अगर सोनाक्षी सिन्हा थोड़ी मेहनत कर लेती तो फिल्म की काया बदल सकती थी!

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रेनू तिवारी । Aug 5 2019 12:55PM

हकीम ताराचंद्र पूरे शहर में मामा जी के नाम से जानें जाते हैं। फिर एक दिन हकीम ताराचंद्र का स्वर्गवास हो जाता हैं और वह मरने से पहले अपना खानदानी शफाखाना अपनी बहन की बेटी बेबी बेदी (सोनाक्षी सिन्हा) के नाम करके जाते हैं।

सुन यार मुझे S##X के दौरान कुछ प्रॉब्लम होती है... अरे धीरे बोल कोई सुन लेगा। हा!!! सच में तुझे गुप्तरोग है, हे भगवान!!, एक बात बताऊं तुझे कान में... राहुल को वो वाली प्रॉब्लम है, क्या बात कर रहा है सच में.... ऐसी बातचीत आप लोगों ने अक्सर अपने आस-पास पास सुनी होगी। लेकिन बात समझ नहीं आती कि किडनी की बीमारी, हार्ट की बीमारी, बीपी, शुगर, हाथ-पैर में दर्द.. ब्ला-ब्ला ये सारी शारीरिक तकलीफ होती है तो सेक्स या प्रजनन अंगों से जुड़ी कोई समस्या बीमारी क्यों नहीं हो सकती? सेक्स से जुड़े मुद्दों को टैबू क्यों माना जाता है। इसी मुद्दे पर खुलकर बात करती है सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म खानदानी शफाखाना। इस फिल्म से पहले भी विक्की डोनर, शुभ मंगल सावधान जैसी फिल्में कॉमेडी के साथ बनाई जा चुकी हैं। आइये जानते हैं सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म खानदानी शफाखाना ने किस नये तरीके से इस मुद्दे पर बात की है-

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फिल्म की कहानी

हकीम ताराचंद्र का एक दशकों पुराना दवाखाना है जहां गुप्त रोगों का इलाज किया है। हकीम ताराचंद्र पूरे शहर में मामा जी के नाम से जानें जाते हैं। फिर एक दिन हकीम ताराचंद्र का स्वर्गवास हो जाता हैं और वह मरने से पहले अपना खानदानी शफाखाना अपनी बहन की बेटी बेबी बेदी (सोनाक्षी सिन्हा) के नाम करके जाते हैं। बेदी की हालत ज्यादा अच्छी नहीं होती हैं अपने पिता की मौत के बाद बेदी ही अपने घर का खर्च छोटे-मोटे काम करके चलाती थी। बेदी (सोनाक्षी सिन्हा) का फिल्म में एक नालायक भाई होता है (वरुण शर्मा) जो कुछ नहीं करता। बेदी को अपना घर चलाने के लिए ये अच्छा मौका दिखाई देता हैं वह खानदानी शफाखाना को चलाने की जिम्मेदारी को कबूल करती हैं और छ महीने के लिए शफाखाना चलाने लगती है। गुप्त रोगों का इलाज और सेक्स से जुड़ी बात करने पर लोग बेदी के चरित्र पर ही सवाल खड़े करने लगते हैं। बेदी लोगों से इस मुद्दे पर खुल कर बात करना चाहती हैं लेकिन उनपर सामाजिक दबाव बनाया जाता है। फिल्म में फिर एंट्री होती है रैपर बादशाह की, बादशाह को भी सेक्स से जुड़ी समस्याएं होती है जिसका इलाज वह मामा जी से करवा रहे होते है मामा के मरने के बाद अब उनका सामना बेदी से होता है। इसके बाद क्या होता है उसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी हम सब कुछ नहीं बता सकते।

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खानदानी शफाखाना मूवी रिव्यू

कलाकार

पहले बात करते है फिल्म के किरदारों की एक्टिंग की। सोनाक्षी सिन्हा ने ठीक-ठाक एक्टिंग की है लेकिन वह अगर फिल्म के लिए थोड़ी और मेहनत करती हो फिल्म को अपने दम पर हिट करवा सकती थी। फिल्म का टॉपिक अच्छा था लेकिन किरदारों ने अपने रोल के साथ न्याय नहीं किया। बादशाह जितना अच्छा गाते हैं अगर उतनी ही अच्छी एक्टिंग करते तो बात ही कुछ और होती खैर बादशाह तो सिंगर हैं उनसे उम्मीद भी कैसे की जा सकती है जब फिल्म के एक्टरों ने ही अच्छा अभिनय नहीं किया। थोड़ी बहुत जो कॉमेडी की है वो वरुण शर्मा ने की है। फिल्म में जितने भी पंच थे वो वरुण शर्मा की वजह से थे। इसके अलावा अनु कपूर, टीवी एक्टर प्रियांश जोरा भी फिल्म में नजर आये है।

डायरेक्शन

फिल्म को शिल्पी दासगुप्ता ने डायरेक्ट किया है। फिल्म की कहानी और डायरेक्शन अच्छा है। फिल्म की शूटिंग के जगहों ने फिल्म को जिंदा रखा। पंजाब की छोटी-छोटी गलियों का दीदार आप पर्दे पर फिल्म देखने के दौरान कर सकते है। सोनाक्षी सिंहा के कोर्टरुम वाला सीक्वेंस भी काफी शानदार है। लेकिन शिल्पी दासगुप्ता से ज्यादा की उम्मीद की जा सकती है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अल्टीमेट है। बादशाह, वरुण और सोनाक्षी पर गाना कोका फिल्माया गया है। 

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