यदि कोख में बेटी मारोगे तो बहु कहाँ से लाओगे
हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या में इजाफा हो रहा है। सेंटर फॉर रिसर्च के अनुसार पिछले 20 वर्षों में भारत में कन्या भ्रूण हत्या के कारण एक करोड़ बच्चियां जन्म से पहले काल की बली चढ़ा दी गईं।
राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी को मनाया जाता है। भारत सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह और दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था। जीवन को बेहतर बनाने और समाज में लड़कियों की स्थिति को बढ़ावा देने के लिये इसे मनाया जाता है। समाजिक भेदभाव और शोषण को समाज से पूरी तरह से हटाया जाये क्योंकि इसका हर रोज लड़कियाँ अपने जीवन में सामना करती हैं। समाज में आज भी बालक और बालिकाओं में भेदभाव किया जा रहा है। यही कारण है कि बालिकाओं को जन्म लेने से पहले (भ्रूण) ही खत्म करवाया जा रहा है। हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या में इजाफा हो रहा है। सेंटर फॉर रिसर्च के अनुसार पिछले 20 वर्षों में भारत में कन्या भ्रूण हत्या के कारण एक करोड़ बच्चियां जन्म से पहले काल की बली चढ़ा दी गईं। सभी को मिलकर इस कुरीति को मिटाना है। बाल विवाह, भ्रूण हत्या, शिशु मृत्यु दर रोके जाने, स्तनपान कराने, नियमित टीकाकरण, दहेज प्रथा एवं अन्य सामाजिक ज्वलंत विषयों में सुधार लाना चाहिए। बालिकाओं की सेहत, पोषण व पढ़ाई जैसी चीजों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है ताकि बड़ी होकर वे शारीरिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर व सक्षम बन सकें। बालिकाओं को घरेलू हिंसा, बाल विवाह व दहेज जैसी चीजों के बारे में सचेत करना चाहिए। उन्हें अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक बनाया जाना चाहिए।
किशोरियों व बालिकाओं के कल्याण के लिए सरकार ने समग्र बाल विकास सेवा, धनलक्ष्मी जैसी योजनाएँ चलाई हैं। हाल ही में लागू हुई सबला योजना किशोरियों के सशक्तीकरण के लिए समर्पित है। इन सबका उद्देश्य लड़कियों को सशक्त बनाना है ताकि वे आगे चलकर एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकें। आज बालिका हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है लेकिन आज भी वह अनेक कुरीतियों का शिकार हैं। ये कुरीतियां उसके आगे बढ़ने में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं। पढ़े−लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहाँ बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। हम बालिकाओं के प्रति भेदभाव समाप्त करने और अपनी बेटियों को आगे बढ़ने का समान अवसर सुनिश्चित करने के प्रति संकल्प करें।
बालिकाओं के लिए समानता का वातावरण विकसित करने और लिंग आधारित भेदभाव समाप्त कर हम समाज और देश को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा सकते हैं। सदियों से हमारा समाज पुरूष प्रधान समाज रहा है। हमने नारी को दोयम दर्जे का माना है। सीता से लेकर द्रौपदी तक के उदाहरण हमारे सामने हैं। रामायण के रचियता गोस्वामी तुलसीदास ने भी नारी को ताड़न की अधिकारी माना और समझा है। आजादी से पूर्व हमारा देश अनेक रूढ़ियों से ग्रसित था। बेटी को कोख में मारने, सती प्रथा जैसी कुप्रथा समाज में प्रचलित थी। नारी को पढ़ाना तक पाप समझा जाता था। नारी घूंघट में रहे, ऐसा हमारा सोचना और विचारना था। अंग्रेजों के आने के बाद हालांकि नारी स्वतंत्रता और समानता की बातें सुनने और पढ़ने को मिलीं। धीरे−धीरे समाज और वातावरण में आये बदलाव ने महिला स्वतंत्रता को समझा और उनके अधिकारों और कर्त्तव्यों की बातें होने लगीं। नारी को चूल्हे−चौकी से बाहर लाया गया। इस दौरान शिक्षा के विस्तार ने क्रांतिकारी बदलाव का मार्ग अख्तियार किया और शिक्षा रूपी ज्ञान की रोशनी से हमारा समाज जगमगाया। हमने महिला शिक्षा की अहमियत समझी और उन तक शिक्षा की ज्योति को पहुंचाया।
एक स्वयंसेवी संस्था की रिपोर्ट में जाहिर किया गया है कि महिला की दुश्मन महिला ही है। वह भूल जाती है कि वह भी महिला है। इसलिए सबसे पहले महिला ही अपनी सोच को बदले और अपनी संतान को आगे बढ़ाने का साहसी कदम उठाये। महिला विकास और महिला सशक्तिकरण की दिशा में सबसे बड़ी बाधा भ्रूण हत्या है। भ्रूण हत्या हमारे पुरजोर प्रयासों के बावजूद पूरी तरह नियंत्रित नहीं हो पाई है जिसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। लड़कियों को शिक्षा ओर रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में हमारे सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर बाधाएँ सामने आती हैं। हम लड़कों को आगे बढ़ाने में अपनी रूचि लेते हैं और लड़कियों को पीछे रखने में अपनी भलाई समझते हैं। हमें अपनी इसी सोच को बदलना होगा। कहते हैं कि एक लड़की शिक्षित हुई तो पूरा परिवार शिक्षा की रोशनी से जगमगाने लगेगा।
हम चाहते हैं कि लड़कियों को समान अधिकार मिलें और देश खुशहाली की ओर कदम बढ़ाये तो हमें अपनी पुरानी सोच को बदलना होगा और लड़कियों को पर्दे के पीछे से बाहर लाकर संसार की प्रगति और विकास की सोच की ओर आगे बढ़ाना होगा। हमें इस बात पर गहनता से विचार करना होगा कि आज हमारा देश दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले पिछड़ा हुआ क्यों है? इसका एक बड़ा कारण यह है कि हम अपने बच्चों को समान रूप से आगे नहीं बढ़ाते हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारा परिवार, समाज और देश प्रगति और विकास की दिशा में अनवरत आगे बढ़े तो हमें लड़के और लड़की का भेद मिटाना होगा। संतुलित समाज के लिए पुरूष एवं महिला की समानता आवश्यक है। देश और समाज में बेटी−बेटे का भेदभाव समाज करने की यह शुरूआत हमें अपने घर से करनी होगी। बेटे−बेटी की समानता का संदेश जन जागरण के साथ घर−घर पहुंचाना होगा। इसी में हमारी, समाज की और देश की भलाई निहित है।
− डॉ. मोनिका ओझा
134, गुरूनानकपुरा, राजापार्क,
जयपुर (राजस्थान)
अन्य न्यूज़