुपयोग करने के आरोप भी हैं। कई क्षेत्रों के लोगों ने हमसे कहा कि हुड्डा ने सिर्फ रोहतक में काम किया जिससे वहां की जमीनों के रेट ज्यादा हैं और उनके इलाके की जमीनों का रेट बहुत कम है।
इसके अलावा, भाजपा ने जिस एकजुटता और रणनीति के साथ हरियाणा में काम किया उससे पार्टी चुनावी मुकाबले में तेजी से वापसी करती दिखी। रैलियों, सभाओं और डोर टू डोर हुए प्रचार के बाद मिल रहे फीडबैक से भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह दिखा और इस उत्साह को और बढ़ाने के लिए पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी इसलिए 3 अक्टूबर 2024 को शाम पांच बजे चुनाव प्रचार थमने तक भाजपा के प्रदेश के बड़े नेता, दूसरे राज्यों के मंत्री और मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय मंत्री जनता के बीच लगातार पहुंचकर भाजपा की सरकार तीसरी बार बनाने की अपील करते दिखे। खासतौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब 'बंटेंगे तो कटेंगे' वाला भाषण दिया तो उसके परिणामस्वरूप ध्रुवीकरण जोरदार ढंग से हुआ। इसके अलावा हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान ही नवरात्रि का पर्व भी चल रहा था और ऐसे में धर्म तथा राजनीति का मिश्रण भाजपा के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहा था।
इसके अलावा, कुछ पहलवानों के जंतर मंतर पर हुए धरने प्रदर्शन से जुड़े मुद्दे तथा अग्निवीर योजना को लेकर भले लोकसभा चुनावों में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा हो लेकिन धरना प्रदर्शन करने वाले पहलवानों ने राजनीति में उतर कर गलती कर दी। इससे जनता में यह सीधा संदेश गया कि सब कुछ राजनीतिक ड्रामा था। साथ ही चुनाव प्रचार के अंतिम क्षणों में पलवल की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यह कहा कि सेना का सम्मान ही उनके लिए सबकुछ है तो अग्निवीर योजना को लेकर नाराज लोगों के मन शांत हो गये। विपक्ष ने किसानों की नाराजगी को मुद्दा बनाया था लेकिन जब किसानों से पूछो तो वह कहते थे कि भाजपा सरकार में सब कुछ ऑनलाइन हो गया है जिससे भ्रष्टाचार खत्म हो गया है और अब हमें मुआवजा या मदद सीधे खाते में मिल जाती है। तमाम गांवों की सरदारी यह बताते नहीं थकती थी कि बिना खर्ची पर्ची के हमारे गांव के इतने लड़कों की नौकरी लग गयी है। महिलाओं से पूछो तो वह कहती थीं कि हमारा आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्तिकरण हुआ है और हरियाणा की धरती से दिया गया 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' नारा अब एक राष्ट्रीय आंदोलन बन चुका है जिससे देश भर में महिलाओं की स्थिति में बड़ा सुधार आया है। साथ ही ऐन चुनावों से पहले नायब सिंह सैनी की सरकार ने लोगों को बसों में फ्री पास की सुविधा समेत जो लाभ दिये या अपने घोषणापत्र में जो लुभावने वादे किये उससे भी जनता भाजपा की ओर आकर्षित हुई।
चुनाव परिणाम के एक साल बाद अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हरियाणा में “वोट चोरी” का आरोप लगाते हुए ‘एच-फाइल्स’ जारी करते हुए दावा किया है कि राज्य में हर आठवां मतदाता फर्जी है। लेकिन उन्होंने इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं पेश किये हैं। राहुल गांधी ने जिन घरों में कथित तौर पर सैंकड़ों मतदाता पंजीकृत बताए हैं वहाँ असल में बड़ी संयुक्त पारिवारिक बस्तियाँ हैं जो चार या छह पीढ़ियों तक फैली हुई हैं। साथ ही राई विधानसभा क्षेत्र में जहाँ ब्राज़ीलियन मॉडल की तस्वीर इस्तेमाल होने का दावा था, वहाँ की महिलाओं का कहना है कि वास्तव में वह अपने वोट डाल चुकी थीं और उन्हें इस विवाद की जानकारी तक नहीं थी। हालांकि राहुल गांधी ने 'एच-फाइल्स' नाम सही दिया है लेकिन यहां एच से मतलब हुड्डा से होना चाहिए।
बहरहाल, मतदाता सूची की त्रुटियाँ चिंता का विषय हैं, लेकिन उन्हें “चुनाव चोरी” का रूप देना तब तक उचित नहीं जब तक प्रमाण निर्णायक न हों। कुल मिलाकर देखें तो राहुल गांधी का आरोप हताशा की आवाज प्रतीत हो रही है जबकि भाजपा की जीत मेहनत, संगठन और रणनीति की कहानी थी।
-नीरज कुमार दुबे
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