दुनियाभर में विदेशी कामगारों का विरोध बढ़ा, बड़ी संख्या में भारतीय लौटे तो बढ़ेंगी मुश्किलें

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जब अनेकों भारतीयों का देश में ही रोजगार चला गया है तो सरकार के समक्ष वंदे भारत उड़ानों के जरिये लौटे भारतीयों को रोजगार देने की चुनौती तो है ही अब खबर है कि कुवैत सरकार का एक प्रस्तावित विधेयक अगर कानून बन गया तो आठ लाख भारतीयों को वापस लौटना होगा।

कोरोना वायरस जिस तरह से पूरी दुनिया में फैला है उससे कई तरह की दुश्वारियाँ हर देश के समक्ष खड़ी हुई हैं। कोरोना संक्रमण से लोगों की मौत के अलावा इस आपदा के समय दुनियाभर में कामगारों के समक्ष रोजगार का संकट भी खड़ा हो गया है। हर देश अपने यहाँ के हालात को संभालने के लिए खर्चे कम करने और स्थानीय लोगों को ही रोजगार में वरीयता देने के लिए नियमों में बदलाव कर रहा है जिससे विदेशी कामगारों के लिए बड़ी मुश्किल की घड़ी आ गयी है। अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ही लीजिये वह योग्यता के आधार पर आव्रजन प्रणाली स्थापित करने संबंधी एक शासकीय आदेश पर काम कर रहे हैं। 

यही नहीं दक्षिण अफ्रीका को देखिये वहां क्या हो रहा है। वहां से भारतीयों का लगातार वतन लौटना जारी है। कोविड-19 महामारी के कारण दक्षिण अफ्रीका में कई व्यवसायों ने अपना कामकाज कम कर दिया है जिसके चलते स्थानीय कंपनियों के साथ जुड़े कई भारतीयों के अनुबंध समयपूर्व खत्म हो गए। ऐसा ही माहौल अन्य देशों में भी देखने को मिल रहा है। भारत सरकार की वंदे भारत उड़ानों के जरिए हजारों भारतीयों को स्वदेश वापस लाया जा चुका है। कोरोना महामारी के कारण जब अनेकों भारतीयों का देश में ही रोजगार चला गया है तो सरकार के समक्ष वंदे भारत उड़ानों के जरिये लौटे भारतीयों को रोजगार देने की चुनौती तो है ही अब खबर है कि कुवैत सरकार का एक प्रस्तावित विधेयक अगर कानून बन गया तो आठ लाख भारतीयों को वापस लौटना होगा, यदि ऐसा हुआ तो सभी के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना बड़ा चुनौतीपूर्ण होने वाला है।

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देखा जाये तो कुवैत में कुल नागरिकों में 70 फीसदी विदेशी हैं जो वहां के सरकारी और निजी उपक्रमों में काम करते हैं। कुवैत में प्रस्तावित कानून में विदेशियों की संख्या घटा कर 30 फीसदी करने का प्रस्ताव है। यदि यह विधेयक कानून बन गया तो तय मानिये कि करीब 8 लाख भारतीयों को यह खाड़ी देश छोड़ना पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रस्तावित विधेयक में कहा गया है कि कुवैत की कुल आबादी में भारतीयों की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। कुवैत में जितने बाहरी लोग रह रहे हैं उन विदेशी नागरिकों में सबसे अधिक तादाद भारतीयों की है। माना जाता है कि यहाँ 14.5 लाख भारतीय काम करते हैं।

कुवैत में क्यों हो रहा विदेशियों का विरोध?

दुनिया भर में लॉकडाउन के कारण तेल की माँग घटी जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें निम्नतम स्तर पर आ गयीं और तेल के खेल से वारे न्यारे करने वाले देश परेशान हो गये। इसके अलावा कोरोना वायरस महामारी के चलते भी विभिन्न देशों में विदेशी कामगारों का विरोध बढ़ा है, ऐसा ही कुछ कुवैत में भी देखने को मिल रहा है और यहां की विधायिका एवं सरकारी अधिकारी कुवैत से विदेशी कामगारों को कम करने की मांग कर रहे हैं। हाल ही में कुवैत के प्रधानमंत्री शेख सबाह अल खालिद अल सबाह ने पिछले महीने कुल आबादी में विदेशियों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया था जिसका कुवैती नागरिक समर्थन कर रहे हैं।

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कितना होगा नुकसान?

कुवैत में विदेशी कामगारों की संख्या निश्चित करने वाला प्रस्तावित विधेयक यदि कानून का रूप अख्तियार कर लेता है तो भारत सरकार के समक्ष यह बड़ी चुनौती होगी कि जो 8 लाख भारतीय वापस आएंगे उनके लिए रोजगार के अवसर कैसे पैदा किये जाएं। इसके अलावा यह भारतीय कुवैत में रह कर जो विदेशी मुद्रा अपने देश भेजते थे वह भी बंद हो जायेगी। पहले ही विभिन्न देशों से लौटे भारतीयों के कारण विदेशी मुद्रा में कमी आना शुरू हो गयी है। भारत सरकार की चिंता यह भी है कि यह कहीं ट्रैंड ना बन जाये। इस समय हर देश अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तमाम प्रयास कर रहा है जिसकी मार सर्वाधिक विदेशी कामगारों पर पड़ रही है। भारत भी लॉकडाउन और कोरोना वायरस से उपजी परिस्थितियों के चलते बेरोजगारी की समस्या का सामना कर रहा है अब ऐसे में 8 लाख भारतीयों के कुवैत से लौटने पर देश में बेरोजगारी विकराल रूप ले सकती है।

कुवैत क्यों है भारतीयों की पसंद ?

कुवैत में ना सिर्फ पढ़े-लिखों की बल्कि अनपढ़ लोगों की माँग भी अच्छी खासी है। कुशल कामगारों जैसे डॉक्टर, इंजीनियर और तकनीकी रूप से दक्ष लोगों को भी रोजगार आसानी से मिल जाता है और विभिन्न कारखानों में, खेतों में तथा घरों में भी सामान्य पढ़े-लिखे लोगों को आसानी से रोजगार मिल जाता है। रिपोर्टों के मुताबिक कुवैत सरकार का एक आंकड़ा दर्शाता है कि वहां रह रहे सा़ढ़े 33 लाख से अधिक विदेशियों में से करीब 13 लाख लोग अनपढ़ हैं। इन अनपढ़ लोगों में भी भारतीय ही ज्यादा हैं और प्रस्तावित विधेयक से इन्हें ही सबसे ज्यादा खतरा है क्योंकि अगर कुवैत में विदेशी कामगारों की संख्या निश्चित करने वाला विधेयक, कानून बन जाता है तो सबसे ज्यादा खतरा उन प्रवासी भारतीयों के लिए खड़ा हो जायेगा जो मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं। इन लोगों पर ही सबसे पहले देश से बाहर किये जाने का खतरा मंडरा रहा है।

कुवैत को क्यों लेना पड़ रहा है सख्त फैसला

कुवैत खाड़ी के उन देशों में शामिल है जो तेल संपन्न देश हैं और इसी के चलते अमीर देशों में गिने जाते हैं। कुवैत की 90 प्रतिशत अर्थव्यवस्था तेल के निर्यात पर ही निर्भर है। कोरोना वायरस जब पूरी दुनिया में फैला और एक-एक कर देशों में लॉकडाउन लगता चला गया तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें एकदम गिर गयीं, यही नहीं एक समय तो शून्य पर आ गयीं। इससे कुवैत की अर्थव्यवस्था को बड़ा तगड़ा झटका लगा है। तेल से होने वाली अपार कमाई की बदौलत ही कुवैत अपने नागरिकों को तरह-तरह की सब्सिडी देता है लेकिन जब पैसा ही नहीं आ रहा तो सब कुछ प्रभावित हुआ, शासक भी नाराज होने लगे और जनता भी। इस नाराजगी की गाज विदेशियों पर निकाली जाने लगी। अब कुवैत की सरकार और वहाँ की जनता चाहती है कि स्थानीय लोगों को ही रोजगार में वरीयता दी जानी चाहिए।

बहरहाल, भारत सरकार का कहना है कि वह कुवैत में प्रस्तावित प्रवासी कोटा विधेयक संबंधी घटनाक्रम पर निकटता से नजर रख रही है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने हाल ही में कहा था कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच टेलीफोन पर हाल में हुई वार्ता के दौरान इस मामले पर चर्चा की गई। श्रीवास्तव ने कहा, ''भारत और कुवैत के बीच बेहद मजबूत गहरे द्विपक्षीय संबंध हैं और लोगों के बीच आपसी संबंध इनका आधार हैं।’’ अब सरकार का यह बयान लोगों की कितनी मदद कर पायेगा यह तो भविष्य ही बतायेगा लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भले कुवैत और अन्य खाड़ी क्षेत्रों में भारतीय समुदाय का काफी सम्मान किया जाता है और उनके योगदान को काफी सराहा जाता है लेकिन कोरेाना संकट ने लगता है पुराने सब किये कराये पर पानी फेर दिया है।

-नीरज कुमार दुबे

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