अखबारों के संपादकीय विभाग पर विज्ञापन विभाग हावी हो गया है

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पहले के समय में समाचार पत्रों का संपादक ही सर्वेसर्वा होता था तथा उस संस्थान में काम करने वाले सभी लोग संपादक के अधीन काम करते थे। लेकिन अब स्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। आज सभी बड़े समाचार पत्रों में मार्केटिंग विभाग प्रभावी हो चुका है।

हमारे देश में हर वर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है। 16 नवंबर 1966 से भारतीय प्रेस परिषद ने अपना विधिवत कार्य करना शुरू किया था तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य देश में आम लोगों को प्रेस के बारे में जागरूक करना व उनको प्रेस के नजदीक लाना है। आज 21वीं सदी में पहले के मुकाबले लोगों में अधिक जागरूकता बढ़ी है। इस कारण देश में प्रेस का भी महत्व बढ़ा है। पहले की तुलना में आज हमारे देश में विभिन्न भाषाओं में निकलने वाले समाचार पत्रों, विभिन्न टीवी चैनलों व इंटरनेट पर विभिन्न वेबसाइटों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है। यह इस बात का संकेत है कि आज देश में मीडिया के प्रति लोगों में जागरूकता तेजी से बढ़ रही है।

आज देश का हर आदमी हर समय देश, दुनिया में घटने वाली विभिन्न घटनाओं की नवीनतम जानकारी चाहता है। इसलिए देश में 24 घंटे चलने वाले विभिन्न समाचार चैनल व सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हर वक्त ताजा तरीन समाचार उपलब्ध कराए जाते रहते हैं। इंटरनेट के फैलाव से मीडिया की कार्य प्रणाली में बहुत तेजी आयी है। आज समाचारों का आदान-प्रदान करना बहुत आसान हो गया है। वर्तमान समय में पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन-जन तक सूचना पहुंचाने का मुख्य साधन बन चुका है। पत्रकार चाहे प्रशिक्षित हों या गैर प्रशिक्षित, सबको यह पता है कि पत्रकारिता में तथ्यात्मकता होनी चाहिए। परन्तु तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर घटना को सनसनी बनाने की प्रवृत्ति आज पत्रकारिता में तेजी से बढ़ने लगी है।

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आजादी से पहले पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में माना जाता था। लेकिन मौजूदा दौर में पत्रकारिता एक संगठित उद्योग का रूप धारण कर चुकी है। आज पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़े-बड़े औद्योगिक घराने आ रहे हैं जिनके द्वारा हजारों करोड़ रुपए का निवेश किया जा रहा है। अब पत्रकारिता को एक व्यवसाय के तौर पर देखा जाने लगा है। पहले कहा जाता था कि पत्रकार की कलम में तलवार से अधिक ताकत होती है। लेकिन मौजूदा दौर में कलम की ताकत धीरे-धीरे कमजोर पड़ती जा रही है। वर्तमान समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत पत्रकारों के रोजगार व उनके भविष्य की कोई गारंटी नहीं रह गयी है। मीडिया संस्थानों द्वारा उन्हें जब चाहे काम से हटा दिया जाता है।

वर्तमान समय में पत्रकारिता में ऐसे पत्रकारों की संख्या अधिक हो गई है जो पैसा कमाने के लिए इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। पहले के मुकाबले आज की पत्रकारिता आधुनिकता की चकाचौंध में गुम-सी हो गई है। आज अखबारों के संपादकीय विभाग पर विज्ञापन विभाग हावी हो गया है। पहले के समय में समाचार पत्रों का संपादक ही सर्वेसर्वा होता था तथा उस संस्थान में काम करने वाले सभी लोग संपादक के अधीन काम करते थे। लेकिन अब स्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। आज सभी बड़े समाचार पत्रों में मार्केटिंग विभाग प्रभावी हो चुका है। मार्केटिंग विभाग के निर्देशानुसार ही संपादकीय विभाग खबरों का चयन कर खबरें बनाता है। 

छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में काम करने वाले पत्रकारों की स्थिति तो और भी अधिक दयनीय हो रही है। समाचार पत्रों द्वारा उन्हें ना तो वेतन दिया जाता है ना ही किसी प्रकार की अन्य सुविधा दी जाती है। अधिकतर पत्रकारों को तो समाचार पत्र वितरण की एजेंसी लेने पर ही संवाददाता नियुक्त किया जाता है। ऐसे में वहां कार्यरत पत्रकार अपना जीवन यापन करने के लिए पत्रकारिता के सिद्धातों से समझौता करने लगते हैं। मौजूदा समय में कई पत्रकार थानों व अन्य सरकारी विभागों की दलाली करने नेताओं की जी-हुजूरी में लगे रहते हैं। बहुत से पत्रकार भू-माफियाओं, खनन माफियाओं, शराब माफियाओं से मिलकर अवैध धंधों में लगे रहते हैं। आए दिन ऐसे कई पत्रकार पकड़े भी जाते हैं जिससे पूरी पत्रकारिता बदनाम होती है।

पत्रकारिता के क्षेत्र में आज पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर भी सरकारी स्तर पर कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। आए दिन पत्रकारों पर हमले होते रहते हैं। कुछ दिनों पूर्व लोकसभा में पेश राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक देश में पत्रकारों पर होने वाल हमलों में बहुत तेजी आई है। 2013 से अब तक पूरे देश में पत्रकारों पर हमलों के 190 प्रकरण दर्ज किए गए हैं।

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 के अनुसार प्रेस की आजादी के मामलों में वैश्विक रैंकिंग में भारत पिछले साल के मुकाबले इस बार 2 पायदान नीचे खिसक कर 140वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत के अलावा पाकिस्तान 142 पर व बांग्लादेश 150वें स्थान पर पहुंच गया है। वियतनाम 176 और चीन 177वें स्थान पर है। सूची में सबसे अंतिम 180वें स्थान पर तुर्केमेनिस्तान है। प्रेस की आजादी के मामले में नार्वे पहले स्थान पर है। रैंकिंग में भारत के पिछड़ने की वजह बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में मौजूदा वक्त पत्रकारों के लिए ठीक नहीं है। यहां पत्रकारों के खिलाफ अपराधी तत्वों की एक बड़ी चौकड़ी सक्रिय है। जिसमें पुलिस, नक्सली, अपराधी, राजनेता तक शामिल हैं।

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दुनियाभर में पत्रकारों पर हमलों का रिकॉर्ड रखने वाला पेरिस स्थित एक गैर-सरकारी संगठन रिपोर्टर्स सैन फ्रंटियर्स के आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि भारत में साल 2018 में काम के दौरान 6 पत्रकारों की हिंसक घटनाओं में मौत हो गई थी। रिपोर्ट के अनुसार इन हत्याओं से पता चलता है कि भारत में पत्रकारों को कितनी खतरनाक स्थितियों में काम करना पड़ता है।

दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के साथ प्रेस को चौथा स्तम्भ माना जाता है। प्रेस इनको जोड़ने का काम करती है। प्रेस की स्वतंत्रता के कारण ही कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को मजबूती के साथ आम आवाम की भावना को अभिव्यक्त करने का अवसर हासिल होता है। मगर आज समाचारों में किसी खास विचारधारा पर आधारित समाचारों की संख्या बढ़ने लगी है। इससे पत्रकारिता में एक गलत प्रवृत्ति पनपने लगी है।

भारत जैसे विकासशील देश में पत्रकारिता पर जाति, सम्प्रदाय जैसे संकुचित विचारों के खिलाफ संघर्ष करने व गरीबी एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई में लोगों की सहायता करने की महती जिम्मेदारी है। देश में आज भी लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा व शोषित है। इसलिये यह और भी जरूरी है कि आधुनिक विचार उन तक पहुंचाए जाएं और उनका पिछड़ापन दूर किया जाए ताकि वे सजग भारत का हिस्सा बन सकें। इस दृष्टि से मीडिया की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है।

हमारे देश में आज हजारों की संख्या में पत्रकारों के संगठन बने हुये हैं। मगर मुखरता से पत्रकार हितों की बात कोई भी नहीं करता है। बहुतेरे पत्रकार संगठनों के पदाधिकारी मीडिया संस्थानों के मालिकों की ही तरफदारी में लगे रहते हैं। ऐसे में पत्रकारों को भला कैसे हो पायेगा। ऊपर से सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से समाचार पत्रों की प्रसार संख्या भी कम होती जा रही है। धीरे-धीरे पत्रकारिता के क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं। वर्तमान माहौल में नये लोग पत्रकारिता के क्षेत्र में आने से कतराने लगे हैं। ऐसे में पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत लोगों को संगठित होकर एकजुटता के साथ अपने हितों की रक्षा करनी होगी तभी पत्रकारिता का वैभव व यश बना रह पायेगा।

-रमेश सर्राफ धमोरा

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