अन्नदाता की खून पसीने की मेहनत को पलीता लगाने में कई लोगों का हाथ

farmer-is-cheated-by-everyone

अन्नदाता की खून पसीने की मेहनत को पलीता लगाने में मिलावटी, घटिया और महंगे दामों पर उपलब्ध होने वाले कीटनाशक भी पीछे नहीं हैं। सरकार की प्रयोगशाला से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कीटनाशकों के एक चौथाई नमूने जांच में घटिया स्तर के मिले हैं।

एक और कृषि आदानों का कारोबार फलता फूलता जा रहा है वहीं किसान घटिया व मिलावटी आदानों से ठगी का शिकार होता जा रहा है। किसानों के एक जाने माने संगठन द्वारा पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट किसानों की हर जगह होने वाली ठगी को उजागर करने को काफी है। अन्नदाता की खून पसीने की मेहनत को पलीता लगाने में मिलावटी, घटिया और महंगे दामों पर उपलब्ध होने वाले कीटनाशक भी पीछे नहीं हैं। सरकार की प्रयोगशाला से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कीटनाशकों के एक चौथाई नमूने जांच में घटिया स्तर के मिले हैं। केवल इससे ही देश में 30 हजार करोड़ की फसल बरबाद हो जाती है। 30 हजार करोड़ की फसल की घटिया कीटनाशकों के कारण बरबादी से ज्यादा महत्वपूर्ण अन्नदाता की मेहनत पर पानी फिरना हो जाता है। रात−दिन, गर्मी−सर्दी और बरसात की बिना परवाह किए हाड़तोड़ मेहनत के बाद जब पता चलता है कि दवा के उपयोग के बावजूद फसल को कीटों से बचा नहीं पाया तो वह ठगा-सा रहा जाता है। अन्नदाता के साथ यह ठगी कमतर नहीं आंकी जा सकती। घटिया और मिलावटी दवाएं उपलब्ध कराने वाली कंपनियों के खिलाफ हत्या की धाराओं में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। सजा भी सख्त से सख्त होनी चाहिए। आखिर किसान किस किस की ठगी से बचे। कभी बीज सही नहीं तो कभी उर्वरकों में मिलावट और यदि फसल पर रोग का प्रकोप हो जाए तो उसे बचाने के लिए खरीदी जाने वाली महंगे मोल की दवा भी घटिया हो तो किसान इस धोखाधड़ी के चंगुल से निकल कैसे सकता है। मजे की बात यह है कि किसान को ठगी का पता भी तब चलता है जब उसके हाथ से सबकुछ निकल चुका होता है। रहता है केवल हाथ मसलते अपनी तकदीर को कोसना।

इसे भी पढ़ेंः राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है संचार उपकरणों पर निगरानी

किसानों को घटिया व स्तरहीन बीज आदान आदि उपलब्ध होने की शिकायतें तो आम रही हैं। इसको लेकर सरकार द्वारा सख्त कानून के साथ ही कड़ी सजा का प्रावधान भी है। निगरानी के लिए लंबा चौड़ा सरकारी अमला भी है। उसके बाद भी घटिया व मिलावट का यह गोरख धंधा लगातार चला आ रहा है। किसानों के एक प्रमुख संगठन भारतीय कृषि समाज ने खुले बाजार में मिल रहे जैविक कीटनाशकों में से 50 नमूने गुरुग्राम की सरकारी प्रयोगशाला में जांच के लिए दिए गए और मजे की बात यह कि रिपोर्ट आने पर इनमें से एक चौथाई नमूने खरे नहीं उतरे। देश में करीब चार से पांच हजार करोड़ का नकली कीटनाशकों का कारोबार है। मजे की बात यह है कि हमारे देश से बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का निर्यात होता है। यह भी साफ है कि घटिया या नकली माल बाहर तो निर्यात हो नहीं सकता। फिर देश के साथ इन निर्माताओं द्वारा कितना बड़ा धोखा किया जा रहा है कि विदेशों में तो गुणवत्ता पूर्ण दवाओं का निर्यात किया जा रहा है और देश के अन्नदाताओं को घटिया या मिलावटी दवाओं की आपूर्ति की जा रही है। यह तब है जब केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा प्रयोगशालाएं बनी हुई हैं। पूरा अमला है। सरकार किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। सारे देश का किसानों के हालात पर चिंता है। काश्त छोटी होती जा रही है। लागत बढ़ती जा रही है। अन्नदाता देशवासियों का पेट भरने के लिए खुद का पेट काट रहा है। फिर भी ऐसा होता है तो इससे अधिक दुर्भाग्यजनक हालात क्या हो सकते हैं। देखा जाए तो घटिया या मिलावटी वस्तुएं उपलब्ध कराना किसी देशद्रोह से कम नहीं आंका जाना चाहिए। वास्तव में यह देशद्रोह से कम है भी नहीं। अन्नदाता की मेहनत पर ही पानी नहीं फिरता बल्कि इससे देश का आर्थिक विकास भी बाधित होता है। 


इसे भी पढ़ेंः रामानुजन के गणितीय सूत्र दुनिया भर के गणितज्ञों के लिए आज भी पहेली हैं

                

दरअसल देखा जाए तो किसानों का दर्द एक ही नहीं है। कर्जमाफी उसका एक तात्कालीक समाधान हो सकता है पर खेती किसानी को बचाने के लिए सरकार को दीर्घकालीन नीति बनानी ही होगी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सरकार बनते ही दस दिनों में किसानों के कर्जमाफी का वादा और राजस्थान सहित तीनों ही राज्यों में सरकार बनते ही कर्जमाफी के वादे को अमली जामा पहनाने के आदेश सरकार की किसानों के दर्द को समझने और उसे दूर करने के प्रति इच्छा शक्ति को दर्शाते हैं। यह सही है कि कर्जमाफी से किसानों को बड़ी राहत मिलेगी पर कर्जमाफी को ही किसानों की समस्या के समाधान का एकमात्र हल नहीं माना जा सकता। किसानों की दशा और दिशा आज राजनीति का प्रमुख हिस्सा बन गई है। कर्ज के भार से दबे किसानों की देखा जाए तो आज किसानों को हर मोर्चे पर निराश होना पड़ रहा है। हालांकि पिछले दिनों आए पांच राज्यों खासतौर से राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों को भी प्रभावित करने में किसानों की प्रमुख भूमिका रही है। चुनावों के केन्द्र में इस बार काश्तकार रहे भी हैं। पर जब तक सरकारों द्वारा दीर्घकालीन नीति नहीं बनेगी, कृषि आदानों के मूल्य निर्धारण, वितरण और गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रीत नहीं होगा और फसल आने के बाद कम से कम एमएसपी तो किसान को मिलना सुनिश्चित नहीं हो सकेगा तब तक किसानों के हालात में सुधार की संभावनाएं लगभग नगण्य ही हैं। सरकार को प्रमाणिक गुणवत्तायुक्त खाद−बीज आदि अनुदानित दरों पर सीधे किसानों को वितरित करने की पहल करनी होगी तभी अन्नदाता को राहत मिल सकेगी और देश अन्न धन से भरपूर हो सकेगा। इस दिशा में सरकार के साथ ही इस क्षेत्र में कार्य कर रहे गैरसरकारी संगठनों को भी आगे आना होगा। अन्नदाता को राजनीति का अखाड़ा बनाने के स्थान पर उसके हालातों को सुधारने के लिए ठोस रणनीति बनानी ही होगी।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़