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क्या भारतीय क्रिकेट के लिए विराट कोहली से बेहतर कप्तान साबित हो सकते हैं रोहित शर्मा ?
- दीपक कुमार मिश्रा
- नवंबर 24, 2020 09:29
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विराट कोहली ने जब से भारतीय टीम के लिए कप्तानी की है वो टीम इंडिया को एक भी आईसीसी की ट्रॉफी नहीं जिता सके हैं। लेकिन इसके साथ ही यह भी इतना ही सच है कि विराट की कप्तानी में टीम इंडिया दिन प्रति दिन बेहतर होती गई है।
भारतीय क्रिकेट में इन दिनों एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। हर तरफ सिर्फ एक ही मांग सुनने को मिल रही है। क्रिकेट के फैंस हो या फिर पूर्व क्रिकेटर हर कोई चाह रहा है कि भारत के सफेद गेंद क्रिकेट में स्टार बल्लेबाज रोहित शर्मा को टीम इंडिया के लिए किसी एक प्रारूप में कप्तान बना दिया जाना चाहिए। रोहित ने इस साल अपनी आईपीएल टीम मुंबई इंडियंस को पांचवी बार चैंपियन बनाया। रोहित शर्मा ने साल 2013 में अपनी टीम की कप्तानी संभाली और मानो जब से मुंबई इंडियंस की किस्मत पलट गई। टीम अबतक पांच बार चैंपियन बन चुकी है। रोहित के आईपीएल में सफलता को देखकर ही टीम इंडिया में भी उन्हें कप्तान बनाने की मांग हो रही है। ऐसे में बीसीसीआई के सामने अब बड़ा संकट आ गया है कि क्या रोहित शर्मा को किसी एक प्रारूप की कप्तान दें या फिर विराट कोहली के साथ ही आने वाले समय में कप्तान के तौर पर आगे बढ़े। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि क्या रोहित शर्मा टीम इंडिया के कप्तान बनने का सही विकल्प है या फिर ऐसा करना टीम इंडिया के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है।
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रोहित के पक्ष में खड़े क्रिकेट के बड़े दिग्गज !
रोहित शर्मा के लिए कई पूर्व क्रिकेटरों ने बयान दिए है। पूर्व भारतीय बल्लेबाज गौतम गंभीर ने कहा है कि "अगर रोहित शर्मा भारत के कप्तान नहीं बनते हैं तो इससे भारत का नुकसान होगा ना कि रोहित का बेशक एक कप्तान उतना ही अच्छा होता है जितनी अच्छी उसकी टीम होती है। इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन आखिर एक कप्तान को परखने का क्या पैमाना होता है। आपको किसी को परखने का पैमाना एक ही रखना होगा। रोहित ने अपनी टीम को पांच बार आईपीएल खिताब जिताया है"।
इसके अलावा इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने कहा है कि "बिना किसी सवाल के रोहित शर्मा को भारत के टी20 टीम का कप्तान बनना चाहिए। वह एक शानदार कप्तान हैं। वह अच्छे से जानते हैं कि टी20 मैच कैसे जीते जाते हैं। इससे कोहली को बतौर खिलाड़ी खुलकर खेलने का मौका मिलेगा। रोहित भारत में टी20 फॉर्मेट के सर्वश्रेष्ठ कप्तान हैं। आप देखेंगे कि दुनिया के कई देशों में खिलाड़ी अलग अलग फॉर्मेट की कप्तानी करते हैं।"
क्या कप्तान के तौर पर रोहित विराट से बढ़िया विकल्प साबित होंगे ?
विराट कोहली ने जब से भारतीय टीम के लिए कप्तानी की है वो टीम इंडिया को एक भी आईसीसी की ट्रॉफी नहीं जिता सके हैं। लेकिन इसके साथ ही यह भी इतना ही सच है कि विराट की कप्तानी में टीम इंडिया दिन प्रति दिन बेहतर होती गई है। विराट कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज से लेकर दक्षिण अफ्रीका में वनडे सीरीज जीतने का कारनामा किया है। विराट भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा मैच जीतने वाले कप्तान हैं। अगर विराट कोहली के कप्तानी रिकार्ड की बात करें तो विराट ने अब तक भारत के लिए वनडे में 89 मैचों में कप्तानी की है जहां उन्होंने 62 मैचों में जीत हासिल की है और 24 में उन्हें हार मिली है। इस दौरान विराट का जीत प्रतिशत 71.83 का रहा है। वहीं विराट ने 55 टेस्ट मैचों में कप्तानी की है जिसमें उन्होंने 33 मैच जीते हैं। इसके अलावा विराट ने 37 टी-20 मैचों में कप्तानी करते हुए 24 मैचों में जीत हासिल की है।
साफ है विराट कोहली के अगर कप्तानी में आंकड़ो पर नजर डाली जाए तो यह दर्शाते है कि विराट ने अबतक किसी भी मामले में में खराब काम नहीं किया है। विराट की कप्तानी में टीम इंडिया ने 2017 चैंपियंस ट्रॉफी में फाइनल तक का सफर तय किया था। इसके अलावा टीम ने 2019 वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल में जगह बनाई थी।
इसके अलावा अगर रोहित शर्मा को जब भी कप्तानी करने का मौका मिला है तो उन्होंने भी टीम इंडिया को सफलता ज्यादा दिलाई है। रोहित शर्मा ने भारत के लिए 10 मैचों में कप्तानी की है जिसमें 8 में जीत और 2 मैचों में हार मिली है। रोहित ने अपनी कप्तानी में साल 2018 में टीम इंडिया को एशिया कप का खिताब भी जिताया था। ऐसे में देखने वाली बात यह है कि अगर विराट कोहली ने कप्तानी में कुछ खराब प्रदर्शन किया हो तो उन्हें हटाया जा सकता था। लेकिन अब जब सामने 2021 टी-20 वर्ल्ड कप खड़ा हो जिसका आयोजन भारत में होना है। ऐसे में टीम इंडिया कप्तान बदलकर रिस्क लेना पसंद नहीं करेगी।
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क्या भारत में काम करेगा दो कप्तान रखने वाला फार्मूला ?
ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों में लंबे समय से अलग-अलग फार्मेट में कप्तान रखने का नियम चलता रहा है। लेकिन अब यह जानना भी दिलचस्प है कि क्या भारत में ये फार्मूला काम सकता है। क्योंकि यह हर कोई जानता है कि भारत में अगर खिलाड़ियों के साथ दो कप्तान रहेंगे तो ड्रेसिंग रूम के माहौल में गर्मागर्मी आ सकती है। टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और भारत को 1983 में पहला वर्ल्ड कप जिताने वाले कपिल देव का मानना है कि "विराट कोहली वर्तमान में तीनों प्रारूपों में भारत का नेतृत्व कर रहे हैं। हमारी संस्कृति में ऐसा नहीं होता है। एक कंपनी में आप दो सीईओ बनाते हैं? अगर कोहली टी 20 खेल रहे हैं और वह काफी अच्छे हैं। उसे वहीं रहने दो। हालांकि मैं अन्य लोगों को बाहर आते देखना चाहूंगा, लेकिन यह मुश्किल है। हमारी तीनों फॉर्मेट की 70-80 प्रतिशत टीम एक ही टीम है। उन्हें अलग-अलग सिद्धांत वाले कप्तान पसंद नहीं हैं। यह उन खिलाड़ियों के बीच अधिक अंतर ला सकता है जो कप्तान की ओर देखते हैं। अगर आपके पास दो कप्तान हैं, तो खिलाड़ी सोच सकते हैं कि वह टेस्ट में मेरा कप्तान बनने वाला है। मैं उसे नाराज नहीं करूंगा।"
जाहिर है कपिल देव की बात बिल्कुल सही भी है। वैसे भी विराट कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया ने बढ़िया खेल दिखाया है। अब अगर विराट 2021 में भी टीम इंडिया को वर्ल्ड कप जिताने में नाकामयाब साबित होते हैं तो इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में 2022 में होने वाले वर्ल्ड कप को देखते हुए रोहित शर्मा को कप्तान बनाया जा सकता है।
- दीपक कुमार मिश्रा
पाकिस्तान में जिस तरह प्रदर्शन तेज हो रहे हैं, उससे सिंध प्रांत के अलग होने की संभावनाएं बढ़ीं
- डॉ. रमेश ठाकुर
- जनवरी 27, 2021 12:22
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अलग सिंध देश की मांग तो वैसे कई वर्षों से उठ रही है, लेकिन बीते कुछ दिनों से यह ज्यादा जोर पकड़ी है। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से ही सिंध मुल्क की मांग वहां के लोग कर रहे हैं। कई राष्ट्रवादी पार्टियाँ भी उनका समर्थन कर चुकी हैं।
पाकिस्तान का सिंध प्रांत कट्टरपंथियों की दुर्दांत सोच का शिकार सदियों से है। उन पर सेना का पहला प्रत्यक्ष रूप से सदैव रहा। जिस आजादी के हक़दार वह थे, वह नहीं मिली? उनके हिस्से में तरक्की की जगह यातनाएँ और मुसीबतें ही दी गईं। लेकिन अब वह इन सभी से छुटकारा चाहते हैं। यही कारण है कि सिंध क्षेत्र के लोगों ने अब खुद को पाकिस्तान से अलग होने का फाइनल मन बना लिया है। उनकी मांग है कि उन्हें पाकिस्तान से अलग कर दिया जाए, इसके लिए बड़ा आंदोलन छेड़ा है, हजारों-लाखों की संख्या में लोग सड़कों, बाजारों, गली-मोहल्लों में प्रदर्शन कर रहे हैं। सभी एक सुर में इमरान खान सरकार को ललकार रहे हैं। विद्रोह की लपटें देखकर ऐसा लगता है कि क्या पाकिस्तान फिर से दो हिस्सों में बंटेगा। जैसे कभी बंगालियों ने अलग बांग्लादेश की मांग की थी, जो भारत के सहयोग से पूरी भी हुई। ठीक वैसे ही सिंध प्रांत के वासी भी अपने लिए अलग सिंध देश की मांग कर रहे हैं।
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ग़ौरतलब है कि अलग सिंध देश की मांग तो वैसे कई वर्षों से उठ रही है, लेकिन बीते कुछ दिनों से यह ज्यादा जोर पकड़ी है। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से ही सिंध मुल्क की मांग वहां के लोग कर रहे हैं। कई राष्ट्रवादी पार्टियाँ भी उनका समर्थन कर चुकी हैं। लेकिन हुकूमतों ने कभी गौर नहीं फरमाया। हाल ही में पाकिस्तान के राष्ट्रवादी नेता जीएम सईद की जयंती पर सिंध वासियों ने जमकर प्रदर्शन और नारेबाज़ी की। सरकार को अल्टीमेटम दिया, हमें अलग कर दो नहीं तो नतीजा बुरा होगा? क्षेत्रवासी खुलकर सरकार को चुनौती दे रहे हैं। सिंध क्षेत्र में ज्यादातरं पंजाबी, ईसाई, हिंदू और बाकी मुस्लिम आबादी रहती है। ये बात सही है, वहां सरकार इन लोगों के साथ वर्षों से पक्षपात करती आई है। अभी हाल में इमरान खान सरकार ने फौज के जरिए इनपर जो जुल्म बरपाया था, उसे न
सिर्फ पाकिस्तानियों ने देखा, बल्कि समूचे संसार में थू-थू हुई।
सिंध प्रांत में सेना-पुलिस आमने सामने आकर एक दूसरे को मारने काटने पर उतारू हुई थी। पुलिस सिंधियों के पक्ष में थी, तो वहीं सेना उनके खिलाफ में खड़ी थी। दरअसल, ये इंतिहा की मात्र बानगी थी, ऐसे जुल्म वहां आए दिन लोगों के साथ किए जाते हैं। इन्हीं जुल्मों से लोग मुक्ति चाहते हैं, तभी अलग मुल्क की मांग को लेकर विद्रोह करने पर उतर आए हैं। 18 जनवरी को एक साथ हजारों लोग सड़कों पर उतरे, कइयों के हाथों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तख्तियां थीं, लोग उनसे मदद की गुहार लगा रहे थे। नारेबाज़ी हो रही थी, बोल रहे थे कि जैसे कश्मीरियों को 370 से आजादी दिलाई, वैसे हमें भी आजादी दिलवानी को मोदी सहयोग करें। लोगों के हाथों में जब मोदी की तख्तियां सेना ने देखीं तो सीधे इमरान खान को सूचित किया गया। इसके बाद मामला दूसरे ही दिशा में चला गया। उनको लगा इस आग के पीछे कहीं भारत का हाथ तो नहीं?
विद्रोह की तपिश जब तेज हुई तो इस्लामाबाद से दिल्ली फोन आया, लेकिन भारत ने इनकार करके खुद को उनके अंदरूनी मसले से अलग किया। पाकिस्तान में हिंदुओं, ईसाईयों और पंजाबियों के मूल अधिकारों का किस तरह हनन होता है, शायद बताने की जरूरत नहीं? दशकों से लोग पाकिस्तानी हुकूमतों की जुल्म की यातनाएँ झेलते आए हैं। इन पर शुरु से इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव बनाया गया। डर के कारण कुछों ने इस्लाम धर्म को अपनाया भी।
पाकिस्तान के दूसरों शहरों में इस तरह की हरकतों का होना आम बात है। कराची में बीते दिनों प्राचीन को कट्टरपंथियों ने तोड़ डाला, मामला जब तूल पकड़ा तो दिखावे के लिए सरकार ने कुछ लोगों पर कार्रवाई की। हिंदू लड़कियों से वहां जबरन शादी करके उन्हें इस्लाम धर्म अपनाया जाता है ये बात भी किसी से छिपी नहीं। ग्लोबल स्तर पर ये बात समय-समय उठती रहती है। लेकिन थोड़े दिनों बाद सब कुछ शांत हो जाता है।
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पाकिस्तान के लिए सिंध क्षेत्र क्यों महत्वपूर्ण है इस थ्योरी को समझना जरूरी है। दरअसल, सिंध का समूचा इलाक़ा संपदाओं से लबरेज है, हर फसल की खेती बाड़ी, जड़ी-बूटियां, प्राकृतिक औषधियां, ड्राई फ्रूट्स आदि के लिए मशहूर है। ये क्षेत्र पाकिस्तान के दूसरे इलाकों से कहीं ज्यादा संपन्न है। क्षेत्र की आबोहवा हिंदुस्तानी सभ्यता से एकदम मेल खाती हैं। एक जमाने में सिंध प्रांत वैदिक सभ्यताओं का हब भी रहा है। इतिहास बहुत ही स्वर्णिम था। लेकिन कट्टरपंथियों ने बर्बाद कर दिया। उसका नक्शा ही बदल दिया। मार काट और खूनखराबे में तब्दील कर दिया। लोगों का रहना दूभर हो गया। पीछे इतिहास में झांके तो पता चलता है कि इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का कभी कब्ज़ा हुआ करता था। 1947 में जब भारत आजाद हुआ और पाकिस्तान अमल में आया। तब जाते-जाते सिंध प्रांत को अंग्रेजों ने पाकिस्तान को सौंप दिया। उनकी उसी गलती को सिंधवी आज भी भुगत रहे हैं। इस्लामाबाद में बैठी पाकिस्तान की हुक़ूमत सिंध प्रांत को हमेशा से हिकारत की नजरों से देखा। मानविकी पहलुओं, मानव संसाधन, प्रबंधन, मुकम्मल अधिकार सभी पर मानवद्रोही ताक़तें हावी रहीं और प्रकृति की धरोहर कहे जाने वाले उस क्षेत्र को उजाड़ दिया।
पिछले एक सप्ताह से सिंध प्रांत के सान क्षेत्र में हजारों लोग अलग मुल्क की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अवाला संसार के दूसरे ताक़तवर नेताओं से हस्तक्षेत्र की मांग कर रहे हैं। बड़ा मूवमेंट देखकर वहां की सरकार की सांसें भी फूली हुई हैं। क्योंकि घर में लगी चिंगारी की तपिश सरहद पार भी पहुंच गई हैं। पाकिस्तान को डर इस बात का भी है, कहीं भारत खुलकर आंदोलकारियों के पक्ष में न आ जाए। अगर ऐसा होता है तो उसका परिणाम क्या होगा? ये बात इमरान खान भी भलीभांति जानते हैं। चाहे कश्मीर का मसला हो, बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और अब सिंध देश की मांग ने उनके तोते उड़ा दिए हैं। पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों ने भी इमरान खान को घेर लिया है। आरोप है उनके लचीलेपन ने कश्मीरी को भारत के हाथों बेच दिया, अब सिर्फ सिंध और पाक अधिकृत कश्मीर ही बचा है, उसका भी कहीं सौदा न कर दें। कुल मिलाकर पाकिस्तान सरकार इस वक्त कई अंदरूनी मसलों में घिरी हुई है, यहां से इमरान खान को बाहर निकलना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा?
-डॉ. रमेश ठाकुर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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- श्वेता गोयल
- जनवरी 26, 2021 09:04
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सर्वप्रथम सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारत का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा बनाया जाना चाहिए लेकिन भारत के लिए स्वतंत्र संविधान सभा के गठन की मांग को ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था।
भारतीय संविधान को वैसे तो 26 नवम्बर 1949 को स्वीकृत कर लिया गया था किन्तु संविधान लागू हुआ था 26 जनवरी 1950 को। इसी उपलक्ष्य में तभी से प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। डा. भीमराव अम्बेडकर के अथक प्रयासों के कारण ही भारत का संविधान ऐसे रूप में सामने आया, जिसे दुनिया के कई अन्य देशों ने भी अपनाया। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। संविधान प्रारूप समिति की बैठकें 114 दिनों तक चली थी और संविधान के निर्माण में करीब तीन वर्ष का समय लगा था। संविधान के निर्माण कार्य पर करीब 64 लाख रुपये खर्च हुए थे और इसके निर्माण कार्य में कुल 7635 सूचनाओं पर चर्चा की गई थी।
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मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे लेकिन 44वें संविधान संशोधन के जरिये सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर संविधान के अनुच्छेद 300 (ए) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया, जिसके बाद भारतीय नागरिकों को छह मूल अधिकार प्राप्त हैं, जिनमें समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22), शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24), धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28), संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) तथा संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32) शामिल हैं। संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 के अंतर्गत मूल अधिकारों का वर्णन है और संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि इनमें संशोधन भी हो सकता है तथा राष्ट्रीय आपात के दौरान जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।
भारतीय संविधान से जुड़े रोचक तथ्यों पर नजर डालें तो हमारे संविधान की सबसे बड़ी रोचक बात यही है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। सर्वप्रथम सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारत का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा बनाया जाना चाहिए लेकिन भारत के लिए स्वतंत्र संविधान सभा के गठन की मांग को ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था। 1922 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मांग की कि भारत का राजनैतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएंगे लेकिन अंग्रेजों द्वारा संविधान सभा के गठन की लगातार उठती मांग को ठुकराया जाता रहा। आखिरकार 1939 में कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा ही एकमात्र उपाय है और सन् 1940 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत का संविधान भारत के लोगों द्वारा ही बनाए जाने की मांग को स्वीकार कर लिया गया। 1942 में क्रिप्स कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जो भारत का संविधान तैयार करेगी।
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सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में 9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा पहली बार समवेत हुई किन्तु अलग पाकिस्तान बनाने की मांग को लेकर मुस्लिम लीग द्वारा बैठक का बहिष्कार किया गया। दो दिन बाद संविधान सभा की बैठक में डा. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया और वे संविधान बनाने का कार्य पूरा होने तक इस पद पर आसीन रहे। 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ और संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त 1947 को संविधान का मसौदा तैयार करने वाली ‘संविधान निर्मात्री समिति’ का गठन किया गया, सर्वसम्मति से जिसके अध्यक्ष बने भारतीय संविधान के जनक डा. भीमराव अम्बेडकर। संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने के लिए संविधान में पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की गई है, जिससे भारतीय संविधान का सार, उसकी अपेक्षाएं, उसका उद्देश्य, उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना के अनुसार, ‘‘हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई. को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’’ संविधान की यह प्रस्तावना ही पूरे संविधान के मुख्य उद्देश्य को प्रदर्शित करती है।
श्वेता गोयल
(लेखिका शिक्षिका हैं)
नई दिल्ली
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- ब्रह्मानंद राजपूत
- जनवरी 25, 2021 11:46
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‘भारत सरकार’ ने वर्ष 2011 से हर चुनाव में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग के स्थापना दिवस ‘25 जनवरी’ को ही ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत की थी। और 2011 से ही हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है।
भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस हर साल 25 जनवरी को मनाया जाता है। यह दिवस भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए अहम है। इस दिन भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने राष्ट्र के प्रत्येक चुनाव में भागीदारी की शपथ लेनी चाहिए, क्योंकि भारत के प्रत्येक व्यक्ति का वोट ही देश के भावी भविष्य की नींव रखता है। इसलिए हर एक व्यक्ति का वोट राष्ट्र के निर्माण में भागीदार बनता है। भारत में जितने भी चुनाव होते हैं, उनको निष्पक्षता से संपन्न कराने की जिम्मेदारी ‘भारत निर्वाचन आयोग’ की होती है। ‘भारत निर्वाचन आयोग’ का गठन भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पहले 25 जनवरी, 1950 को हुआ था। क्योंकि 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणतांत्रिक देश बनने वाला था। और भारत में लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं से चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग का गठन जरूरी था, इसलिए 25 जनवरी,1950 को ‘भारत निर्वाचन आयोग’ गठन हुआ।
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‘भारत सरकार’ ने वर्ष 2011 से हर चुनाव में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग के स्थापना दिवस ‘25 जनवरी’ को ही ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत की थी। और 2011 से ही हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश में सरकारों और अनेक सामजिक संथाओं द्वारा लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिससे कि देश की राजनैतिक प्रक्रियाओं में लोगों की अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित कि जा सके।
राष्ट्रीय मतदाता दिवस का हर वर्ष आयोजन सभी भारत के नागरिकों को अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की याद दिलाता है। राष्ट्रीय मतदाता दिवस का आयोजन लोगों यह भी बताता है कि हर व्यक्ति के लिए मतदान करना जरूरी है। भारत के प्रत्येक नागरिक का मतदान प्रक्रिया में भागीदारी जरूरी है। क्योंकि आम आदमी का एक वोट ही सरकारें बदल देता है। हम सबका एक वोट ही पल भर में एक अच्छा प्रतिनिधि भी चुन सकता है और एक बेकार प्रतिनिधि भी चुन सकता है। इसलिए भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने मत का प्रयोग सोच समझकर करना चाहिए और ऐसी सरकारें या प्रतिनिधि चुनने के लिए करना चाहिए जो कि देश को विकास और तरक्की के पथ पर ले जा सके। भारत देश की 65 प्रतिशत आबादी युवाओं की है इसलिए देश के प्रत्येक चुनाव में युवाओं को ज्यादा से ज्यादा भागीदारी करनी चाहिए। और ऐसी सरकारें चुननी चाहिए जो कि साप्रदायिकता और जातिवाद से ऊपर उठकर देश के विकास के बारे में सोचें। जिस दिन देश का युवा जाग जाएगा उस दिन देश से जातिवाद, ऊँच-नीच, साम्प्रदायिक भेदभाव खत्म हो जाएगा। ये सिर्फ और सिर्फ हो सकता है हम सबके मतदान करने से। 25 जनवरी को भारत के प्रत्येक नागरिक को लोकतंत्र में विशवास रखते हुए शपथ लेनी चाहिए कि वे देश की स्वतंत्रत, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव कराने की लोकतांत्रिक परम्परा को बरकरार रखेंगे। और प्रत्येक चुनाव में धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, भाषा आधार पर प्रभावित हुए बिना निर्भीक होकर मतदान करेंगे। ऐसी शपथें हर वर्ष 25 जनवरी को लाखों लोग लेते हैं। लेकिन फिर भी इस शपथ पर अमल बहुत कम होता है। क्योंकि आज भी लोग साम्प्रदायिक, जातिवाद, और भाषायी आधार पर वोट देते हैं। इससे अनेक अपराधी प्रवृत्ति के लोग देश की संसद और विधानसभाओं में प्रतिनिधि चुनकर चले जाते हैं। इसलिए भारत के प्रत्येक नागरिक को साम्प्रदायिक और जातीय आधार से ऊपर उठकर एक साफ-सुथरी छवि के व्यक्ति के लिए अपने मत का प्रयोग करना चाहिए।
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राष्ट्रीय मतदाता दिवस का उद्देश्य लोगों की मतदान में अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित करने के साथ-साथ मतदाताओं को एक अच्छा साफ-सुथरी छवि का प्रतिनिधि चुनने के लिए मतदान के लिए जागरूक करना है। हमारे लोकतंत्र को विश्व में इतना मजबूत बनाने के लिए मतदाताओं के साथ-साथ भारत देश के निर्वाचन आयोग का भी अहम् योगदान है। हमारे निर्वाचन आयोग की वजह से ही देश में निष्पक्ष चुनाव हो पाते हैं। आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस के दिन देश के प्रत्येक मतदाता को अपनी सक्रिय भागीदारी के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत करने का संकल्प लेना चाहिए।
- ब्रह्मानंद राजपूत

