बेनामी संपत्ति क्या है? इसके बारे में क्या कानून है? इसकी लेन-देन करने वालों को कितनी सजा मिलेगी?

benami property
कमलेश पांडेय । Oct 16 2021 2:45PM

भारत में बढ़ते काले धन की समस्या से निजात पाने के लिए मोदी सरकार ने नवम्बर 2016 में नोटबंदी लागू की। इसी दिशा में सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ाकर बेनामी सपत्ति कानून, 1988 में परिवर्तन किया और वर्ष 2016 में इसमें संशोधन हुआ।

मनुष्य जीवन में संपत्ति का बहुत महत्व है। क्योंकि यह जीवन यापन में सहायता करती है। इससे प्रतिष्ठा भी मिलती है। अध्ययन-अध्यापन में भी इससे मदद मिलती है।यह दो तरह की होती है- चल और अचल। चल और अचल संपत्ति में नामी और बेनामी सम्पत्ति का भी प्रचलन है।व्यक्ति या संस्था विशेष के लिए हर तरह से संपत्ति अर्जित करने का खास महत्व होता है। क्योंकि अधिकांश मौके पर यही आपकी पहचान बनती है। चल सम्पत्ति में रुपये-पैसे, स्वर्णाभूषण आदि आते हैं, जबकि अचल संपत्ति में जमीन-जायदाद, मकान-दुकान-बगान आदि आते हैं। आजकल ज्ञान और तकनीक भी एक संपदा है। सबमें सतुंलन भी आवश्यक है। अधिकांश लोग सम्पत्ति प्राप्त करते ही बहक जाते हैं। इसका दुरुपयोग करने लगते हैं। लेकिन कुछ लोग अपने नाम से भी बनाते हैं और अपने मित्रों, परिजनों के नाम से भी। जब हम दूसरों के नाम से अपनी कोई संपत्ति बनाते हैं तो वह बेनामी सम्पत्ति कहलाती है।

साफ शब्दों में कहें तो बेनामी संपत्ति वह प्रोपर्टी है जिसकी कीमत किसी और ने चुकाई हो, किन्तु नाम किसी दूसरे व्यक्ति का हो। यह संपत्त‍ि पत्नी, बच्चों या किसी रिश्तेदार के नाम पर भी खरीदी गई होती है। जिसके नाम पर ऐसी संपत्त‍ि खरीदी गई होती है, उसे 'बेनामदार' कहा जाता है। बेनामी संपत्ति चल या अचल संपत्त‍ि या फिर वित्तीय दस्तावेजों के तौर पर हो सकती है।

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दरअसल, भारत में बढ़ते काले धन की समस्या से निजात पाने के लिए मोदी सरकार ने नवम्बर 2016 में नोटबंदी लागू की। इसी दिशा में सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ाकर बेनामी सपत्ति कानून, 1988 में परिवर्तन किया और वर्ष 2016 में इसमें संशोधन हुआ। यह संशोधित कानून 1 नवम्बर, 2016 से लागू हो गया। 

इस संशोधित बिल में ही बेनामी संपत्‍तियों को जब्त करने और उन्हें सील करने का अधिकार है। संसद ने अगस्त 2016 में बेनामी सौदा (निषेध) क़ानून को पारित किया है, जिसके प्रभाव में आने के बाद मौजूदा बेनामी सौदे कानून 1988 का नाम बदलकर बेनामी संपत्ति लेन-देन (निषेध) क़ानून 2016 कर दिया गया है।

इस प्रकार, बेनामी संपत्ति संशोधन कानून की परिभाषा ही बदली गयी है, जिसमें बेनामी लेन-देन करने वालों पर अपीलीय ट्रिब्यूनल और सम्बंधित संस्था की तरफ से जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है। इस संशोधन के बाद अब उस संपत्ति को भी बेनामी माना जायेगा जो कि किसी फर्जी नाम से खरीदी गयी है। अगर संपत्ति के मालिक को ही पता नहीं हो कि संपत्ति का असली मालिक कौन है तो फिर ऐसी संपत्ति को भी बेनामी संपत्ति माना जायेगा।

बेनामी सम्पत्ति के बारे में प्रमुख बातें स्पष्ट हैं- पहला, जब संपत्ति खरीदने वाला अपने पैसे से किसी और के नाम पर सम्पत्ति खरीदता है तो यह बेनामी सम्पत्ति कहलाती है। लेकिन शर्त ये है कि खरीद में लगा पैसे आमदनी के ज्ञात स्रोतों से बाहर का होना चाहिए। इसका भुगतान चाहे सीधे तौर पर भी किया जाए या फिर घुमा फिराकर।

दूसरा, अगर क्रेता ने इसे परिवार के किसी व्यक्ति या किसी करीबी के नाम पर भी खरीदा हो तब भी ये बेनामी सम्पत्ति ही कही जाएगी। स्पष्ट शब्दों में कहें तो बेनामी संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति कानून मिलकियत अपने नाम नहीं रखता, लेकिन सम्पत्ति पर कब्ज़ा रखता है। तीसरा, 1988 के काननू में किया गया संशोधन 1 नवंबर 2016 से लागू हो गया है। इसके तहत केंद्र सरकार के पास ऐसी सम्पत्ति को जब्त करने का भी अधिकार है।

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चतुर्थ, बेनामी संपत्ति की लेनदेन के लिए दोषी पाए गए व्यक्ति को सात साल तक के कैद की सजा हो सकती है और सम्पत्ति के बाजार मूल्य के एक चौथाई के बराबर अर्थदण्ड भी लगाया जा सकता है। बता दें कि काले धन पर जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित की गई कमिटी ने भी 3 लाख रूपये से ज्यादा के नकद लेनदेन पर रोक लगाए जाने की सिफारिश की थी, जिसे सरकार ने सैद्धांतिक रूप से मान लिया।

# बेनामी सपत्ति का विकास कैसे और क्यों हुआ है? क्या अब भी ऐसा संभव है?

अमूमन, कुछ लोग रिश्वत या अन्य तरीकों से काला धन जमा कर लेते हैं, लेकिन उन्हें इस बात का डर सताता रहता है कि यदि वे लोग अपने नाम से कोई संपत्ति खरीदेंगे तो आयकर (इनकम टैक्स) विभाग के लोग उनसे यह पूछताछ कर सकते हैं कि उनके पास इतना रुपया कहां से आया। इसलिए ऐसे लोग कर चोरी करने के लिए बेनामी संपत्ति खरीद लेते हैं। सभी बेनामी संपत्तियों में काला धन (ब्लैक मनी) ही इस्तेमाल किया जाता है। मोदी सरकार के नए कानून से बेनामी संपत्ति के नाम पर जारी अनियमितताएं बहुत हद तक थमीं हैं।

# आखिरकार किसे बेनामी संपत्ति नहीं माना जायेगा?

यदि किसी ने भाई, बहन या अन्य रिश्तेदारों, पत्नी या बच्चों के नाम से संपत्ति खरीदी है और इसके लिए भुगतान आय के ज्ञात स्रोतों से किया है, यानी कि इसका जिक्र आयकर रिटर्न में किया है तो इसे बेनामी संपत्ति नहीं माना जायेगा। इसके अलावा, संपत्ति में साझा मालिकाना हक जिसके लिए भुगतान घोषित आय से किया गया हो, को भी बेनामी संपत्ति नहीं माना जायेगा। लेकिन अगर सरकार को किसी सम्पत्ति पर अंदेशा होता है तो वो उस संपत्ति के मालिक से पूछताछ कर सकती है और उसे नोटिस भेजकर उससे उस सम्पत्ति के सभी कागजात मांग सकती है जिसे मालिक को 90 दिनों के अंदर दिखाना होगा।

# एक उदाहरण से समझिए इस लेन-देन को

जैसे, किसी ने अपने नाम का प्रयोग अपने किसी परिचित व्यक्ति को करने दिया और उस परिचित व्यक्ति ने किसी तीसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति के नाम से संपत्ति खरीदवाई। इस हालत में जिस व्यक्ति या संस्था के नाम से संपत्ति खरीदी गयी है, उसको खरीदी गयी संपत्ति के असली मालिक का पता नहीं होगा, यदि जाँच में इस तरह का मामला सामने आया तो इस तरह की संपत्ति भी बेनामी ही मानी जायेगी।

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# नए कानून में कितनी सजा का प्रावधान है ?

इस नए कानून के अन्तर्गत बेनामी लेनदेन करने वाले को 3 से 7 साल की जेल और उस प्रॉपर्टी की बाजार कीमत पर 25 प्रतिशत जुर्माने का प्रावधान है। अगर कोई बेनामी संपत्ति की गलत सूचना देता है तो उस पर प्रॉपर्टी के बाजार मूल्य का 10 प्रतिशत तक जुर्माना और 6 महीने से 5 साल तक की जेल का प्रावधान रखा गया है। इनके अलावा, अगर कोई ये सिद्ध नहीं कर पाया कि ये सम्पत्ति उसकी है तो सरकार द्वारा वह सम्पत्ति जब्त भी की जा सकती है। यही वजह है कि अब बेनामी सम्पत्ति सृजन में काला धन का अंधाधुंध उपयोग हतोत्साहित हुआ है।

# नए कानून से ब्लैक मनी कैसे बाहर आयेगी?

अब सम्पत्ति को आधार और पैन कार्ड से जोड़ा जायेगा, साथ ही जिसके नाम सम्पत्ति है तो उसे नोटिस भेजा जायेगा कि वह अपनी संपत्ति को आधार व पैन से जोड़े। अगर किसी ने किसी और व्यक्ति को संपत्ति दिला रखी है तो उसे भी नोटिस जायेगा कि संपत्ति को पैन और आधार से जोड़ो और नकली स्वामी (मालिक) तब पकड़ा जायेगा, जब वह इनकम टैक्स रिटर्न भरेगा, क्योंकि इनकम टैक्स विभाग नकली मालिक से उसकी आय के स्रोतों के बारे में पूछेगा और इस प्रकार असली अपराधी पकड़ा जायेगा।

इस प्रकार स्पष्ट है कि बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जो बेनामी लेनदेन का निषेध करता है। यह पहली बार 1988 में पारित हुआ तथा 2016 में इसमें संशोधन किया गया। संशोधित कानून 01 नवम्बर, 2016 से लागू हो गया। संशोधित बिल में बेनामी संपत्‍तियों को जब्‍त करने और उन्‍हें सील करने का अधिकार है। साथ ही, जुर्माने के साथ कैद का भी प्रावधान है। भारत में काले धन की बढ़ती समस्‍या को खत्‍म करने की दिशा में यह एक और कदम है।

बता दें कि मूल अधिनियम में बेनामी लेनदेन करने पर तीन साल की जेल और जुर्माना या दोनों का प्रावधान था। जबकि संशोधित कानून के तहत सजा की अवधि बढ़ाकर सात साल कर दी गई है। इससे जो लोग जानबूझकर गलत सूचना देते हैं, उन पर सम्पत्ति के बाजार मूल्य का 10 प्रतिशत तक जुर्माना भी देना पड़ सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नया कानून घरेलू ब्लैक मनी खासकर रियल एस्टेट सेक्टर में लगे काले धन की जांच के लिए लाया गया है।

दरअसल, बेनामी संपत्ति चल या अचल संपत्त‍ि या वित्तीय दस्तावेजों के तौर पर हो सकती है। कुछ लोग अपने काले धन को ऐसी संपत्ति में निवेश करते हैं जो उनके खुद के नाम पर ना होकर किसी और के नाम होती है। ऐसे लोग संपत्ति अपने नौकर, पत्नी-बच्चों, मित्रों या परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से खरीदते लेते हैं।

आमतौर पर ऐसे लोग बेनामी संपत्त‍ि रखते हैं जिनकी आमदनी का वर्तमान स्रोत स्वामित्व वाली संपत्त‍ि खरीदने के लिहाज से अपर्याप्त होता है। यह बहनों, भाइयों या रिश्तेदारों के साथ संयुक्त सम्पत्ति भी हो सकती है जिसकी रकम का भुगतान आय के घोषित स्रोतों से किया जाता है। इसमें संपत्त‍ि के एवज में भुगतान करने वाले के नाम से कोई वैध दस्तावेज नहीं होता है। ऐसे मामलों में बेनामी लेनदेन में शामिल दोनों पक्षों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

अगर किसी ने अपने बच्चों या पत्नी के नाम संपत्ति खरीदी है लेकिन उसे अपने आयकर रिटर्न में नहीं दिखाया तो उसे बेनामी संपत्ति माना जायेगा। अगर सरकार को किसी सम्पत्ति पर अंदेशा होता है तो वो उस संपत्ति के मालिक से पूछताछ कर सकती है और उसे नोटिस भेजकर उससे उस प्रॉपर्टी के सभी कागजात मांग सकती है जिसे मालिक को 90 दिनों के अंदर दिखाना होगा। अगर जाँच में कुछ गड़बड़ी पायी गई तो उस पर कड़ी कार्यवाही हो सकती है।

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इस नए कानून के अन्तर्गत बेनामी लेनदेन करने वाले को 3 से 7 साल की जेल और उस प्रॉपर्टी की बाजार कीमत पर 25% जुर्माने का प्रावधान है। अगर कोई बेनामी संपत्ति की गलत सूचना देता है तो उस पर प्रॉपर्टी के बाजार मूल्य का 10% तक जुर्माना और 6 महीने से 5 साल तक की जेल का प्रावधान रखा गया है। इनके अलावा अगर कोई ये सिद्ध नहीं कर पाया की ये सम्पत्ति उसकी है तो सरकार द्वारा वह सम्पत्ति जब्त भी की जा सकती है।

इस प्रकार स्पष्ट हो गया कि बेनामी सपत्ति एक ऐसी संपत्ति होती है जिसे किसी दूसरे के नाम से लिए जाता है, लेकिन इसकी कीमत का भुगतान कोई अन्य व्यक्ति करता है। या कोई व्यक्ति अपने नाम का प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति को किसी मकान, जमीन या अन्य कोई संपत्ति खरीदने के लिए करने देता है। या फिर दूसरे नामों से बैंक खातों में फिक्स्ड डिपाजिट कराना भी बेनामी संपत्ति मानी जाती है।

दरअसल, जिसके नाम पर ऐसी संपत्ति खरीदी गई होती है, उसे 'बेनामदार' कहा जाता है। बेनामी संपत्ति चल या अचल संपत्ति या वित्तीय दस्तावेजों के तौर पर हो सकती है। कुछ लोग अपने काले धन को ऐसी संपत्ति में निवेश करते हैं जो उनके खुद के नाम पर ना होकर किसी और के नाम पर होती है। ऐसे लोग संपत्ति अपने पत्नी-बच्चों, मित्रों, नौकर, या किसी अन्य परिचित के नाम पर खरीद लेते हैं। 

दूसरे शब्दों में कहें तो, बेनामी संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति कानून मिलकियत अपने नाम नहीं रखता लेकिन संपत्ति पर मालिकाना हक रखता है। वर्तमान सरकार कालेधन को ख़त्म करने के लिए पूरी तरह से कृत संकल्प है और आने वाले समय में इसके सकारात्मक परिणाम अर्थव्यवस्था में दिखायी देंगे।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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