संविधान की धारा 370 पर आखिर इतना बवाल क्यों?
कइयों को इस पर एतराज है कि जम्मू कश्मीर का अलग संविधान है और अपना झंडा है। इसमें जम्मू कश्मीर के लोगों की कोई गलती नहीं है। यह तो उन भारतीय नेताओं की गलती है जिन्होंने विलय पत्र को स्वीकारते हुए इसकी अनुमति दी थी।
क्या सभी भारतवासी पंजाब में सरकारी नौकरी कर सकते हैं? क्या सभी भारतवासी हिमाचल में जगह जमीन खरीद सकते हैं? जवाब है नहीं। किसी भी अन्य राज्य में सरकारी नौकरी या जगह जमीन खरीदने की खातिर कुछ नियम हैं। वहां का बाशिंदा होना जरूरी है या फिर 8 से 10 साल तक वहां रहना जरूरी है। अगर दूसरे राज्यों में आप सरकारी नौकरी नहीं कर सकते तो जम्मू कश्मीर में ऐसा नहीं होने पर हो-हल्ला क्यों।
यह सच है कि संविधान की धारा 370 के तहत जम्मू कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। पर यह गलत प्रचार है कि जम्मू कश्मीर में कोई कारखाना नहीं लगा सकता या फिर यह गलत प्रचार है कि जम्मू कश्मीर में हिन्दुओं को नौकरी नहीं मिल रही या फिर यह भी गलत प्रचार है कि कश्मीर में चपरासी की नौकरी करने वाले को मात्र 2500 रुपए ही प्राप्त होते हैं। सच्चाई यह है कि अगर आपको जम्मू कश्मीर में कारखाना लगाना है तो 99 साल के लिए जमीन लीज पर मिलती है। बाहरी राज्यों से जम्मू कश्मीर में उद्योग लगाने वालों की तादाद जम्मू कश्मीर के उद्यमियों से ज्यादा है। जम्मू कश्मीर में हिन्दुओं को सरकारी नौकरी में जगह धर्म के आधार पर नहीं बल्कि सभी को योग्यता के आधार पर मिलती है। जम्मू कश्मीर लोक सेवा संघ और एसएससी के मापदंडों पर खरा उतरने वालों को ही सरकारी नौकरी मिलती है।
अगर देखें तो भारत में कई अन्य राज्यों को भी विशेषाधिकार प्राप्त हैं। माना कि वे ऐसे नहीं हैं जितने जम्मू कश्मीर को प्राप्त हैं। दरअसल जम्मू कश्मीर के भरत में विलय के समय ही यह प्रावधान रखे गए थे और उन प्रावधानों में यह भी प्रावधान था कि अगर धारा 370 को हटाया जाता है तो जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह होगा। धारा 370 को पक्का करने की खातिर ही केंद्र के निर्देश पर जम्मू कश्मीर में 1951 में संविधान सभा गठित हुई थी जिसने जम्मू कश्मीर के अलग संविधान को लिखा था और उस पर तत्कालीन सदरे रियासत अर्थात आज की भाषा में राज्यपाल डॉ. कर्ण सिंह ने वर्ष 1957 में हस्ताक्षर किए थे।
हां यह सच्चाई जरूर है कि जम्मू संभाग और लद्दाख क्षेत्र के लोगों के साथ कश्मीर बहुल नेताओं ने 67 सालों से भेदभाव की नीति अपना रखी है। पर उसका कारण धारा 370 नहीं है। उसमें एक हद तक केंद्र में स्थापित सरकारों का भी हाथ रहा है। तभी तो विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के पुनर्गठन पर लगी रोक के कारण आज भी मुख्यमंत्री कश्मीर से ही चुना जाता है। वह धारा 370 के कारण नहीं है।
दरअसल संविधान की धारा 370 को लेकर हो रहे दुष्प्रचार के कारण ही यह चर्चा में है। पिछले 60 सालों से इस धारा को राजनीतिक पार्टियों ने जितना भुनाया है शायद ही किसी अन्य मुद्दे को इतना भुनाया गया होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो धारा 370 का मुद्दा वोट की राजनीति है। अगर देशभर में भाजपा जैसे राजनीतिक दल इसके खिलाफ प्रचार कर वोट हासिल करते रहे हैं तो राज्य के भीतर नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस जैसे दल धारा 370 को अक्षुण्ण रखने की खातिर उसे भुनाते रहे हैं।
अब तो भाजपा की नई सरकार ने कश्मीर में अलगाववादियों को भी इस मुद्दे पर मैदान में कूदने पर मजबूर कर दिया है। कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने तो केंद्र सरकर की इस कोशिश के विरूद्ध ‘निर्णायक युद्ध’ छेड़ने की बात कह कर जम्मू कश्मीर के उन राजनीतिक दलों में नई जान फूंक दी है जिन्हें एक पल लगने लगा था कि केंद्र अपने मकसद में कामयाब हो सकता है।
हालांकि गिलानी के ऐलान के पीछे कुछ और मकसद छुपा हुआ है। उनके मुताबिक, केंद्र सरकार ऐसा कर जम्मू कश्मीर की मुस्लिम बहुल छवि को मुस्लिम अल्पसंख्यक छवि के रूप में तब्दील कर देगी। वैसे वे कहते थे कि उनके आजादी के आंदोलन के लिए धारा 370 को हटाने का मुद्दा अधिक मायने नहीं रखता है पर कश्मीर की मुस्लिम बहुल छवि को बरकरार रखने के लिए धारा 370 का बने रहना जरूरी है।
धारा 370 के मुद्दे पर भांजी जा रही तलवारें क्या किसी युद्ध के रूप में बदल जाएंगी या यूं ही उनकी खनखनाहट सुनाई देती रहेगी यह तो समय ही बता पाएगा पर यह सुनिश्चित हो गया है कि इस बार की गर्मियां कश्मीर में हाट समर के तौर पर सामने आएंगीं। एक ओर राजनीतिक दल केंद्र की इस पहल का विरोध करने की खातिर आंदोलनों की रूप रेखा तैयार करने लगे हैं तो दूसरी ओर उनका साथ देने की खातिर अलगाववादी दल भी हां में हां और कदम से कदम मिलाने लगे हैं। खास बात यह है कि इस मुद्दे पर संवैधानिक तौर पर तीनों बड़े राजनीतिक दलों- नेकां, पीडीपी और कांग्रेस के एकजुट और एकमत होने से धारा 370 को हटाने की राह कहीं से भी आसान नजर नहीं आती है।
देश में कुछ लोग दुष्प्रचार के कारण थोड़े भ्रमित हैं जो पिछले 67 सालों से धारा 370 के प्रति किया जा रहा है। वे उसकी असलियत को नहीं जान पाए हैं कि वह सिर्फ और सिर्फ वोट पाने का एक रास्ता है राजनीतिक दलों के लिए। अगर ऐसा न होता तो जब केंद्र में श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार बनी थी तो वे इसे क्यों नहीं हटा पाए थे। इस सवाल का जवाब किसी ने नहीं मांगा क्योंकि सब जानते हैं कि श्री वाजपेयी ने बहुत माथापच्ची की थी पर अंततः उन्होंने इसलिए मौन साध लिया था क्योंकि वे भी इस सच्चाई से वाकिफ हो गए थे कि धारा 370 को खत्म करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति कार्य नहीं करेगी क्योंकि यह वाकई बर्र का छत्ता है जिसमें हाथ तो कुछ नहीं आएगा बर्र ही हमें काट लेगा।
माना कि देश धारा 370 को लेकर दो हिस्सों में बंटा है। एक हिस्सा सीधे इसे खत्म करने की पैरवी कर रहा है। पर उन्हें इस सच्चाई से वाकिफ हो जाना चाहिए कि यह असंभव है। असंभव इसलिए कि भारतीय संविधान ने खुद इसे अस्थाई कहने के बावजूद स्थाई बना दिया था। जम्मू कश्मीर संविधान सभा फिर से गठित नहीं की जा सकती और जम्मू कश्मीर को जब अपना अलग संविधान रखने की इजाजत भारत ने ही दी थी तो उस संविधान में यह धारा जोड़ने की अनुमति भी भारतीय नेताओं ने दी थी कि धारा 370 को न कभी हटाया जा सकेगा और न ही इस पर कोई चर्चा होगी। तो ऐसी चर्चा का लाभ क्या है। किसको इसका लाभ होगा आप खुद सोचें।
असल में कुछ लोग सोचते हैं कि चर्चा करवाने से जम्मू और लद्दाख के संभागों की जनता के साथ होने वाला भेदभाव खत्म हो जाएगा। वे भ्रम में हैं। भारत सरकार ने हमेशा ही कश्मीर केंद्रित नीतियां अपनाई हैं। उसने कभी जम्मू या लद्दाख की ओर ध्यान नहीं दिया। उसे हमेशा यही लगा कि कश्मीर हाथ से निकल जाएगा इसलिए कश्मीरी नेताओं को ही झोली में बिठाए रखा। अगर चर्चा करनी है तो इस भेदभाव पर की जाए जिसके लिए दोषी धारा 370 नहीं बल्कि केंद्र की सरकारें हैं।
देश का एक हिस्सा इस पर इसलिए बहस करना चाहता है ताकि जम्मू और लद्दाख की जनता के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म किया जा सके। विचार अच्छा है। इस बहस का स्वागत भी है। पर इसमें धारा 370 कहां से आ गई। धारा 370 सारे राज्य के लिए है। वह सारे राज्य को एक समान अधिकार देती है। तो धारा 370 पर बहस करने से क्या जम्मू और लद्दाख वालों को उनके अधिकार मिल जाएंगें। अगर आप समझते हैं ऐसा संभव है तो बहस जल्द हो। पर याद रहे जितनी भी चर्चाएं हों धारा 370 अपने स्थान पर ही रहेगी और अगर सच में केंद्र सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति है तो वह जम्मू और लद्दाख की जनता के साथ हो रहे को भेदभाव दूर करने का प्रयास करे। धारा 370 पर पूरे देश को भ्रमित न करें।
वैसे भी सभी इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि धारा 370 को हटा पाना असंभव से भी ऊपर है। कारण स्पष्ट है। धारा 370 को हटाने के लिए संविधान संशोधन करने की जरूरत है। उसकी खातिर लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत के साथ ही जम्मू कश्मीर में उस संविधान सभा के गठन की आवश्यकता होगी जो इसके प्रति दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करे। जानकर मानते हैं कि जब तक जम्मू कश्मीर की विधानसभा इसको हटाने या फिर इसमें संशोधन करने का प्रस्ताव पारित नहीं करती तब तक लोकसभा या राज्यसभा भी धारा 370 के प्रति कुछ नहीं कर सकती हैं और ऐसा निकट भविष्य में तभी संभव हो सकता है जब भाजपा या धारा 370 की मुखालफत करने वाले दल की दो तिहाई बहुमत वाली सरकार राज्य में स्थापित हो। और यह एक सपना है जो शायद ही कभी पूरा हो पाए।
जम्मू कश्मीर को धारा 370 के तहत मिलने वाले विशेषाधिकारों में से सबसे अधिक दुष्प्रचार उस नियम को लेकर है जिसके तहत राज्य के बाहर का कोई भी व्यक्ति राज्य में जमीन नहीं खरीद सकता। हालांकि भारत वासी अन्य राज्यों में भी ऐसा नहीं कर सकते हैं जब तक वे एक निर्धारित अवधि के तहत उस राज्य में वास नहीं करते। हालांकि उद्योग इत्यादि के लिए लीज पर जमीन जायदाद मिलती है। दरअसल वर्ष 1927 में राज्य के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर के लोगों के हितों की रक्षार्थ स्टेट सब्जेक्ट कानून बनाया था जिसके तहत राज्य का निवासी ही राज्य में सरकारी नौकरी कर सकता था और जमीन खरीद सकता था। इसी के आधार पर अन्य राज्यों ने अपने अपने कानून आजादी के बाद तैयार किए थे। यह अधिकार धारा 370 ने नहीं दिया था बल्कि महाराजा हरि सिंह की दूरअंदेशी थी कि उन्होंने कई साल पहले ही इसे लागू कर दिया था।
लोगों को भ्रम है कि जम्मू कश्मीर के लोग अगर अपनी बेटी की शादी पाकिस्तान में करें तो उसके पति को सारे अधिकार मिल जाते हैं। यह भ्रम है। गलत है। उसके पति को कोई अधिकार नहीं मिलते। यही नहीं पाकिस्तान से आने वाली दुल्हन को तो पहले भारत की नागरिकता लेनी पड़ती है और बाद में जम्मू कश्मीर की। जबकि भारत में अगर कोई लड़का किसी विदेशी लड़की से शादी करता है तो उसे सिर्फ भारत की नागरिकता लेनी पड़ती है। यही कारण है कि आज भी कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को अपनी पाकिस्तानी बीवियों के कारण परेशानी इसलिए झेलनी पड़ रही है क्योंकि उन्हें अभी तक भारत की नागरिकता नहीं मिली है। उन्हें पहले भारत की नागरिकता मिलेगी तो फिर जम्मू कश्मीर की नागरिकता मिलेगी। यही हाल उन आतंकियों का भी है जो नेपाल के रास्ते से आए हैं और अपने साथ पाकिस्तानी बीवियों को लाए हैं। जानकारी के लिए बता दें कि जम्मू कश्मीर की किसी युवती की अगर राज्य के बाहर शादी होती है तो उसके सारे अधिकार खत्म नहीं होते। इसकी व्याख्या जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट कर चुका है। पर इतना जरूर है कि उसके पति को जम्मू कश्मीर का नागरिक होने का अधिकार नहीं मिलता।
कश्मीर की स्थिति को लेकर और भी कई दुष्प्रचार हैं जिन्हें धारा 370 से जोड़ा गया है। जानकारी के लिए जम्मू कश्मीर में भी आरटीआई लागू है। सुप्रीम कोर्ट के केसों का हवाला देते हुए मुकदमे लड़े जाते हैं। भारतीय तिरंगा भी उसी शान से फहराता है जैसे वह अन्य राज्यों में फहराया जाता है। अगर देशभर में इंडियन पैनल कोड है तो जम्मू कश्मीर में रणवीर पैनल कोड है जो महाराजा रणवीर सिंह ने तैयार की थी। हां इतना जरूर है कि जम्मू कश्मीर का अपना अलग संविधान होने के कारण भारत सरकार के कानून सीधे तौर पर लागू नहीं होते हैं बल्कि पहले उन्हें राज्य विधानसभा में पारित किया जाता है।
कईयों को इस पर एतराज है कि जम्मू कश्मीर का अलग संविधान है और अपना झंडा है। इसमें जम्मू कश्मीर के लोगों की कोई गलती नहीं है। यह तो उन भारतीय नेताओं की गलती है जिन्होंने विलय पत्र को स्वीकारते हुए इसकी अनुमति दी थी। वैसे इस गलती को भी सुधारने का मौका भारतीय संविधान नहीं देता है। अगर यह अधिकार और पहचान जम्मू कश्मीर के लोगों को मिली है तो उस पर किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए। देखा जाए तो भारतीय संविधान की विभिन्न धाराओं के तहत देश के कई अन्य राज्यों को भी कई अधिकार मिले हैं। कई अधिकार नए बनने वाले राज्यों को मिलने जा रहे हैं। कई राज्य विशेषाधिकारों की मांग कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर की जनता ने कभी इनका विरोध नहीं किया। तो बाकी लोगों को जम्मू कश्मीर के लोगों को मिले विशेषाधिकारों का विरोध करने का कोई हक नहीं है।
हां, एक नई जानकारी भी मिली है कि जम्मू कश्मीर का अपना एक कौमी तराना भी है जिसे गाने में 6 मिनट का समय लगता है। एक बात समझ नहीं आती धारा 370 पर दुष्प्रचार करने वालों की कि वह बात तो धारा 370 की करते हैं और तर्क देते हैं कि इसने जम्मू कश्मीर के नागरिकों को बहुत नुकसान पहुंचाया है। क्या इसके बिना जम्मू कश्मीर को लाभ होता। आखिर धारा 370 देश की अखंडता और संप्रभुत्ता के लिए खतरा कैसे बन गई है, जैसा कि प्रचार किया जा रहा है, यह भी समझ में नहीं आता है।
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