जब ढांचा टूट रहा था, तभी मंदिर बनने का इतिहास रचा जा रहा था (आंखों देखी)

ayodhya
प्रभात झा । Aug 6 2020 4:16PM

वर्ष 1992 का 6 दिसंबर दुनिया को पता है। तब की घटना की रिपोर्टिंग करने के लिए मैं एक दिसंबर को ही अयोध्या पहुंच गया था। हाथ में डायरी और कलम थी साथ ही बैग में कैमरा। मैंने सुन रखा था कि 6 दिसंबर को कारसेवक आयेंगे और वे कार सेवा करेंगे।

वे लोग भाग्यशाली होते हैं जो किसी घट रहे इतिहास को अपनी आंखों से देखते हैं। यह मेरा सौभाग्य था कि मैं पत्रकार के नाते 6 दिसंबर 1992 को रामलला जन्मभूमि के उस परिसर में खड़ा था, जहां हमारी आँखों के सामने भगवा पट्टी माथे पर बांधे सैंकड़ों कार सेवक देखते-देखते गुम्बद पर चढ़ गए बस घंटे-दो घंटे में विवादित ढाँचे को धूल-धुसरित कर दिया। मैं मध्य प्रदेश के स्वदेश समाचार-पत्र का विशेष संवाददाता था। सन् 1986 से तत्कालीन बजरंग दल के नेता जयभान सिंह पवैया के साथ रामनवमी पर रिपोर्टिंग करने और रामलला के दर्शन करने लगभग प्रति वर्ष जाते थे। हम मिथिलावासी हैं। हम मां मिथिलेश कुमारी (सीताजी) के वंशज हैं। भगवान राम से हमारा नाता शास्त्रों के अनुसार, साले-बहनोई का है। मिथिलावासी सीताजी के कारण अवध निवासी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को अपना बहनोई मानते हैं। बहन सीता के कारण अयोध्या से मेरा लगाव पहले से ही रहा है। अत: अयोध्या में रामनवमी पर लगाने वाले मेले का आँखों देखा हाल लिखने का दायित्व स्वदेश द्वारा मुझे ही दिया जाता था।

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वर्ष 1992 का 6 दिसंबर दुनिया को पता है। तब की घटना की रिपोर्टिंग करने के लिए मैं एक दिसंबर को ही अयोध्या पहुंच गया था। हाथ में डायरी और कलम थी साथ ही बैग में कैमरा। मैंने सुन रखा था कि 6 दिसंबर को कारसेवक आयेंगे और वे कार सेवा करेंगे। हम दिनभर में अनेक बार राम के जन्म स्थान पर और कारसेवकपुरम जाते थे। हम पूरी अयोध्या घूमते थे। चौक-चौराहों पर यह चर्चा सुनते थे- 'पता नहीं मंदिर कब बनेगा !'' पूरी की पूरी फैजाबाद जो आज का अयोध्या जिला, वहां के साधु-संतों के मुख पर एक ही बात आती थी कि मंदिर बनना कब शुरू होगा। अन्यान्य राज्यों के कारसेवक के रूप में लोगों का आना शुरू हो चुका था। केरल से कश्मीर तक कोई ऐसा राज्य नहीं था जहां से लोगों का आना न हो रहा हो। उन कारसेवकों की चिंता के लिए कारसेवकपुरम में विश्व हिन्दू परिषद् के नेता स्व. अशोक सिंहल जी, स्व. गिरिराज किशोर जी, स्व. मोरोपंत पिंगले जी व्यवस्था की दृष्टि से अलग-अलग बैठकें ले रहे थे। 2 दिसंबर, 1992 को लोगों के आने का सिलसिला और बढ़ गया। मैं वर्षों से अयोध्या जाता रहा हू पर, इस बार का हुजूम कुछ और ही लग रहा था।

विवादित ढांचे के पास ही बिजली विभाग के कुछ इंजिनीयर विद्युत व्यवस्था के लिए तैनात थे। वे बिजली की निर्बाध व्यवस्था के लिए लगातार तैयारी मे रह्ते थे। मुझे इन इंजीनियरों से काफी मदद मिली। रोज-रोज रिपोर्टिंग के लिए एसटीडी टेलीफोन बूथ ही एकमात्र सहारा था। तब मोबाईल फोन या ईमेल की सुविधा नहीं थी। वहां के एसटीडी बूथ पर लोड ज्यादा होने के कारण समय से सूचनाएं भेज पाना संभव नहीं था। मेरी तत्परता और खबर भेजने का जोश देखकर विद्युत विभाग के इंजीनियर प्रभावित थे। उन्हें मुझसे लगाव-सा हो गया था। उनके विशेष सहयोग से एसटीडी बूथ से खबरें भेजना मेरे लिए आसान हो गया। 3 दिसंबर की बात है- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री सुदर्शन जी वहां हम सभी पत्रकारों को मिले। स्वदेश समाचार पत्र को प्रारंभ करने में बतौर मध्यभारत के प्रांत प्रचारक मा. सुदर्शन जी और जनसंघ के संगठन मंत्री कुशाभाऊ ठाकरे का बड़ा योगदान था। मुझे स्वदेश की यह बातें पता थीं। मैं तत्काल माननीय सुदर्शन जी के पास गया और उनको बताया कि मैं स्वदेश समाचार पत्र से आया हूँ। मेरा नाम प्रभात झा है। उन्होंने हाल-चाल पूछा और यह भी पूछा कि विश्व संवाद केंद्र के लोगों से भेंट हुई कि नहीं ? मैंने कहा अभी तक नहीं हुई है। मा. सुदर्शन जी ने कहा कि विहिप से जारी खबरों के लिए आप सभी श्री रामशंकर अग्निहोत्री जी से जरूर संपर्क कर लें। फिर उन्होंने यह भी पूछा कि तुम कहां रुके हो? मैंने कहा कि श्री जयभान सिंह पवैया के साथ छोटी छावनी के महंथ श्री नृत्य गोपाल दास जी के आश्रम में रुके हैं। मा. सुदर्शन जी ने हम सभी पत्रकारों को कहा कि कोई भी दिक्कत हो तो रामशंकर अग्निहोत्री और वीरेश्वर द्विवेदी से मिल लेना। 3 दिसंबर की सायं अयोध्या के सभी भोजनालय में भोजन समाप्त हो गया था। प्रसाद के लिए कारसेवकपुरम में लोग टूट पड़े थे। अयोध्या क सभी महंतों के आश्रम और मंदिरों में भोजन के लिए कारसेवकों का तांता लग गया था। यहां तक कि सैंकड़ों की संख्या में पहुंचे फोटोग्राफर और पत्रकारों को 3 दिसंबर से ही भोजन की असुविधा होने लगी थी।

हम पत्रकारों ने 3 दिसंबर की रात्रि से ही यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया था कि 6 दिसंबर तक यहाँ 3-4 लाख कारसेवकों की संख्या हो जायेगी। 4 दिसंबर को अयोध्या के राष्ट्रीय राजमार्ग पर जब हमने निगाहें दौड़ाईं तो कारसेवकों के सिवा कुछ और नहीं दिख रहा था। एक तरफ जहां देशभर से कारसेवक आ रहे थे, वहीं सर्वाधिक कारसेवक उत्तर प्रदेश से आ रहे थे। राष्ट्रीय राजमार्ग थम-सा गया था। हजारों वाहनों के पहिये रुक गए थे। गले में भगवा पट्टी और माथे पर भगवा साफा बांधे हजारों लोग पंक्तिबद्ध कतार में दिख रहे थे। लोग नारे लगा रहे थे- ''राम लला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे।' वे कह रहे थे- 'जो राम राम का नहीं, वो किसी काम का नहीं।' हनुमानगढ़ी, कनक भवन, वाल्मिकी मंदिर, छोटी छावनी से लेकर सैंकड़ों मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। लखनऊ, फैजाबाद और अयोध्या से प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस का वाहन अयोध्या की ओर आ रहा था। पूरी अयोध्या पुलिस छावनी का रूप धारण कर चुकी थी। अयोध्या लोगों को समेटने की सीमाएं तोड़ चुकी थी। वातावरण राममय और भगवामय हो गया था। सरयू पर बने पुल से जब कैमरे में सरयू तट पर स्नान कर रहे लाखों कारसेवकों का फोटो खींच रहे थे तो कैमरे के लैंस में लोग समा नहीं रहे थे। हिंदुत्व के ज्वार का ऐसा अद्भुत दृश्य हमने पहले कभी देखा था। जब हम लोगों के बीच पहुँच रहे थे तो कोई मलयाली बोल रहा था तो कोई तेलगू। पहनावे से पूरे भारत के अलग-अलग राज्यों के लोगों को पहचाना जा सकता था। धोती, लुंगीनुमा धोती और पैन्ट-शर्ट पहने लोग भोजपुरी, बघेली, पंजाबी और हरियाणवी भाषा में रामजी के काम के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। लघु भारत का अनोखा दृश्य दिख रहा था। 'राम सबके और सब राम के' का भाव वहाँ हर तरफ, हर जगह देखा जा सकता था।

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4 दिसंबर को हमने अयोध्या से लखनऊ मोटरसायकिल से जाने की योजना बनाई। लेकिन कारसेवकों का हुजूम और जय श्रीराम का उद्घोष- राम लला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे के गगनभेदी नारों से गुंजता वातावरण, हजारों वाहनों की कतारें हमारी हिम्मत को तोड़ रही थीं। हमें वापस लौटना ही पड़ा। इस दरम्यान राजमार्ग पर खड़े वाहनों के चालकों और सवार लोगों से जब हमने बात की तो पता चला कि वे कई दिनों से यहीं फंसे पड़े हैं। वे कहने लगे- अब तो हमारा भोजन भी समाप्त हो गया है। उन्होंने ही बताया कि गोरखपुर, मुजफ्फरपुर, पटना और देश के अन्य हिस्सों में भी यही हालत हैंl हर तरफ से रामभक्तों का हुजूम अयोध्या की ओर चल पड़ा है। जब हम वापस अयोध्या लौट कर आये तो हमारी मोटरसायकल को निकालने की जगह ही नहीं मिला रही थी। सड़कों पर कारसेवक सोते दिख रहे थे। जब कार सेवकों से बात की तो अधिकतर लोगों के मन में यही बात आई कि इस आर या पार होगा। कुछ लोग यह भी कह रहे थे कि कारसेवक इस बार कारसेवा करके ही जायेंगे। कार सेवकों के चेहरे पर सहसा गुस्सा भी दिख जाता था लेकिन उनका गुस्सा संगठन के अनुशासन के कारण बंधा हुआ था। इस बीच रामलला परिसर में लोग ढोल-ढमाकों के साथ आने लगे थे। विहिप के जन्मभूमि न्यास के माध्यम से मंच भी बनने लगा था। 4 दिसंबर की रात्रि हम लोग सोये नहीं। हम कारसेवकों का उत्साह अपनी आँखों से देख रहे थे। सूर्य डूब रहा था, पर एक नए सूर्योदय का सन्देश दे रहा था। न डर का, न भय का वातावरण था। राम की भक्ति अयोध्या की धरती पर नये नये इतिहास रच रही थी। मध्य प्रदेश के राजगढ़ का युवा गीतकार व चित्रकार जिसका नाम सत्यनारायण मौर्य, जिसे प्यार से लोग बाबा मौर्य कहते हैं, ने पूरी अयोध्या की दीवारों को अपनी तूलिका से राममय कर दिया था। लोग बता रहे थे बाबा मौर्य कई दिनों से अयोध्या में राम लला का उद्घोष लिख रहे हैं। श्री राम जन्मभूमि न्यास से जुड़े संतों और देश के प्रसिद्ध अखाड़ों से जुड़े बाबाओं की ओर देशभर से आये मीडिया के कैमरे मुड़े हुए थे। सर्वाधिक भीड़ श्री राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास जी महाराज के पास थी।

दिसंबर यानि कडाके की ठंड। हर आश्रम में अंगीठी या लकड़ी जलाकर ठंड को दूर करने का प्रयास किया जा रहा था। लेकिन दूसरी तरफ कारसेवकों की शारीरिक गर्मी से मौसमी ठंड दूर हो रही थी। लोगों को लग ही नहीं रहा था कि ठंड का महीना है। राम ज्वार से लोग अभिभूत थे। मैं अनेक बार अयोध्या गया लेकिन अयोध्या में श्रद्धालुओं का ऐसा विहंगम दृश्य कभी नहीं देखा। 

5 दिसम्बर को ढाई बजे रात से ही लोग सिर पर पोटली लिए सरयू तट की ओर निकल पड़े थे। इस भीड़ में गरीब-अमीर का भेद नहीं था। सब रामरस में सराबोर होकर समरस हो गए थे। हमें मानव सिर के अलावा कुछ और दिख ही नहीं रहा था। सरयू में डुबकी लगाने की होड़ लग गई थी। हम कुछ पत्रकार मित्र भी धक्का खाते हुए सरयू तट पर पहुँच गए थे। वहां पर स्व-अनुशासन का संगम दिख रहा था। लोग एक-दूसरे की सहायता कर रहे थे। पुलिस-प्रशासन ने सरयू नदी में बांस के खम्भों से बैरिकेट्स बना रखे थे। सरयू तट के किनारे पुण्य बटोरने में माता-बहनों के साथ बच्चे भी पीछे नहीं  थे। 5 दिसंबर अरुणोदय के समय सरयू तट सूर्य की लालिमा से आच्च्छादित था। ज्यों-ज्यों सूर्य भगवान पृथ्वी पर प्रकट हो रहे थे त्यों-त्यों लोग अपने-अपने बर्तन में सरयू का जल ले कर अर्घ्य दे रहे थे। किसी एक नदी तट पर बिना कुम्भ के इस तरह लाखों लोगों के एकत्रित होने का यह पहला नजारा था।

5 दिसंबर को दोपहर में रामलला परिसर में बने मंच पर सभा शुरू हुई। विवादित ढांचे के चारों ओर पुलिस ही पुलिस तैनात थी। हम कुछ पत्रकारों ने रात में तत्कालीन जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से बात की। हमने उनसे पूछा कि इस अनियंत्रित भीड़ को कैसे सम्हालेंगे? अधिकारियों ने उत्तर दिया- हमने उप्र के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जी को अयोध्या और उसके आस-पास की घटित जानकारियों से अवगत करा दिया है। इसी बीच हम सभी को सूचना मिली कि विहिप के अध्यक्ष अशोक सिंहल, विहिप के वरिष्ठ नेता गिरिराज किशोर सहित भाजपा के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, वरिष्ठ बाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी, साध्वी उमा भारती, बजरंग दल के कुंवर जयभान सिंह पवैया, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा और आचार्य धर्मेन्द्र जैसे दिग्गजों की 6 दिसंबर को राम लला परिसर में सभा होगी।

इस बार की अयोध्या में विशेषता यह थी कि अधिकतर रामभक्त युवा थे। इन युवा रामभक्तों के चहरे पर जुनून और जज्बा देखा जा सकता था। रामभक्तों का जमावड़ा ऐसा लगा कि 5 दिसम्बर की शाम के बाद रामभक्तों के पंडाल में भोजन के लूट-पाट की ख़बरें आने लगीं। केन्द्रीय पुलिस बल की टुकड़ियां भी रामघाट से लेकर पूरी अयोध्या में तैनात कर दी गई थीं। कल क्या होगा इसी उधेड़बुन में हम लोग रातभर जगते रहे। अयोध्या जन-जन की ध्वनि से गुंजायमान थी। 5 दिसंबर की रात्रि को ऐसा लग रहा था जैसे लोग सिर्फ अयोध्या की ओर ही आ रहे हैं। इसी रात विहिप, बजरंग दल और भाजपा के नेताओं ने अयोध्या पहुँच रहे सभी कारसेवकों से शान्ति की मार्मिक अपील की। अनेक लोगों ने पत्रकार वार्ता करके कहा कि इस उमड़ते जन सैलाब की रक्षा ही हमारी प्राथमिकता है। ठिठुरते और कंपकंपाते लाखों लोगों ने सरयू किनारे 5 दिसंबर की सारी रात बिताई।

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6 दिसंबर के भोर का अरुणोदय, लाखों युवाओं को तरुनोदय दे रहा था। अरुणोदय के दौरान फूट रही सूर्य की किरणें किसी नवोदित सन्देश को समेटे थीं, जिसकी जानकारी सिर्फ सूर्य भगवान को ही थीl सुबह तीन-साढ़े तीन बजे से ही सरयू में डुबकियों का शोर गूंजने लगा। कंपकंपाते होंठ से सिर्फ रामधुन और जय श्रीराम के नारे लग रहे थे। अरुणोदय की किरणें जैसे-जैसे सूर्योदय की ओर जा रही थीं, वैसे-वैसे लोगों के पग रामलला के दर्शन की ओर बढ़ रहे थे।

6 दिसंबर सूर्योदय को देख हमें नहीं लगा था कि आज कोई इतिहास रचा जाएगा। हम सभी को लग रहा था कि सभी नेताओं के भाषण होंगे और राम शिला का पूजन होगा। लेकिन 6 दिसंबर के सूर्योदय के गर्भ में सच में इतिहास छुपा था जिसकी जानकारी दोपहर 11-12 बजे के बीच दुनिया को पता चल गयी। सुबह के 10 बजते ही विहिप के अध्यक्ष और जन्मभूमि आन्दोलन के प्रणेता अशोक सिंहल मंच पर हैं, उपस्थित कारसेवकों को कहते हैं कि बैरिकेट्स को कोई भी पार न करे। हमने भगवा ब्रिगेड को कार सेवकों की सुरक्षा के लिए लगाया है। इसी बीच मंच पर श्री आडवानी जी, डॉ. जोशी जी, साध्वी उमा भारती जी, साध्वी ऋतंभरा जी और आचार्य धर्मेन्द्र आते हैं। हम लोग भीड़ में सुदर्शन जी के पास खड़े थे। बीबीसी के साउथ एशिया रिपोर्टर मार्क टुली सुदर्शन जी से अंग्रेजी में कुछ चर्चा कर रहे थे। मार्क टुली जानना चाहते थे कि आगे क्या होने वाला है। सुदर्शन जी ने मार्क टुली को कहा- हिंदुत्व इस सोल आफ़ इंडिया। नाऊ यू सी दिस वेब आफ़ हिंदुत्व इन अयोध्या।'' इसी बीच सुदर्शन जी हम पत्रकारों के बीच से कहीं निकल गए। जैसे ही घड़ी की सूई ने 11 बजने का इशारा किया अचानक हजारों कारसेवक विवादित ढाँचे के परकोटे की ओर कूद पड़े। श्री सिंहल जी माइक से आग्रह करते रहे, लेकिन रामभक्तों के मन में प्रज्ज्वलित राम ज्वार विवादित ढाँचे पर फूट पड़ा देखते-देखते कुछ लोगों ने ढांचे के गुम्बदों पर चढ़ कर भगवा ध्वज फहरा दिया और जय श्रीराम के नारे लगाने लगे। कंटीली तारों से लहू लुहान लोग विवादित ढांचे को ध्वस्त करने पर उतारू हो गए। यह देख कुछ लोग शान्त थे, लेकिन अधिकांश लोग रोमांचित हो रहे थे। वहां जो घट रहा था वह अविस्मरणीय, अद्भुत और अकल्पनीय था। बावजूद इसके कि मैं एक पत्रकार था, मैं भी रोमांचित हो उठा।

रोकने वाले कार सेवकों को रोकते रहे, पर कारसेवक विवादित ढांचे को तोड़ते रहे। साधु-संत, बूढ़े-जवान सब उस घट रहे इतिहास का साक्षी बनना चाह रहे थे। पुलिस भीड़ को तितर-बितर कर रही थी। इस बीच पता चला कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने प्रशासन को सख्त निर्देश दिए थे कि चाहे जो मजबूरी हो, लेकिन कार सेवकों पर गोली नहीं चलेगी। यहाँ तो यह भी दिख रहा था कि कई पुलिस वाले भी जय श्री राम के नारे लगा रहे थे। 11:25 बजे पहला गुम्बद टूटने लगा। वह कौन-सी अदृश्य शक्ति थी, वह कौन-सा अदृश्य साहस था जो विवादित ढाँचे को तोड़ रहा था इसे कोई नहीं देख पा रहा थाl डेढ़ से दो घंटे में पूरा विवादित ढांचा धूल-धूसरित हो गया। तत्काल पूरे उप्र में कर्फ्यू लगा दिया गया। इसी बीच पुजारियों ने रामलला को गुलाबी चादरों में लपेटकर उन्हें उचित स्थान पर स्थापित कर दिया। ढांचा तोड़ते समय अनेक लोग घायल हुए, कई लोगों की मृत्यु भी हुई लेकिन कारसेवक अपने काम से डिगे नहीं। थोड़ी देर बाद वहां पर श्री परमहंस रामचंद्र दास जी, महंत नृत्य गोपाल दास जी, और अशोक सिंहल जी भी वहां आये और उन्होंने रामलला के दर्शन किये।

मैं पत्रकारिता धर्म का निर्वाह कर रहा था। ढांचे के पास से ही अपने सम्पादक श्री जय किशन शर्मा जी को टेलीफोन से आँखों देखी हाल बता रहा था। इस स्थिति में भी पत्रकारिता धर्म का निर्वाह करने का साहस स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम दे रहे थे। एक-एक घटना क्रम की जानकारी मैं स्वदेश के सम्पादकीय विभाग को देता रहा। इसी बीच मैंने कानपुर के एक स्वतंत्र पत्रकार साथी से आग्रह किया कि आज रात्रि तक ही मुझे ग्वालियर पहुंचना है। मैंने उन्हें बताया कि 6 दिसंबर की ऐतिहासिक घटना की स्वदेश के पाठकों तक मैं 7 की सुबह ही पहुंचाना चाहता हूँl तब न वाट्सेप था और न ही ईमेल हमारे पास था, पत्रकार का धर्म और पत्रकारिता का जुनून। बसें बंद हो गई थीं। अयोध्या से बाहर जाना संभव नहीं था लेकिन समाचार के लिए ऐतिहासिक घटना की फोटो जरूरी थी। फोटो भेजने का कोई और उपाय नहीं था। तब मैंने साथी ओमप्रकाश तिवारी से कहा कि मुझे मोटरसायकिल से ग्वालियर ले चलो। हम दिन के 2 बजे अयोध्या से निकल पड़े और छुपते-छुपाते फैजाबाद पहुंचे फिर वहां से लखनऊ। लखनऊ पहुंच कर पता चला कि पूरे उप्र में कर्फ्यू लग चुका है। वहां से जैसे तैसे शाम 6-7 बजे कानपुर पहुंचे। वहां से बीहड़ों से होते हुए इटावा। रात लगभग 10:30 बजे इटावा से ग्वालियर के लिए रवाना हुए। इस बीच अपने सम्पादक जी को बता दिया कि हम रात्रि 2 बजे तक ग्वालियर पहुँच जाएंगे। इटावा से भिण्ड के बीच रात्रि में सड़कों के बीच से निकलना खतरे से खाली नहीं था, वहां दस्युओं का भी बहुत खतरा था लेकिन हम और ओमप्रकाश तिवारी मोटरसायकल के साथ आगे बढ़ रहे थे। आखिर रामजी का काज था, कोई कैसे रोक सकता था। रात्रि 12 बजे हम मध्य प्रदेश की सीमा भिण्ड में प्रवेश कर चुके थे। अब हमें 70-75 किमी की यात्रा और करनी थी। थकान सिर चढ़ कर बोल रही थी, लेकिन आँखों के सामने घटित इतिहास और उसका चित्र पाठकों तक पहुँचाने का रोमांच इस थकान पर भारी था। मेरे भीतर पत्रकारिता धर्म का निर्वाह करने का कर्तव्य बोध जगा हुआ था। साहस टूटा नहीं, कलम थमी नहीं। हम रात्रि 2 बजे स्वदेश कार्यालय पहुंचकर सुबह पाठकों को देने के लिए सब कुछ तैयार कर चुके थे। 7 दिसंबर की सुबह वही 6 दिसंबर की अयोध्या का आँखों देखा हाल सचित्र पाठकों की आँखों के सामने था। 5 अगस्त, 2020 को संपन्न रामलला मंदिर निर्माण भूमि पूजन 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या की आँखों देखी को फिर ताजा करने वाला रहा। यह रामजन्मभूमि आन्दोलन के हुतात्माओं के प्रति पत्रकार की शब्दांजलि रूपी श्रद्धांजलि होगीl 

-प्रभात झा

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व राज्यसभा सांसद हैं)

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