Skanda Sashti: स्कंद षष्ठी व्रत से मिलता है यश और वैभव

सावन माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 10 अगस्त को प्रातः 03 बजकर 14 मिनट पर होगी। जिसका समापन 11 अगस्त को प्रात 05 बजकर 44 मिनट पर ही होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 10 अगस्त 2024, शनिवार को स्कंद षष्ठी मनाई जाएगी।
आज स्कंद षष्ठी है, स्कंद षष्ठी व्रत का हिन्दू धर्म में खास महत्व है, यह भगवान कार्तिकेय को समर्पित महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, तो आइए हम आपको स्कंद षष्ठी के महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जाने स्कंद षष्ठी के बारे में
स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद कुमार भी है। तमिल हिंदुओं के बीच लोकप्रिय हिंदू देवता भगवान स्कंद कुमार हैं। वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं और उन्हें भगवान गणेश का छोटा भाई माना जाता है। लेकिन उत्तरी भारत में, स्कंद को भगवान गणेश के बड़े भाई के रूप में पूजा जाता है। भगवान स्कंद के अन्य नाम मुरुगन, कार्तिकेयन और सुब्रमण्य हैं। स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। पंचमी तिथि या षष्ठी तिथि सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच शुरू होती है और बाद में स्कंद षष्ठी व्रत के लिए इस दिन पंचमी और षष्ठी दोनों को संयुग्मित किया जाता है। इसका उल्लेख धर्मसिंधु और निर्णय सिंधु में मिलता है ।
स्कंद षष्ठी का शुभ मुहूर्त
सावन माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 10 अगस्त को प्रातः 03 बजकर 14 मिनट पर होगी। जिसका समापन 11 अगस्त को प्रात 05 बजकर 44 मिनट पर ही होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 10 अगस्त 2024, शनिवार को स्कंद षष्ठी मनाई जाएगी।
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स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
भगवान मुरुगन ने सोरपद्मन और उसके भाइयों तारकासुर और सिंहमुख को षष्ठी के दिन मार दिया था। स्कन्द षष्ठी का यह दिन जीत का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान मुरुगन ने वेल या लांस नामक अपने हथियार का उपयोग करके सोरपद्मन का सिर काट दिया था। कटे हुए सिर से दो पक्षी निकले - एक मोर जो कार्तिकेय का वाहन बन गया और एक मुर्गा जो उनके झंडे पर प्रतीक बन गया। स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। स्कंद षष्ठी व्रत की कथा के अनुसार, च्यवन ऋषि के आंखों की रोशनी चली गई थी, तो उन्होंने स्कंद कुमार की पूजा की थी। व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके आंखों की रोशनी वापस आ गई।
स्कंद षष्ठी के दिन ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार स्कंद षष्ठी की पूजा शुरू करने से पहले भगवान कार्तिकेय के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को साफ चौकी पर स्थापित करें। उस पर घी, दही, जल और पुष्प से अर्घ्य प्रदान कर कलावा, अक्षत, हल्दी, चंदन, इत्र का अर्पण करें. पूजा के दौरान कार्तिकेय मंत्र- देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥ का जाप करें। शाम के समय पूजा के उपरांत भजन और कीर्तन करें। ब्रह्मपुराण में उल्लेख है कि स्कन्द की उत्पत्ति अमावस्या को अग्नि से हुई थी। वह को प्रत्यक्ष हुए थे। देवों के द्वारा सेनानायक बनाए गए थे और तारकासुर का वध किया था। कार्तिकेय की पूजा, दीपों, वस्त्रों, अलंकारों से की जाती है. साथ ही, स्कंद षष्ठी पर भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। कार्तिकेय की स्थापना कर अखंड दीपक जलाए जाते हैं। विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस समय की गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है।
स्कंद षष्ठी से जुड़ी पौराणिक कथा भी है खास
राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती ने अपनी जान दे दी थी। वह यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई थीं। इस दुख से शिव जी तपस्या में लीन हो गए लेकिन उनके लीन होने से सृष्टि शक्तिहीन होने लगी। इस परिस्थिति का फायदा उठाते हुए तारकासुर ने देव लोक में आतंक मचा दिया और देवताओं को पराजित कर चारों तरफ भय का वातावरण बना दिया। तब सभी देवता मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और उनसे हल पूछा। ब्रह्माजी ने कहा कि शिव पुत्र के द्वारा ही तारकासुर का अंत होगा।
सभी कष्टों से मिलती है मुक्ति
शास्त्रों के अनुसार स्कंद षष्ठी का व्रत करने वाले को लोभ, मोह, क्रोध और अहंकार से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही धन, यश और वैभव में वृद्धि होती है। व्यक्ति सभी शारीरिक कष्टों और रोगों से छुटकारा पाता है। पंडितों का मानना है कि स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान सुख शांति के लिए रखा जाता है। इस व्रत को रखने से बच्चों को सुख व लंबी आयु की प्राप्ति होती है।
स्कंद षष्ठी पर ऐसे करें अनुष्ठान, मिलेगा लाभ
पंडितों के मूल स्कंद षष्ठी अनुष्ठान करें। स्कंद षष्ठी के दौरान भक्त छह दिनों तक उपवास रखते हैं। वे गोमांस, प्याज, लहसुन और शराब खाने से भी बचते हैं। ताजे फलों का ही सेवन करना चाहिए। स्कंद षष्ठी पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करें। भगवान स्कंद की मूर्ति स्थापित करें और मोमबत्ती जलाएं। भगवान मुरुगा या स्कंद की मूर्ति पर पवित्र जल या दूध डालें। मूर्ति के लिए नए वस्त्र बनाओ। प्रसाद के रूप में भगवान स्कंद को भोग या मिठाई का भोग लगाएं। स्कंद षष्ठी के दौरान भगवान स्कंद से कुछ विशेष मांगें। स्कंद षष्ठी कवचम गीत गाएं।
ऐसे भी मनाया जाता है स्कंद षष्ठी का पर्व
भक्त छह दिनों तक भगवान मुरुगा के लिए उपवास, प्रार्थना और भक्ति गीत गाते हैं, जो बुरी शक्तियों के खिलाफ लड़ाई के छह दिनों से मेल खाता है। इन छह दिनों में ज्यादातर भक्त मंदिरों में ही रहते हैं। असुरों के आक्रमण की ओर ले जाने वाली घटनाओं को तिरुचेंदूर और तिरुपरनकुंड्रम में नाटकीय और क्रियान्वित किया जाता है। आमतौर पर स्कंद षष्ठी के दिन कावड़ी चढ़ाई जाती है। अधिक जानकारी के लिए और अपने जन्म कुंडली के आधार पर व्यक्तिगत अनुष्ठानों को जानने के लिए, आप हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषियों से परामर्श कर सकते हैं। स्वामी शिवानंद का मानना है, “भगवान तिरुचेंदूर में पले-बढ़े और कथिरगमम में महासमाधि प्राप्त की।” यदि कोई भक्त विश्वास, भक्ति और भक्ति के साथ कथिरगाम (श्रीलंका) जाता है और दो या तीन दिनों के लिए मंदिर में रहता है, तो भगवान स्वयं भक्त को अपना दर्शन देते हैं।
स्कंद षष्ठी के दिन क्या करें और क्या ना करें
स्कंद षष्ठी के दिन भगवान धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कार्तिकेय के निमित्त व्रत रखकर उनकी विधि-विधान से पूजा करने से हर प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है, संतान की प्राप्ति होती है और धन वैभव बढ़ता है। इस दिन दान करना भी बेहद पुण्यकर माना जाता है। स्कंद षष्ठी के दिन स्कंद देव की स्थापना करने से और उनके समक्ष अखंड दीपक जलाने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। पंडितों के अनुसार इस दिन मांस-मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
स्कंद षष्ठी व्रत के दिन भूलकर भी न करें ये गलतियां
स्कंद षष्ठी व्रत के दिन पूरे दिन केवल फलाहार ही किया जाता है। इसलिए इस दिन फल के अलावा और कुछ अन्य चीजें न खाएं, इससे व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। स्कंद षष्ठी व्रत के दिन और व्रत के पारण वाले दिन तामसिक भोजन, जैसे मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज आदि का सेवन न करें। इस व्रत का पारण अगले दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही होता है। स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा सूर्योदय के समय ही करनी चाहिए।
स्कंद षष्ठी व्रत के दौरान इन 3 बातों का रखें ध्यान
स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा सूर्योदय के समय ही करनी चाहिए। वहीं व्रत का पारण अगले दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही होता है। अगर आपने स्कंद षष्ठी का व्रत रखा है, तो दो दिन तक घर में तामसिक भोजन न बनाएं। स्कंद षष्ठी व्रत में केवल फलाहार किया जाता है। इसके अलावा कुछ भी खाने से व्रत को पूरा नहीं माना जाता है।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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