रवि प्रदोष व्रत से होती है सभी मनोकामनाएं पूरी

Ravi Pradosh

हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। सप्ताह के विभिन्न दिनों पर पड़ने वाले प्रदोष व्रत भांति-भांति के फल देते हैं। मनुष्य के जीवन रवि प्रदोष का खास महत्व है। रवि प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और वह दीर्घायु तथा सुखी जीवन व्यतीत करता है।

आज रवि प्रदोष व्रत है, वर्ष का अंतिम प्रदोष होने के कारण इसका विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि रवि प्रदोष के दिन पूरे परिवार के साथ शिव जी की अराधना कल्याणकारी होती है तो आइए हम आपको रवि प्रदोष की पूजा-विधि और कथा के बारे में बताते हैं।

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रवि प्रदोष के विषय में विशेष जानकारी

रविवार के दिन पड़ने की वजह से इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। हिन्दू धर्म के मुताबिक यह प्रदोष व्रत कलियुग में भगवान शिव की कृपा प्रदान करने वाला तथा अत्यधिक मंगलकारी माना गया है। यह प्रदोष व्रत महीने की त्रयोदशी तिथि को होता है। व्रत में प्रदोष काल का खास महत्व होता है। प्रदोष काल वह समय होता है जब दिन और रात का मिलन (संध्या का समय) होता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में प्रदोष के समय नृत्य करते हैं।

रवि प्रदोष का महत्व 

हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। सप्ताह के विभिन्न दिनों पर पड़ने वाले प्रदोष व्रत भांति-भांति के फल देते हैं। मनुष्य के जीवन रवि प्रदोष का खास महत्व है। रवि प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और वह दीर्घायु तथा सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसके अलावा उसे परिवार के लिए यह व्रत कल्याणकारी होता है। सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से रोगों से छुटकारा मिलता है। बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सभी तरह की कामना की सिद्धि होती है। बृहस्पतिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से शत्रु का नाश होता है। शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सौभाग्य की बढ़ोत्तरी होती है तथा शनिवार को प्रदोष व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है।

रवि प्रदोष के दिन ऐसे करें पूजा 

सबसे पहले रवि प्रदोष के दिन ब्रह्म मूहूर्त में जगें। ब्रह्म मूहूर्त में उठ कर स्नान, ध्यान करने के बाद उगते हुए सूर्य को तांबे के पात्र में जल, रोली और अक्षत लेकर अर्ध्य दें। अर्ध्य के पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए और पूरे दिन भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप मन ही मन में करते रहें। यदि संभव हो तो यह व्रत निराहार ही रहें। पूरा दिन बीतने के बाद शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव को पहले पंचामृत से स्नान करें। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर विल्व पत्र, धतूरे के फल, रोली, अक्षत, धूप और दीप से पूजा करें। साथ ही भगवान शिव को साबुत चावल की खीर भी अर्पित करें। अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करके प्रसाद को लोगों में बांटें तथा स्वयं भी ग्रहण करें।

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रवि प्रदोष से जुड़ी पौराणिक कथा 

रवि प्रदोष से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। उस कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था। एक बार वह गंगा स्नान के लिए जा रहा था तभी लुटेरे उसे मिल गए उन्होंने उसे पकड़ लिया और पूछा कि तुम्हारे पिता ने गुप्त धन कहां छुपा रखा है। इससे बालक डरकर बोला कि वह बहुत गरीब है उसके पास कोई धन नहीं है । तब लुटेरों ने उसे छोड़ दिया। वह घर वापस आने लगा कि तभी थकने के कारण पेड़ के नीचे सो गया और राजा के सिपाहियों ने उसे लुटेरा समझ कर पकड़ लिया और जेल में डाल दिया। इधर गरीब ब्राह्मणी ने दूसरे दिन प्रदोष का व्रत किया और शिव जी से अपनी बालक की वापसी की प्रार्थना करते हुए पूजा की। 

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शिवजी ब्राह्मणी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर राजा को सपने में बताया कि वह बाल जिसे तुमने पकड़ा है वह निर्दोष है उसे छोड़ दो। दूसरे दिन राजा ने बालक के माता-पिता को बुलाकर न केवल बालक को छोड़ दिया बल्कि उनकी दरिद्रता दूर करने के लिए उन्हें पांच गांव भी दान में दे दिए। इस तरह प्रदोष व्रत के प्रभाव से न केवल ब्राह्मण का बेटा मिला बल्कि उनकी गरीबी भी दूर हो गयी।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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