वैवाहिक बलात्कार की परिभाषा गढ़ना विवाह जैसे पवित्र बंधनों को तोड़ने की साजिश है

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पत्नी की असहमति से शारीरिक संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है तो कितने परिवार बिखरने की कगार पर आ सकते हैं। यदि उक्त कानून के तहत किसी की पत्नी ने अपने पति पर जबरन शारीरिक संबंध बनाने का केस दर्ज करा दिया तब सोचिये क्या होगा?

देश में वैवाहिक बलात्कार नाम से एक नई बहस शुरू हुई है। मांग की जा रही है कि बिना पत्नी की सहमति से शारीरिक संबंध बनाने को वैवाहिक बलात्कार मानते हुए इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाये। कुछ लोग इस मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट भी गये। हाईकोर्ट में दायर की गयी याचिकाओं में कानून के उस अपवाद को चुनौती दी गई जिसके तहत पत्नियों के साथ बिना सहमति के शारीरिक संबंध बनाने पर मुकदमे से पतियों को छूट हासिल है। लेकिन अदालत लंबी सुनवाई के बाद किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकी। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया है जहां यह तय होगा कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक श्रेणी में रखा जाये या नहीं।

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वैसे यह वैवाहिक बलात्कार है क्या? दरअसल विवाह जैसे पवित्र रिश्ते के साथ बलात्कार जैसे घिनौने शब्द को जोड़ कर भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को नष्ट करने की कुचेष्टा की जा रही है। इस अभियान को चलाने वाले लोगों के नाम देखेंगे तो आपको सारे वामपंथी मिलेंगे जिनका पहले से ही भारतीय सामाजिक व्यवस्था में विश्वास नहीं है या फिर ऐसे लोग मिलेंगे जिनका खुद का विवाह संबंध असफल रहा है। या फिर ऐसे लोग यह मांग कर रहे हैं जो विवाह में ही विश्वास नहीं करते या यह मांग करने वालों में ऐसे लोग हैं जो अपने परिवार को एक नहीं रख सके। ऐसे लोग ही हमेशा समाज में अशांति और असंतोष बनाये रखना चाहते हैं इसलिए वह इस तरह की मांग कर रहे हैं। यह वही लोग हैं जो महिलाओं को भरमा कर कभी-कभी उनका घर भी तुड़वा देते हैं और फिर बाहर से तमाशा देखते हुए ट्वीट ट्वीट खेलते हैं।

जरा सोचिये यदि यह कानून बन जाये कि पत्नी की असहमति से शारीरिक संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है तो कितने परिवार बिखरने की कगार पर आ सकते हैं। यदि उक्त कानून के तहत किसी की पत्नी ने अपने पति पर जबरन शारीरिक संबंध बनाने का केस दर्ज करा दिया तब सोचिये क्या होगा? पुलिस जब घर पर आयेगी तो मोहल्ले वाले या परिजन पूछेंगे कि क्या हुआ? क्या मामला है? पुलिस जब महिला का बयान लिख रही होगी तो वह क्या-क्या सवाल पूछेगी? देखा जाये तो पति अपनी पत्नी के साथ किसी प्रकार की जबरदस्ती नहीं करे इसके लिए उनके बेडरूम में पुलिस बिठाने की जरूरत नहीं है। जरूरत इस बात की है कि उन्हें शिक्षित किया जाये और इस संबंध में जागरूकता अभियान चलाया जाये। पति-पत्नी के बीच प्यार और आपसी सम्मान स्वतः आता है उसे जबरन या कानून के डर से नहीं लाया जा सकता। और बात यदि बेडरूम में पुलिस बैठाने की है तो क्या इतने पुलिसकर्मी हैं आपके पास? बात यदि पतियों पर जबरन केस करने की है तो क्या अदालतें ऐसे केसों का बोझ झेलने के लिए तैयार हैं? सोचिये जरा क्या ऐसे केसों के बाद परिवार एकजुट रह सकेंगे? क्या जोड़ियां टूटने से अवसाद, अकेलेपन और आत्महत्या करने जैसी स्थितियां नहीं पैदा होंगी?

इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे यहां महिलाओं को घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है जोकि बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। यह भी सही है कि विवाह हो जाने का मतलब यह नहीं है कि महिला ने अपनी हर इच्छा भी अपने पति के नाम पर कर दी है। लेकिन यह भी सही है कि आज भी महिलाएं अपने पति की किसी भी गलत हरकत या जबरन यौनाचार किये जाने के खिलाफ पुलिस थाने जा सकती हैं, अदालत जा सकती हैं और न्याय पा सकती हैं। आज केंद्र और राज्य सरकारों के अलावा स्थानीय थाना स्तर पर भी हेल्पलाइन्स बनाई गयी हैं जहां पर अपने साथ दुर्व्यवहार या किसी भी प्रकार का अपराध होने पर महिलाएं तत्काल शिकायत कर सकती हैं। ऐसे में क्या जरूरत है वैवाहिक बलात्कार की परिभाषा गढ़ने की और उसे अपराध की श्रेणी में लाने की? यह तो सिर्फ भारत की विवाह संस्था को बदनाम करने और उसे तोड़ने की एक साजिश ही लगती है। यहां यह भी याद रखिये कि आज जो लोग इस तरह की मांग कर रहे हैं वही लोग यह भी प्रश्न उठाते हैं कि क्यों महिलाएं ही करवा चौथ का व्रत रखती हैं? क्यों महिलाएं ही अपनी संतान की लंबी आयु या उसकी समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं? यह वामपंथी हमेशा से भारतीय समाज और परिवार की संस्कृति और परम्पराओं को ढकोसला बताते रहे हैं इसलिए इनसे और क्या उम्मीद रखी जा सकती है?

क्या कहा हाईकोर्ट की खंडपीठ ने?

आइये अब जरा इस मामले से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं की बात करते हुए सबसे पहले आपको बताते हैं कि सुनवाई के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों ने क्या कहा। खंडपीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को समाप्त करने का समर्थन किया और कहा कि भारतीय दंड संहिता लागू होने के ‘‘162 साल बाद भी एक विवाहित महिला की न्याय की मांग नहीं सुनी जाती है तो दुखद है।'' जबकि न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर ने कहा कि भारतीय दंड संहिता के तहत प्रदत्त ‘‘यह अपवाद असंवैधानिक नहीं हैं और संबंधित अंतर सरलता से समझ में आने वाला है।’’ 

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केंद्र सरकार का क्या रुख रहा?

जहां तक इस मामले में केंद्र सरकार के रुख की बात है तो उसने साल 2017 के अपने हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस साल जनवरी में अदालत से कहा कि वह याचिकाओं पर अपने पहले के रुख पर ‘‘फिर से विचार’’ कर रही है। केंद्र ने इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए अदालत से फरवरी में और समय देने का आग्रह किया था, जिसे पीठ ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि मौजूदा मामले को अंतहीन रूप से स्थगित करना संभव नहीं है।

इस मामले का इतिहास क्या है?

इस मामले से जुड़े इतिहास की बात करें तो शुरुआत सन् 1860 से करनी होगी जब भारतीय दंड संहिता लागू हुई थी। उस समय 10 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के संबंध में वैवाहिक बलात्कार अपवाद लागू किया गया था लेकिन 1940 में भादंसं में संशोधन किया गया और 10 साल की उम्र सीमा को बदल कर 15 वर्ष किया गया। 11 जनवरी, 2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को नोटिस जारी किया और भादंसं में वैवाहिक बलात्कार अपवाद को चुनौती देने वाली पहली याचिका पर पक्ष रखने को कहा। जिस पर 29 अगस्त, 2017 को केंद्र ने उच्च न्यायालय से कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि इससे विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है। इसके अलावा 11 अक्टूबर, 2017 को उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को खारिज कर दिया और व्यवस्था दी कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, अगर पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम नहीं है। इसके बाद 18 जनवरी, 2018 को दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा कि वैवाहिक बलात्कार पहले से ही कानून के तहत क्रूर अपराध है और कोई महिला अपने पति के साथ यौन संबंध स्थापित करने से इनकार करने की हकदार है। इसके बाद इस साल 7 जनवरी से उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर रोजाना आधार पर सुनवाई शुरू की। सुनवाई के दौरान केंद्र ने उच्च न्यायालय से कहा कि वह "पहले से ही मामले से अवगत है" और वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मुद्दे पर "रचनात्मक दृष्टिकोण" के साथ विचार कर रहा है तथा राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों सहित विभिन्न हितधारकों से सुझाव मांगे गए हैं। इस पर 17 जनवरी को उच्च न्यायालय ने केंद्र से कहा कि वह अपनी सैद्धांतिक स्थिति स्पष्ट करे। 24 जनवरी को केंद्र ने अदालत से अपनी स्थिति रखने के लिए "उचित समय" देने का आग्रह किया और कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने में ऐसे मुद्दे शामिल हैं जिन्हें "सूक्ष्म नजरिए" से नहीं देखा जा सकता है। इसके बाद 28 जनवरी को उच्च न्यायालय ने केंद्र से यह बताने के लिए कहा कि क्या वह अपने 2017 के हलफनामे को वापस लेना चाहता है जिसमें कहा गया है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बनाया जा सकता है। इस सवाल का जवाब 1 फरवरी को देते हुए केंद्र ने उच्च न्यायालय से कहा कि वह अपने पहले के रुख पर "पुनर्विचार" कर रहा है। इसके बाद 3 फरवरी को केंद्र ने अदालत से वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की दलीलों पर सुनवाई टालने का आग्रह किया और कहा कि वह एक समयबद्ध कार्यक्रम प्रदान करेगा और इसके तहत वह इस मुद्दे पर प्रभावी परामर्श प्रक्रिया को पूरा करेगा। इसके बाद 7 फरवरी को अदालत ने केंद्र को याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया। फिर 21 फरवरी को उच्च न्यायालय ने याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा तथा केंद्र को और समय देने से इनकार करते हुए कहा कि मामले को स्थगित करना संभव नहीं है क्योंकि इस मुद्दे पर सरकार के परामर्श समाप्त होने की कोई तारीख निश्चित नहीं है। अब 11 मई को उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाए जाने के मुद्दे पर खंडित फैसला सुनाया और उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर करने के लिए पक्षों को अनुमति दी।

बहरहाल, अब मामला सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर पहुँच गया है। हाईकोर्ट ने भले इस मामले में खंडित निर्णय सुनाया हो लेकिन उम्मीद है उच्चतम न्यायालय से स्पष्ट फैसला आयेगा। भारतीय समाज को यदि तेजी से और स्थायी तरक्की करनी है तो हमें महिलाओं का सशक्तिकरण करना होगा, उनके अधिकारों की रक्षा करनी होगी, उनके मान-स्वाभिमान, आत्मसम्मान की रक्षा करनी होगी। हमारे यहां तो कहा भी जाता है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।

-नीरज कुमार दुबे

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