आमने सामने की लड़ाई में भले पिछड़ रहे हों लेकिन राजनयिक युद्ध में रोजाना पुतिन को मात दे रहे हैं जेलेंस्की

volodymyr zelenskyy
ANI

हम आपको बता दें कि जेलेंस्की ने 13 से 15 मई के बीच रोम, बर्लिन, पेरिस और लंदन की यात्राएं कर यूक्रेन के लिए यूरोपीय देशों का महत्वपूर्ण सैन्य समर्थन जुटाया, जिससे देश की आक्रामक और रक्षात्मक सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा मिला।

शारीरिक, सामरिक, आर्थिक और सैन्य ताकत में भले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की पर भारी पड़ते हों लेकिन कुछ ऐसे भी पहलू हैं जोकि जेलेंस्की को पुतिन से ज्यादा ताकतवर बनाते हैं। वैश्विक स्थिति को देखें तो अधिकतर देशों का समर्थन यूक्रेन के साथ है जबकि रूस अलग-थलग पड़ा हुआ है। जो देश उसके साथ हैं वह भी हर बात पर और खुल कर उसका समर्थन करने की बजाय रूस को बातचीत से मसला सुलझाने की सलाह ही दे रहे हैं। देखा जाये तो रूस से चल रही लड़ाई में यूक्रेन भले पिछड़ रहा हो लेकिन राजनयिक रूप में वह रूस पर भारी पड़ रहा है। युद्ध शुरू होने के बाद से यूक्रेन ने राजनयिक रूप से आक्रामक रुख अपनाया हुआ है।

जेलेंस्की की यात्राएं

राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की अपने अंतरराष्ट्रीय एजेंडे में यूक्रेन को सबसे ऊपर रखने के प्रयासों के तहत बीते कई हफ्तों से एक के बाद एक विभिन्न देशों की यात्रा कर रहे हैं और वैश्विक सम्मेलनों में भाग ले रहे हैं। उनकी बदौलत यूक्रेन को युद्ध के लिए सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक समर्थन भी मिल रहा है। देखा जाये तो जेलेंस्की की कूटनीति अपेक्षाकृत सफल रही है। उनकी नीतियों की सफलता ने संकटग्रस्त बखमूत शहर के आसपास यूक्रेन की सेना को मिले हालिया झटकों की कुछ हद तक भरपाई भी की है। हम आपको बता दें कि जेलेंस्की ने 13 से 15 मई के बीच रोम, बर्लिन, पेरिस और लंदन की यात्राएं कर यूक्रेन के लिए यूरोपीय देशों का महत्वपूर्ण सैन्य समर्थन जुटाया, जिससे देश की आक्रामक और रक्षात्मक सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा मिला। जेलेंस्की ने 19 मई को जेद्दा, सऊदी अरब का दौरा किया और फिर जी7 शिखर सम्मेलन के लिए हिरोशिमा रवाना हो गए। सऊदी अरब में उन्हें अरब लीग के सभी 22 सदस्य देशों को संबोधित करने के लिए एक मंच दिया गया और सऊदी ‘क्राउन प्रिंस’ मोहम्मद बिन सलमान के साथ उनकी मुलाकात हुई। इसके जरिए जेलेंस्की को अपनी 10 सूत्री शांति योजना को पेश करने और रूस के आक्रमण की निंदा करने का मौका मिला। दूसरी ओर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अरब लीग को एक पत्र लिखकर खानापूर्ति की, जिसमें लीबिया, सूडान और यमन में जारी युद्ध में समर्थन की पेशकश की गई थी।

मोदी से भी मिले जेलेंस्की

हालांकि सऊदी अरब में जेलेंस्की की शांति योजना के प्रति कोई खास प्रतिबद्धता नहीं दिखी और न ही रूस के खिलाफ कोई स्पष्ट रुख तय हुआ। लेकिन शिखर सम्मेलन में पारित जेद्दा घोषणापत्र में अरब नेताओं ने “देशों की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान” का स्पष्ट रूप से जिक्र किया। जेद्दा से, जेलेंस्की हिरोशिमा रवाना हुए। वहां पहुंचकर उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला डा सिल्वा की उपस्थिति में सभा को संबोधित किया। इस संबोधन के जरिए उन्हें ‘ग्लोबल साउथ’ के दो प्रमुख देशों भारत और ब्राजील तक अपनी बात पहुंचाने का अवसर मिला, जिन्होंने अभी तक यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा नहीं की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो जी7 सत्र को संबोधित करते हुए कहा भी कि वह यूक्रेन में मौजूदा हालात को राजनीति या अर्थव्यवस्था का नहीं, बल्कि मानवता एवं मानवीय मूल्यों का मुद्दा मानते हैं। उन्होंने कहा कि संवाद और कूटनीति ही इस संघर्ष के समाधान का एकमात्र रास्ता है। उन्होंने यथास्थिति बदलने के एकतरफा प्रयासों के खिलाफ एक साथ मिलकर आवाज उठाने का आह्वान भी किया। प्रधानमंत्री की ये टिप्पणियां यूक्रेन में रूस के युद्ध और पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद की पृष्ठभूमि में आईं।

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जी7 ने दिया पूरा साथ

दूसरी ओर, अपेक्षा के अनुरूप जी7 देशों के नेताओं ने आपस में चर्चा की और यूक्रेन पर अलग से एक बयान जारी किया, जिसमें रूस की पहले की तरह कड़ी निंदा की गई और यूक्रेन के समर्थन का संकल्प लिया गया। इन बैठकों में यूक्रेन के लिए समर्थन जारी रखने पर भी सहमति बनी। इसके बाद 25 मई को यूक्रेन रक्षा संपर्क समूह की 12वीं बैठक हुई। उम्मीद है कि इस बैठक में यूक्रेन को एफ-16 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में तेजी लाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। बंद दरवाजों के भीतर हुई जी7 समूह की बैठकों के बाद उसके नेताओं ने यूक्रेन पर छह पृष्ठों के एक बयान में सख्त लहजे में कहा, ‘‘यूक्रेन के लिए हमारा समर्थन कम नहीं होगा। हम यूक्रेन के खिलाफ रूस के अवैध, अनुचित और अकारण युद्ध के विरोध में एक साथ खड़े होने का संकल्प लेते हैं। रूस ने इस युद्ध की शुरुआत की थी और वह इस युद्ध को समाप्त भी कर सकता है।’’ 

यूक्रेन की रणनीति क्या है?

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह सैन्य तूफान से पहले की कूटनीतिक खामोशी है? स्पष्ट रूप से, यूक्रेन कम से कम अलंकारिक रूप से ही सही, अपने लंबे समय से प्रत्याशित आक्रामक रुख के लिए कमर कस रहा है। ऐसा लगता है कि जेलेंस्की के कूटनीतिक आक्रमण से उन्हें सैन्य समर्थन जुटाने में मदद मिली है और अब वह इस समर्थन का लाभ उठाकर रूस पर जोरदार सैन्य पलटवार करने की सोच रहे हैं।

बड़े पलटवार की तैयारी में है यूक्रेन?

यूक्रेन को पश्चिमी देशों का साथ मिल रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन ग्लोबल साउथ के रुख में हल्का बदलाव आना भी कोई कम महत्वपूर्ण बात नहीं है। अरब लीग सम्मेलन में व्यक्तिगत रूप से शिरकत करने और प्रधानमंत्री मोदी से प्रत्यक्ष रूप से बात करना जेलेंस्की के लिए महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत है। लेकिन इससे रूस से लगी 1,000 किलोमीटर लंबी सीमा पर जमीनी हालात नहीं बदलने वाले। रूस ने अब भी यूक्रेन के छठवें हिस्से पर कब्जा कर रखा है। यूक्रेन ने पिछले साल गर्मी के अंत में रूस पर जवाबी हमला किया था, जो काफी सफल रहा था, लेकिन छह महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह स्थिति बहुत अधिक नहीं बदली है। ऐसे में यूक्रेन के पास गर्मी के अंत में जोरदार हमला करने की तैयारियों के लिए कई महीने पड़े हैं। इस दौरान वह सैन्य आपूर्ति बढ़ाने, सैनिकों को प्रशिक्षित करने और अपनी शांति योजना के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल कर सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गर्मियों के बाद रूस पर फिर से किसी बड़े पलटवार की तैयारी कर रहा है यूक्रेन?

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