कन्यादान में पिस्तौल और तलवार? Nikki Murder Case के बाद महापंचायत ने रखा अजीबोगरीब प्रस्ताव

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ANI

सच यह है कि दहेज प्रथा और उससे उपजने वाली हिंसा का समाधान किसी हथियार में नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता और कानूनी व्यवस्था में सुधार में है। हमें बेटियों को आत्मनिर्भर, शिक्षित और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना होगा।

ग्रेटर नोएडा की दर्दनाक दहेज हत्या ने पूरे समाज को झकझोर दिया है। इस घटना की गूँज अभी थमी भी नहीं थी कि बागपत में आयोजित ‘केसरिया महापंचायत’ ने एक ऐसा प्रस्ताव रखा जिसने बहस को नया मोड़ दे दिया। हम आपको बता दें कि पंचायत में कहा गया कि कन्यादान के समय बेटियों को सोना-चाँदी नहीं, बल्कि आत्मरक्षा के लिए तलवार, खंजर और पिस्तौल दिए जाएँ। यह विचार पहली नज़र में साहसिक प्रतीत होता है। निश्चय ही बेटियों की सुरक्षा आज हर माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता है। दहेज के नाम पर हो रही प्रताड़ना और हत्याएँ इस बात का प्रमाण हैं कि समाज की सोच अभी भी कुरीतियों से बंधी हुई है। ऐसे में आत्मरक्षा के लिए तैयार रहने की बात आकर्षक लग सकती है।

लेकिन प्रश्न यह है कि क्या हथियारों का प्रसार वास्तव में बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा? भारत जैसे लोकतांत्रिक और संवैधानिक देश में सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य की है, न कि प्रत्येक नागरिक को हथियार थमाकर ‘खुद अपनी रक्षा करो’ कह देने की। यदि हर घर में पिस्तौल और तलवारें बाँटी जाने लगेंगी तो यह सामाजिक हिंसा को और भड़का सकती हैं। आत्मरक्षा की जगह प्रतिशोध और अपराध की संभावनाएँ बढ़ जाएँगी।

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सच यह है कि दहेज प्रथा और उससे उपजने वाली हिंसा का समाधान किसी हथियार में नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता और कानूनी व्यवस्था में सुधार में है। हमें बेटियों को आत्मनिर्भर, शिक्षित और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना होगा। साथ ही, दहेज-प्रताड़ना से जुड़े कानूनों का कड़ाई से पालन और त्वरित न्याय भी अनिवार्य है।

महापंचायत का सुझाव इस पीड़ा से उपजा है कि बेटियाँ विवाह के बाद सुरक्षित नहीं हैं। यह पीड़ा वास्तविक है, लेकिन समाधान भटका हुआ है। यदि हम हर बेटी को हथियार देंगे तो यह समस्या की जड़—दहेज की सामाजिक स्वीकार्यता और महिलाओं के प्रति भेदभाव—को छू भी नहीं पाएगा। इसलिए, समाज को यह समझना होगा कि दहेज और महिला हिंसा की समस्या केवल सामूहिक चेतना और न्यायपूर्ण व्यवस्था से मिटाई जा सकती है। हमें यह तय करना होगा कि हम बेटियों को एक भयभीत समाज में हथियार देकर छोड़ना चाहते हैं या एक सुरक्षित और सम्मानजनक समाज का निर्माण करना चाहते हैं।

हम आपको बता दें कि इस सभा में अधिकतर राजपूत समुदाय के लोग शामिल हुए। वक्ताओं ने कहा कि आज की परिस्थितियों में पारंपरिक दहेज बेटियों की रक्षा करने में असफल है। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष ठाकुर कुँवर अजय प्रताप सिंह ने कहा कि हम बेटियों को सोना-चाँदी देते हैं, जिसका कोई उपयोग नहीं। बाजार जाती हैं तो लूटपाट का खतरा रहता है। बेहतर है कि उन्हें आत्मरक्षा के लिए हथियार दिए जाएँ। उनका तर्क था कि बदलते सामाजिक हालात में बेटियों को आत्मरक्षा के लिए तैयार करना आवश्यक है, भले ही यह कोई पूर्ण समाधान न हो।

हम आपको यह भी बता दें कि महापंचायत का वीडियो सामने आने पर पुलिस ने जाँच शुरू कर दी है। बागपत एसपी सूरज राय के अनुसार, “सोशल मीडिया के माध्यम से घटना की जानकारी मिली है। मामले की जाँच सर्किल अफसर को सौंपी गई है और तथ्य सामने आने के बाद सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

बहरहाल, दहेज हत्या और महापंचायत के इस प्रस्ताव ने भारतीय समाज के सामने एक बड़ा सवाल रख दिया है— क्या बेटियों की सुरक्षा का समाधान हथियार हैं या हमें सामाजिक मानसिकता और कानूनी व्यवस्था में ठोस बदलाव लाने होंगे? हकीकत यह है कि जब तक दहेज जैसी कुप्रथा और महिलाओं पर हिंसा को लेकर समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक न सोना-चाँदी और न ही तलवार-पिस्तौल, बेटियों को असली सुरक्षा दे पाएँगे।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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