डिजिटल क्रांति की कथा सुनाने लगे गांव

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ANI

भारत के दूरसंचार और इंटरनेट उपयोग में पिछले 11 वर्षों में आई क्रांति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रति उपयोगकर्ता डाटा खपत 2014 में जहां 61 एमबी हुआ करती थी, आज 2025 में 21.5 जीबी हो चुकी है।

आज गलवान और सियाचिन जैसे दुर्गम इलाकों में तैनात हमारे सैनिक इंटरनेट की तेज स्पीड के साथ पूरी दुनिया से जुड़ रहे हैं। जो कभी बर्फीली खामोशियों में रहते थे, वे अब हाई-स्पीड इंटरनेट से संवाद कर रहे हैं। देश के पूर्वोत्तर का व्यापारी वैश्विक बाजार तक पहुंच रहा है, तो छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहने वाले छात्र ऑनलाइन पढ़ाई से अपने सपनों को ऊंची उड़ान दे रहे हैं। यह सिर्फ कनेक्टिविटी नहीं, मनोबल बढ़ाने वाली क्रांति है।

यह बदलाव अचानक नहीं आया है, यह उस संकल्प की परिणति है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में ‘लास्ट माइल कनेक्टिविटी’ के रूप में लिया था। बीते 11 वर्षों में दूरसंचार क्षेत्र में लिए गए ऐतिहासिक निर्णयों ने एक नई डिजिटल क्रांति को जन्म दिया, जो न केवल शहरों को, बल्कि गांवों, सीमाओं व जंगलों को भी जोड़ रही है। आज, जब भारत विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, तो इस यात्रा में मजबूत दूरसंचार तंत्र व भरोसेमंद इंटरनेट कनेक्टिविटी एक सशक्त उत्प्रेरक की भूमिका निभा रही है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश ने सिर्फ तकनीकी विकास नहीं, बल्कि तकनीक के माध्यम से जन-सशक्तीकरण का नया अध्याय रचा है।

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भारत के दूरसंचार और इंटरनेट उपयोग में पिछले 11 वर्षों में आई क्रांति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रति उपयोगकर्ता डाटा खपत 2014 में जहां 61 एमबी हुआ करती थी, आज 2025 में 21.5 जीबी हो चुकी है। मेगाबाइट से गीगाबाइट तक की यह वृद्धि ‘डिजिटल इंडिया’ की नींव बन रही है। मात्र 11 साल में ब्रॉडबैंड कनेक्शन में 1,449 फीसदी की अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई, जिसकी संख्या आज 95 करोड़ है। मार्च 2014 से मार्च 2025 तक भारत में टेलीफोन कनेक्शन की संख्या 93.3 करोड़ से बढ़कर 120.167 करोड़ हो गई है, जिसमें मोबाइल उपयोगकर्ताओं की संख्या 115.786 करोड़ है। आज भारत, विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बन चुका है। यहां बिकने वाले 99.2 प्रतिशत मोबाइल देश में ही बनते हैं। एक समय था, जब एक जीबी डाटा के लिए उपभोक्ताओं को 268.97 रुपये चुकाने पड़ते थे, लेकिन आज वह मात्र 9.34 रुपये में उपलब्ध है, यानी 96 प्रतिशत की अभूतपूर्व गिरावट हमारे ‘सर्वव्यापी कनेक्टिविटी’ को शक्ति दे रही है।

ग्यारह साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने जब देश की बागडोर संभाली, तब भारत के लाखों गांव इंटरनेट कनेक्टिविटी से अछूते थे। प्रधानमंत्री जानते थे कि यदि भारत को 21वीं सदी में वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभानी है, तो प्रत्येक गांव, पंचायत और कस्बे को डिजिटल रूप से सशक्त बनाना होगा। इसी दृष्टि से ‘भारत नेट परियोजना’ शुरू की गई, जो विश्व की सबसे बड़ी ग्रामीण टेलीकॉम कनेक्टिविटी परियोजना है। इसके पहले चरण में 2.14 लाख ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ा जा चुका है, अगले चरण में और 2.64 लाख ग्राम पंचायतों को डिजिटल नेटवर्क से जोड़ने का लक्ष्य है। इन उपलब्धियों से भारत में एक विशाल डिजिटल हाईवे का निर्माण हुआ है, जिसके लाभ आज देश के हर कोने में महसूस किए जा रहे हैं।

दूरसंचार का महत्व केवल फोन, टीवी या कंप्यूटर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवर्तन का एक सशक्त उपकरण बन चुका है। जन-धन, आधार और मोबाइल (जैम) ट्रिनिटी ने डिजिटल वित्तीय समावेशन में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं। आज इसी डिजिटल हाईवे के माध्यम से भारत वैश्विक डिजिटल पेमेंट्स में 46 प्रतिशत योगदान दे रहा है, जो देश की तकनीकी क्षमताओं और जन-सहभागिता का सशक्त प्रमाण है।

ट्रैफिक के बढ़ते दबाव के अनुरूप इस सरकार ने लगातार तकनीकी नवाचार करते हुए देश की इंटरनेट कनेक्टिविटी को आधुनिक व सक्षम बनाए रखा है। इस प्रयास के केंद्र में है हमारा स्वदेशी संचार नायक- बीएसएनएल। ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत सरकार द्वारा किए गए ठोस प्रयासों के फलस्वरूप यह एक बार फिर मजबूती से उभर रहा है। 17 वर्षों में पहली बार इसने लगातार दो वित्तीय तिमाही में शुद्ध लाभ दर्ज किया है। देश भर में 93,000 से अधिक 4जी टावर की स्थापना के साथ बीएसएनएल अपने उपयोगकर्ताओं को सुलभ और निर्बाध 4जी कनेक्टिविटी उपलब्ध करा रहा है, वह भी पूर्ण स्वदेशी तकनीक के माध्यम से।

बीएसएनएल ने महज 22 महीनों में देश का पहला पूर्ण स्वदेशी 4जी स्टैक विकसित किया, जिससे भारत उन पांच देशों की सूची में शामिल हो गया है, जो यह तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त कर चुके हैं। जनता के इस भरोसे और समर्थन ने बीएसएनएल को यह ऐतिहासिक सफलता दिलाई है, जो ‘डिजिटल इंडिया’ के आत्मनिर्भर संचार तंत्र की एक बड़ी उपलब्धि है।

इसी संचार क्रांति की अगली कड़ी में अब डाक विभाग भी तकनीक और सेवा के क्षेत्र में एक नई भूमिका निभा रहा है। एक समय था, जब डाक विभाग को केवल पत्र लाने-ले जाने तक सीमित माना जाता था, पर आज यह विभाग ग्रामीण भारत की जीवन-रेखा के रूप में उभर रहा है। 1.6 लाख से अधिक डाकघरों के व्यापक नेटवर्क के साथ इसे एक सशक्त लॉजिस्टिक्स और सेवा प्रदाता संगठन के रूप में बदला जा रहा है।

इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के माध्यम से बैंकिंग सेवाएं अब देश के कोने-कोने तक पहुंच चुकी हैं। यह बदलाव इतना व्यापक है कि अब ‘डाकिया डाक लाया’ की पारंपरिक छवि की जगह ‘डाकिया बैंक लाया’ की नई पहचान ने ले ली है। यह परिवर्तन सिर्फ सेवा का नहीं, बल्कि सशक्तीकरण का माध्यम बन गया है, जहां ग्रामीण भारत को अब शहरों की ओर देखने की जरूरत नहीं, बल्कि गांव अब डिजिटल भारत की गति को संबल दे रहे हैं। सरकार डाक विभाग को देश की आर्थिक आधारशिला का हिस्सा बनाते हुए इसे एक वित्तीय महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में तेजी से अग्रसर है।

ग्रामीण विकास के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का ही यह परिणाम है कि गांव में बैठे-बैठे आम जनता सुविधाजनक तरीके से न सिर्फ सरकारी सुविधाओं का लाभ ले पा रही है, बल्कि राष्ट्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है। युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए अब बड़े शहरों पर आश्रित नहीं होना पड़ता, क्योंकि उनके गांव में सुलभ मजबूत कनेक्टिविटी और ऑनलाइन कक्षाएं उनके लिए नित नए द्वार खोल रही हैं। व्यापारियों को अब बैंकों के चक्कर नहीं काटने पड़ते, क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से सभी लेन-देन और हिसाब ऑनलाइन ही हो जाता है।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार देश को डिजिटल कनेक्टिविटी में विश्व-स्तरीय सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए प्रतिबद्ध रही है और पिछले 11 वर्ष इसकी अभूतपूर्व सफलता के गवाह रहे हैं।

- ज्योतिरादित्य सिंधिया

केंद्रीय संचार मंत्री

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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