Vishwakhabram: Pak सुरक्षा बलों को ठोकने में जुटा है Taliban, क्या US पहुँचे Pakistan Army Chief को मिल पायेगी मदद?

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जहां तक पाकिस्तान के सेना प्रमुख की अमेरिका यात्रा की बात है तो आपको बता दें कि वह इस सप्ताह वाशिंगटन में हैं और पड़ोसी अफगानिस्तान में आतंकवादियों की पनाहगाह होने का आरोप लगाते हुए अमेरिकी सहायता की मांग कर रहे हैं।

पाकिस्तान में सुरक्षा बलों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। अपनी सेना, वायुसेना और पुलिस बलों पर लगातार हो रहे हमलों को देखकर पाकिस्तानी जनता स्तब्ध है और उसे यह चिंता सता रही है कि जब सुरक्षाकर्मी खुद सुरक्षित नहीं हैं तो उनका क्या होगा? हम आपको बता दें कि पाकिस्तान में हुई ताजा घटना में अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के डेरा इस्माइल खान जिले में मंगलवार को पाकिस्तानी तालिबान के आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों की चौकी को विस्फोटक से लदे वाहन से टक्कर मार दी जिससे दो दर्जन पाकिस्तानी सैनिक मारे गये। इस घटना के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पहले से चल रहा तनाव और बढ़ गया है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से कहा है कि वह इस मामले की जांच में सहयोग करे तो वहीं अफगानिस्तान ने इस घटना को पाकिस्तान का आंतरिक मुद्दा बता कर पल्ला झाड़ लिया है। हम आपको यह भी बता दें कि यह घटना ऐसे समय हुई है जब अफगानिस्तान की शिकायत करने के लिए पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष अमेरिका पहुँचे हुए हैं। वह अमेरिका को इस बात का विश्वास दिलाने में जुटे ही थे कि तालिबान पाकिस्तान में अशांति फैला रहा है कि तभी यह घटना सामने आ गयी।

जहां तक इस घटना की बात है तो आपको बता दें कि पाकिस्तानी सेना ने कहा है कि दक्षिण वजीरिस्तान कबायली जिले की सीमा से लगे अशांत डेरा इस्माइल खान जिले में प्रवेश करने के मंसूबों को ‘प्रभावी ढंग से विफल’ कर दिए जाने के बाद आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरे वाहन से चौकी की इमारत में टक्कर मार दी। इस हमले के बाद आत्मघाती हमला भी किया गया जिसके कारण इमारत ढह गई और कई लोग हताहत हुए। पाकिस्तानी सेना ने कहा है कि सुरक्षा बलों ने सभी हमलावरों को मार गिराया जबकि पुलिस की नयी टुकड़ियों को घटनास्थल पर भेजा गया और बाद में तलाशी अभियान शुरू किया गया। हम आपको बता दें कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से संबद्ध और नवगठित आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान (टीजेपी) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। इसके प्रवक्ता मुल्ला कासिम ने इस हमले को आत्मघाती मिशन (फिदायीन हमला) करार दिया है। पाकिस्तानी पुलिस ने यह भी कहा है कि मृतक संख्या बढ़ने की आशंका है क्योंकि हमले में घायल कई लोगों की हालत गंभीर है। हमले के कारण जिले के अस्पतालों में आपातकाल घोषित कर दिया गया जबकि सभी स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए।

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हम आपको बता दें कि पाकिस्तान में कुछ बड़े हमलों के पीछे आतंकी संगठन तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान का हाथ रहा है। चार नवंबर को इसके आतंकवादियों ने लाहौर से लगभग 300 किलोमीटर दूर पाकिस्तान वायु सेना के मियांवाली प्रशिक्षण वायुसेना अड्डे पर हमला किया था, जिसमें तीन विमान क्षतिग्रस्त हो गए थे। इसके अलावा, इसी साल जुलाई में टीजेपी आतंकवादियों ने अशांत बलूचिस्तान प्रांत में झोब गैरीसन पर हमला किया जिसमें चार सैनिक मारे गए और पांच अन्य घायल हो गए थे। देखा जाये तो अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर कब्जा करने के बाद से पाकिस्तान को हिंसा में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। इस पूरे साल पाकिस्तान में आतंकी और अलगाववादी सुरक्षा बलों को निशाना बनाते रहे हैं। आतंकवादियों ने पाकिस्तान में सुरक्षा और सैन्य प्रतिष्ठानों पर लगातार हमले किए हैं।

जहां तक पाकिस्तान के सेना प्रमुख की अमेरिका यात्रा की बात है तो आपको बता दें कि वह इस सप्ताह वाशिंगटन में हैं और पड़ोसी अफगानिस्तान में आतंकवादियों की पनाहगाह होने का आरोप लगाते हुए अमेरिकी सहायता की मांग कर रहे हैं। जनरल असीम मुनीर अमेरिकी सुरक्षा और रक्षा अधिकारियों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और इस्लामिक स्टेट की खुरासान शाखा (आईएस-के) जैसे आतंकवादी समूह न केवल पाकिस्तान के लिए बल्कि अमेरिका और वैश्विक सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा करते हैं। इस प्रकार की रिपोर्टें हैं कि पाकिस्तान ने अमेरिका को सुझाव दिया है कि यदि वह चाहे तो अफगानिस्तान में आतंकवादी पनाहगाहों को निशाना बनाने के लिए अपने ड्रोन अड्डे पाकिस्तान में बना सकता है। बताया जा रहा है कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ सहानुभूति तो दर्शा रहा है पर वह अफगानिस्तान में टीटीपी के ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई पर विचार नहीं कर रहा है। इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि अमेरिका विशेष रूप से दक्षिण-मध्य एशिया में सैन्य भागीदारी से तंग आ चुका है।

अमेरिका यह भी जानता है कि आज जिस तालिबान की शिकायत पाकिस्तान कर रहा है उसे पाला पोसा भी पाकिस्तान ने ही है। 1990 के दशक में अफगानिस्तान में एक चरमपंथी इस्लामी आंदोलन के रूप में उभरने के बाद से तालिबान को पाकिस्तानी सेना और खुफिया विभाग के लिए एक प्रॉक्सी समूह के रूप में देखा गया है। अफगानिस्तान में अमेरिका के दो दशकों के युद्ध के दौरान भी पूर्व अफगान और अमेरिकी अधिकारियों ने लगातार पाकिस्तान पर तालिबान विद्रोहियों को आश्रय और समर्थन प्रदान करने का आरोप लगाया था। साथ ही अमेरिका यह भी नहीं भूला है कि कैसे पाकिस्तानियों ने 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी का जश्न मनाया था। उस दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे इमरान खान ने भी खुशी जताते हुए कहा था कि अफगानों ने "गुलामी की बेड़ियाँ" तोड़ दी हैं।

पाकिस्तान समझ रहा है कि उसकी बात पर अमेरिका इतनी जल्दी यकीन नहीं करेगा लेकिन फिर भी वह प्रयास जारी रखे हुए है। दरअसल पाकिस्तान जानता है कि दो साल पहले अफ़ग़ानिस्तान से सैनिकों की वापसी के बावजूद, अमेरिका ने क्षेत्र में उस चीज़ को बरकरार रखा है जिसे अमेरिकी अधिकारी क्षितिज से परे क्षमताएँ कहते हैं यानि सुरक्षा खतरों के जवाब में लक्ष्य पर हमला करने की क्षमता। हम आपको याद दिला दें कि जुलाई 2022 में अमेरिकी ड्रोन हमले में काबुल में अल-कायदा के पूर्व प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी की मौत हो गई थी। इसलिए पाकिस्तान चाहता है कि अफगान धरती से उस पर हमला कर रहे आतंकवादियों से निबटने में अमेरिका उसकी मदद करे। पाकिस्तानी सेना प्रमुख वैसे तो कई बड़े उद्देश्यों के साथ अमेरिका गये हैं लेकिन पेंटागन के एक संक्षिप्त बयान में मात्र यही कहा गया है कि मुनीर ने बुधवार को रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन से मुलाकात की और "हाल के क्षेत्रीय सुरक्षा विकास और द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के संभावित क्षेत्रों" पर चर्चा की।

दूसरी ओर, अफगानिस्तान की बात करें तो वहां राज कर रहे तालिबान अधिकारियों ने पाकिस्तान के आरोपों को लगातार खारिज किया है। उनका कहना है कि वे समूहों और व्यक्तियों को अफगान धरती से किसी भी देश के लिए खतरा पैदा करने की अनुमति नहीं देते हैं। हालिया हमले के बाद पाकिस्तान सरकार ने अफगान प्रभारी सरदार अहमद शाकिब को एक डिमार्शे जारी किया था। डिमार्शे के जवाब में अफगान अंतरिम सरकार ने आतंकवादी हमले की जांच करने का वादा किया लेकिन इस्लामाबाद से हर समस्या के लिए काबुल को दोषी ठहराने से परहेज करने को भी कहा। तालिबान के मुख्य प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने अफगानिस्तान पर उंगली उठाने की बजाय अपनी सुरक्षा बढ़ाने को कहा। 

बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान लगभग दो दशकों से टीटीपी के विद्रोह से जूझ रहा है। पाकिस्तानी अधिकारियों का दावा है कि 2021 में अफगान तालिबान के अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करने के बाद से समूह ने अपनी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ा दिया है। हम आपको यह भी बता दें कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हालिया विवाद तब भी सामने आया था जब पाकिस्तान ने हजारों अफगान शरणार्थियों और बिना दस्तावेज वाले प्रवासियों को निर्वासित करना शुरू कर दिया था। माना गया कि पाकिस्तान के इस कदम का उद्देश्य तालिबान पर दबाव डालना है। ऐसी रिपोर्टें आईं कि पाकिस्तान में लगभग 30 लाख अफ़ग़ान नागरिक रहते हैं और पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि उनमें से कुछ आतंकवादी और आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं लेकिन अफगानिस्तान ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह खारिज कर दिया है।

-नीरज कुमार दुबे

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