आपको नया फ्लैट खरीदना चाहिए या फिर रीसेल वाला पुराना प्लैट? ऐसे फ्लैट की लाइफ, संभावित खर्च और सुविधाजनक लोन से जुड़े सवालों को ऐसे परखिए

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कमलेश पांडे । Oct 13 2025 12:47PM

सबसे पहले अपना पहला घर खरीदने वालों के लिए यह समझिए कि क्या सही है और क्या नहीं?, जिससे बचने की कोशिश करनी चाहिए। प्रॉपर्टी बाजार के विशेषज्ञों के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में सेकंड हैंड यानी रीसेल वाले और नए फ्लैट की कीमतों का अंतर काफी कम हो गया है।

प्रायः हर किसी व्यक्ति का सपना होता है अपना घर, चाहे नया फ्लैट हो या फिर रीसेल फ़्लैट। लेकिन किसी भी व्यक्ति के समक्ष अपना घर खरीदते वक्त सबसे पहला और बड़ा सवाल यही होता है कि नया फ्लैट लें या फिर रीसेल फ्लैट? दरअसल, रीसेल और नए फ्लैट के बीच चुनाव करने के लिए सम्बन्धित लोगों को कोई भी फ्लैट लेने से पहले अपनी लाइफस्टाइल, बजट और लोकेशन को देखना चाहिए। ऐसा इसलिए कि रीसेल फ्लैट में पुरानी लोकेशन और तत्काल कब्जा मिलता है, जबकि नया फ्लैट आधुनिक सुविधाएं और नई डिजाइन देता है। वहीं, खर्चों में नए फ्लैट में जएसटी और फ्लोर राइज़ शामिल हैं, जबकि रीसेल फ्लैट में रेनोवेशन का खर्च आ सकता है।

जब सामने दो विकल्प हों- मतलब नया फ्लैट या फिर रीसेल फ्लैट, तो कन्फ्यूजन और भी बढ़ जाता है। वाकई आपको पता होना चाहिए कि नए घर का मतलब एकदम फ्रेश, मॉडर्न और अपनी पसंद से सजाने-संवारने का पूरा-पूरा मौका। जबकि रीसेल फ्लैट अक्सर प्राइम लोकेशन पर, रेडी-टू-शिफ्ट और बजट-फ्रेंडली भी साबित हो सकता है।

चूंकि दोनों प्रकार के फ्लैट के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं। उनसे जुड़े अलग-अलग खर्चे हैं, उन पर मिलने वाली लोन सुविधाएं हैं और सम्बन्धित फ्लैट की वाजिब रीसेल वैल्यू क्या है? जैसे अहम पहलु भी हैं जिन पर ध्यान देना काफी जरूरी होता है, जबकि इन मसलों पर क्लियर गाइडेन्स का अभाव सभी लोगों को महसूस होता है।

मसलन, पहली बार घर खरीदने वालों के लिए यह परेशानी कुछ ज्यादा ही होती है। ऐसे लोगों के लिए ये फैसला और भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कौन सा ऑप्शन ज़्यादा स्मार्ट है और दोनों में कौन-कौन से खर्चे सामने आ सकते हैं? इसलिए मैंने विभिन्न विशेषज्ञों से बातचीत करके यहां पर अद्यतन जानकारी देने की एक अदद कोशिश की है और उम्मीद है कि यह जानकारी आपलोगों के लिए काफी मददगार साबित होगी, जिससे सही फैसला लेने में आपको आसानी होगी। 

सबसे पहले अपना पहला घर खरीदने वालों के लिए यह समझिए कि क्या सही है और क्या नहीं?, जिससे बचने की कोशिश करनी चाहिए। प्रॉपर्टी बाजार के विशेषज्ञों के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में सेकंड हैंड यानी रीसेल वाले और नए फ्लैट की कीमतों का अंतर काफी कम हो गया है। चूंकि कई अच्छे लोकेशन वाले पुराने फ्लैट अब नए प्रोजेक्ट्स जितने ही ठीक ठाक रख-रखाव वाले हैं। साथ ही, सेकंड हैंड फ्लैट का फायदा यह है कि ये अक्सर सस्ते होते हैं, जीएसटी से मुक्त होते हैं और इनका कब्जा तुरंत मिल जाता है। लेकिन इसमें पूरी राशि पहले चुकानी पड़ती है, जो पहली बार खरीदने वालों के लिए मुश्किल हो सकता है। वहीं, नए फ्लैट थोड़े महंगे होते हैं और अगर निर्माणाधीन हैं तो उन पर जीएसटी भी लगता है। चूंकि ये नए फ्लैट आधुनिक सुविधाओं, शानदार निर्माण गुणवत्ता और लचीले भुगतान विकल्पों के साथ आते हैं। इसलिए कुछ लोग इन पर ज्यादा जोर है। 

इससे साफ है कि दोनों ही विकल्पों के अपने-अपने फायदे हैं, और सही विकल्प आपके व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। इसलिए आपको सुझाव देना चाहूंगा कि आप कोई भी रीसेल फ्लैट खरीदते समय विभिन्न दस्तावेजों की गम्भीरतापूर्वक जांच करें? ताकि कब्जा लेते समय या उसके बाद आपके सामने कोई परेशानी नहीं आए। जानकारों की राय है कि रीसेल फ्लैट खरीदते समय कुछ कानूनी और स्ट्रक्चरल जांच बेहद जरूरी है, ताकि बाद में कोई धोखाधड़ी या विवाद न हो। पहला, मालिकाना हक, जो यह दिखाता है कि बेचने वाला सच में फ्लैट का मालिक है और बेचने का अधिकार रखता है। दूसरा, बिक्री दस्तावेज़ जो आधिकारिक रूप से मालिकाना हक आपके नाम ट्रांसफर करता है। इसे रजिस्ट्रेशन ऑफिस में रजिस्टर करना जरूरी है। 

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तीसरा, ऋणमुक्त प्रमाण पत्र जो यह बताता है कि फ्लैट पर कोई कानूनी बकाया या लोन नहीं है। चतुर्थ, अधिभोग या निवास प्रमाण पत्र जो स्थानीय प्राधिकरण की तरफ से इस बात की पुष्टि होती है कि बिल्डिंग सुरक्षित और रहने योग्य है। पांचवां, नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट, यानी बिल्डर, सोसाइटी और बैंक से यह सुनिश्चित करें कि सभी बकाया निपट चुके हैं और कोई आपत्ति नहीं है। छठा, प्रॉपर्टी टैक्स एंड यूटीलिटी बिल यानी यह जांचें कि सभी टैक्स और बिल समय पर चुकाए गए हैं। इस प्रकार उपर्युक्त 6 प्रकार के दस्तावेजों की जांच करके आप बिना चिंता के फ्लैट खरीद सकते हैं।

खरीददारों के बीच एक स्वाभाविक सवाल है कि क्या नए फ्लैट सुविधाओं और क्वालिटी में बेहतर होते हैं? तो जवाब होगा कि नए फ्लैट्स आम तौर पर जिम, स्विमिंग पूल, गार्डन, क्लब हाउस और आधुनिक सुरक्षा सिस्टम जैसी सुविधाओं के साथ आते हैं। जबकि पुराने फ्लैट्स में ये सुविधाएं कम या न के बराबर हो सकती हैं, और रख-रखाव की जरूरत ज्यादा होती है। लेकिन यह भी सच है कि अच्छे रख-रखाव वाले सेकंड हैंड फ्लैट्स में भी कई आधुनिक सुविधाएं हो सकती हैं। 

इसलिए स्पष्टता पूर्वक कीमत पर बातचीत कीजिए। आपको पता होना चाहिए कि सेकंड हैंड फ्लैट ज्यादा लचीले होते हैं, क्योंकि इन्हें व्यक्तिगत मालिक अपनी मनमर्जी के मुताबिक या जरूरत के अनुरूप बेचते हैं। इसलिए सम्बन्धित इलाके के समान फ्लैट्स की कीमत जानकर और जरूरत पड़ने वाले मरम्मत की जानकारी देकर आप एक बेहतर डील पा सकते हैं। जबकि नए फ्लैट्स में डेवलपर्स प्रोजेक्ट्स के मुताबिक कीमत तय करते हैं, इसलिए वहां ज्यादा बातचीत की गुंजाइश नहीं होती।

वहीं, एक अहम सवाल यह भी है कि फ्लैट की लाइफ कितनी है और बाद में आपका हक का क्या होता है? तो जवाब होगा कि एक फ्लैट की लाइफ आमतौर पर 50 साल से अधिक होती है, लेकिन यह निर्माण गुणवत्ता और रख-रखाव पर निर्भर करता है। लेकिन मालिकाना हक हमेशा के लिए आपका रहता है। क्योंकि फ्लैट खरीदते समय आप जमीन का अविभाजित अंश (यूडीएस) भी खरीदते हैं। इसलिए जब बिल्डिंग पुरानी हो जाए और उसे गिराने का समय आ जाए, तो सोसाइटी आमतौर पर रीडेवलपमेंट एग्रीमेंट करती है। इसमें डेवलपर नई बिल्डिंग बनाता है और आपको नया फ्लैट मिलता है। इस तरह आपका हक जमीन की कीमत से जुड़ा रहता है, बिल्डिंग की डिप्रेसीएटींग वैल्यू से नहीं।

सवाल है कि रीसेल फ्लैट में रख-रखाव व मरम्मत के खर्चे क्या-क्या होते हैं? जिसे पुराना फ्लैट खरीदते समय ध्यान में रखना पड़ता है। इसलिए जानकारों का कहना है कि सेकंड हैंड फ्लैट खरीदते समय आपको रख-रखाव और मरम्मत के खर्च का अंदाज़ा रखना चाहिए। इसके साथ ही इसमें शामिल हैं: पहला, मासिक चार्ज- सुरक्षा, कम्यूनिटी क्षेत्र, बिजली-पानी। दूसरा, वार्षिक योगदान- बड़े मरम्मत और रख-रखाव के लिएपार्किंग शुल्क, प्रॉपर्टी टैक्स। कभी-कभी छोटे-मोटे रेनोवेशन खर्च।

एक अहम सवाल यह भी है कि होम लोन लेना किस पर आसान है, नया फ्लैट पर या फिर रीसेल फ्लैट पर? तो जवाब होगा कि सेकंड हैंड फ्लैट में घर लेने वाले को सब कुछ स्वयं करना पड़ता है, जैसे- मालिक की जांच, दस्तावेज़, लोन आदि। लेकिन यह आसान होता है क्योंकि फ्लैट तैयार होता है। जबकि नए फ्लैट्स में डेवलपर ज्यादातर काम संभालते हैं। लोन की शर्तें लगभग समान रहती हैं, लेकिन नए फ्लैट्स में पैसे निर्माण के स्टेज के हिसाब से मिलते हैं। दरअसल, सेकंड हैंड फ्लैट के आसपास परिपक्व परिवेश और रेडी कनेक्टिविटी होती है, और यूजेबल स्पेस भी ज्यादा मिलता है। 

जबकि नए फ्लैट्स आधुनिक सुविधाओं और बेहतर निर्माण के साथ आते हैं, लेकिन शुरू में बिल्डर प्रीमियम के कारण कीमत थोड़ी घट सकती है। नए निर्माणाधीन फ्लैट पर जीएसटी लगता है, जबकि सेकंड हैंड फ्लैट एक्सेम्पट होता है। वहीं रीसेल वैल्यू का फैसला बाजार की स्थिति पर निर्भर करता है। रीसेल फ्लैट में तत्काल पजेशन या तुरंत रहने के लिए तैयार मिलता है, जबकि नए फ्लैट में कंस्ट्रक्शन पूरा होने और डिलीवरी का इंतजार करना पड़ता है।

एक्सपर्ट की सलाह है कि किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले अपने बजट का ध्यान रखें। खासकर दोनों विकल्पों की कुल लागत की तुलना करें, जिसमें शुरुआती लागत, रेनोवेशन और रखरखाव का खर्च शामिल हो। इसके बाद डेवलपर की प्रतिष्ठा जांचें। विशेषकर नए फ्लैट के लिए बिल्डर की पृष्ठभूमि की जाँच करें और रीसेल फ्लैट के लिए सोसायटी के रख-रखाव पर ध्यान दें। वहीं, कानूनी और वित्तीय स्पष्टता पर भी नजर रखें। जहां रीसेल प्रॉपर्टी का टाइटल स्पष्ट होना चाहिए, वहीं नए फ्लैट के लिए रेरा अनुपालन की पुष्टि करें। 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी प्रॉपर्टी को खरीदने से पहले अपने बजट, जीवनशैली और भविष्य की जरूरतों का आकलन करें। अगर बजट सीमित है और तुरंत पजेशन Can't, तो सही लीगल पेपर और अच्छी कंडीशन में रीसेल फ्लैट बेहतर विकल्प है। जबकि लंबी उम्र, कम रिपेयर, और बिल्डर वारंटी की चाह हो तो नया फ्लैट बेस्ट रहेगा। लोन लेने की आधिक संभावना, कम डॉक्युमेंटेशन और ट्रांसपेरेंसी के लिए नया फ्लैट चुना जा सकता है।

प्रायः हर स्थिति में फ्लैट की उम्र, सोसाइटी रिकॉर्ड, लीगल डॉक्युमेंट्स की जांच और बैंक की शर्तें अच्छे से समझना जरूरी है। नया फ्लैट और रीसेल (पुराना) फ्लैट खरीदने के बीच कई महत्वपूर्ण फर्क होते हैं, जिनका असर फ्लैट की लाइफ, खर्चों, और लोन मिलने में आसानी पर पड़ता है।

सवाल है कि किसी फ्लैट की लाइफ कितनी होती है? तो जवाब होगा कि सामान्यतः आरसीसी (रीइनफोर्स्ड कंक्रीट) स्ट्रक्चर वाले फ्लैट की औसत उम्र 50-60 साल मानी जाती है। इसलिए नया फ्लैट लेने पर पूरी लाइफ बचेगी, जबकि रीसेल फ्लैट में पहले से उपयोग किए वर्षों को घटाना होगा। बैंक भी लोन देते वक्त फ्लैट की बाकी उम्र देखता है।

सवाल यह भी है कि किस प्रकार के फ़्लैट पर आसानी से लोन मिल जाता है? तो जवाब होगा कि नया फ्लैट पर लोन आसानी से मिल जाता है क्योंकि बड़ी बिल्डर परियोजनाओं के अधिकतर फ्लैट प्रोजेक्ट फंडिंग वाले होते हैं, इसलिए लोन मिलने में आमतौर पर कोई परेशानी नहीं होती। जबकि रीसेल फ्लैट में लोन तभी मिलेगा जब फ्लैट लिगल क्लियर हो, उसकी उम्र बैंक के मानक के भीतर हो (आमतौर पर 20-30 साल बची उम्र अनिवार्य), और सभी कागजात प्रॉपर हों। रीसेल फ्लैट में कई बार सैल डीड, कब्जाधिकार, एनओसी, सोसाइटी अप्रूवल आदि दस्तावेजों की जांच भी बैंक करता है।

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 कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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