सावन की शिवरात्रि पर भक्तों पर बरसती है भोले की कृपा

Grace on devotees on Shravan Shivratri
शुभा दुबे । Jul 21 2017 2:28PM

वैसे तो हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि भी आती है लेकिन सावन महीने में आने वाली शिवरात्रि को फाल्गुन महीने में आने वाली महाशिवरात्रि के समान ही फलदायी माना जाता है।

भगवान शिव को सावन महीना बहुत प्रिय है। इसलिए पूरे सावन माह भगवान शिव का विभिन्न द्रव्यों और पदार्थों से अभिषेक किया जाता है। सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि का महत्व भी बहुत है। इस दिन लाखों की संख्या में कांवड़िये शिवालयों में पवित्र स्थलों से लाये गये जल से अभिषेक करते हैं। इस वर्ष सावन की शिवरात्रि 21 जुलाई, शुक्रवार को पड़ रही है। मान्यता है कि सावन माह के प्रारंभ होते ही सृष्टि के पालनकर्ता भगवान श्रीविष्णु विश्राम के लिए अपने लोक चले जाते हैं और सारा कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। इस दौरान भगवान शिव माता पार्वती के संग पृथ्वी लोक पर रहकर समस्त धरतीवासियों के संरक्षण का काम करते हैं। भगवान शिव को लेकर सावन महीना इसलिए भी खास है। भगवान शंकर देवताओं में सबसे सरल और सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने जाते हैं। 

वैसे तो हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि भी आती है लेकिन सावन महीने में आने वाली शिवरात्रि को फाल्गुन महीने में आने वाली महाशिवरात्रि के समान ही फलदायी माना जाता है। इस दिन रुद्राभिषेक करने से समस्त पापों का विनाश हो जाता है। यदि कोई कालसर्प दोष से पीड़त है तो उसे सावन माह में पूजा अर्चना करनी चाहिए। यदि शारीरिक पीड़ा का निवारण चाहते हैं तो इस माह में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। शिवरात्रि के दिन यदि पंचमुखी रुद्राक्ष माला लेकर 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जाप करेंगे तो समस्त दुःख दूर हो जाएंगे।

भगवान शिव और उनका नाम समस्त मंगलों का मूल है। वे कल्याण की जन्मभूमि तथा परम कल्याणमय हैं। समस्त विद्याओं के मूल स्थान भी भगवान शिव ही हैं। ज्ञान, बल, इच्छा और क्रिया शक्ति में भगवान शिव के जैसा कोई नहीं है। वे सभी के मूल कारण, रक्षक, पालक तथा नियन्ता होने के कारण महेश्वर कहे जाते हैं। उनका आदि और अंत न होने से वे अनंत हैं। वे शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों के सम्पूर्ण दोषों को क्षमा कर देते हैं तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ज्ञान, विज्ञान के साथ अपने आपको भी दे देते हैं। शिव जी के शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं। देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को हर कोई कर सकता है। 

विधान− इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, पंचामृत अभिषेक करें। रूद्राभिषेक और ओम नम: शिवाय एवं महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। चार पहर में शिवजी की पंचोपचार, षोडशोपचार या राजोपचार पूजा करें। विल्ब पत्र, पुष्प, भांग, धतूरा, आंकड़े के फूल, सूखे मेवे से शिवजी का श्रृंगार करें। इस पर्व पर पत्र पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके वेदी पर कलश की स्थापना करके गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति तथा नंदी की चांदी की मूर्ति रखनी चाहिए। कलश को जल से भरकर रोली, मोली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलाइची, चंदन, दूध, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेल पत्र आदि का प्रसाद शिव को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए।

- शुभा दुबे

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