खिलौना मैन्युफैक्चरिंग प्रोत्साहन योजना क्या है ? वैश्विक बाजार में इसकी पकड़ कैसे स्थापित होगी ?

Toy Manufacturing
कमलेश पांडेय । Aug 28 2020 11:40AM

देश में खिलौना निर्माण के कई कलस्टर हैं, जिनकी अपनी पहचान है और वहां पर सैंकड़ों कारीगर अपने अपने तरीके से स्वदेशी खिलौनों का निर्माण कर रहे हैं। अमूमन, ये घरेलू कारीगर जो खिलौना बनाते हैं, उनमें भारतीयता व हमारी संस्कृति की स्पष्ट छाप होती है।

हर बच्चों के हाथ में दिखने वाला खिलौना सिर्फ बाल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि बाल व किशोर व्यक्तित्व के निर्माण में भी उसकी बड़ी भूमिका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे समझ लिया है और खिलौना मैन्युफैक्चरिंग प्रोत्साहन योजना की शुरुआत भी करवा दी है। खास बात यह कि खिलौना उत्पादन के द्वारा उन्होंने भारतीय संस्कृति के मर्म को जतलाने का आह्वान किया है। एक तरह से 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के प्रति खिलौना कारीगरों व उद्यमियों की जिज्ञासा को झकझोरने की उन्होंने जो शानदार कोशिश की है, उसका दूसरा कोई सानी नहीं।

वास्तव में, पीएम की इस दूरगामी योजना से हमारे चिर शत्रु चीन को तो झटका लगेगा ही, साथ ही हमारे हजारों-लाखों लोगों को रोजगार मिलने का मार्ग प्रशस्त होगा और पूरी दुनिया में ये खिलौने हमारे देश की सभ्यता-संस्कृति को भी रौशन करेंगे। वाकई, खिलौना उत्पादन को आम स्वभाव से जोड़ते हुए देश के सजग व संवेदनशील उद्यमियों को जगाने-समझाने के लिए उन्होंने जो सकारात्मक नजरिया पेश किया है, उससे आत्मनिर्भर भारत, वोकल फ़ॉर लोकल, मेक इन इंडिया फ़ॉर द वर्ल्ड के सपनों को साकार करने में भी काफी मदद मिलेगी।

देश में खिलौना निर्माण के हैं कई कलस्टर और सिद्धहस्त कारीगर

इस बात में कोई दो राय नहीं कि देश में खिलौना निर्माण के कई कलस्टर हैं, जिनकी अपनी पहचान है और वहां पर सैंकड़ों कारीगर अपने अपने तरीके से स्वदेशी खिलौनों का निर्माण कर रहे हैं। अमूमन, ये घरेलू कारीगर जो खिलौना बनाते हैं, उनमें भारतीयता व हमारी संस्कृति की स्पष्ट छाप होती है, अद्भुत झलक मिलती है। यही वजह है कि इन कारीगरों और खिलौना निर्माण के कलस्टर को नए विचारों व सृजनात्मक तरीके से प्रोत्साहित करने की जरूरत है। यही नहीं, तकनीक और नए आइडिया वाले खिलौनों के निर्माण के दौरान हमें उत्पाद की गुणवत्ता का ध्यान रखना चाहिए, ताकि वे वैश्विक मानकों को पूरा कर सकें।

देखा जाए तो ऐसे खिलौने सिर्फ कारोबार के लिए नहीं होंगे, बल्कि वह बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करने में भी उनकी मदद करेंगे। देश के सभी आंगनवाड़ी केंद्रों व स्कूलों में ऐसे भारतीय खिलौनों के माध्यम से शैक्षणिक व मनोरंजन सम्बन्धी काम भी किया जा सकता है। गौर करने वाली बात यह है कि खिलौना निर्माण में नई तकनीक तथा विचारों के सृजन के लिए देश के नौजवानों को इससे जोड़ना होगा। इसके लिए युवाओं में स्वस्थ स्पर्धा भी कराई जा सकती है। क्योंकि इस क्षेत्र में भारतीय कारोबार में आत्मनिर्भर बनने की पूरी गुंजाइश है। यही वजह है कि इस उद्योग के लिए वोकल फॉर लोकल नारे के तहत काम किया जा रहा है। आम तौर पर कारोबारियों को स्वदेशी खिलौने की बिक्री को प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया है। इसके लिए खिलौना निर्माताओं और संबंधित अधिकारियों के साथ सम्पन्न बैठक में प्रधानमंत्री ने जो उत्साहवर्धक बातें बताई हैं, उनका अपना महत्व है।  

खिलौना निर्माण में चीन को पछाड़ने की है पूरी तैयारी

मकसद साफ है कि खिलौना बाजार से चीन की छुट्टी पूरी तरह से करने की तैयारी कर ली गई है, जिसके मद्देनजर खुद पीएम खिलौना मैन्युफैक्चरिंग प्रोत्साहन योजना की समीक्षा कर रहे हैं। वो सिर्फ घरेलू खिलौना बाजार में ही नहीं बल्कि दुनिया भर के बाजारों में खिलौनों पर भारतीयता का उत्कृष्ट छाप देखना चाहते हैं। वो ऐसे खिलौने बनाने का आह्वान कर चुके हैं, जिसमें एक भारत श्रेष्ठ भारत की झलक हो। उन खिलौने को देखकर दुनिया भर के लोग भारतीय संस्कृति, पर्यावरण के प्रति हमारी गंभीरता और भारतीय मूल्यों को समझ सकें। इसके अलावा, खिलौना उत्पादन में घरेलू कार्यों को भी प्रोत्साहित करने को उन्होंने कहा है, जो उचित है।

एक मार्केट रिसर्च फर्म आईएमएआरसी के मुताबिक, भारत में कारोबार 10,000 करोड़ रुपये का है, जिनमें से संगठित खिलौना बाजार 3,500-4,500 करोड़ रुपए मूल्य का है। लेकिन, हमारी पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियां इतनी उदासीन रहीं कि संगठित खिलौना बाजार में भारत पचासी-नब्बे प्रतिशत तक चीन से आयात पर निर्भर करता है। यही वजह है कि शत्रु देश चीन से खिलौना आयात को हतोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने फरवरी 2020 में आयात शुल्क में दो सौ फीसद की वृद्धि की थी, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि खिलौना आयात जारी है। जिसे रोकने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय जल्द ही खिलौना आयात पर लाइसेंस पद्धति शुरू कर सकता है।

भारतीय खिलौना सेक्टर में अवसरों की नहीं है कमी

देखा जाए तो भारतीय बाजार चीनी खिलौनों से अटा पड़ा हैं। इसके बावजूद खिलौना उद्यम में अवसरों की कोई कमी नहीं है। ऑल इंडिया टॉय मैन्युफैक्चर संघ (टैटमा) के एक सदस्य के मुताबिक, भारतीय खिलौना सेक्टर में अवसरों की कोई कमी नहीं है। वे यह भी कहते हैं कि जैसे ऑटोमोबाइल सेक्टर में एंसिलरी कंपनियां के योगदान से यह सेक्टर तेजी से विकास कर रहा है, वैसा खिलौना उद्योग में नहीं है। इसलिए, खिलौना उद्योग से जुड़ी कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में कम पूंजी में एंसिलरी (सहयोगी) कंपनी लगा कर नए उद्यमी न सिर्फ इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं, बल्कि कम समय में अपने करोबार को नई ऊंचाई तक ले जाकर मोटा मुनाफा भी कमा सकते हैं। क्योंकि भारत में खिलौना उद्योग का मौजूदा कारोबार करीब 4000 करोड़ रुपए का है। खास बात यह कि यह सेक्टर सालाना 15 फीसदी दर से ग्रोथ हासिल कर रहा है। देखा जाए तो खिलौना उद्यम के तहत देश भर में करीब 1500 कंपनियां संगठित और इसके दो गुणा अधिक असंगठित क्षेत्र की हैं। बावजूद इसके, देश में खिलौने की मांग की 30 फीसदी आपूर्ति ही भारतीय कंपनियां कर पा रही हैं, जबकि 50 फीसदी मांग को पूरा करने के लिए विदेशों से खिलौना आयात किया जाता है। मौजूदा हालात के बावजूद, भारत में सबसे ज्यादा खिलौने चीन से आयात किए जाते हैं।

जानकार बताते हैं कि भारतीय खिलौना उद्योग की कमजोरी यह है कि देश में ज्‍यादातर खिलौने बनाने वाली कंपनियां सूक्ष्म स्तर की हैं। जिसके चलते क्वालिटी प्रोड्क्ट और कम वॉल्यूम में खिलौने का उत्पादन होता है। आलम यह है कि भारतीय कंपनियों को रॉ-मटेरियल की आपूर्ति भी ठीक से नहीं हो पाती है। वहीं, खिलौने बनाने के लिए आधुनिक टेक्‍नोलॉजी का भी अभाव है। यहां अब भी बहुत ही साधारण मशीन का उपयोग किया जा रहा है। आधुनिक मशीन के अभाव में क्वालिटी प्रोड्क्ट का निर्माण नहीं हो रहा है। कुशल श्रमिकों की कमी और मशीनरी के अभाव में प्रोडक्शन कॉस्ट महंगा होने से खिलौने की कीमत अधिक होती है। इसके अलावा, देशी खिलौना उद्योग में नई आइडिया का भी अभाव है। देशी कंपनियां ब्रांडिंग और विज्ञापन पर न के बराबर खर्च करती हैं। इसका फायदा चीनी कंपनियां ले रही हैं। चीनी खिलौने की मांग यहां ज्यादातर खिलौने की खरीदारी के पीछे गिफ्ट मार्केट का भी योगदान होता है। भारतीय खिलौने की कीमत के मुकाबले चीनी खिलौने की कीमत कम होती है। इसलिए लोगों के बीच चीनी खिलौने ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं। वहीं, चीनी खिलौने आधुनिक मशीनरी से तैयार किए जा रहे हैं, इसके कारण यह कई वैरिएंट में मिल रहा है।

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परंपरागत तरीकों को छोड़कर अपनाने होंगे नए तरीके

ऐसे प्रतियोगी माहौल में भारतीय खिलौना कंपनियां निर्माण के लिए अब भी परंपरागत तरीके पर काम कर रही हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि कारोबारियों के लिए देश में अवसर है क्योंकि वर्तमान में भारत की कुल आबादी में 21 फीसदी की उम्र 2 साल से कम है और अनुमान है कि साल 2022 तक 0 से 14 साल के उम्र के बीच बच्‍चों की कुल आबादी करीब 40 करोड़ होगी। इसलिए भारतीय खिलौना बाजार के सामने बड़े अवसर होंगे।  

वहीं, आबादी बढ़ने के साथ यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2022 तक भारतीय खिलौने का कारोबार भी बढ़ेगा। क्योंकि कोरोना काल से इतर मध्यमवर्गीय परिवारों की आय बढ़ रही है। इसके कारण मांग में भी बढ़ोत्तरी होगी और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष खिलौना उद्योग पर भी इसका असर पड़ेगा। आईटी के समावेश और ऑनलाइन बिक्री का चलन बढ़ने के कारण खिलौना उद्यम इसका भी लाभ ले सकता है। मसलन, घरेलू ही नहीं, विदेशी बाजारों तक भी खिलौना उद्यम अपनी पहुंच बना सकता है। हालांकि, धीरे-धीरे चीनी खिलौने के कारोबार पर वैश्विक विश्वास में काफी कमी आई है। क्योंकि ज्यादा उत्पादन के चलते क्वालिटी से समझौता चीन को महंगा साबित हो रहा है। इसलिए भारतीय खिलौना उद्यम के पास काफी अवसर हैं।

खिलौना उद्यम से जुड़े एक कारोबारी कहते हैं कि डिमांड के मुकाबले बहुत कम उत्पादन हो रहा है। खासकर भारतीय कंपनियां बहुत कम वॉल्यूम में उत्पादन कर रही हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि इस सेक्टर के लिए एंसिलरी (सहयोगी) कंपनियां नहीं है। जिससे इस सेक्टर में काम कर रही कंपनियों को खिलौना में लगने वाले छोटे से छोटा समान खुद से बनाना होता है। इससे कंपनियों के प्रोडक्शन पर असर आता है। यदि इस सेक्टर में एंसिलरी कंपनियां आएं, जिसकी बहुत जरूरत है तो कंपनियों के साथ जबरदस्त फायदा भी होगा। क्योंकि कई कंपनियों के पास ऑर्डर होने के बावजूद डिलेवरी नहीं करने की बड़ी वजह यह है कि उनके पास एंसिलरी (सहयोगी) कंपनी नहीं है।  

गुणवत्ता में चीनी पर भारी पड़ते हैं भारतीय खिलौने, बढ़ेगा कारोबार

जानकार बताते हैं कि चीनी खिलौना मार्केट से हम सब प्रभावित हैं, लेकिन आने वाले दिनों में यह कम होगा। इसकी वजह यह है कि चीनी खिलौना सस्ता तो है पर वह टिकाऊ नहीं है। लिहाजा, यहां के बच्चे जो चाह रहे हैं, वह उनको चीनी उत्पाद से मिल नहीं पा रहा है। ऐसे में चीनी उत्पाद की मांग आने वाले कुछ सालों में बिल्कुल कम हो जाएगी। वहीं, मेक इन इंडिया फ़ॉर द वर्ल्ड पॉलिसी के तहत देश में मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए केंद्र सरकार छोटे उद्यमियों को हर संभव मदद दे रही है। सरकार के मेक इन इंडिया प्लान से खिलौना उद्योग को काफी फायदा मिलेगा। क्योंकि अब सरकारी बैंक भी लोन आसानी से उपलब्ध करा रहे हैं, जिसका फायदा छोटे उद्यमियों को मिलेगा।

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बता दें कि देश के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के मकसद से मोदी सरकार खिलौना समेत एयर कंडिशनर्स और टीवी सेट, लेदर, केमिकल्स, फर्नीचर और टायर जैसे कुछ और सेक्टरों को उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन देने पर आगे बढ़ चुकी है। वित्त मंत्रालय के साथ-साथ वाणिज्य व कुछ दूसरे मंत्रालयों द्वारा इसे अंतिम रूप देने के लिए विनिर्माण क्षेत्रों को चिन्हित किया जा चुका है। नए क्षेत्रों के लिए यह उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन यानी प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम उसी तरह की होगी जैसी स्कीम इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय से मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम का विकास करने के लिए किया था।  

-कमलेश पांडेय

(वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार)

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