Mann Se Healthy । Depression की दवा, देखभाल और लाइफस्टाइल से जुड़ी सारी जानकारी, Expert की जुबानी

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कई बार मन यानी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं होने पर भी लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते या इस स्थिति को छिपा लेते है, जो बिलकुल गलत है। मन की सेहत को लेकर भी उतना ही सचेत रहना जरुरी है जितना की लोग शरीर की सेहत के लिए होते है।

एक पुरानी कहावत है कि स्वस्थ तन में स्वस्थ मन बसता है। मगर एक स्वस्थ मन की मदद से ही तन को भी स्वस्थ रहने में मदद मिलती है, यानी स्वस्थ मन और स्वस्थ तन दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए है। कई बार मन यानी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं होने पर भी लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते या इस स्थिति को छिपा लेते है, जो बिलकुल गलत है। मन की सेहत को लेकर भी उतना ही सचेत रहना जरुरी है जितना की लोग शरीर की सेहत के लिए होते है। मानसिक स्थिति के प्रति किसी तरह का उदासीन रवैया नहीं अपनाना चाहिए।

हालांकि भारत में मानसिक बीमारियों के संबंध में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई है। मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने पर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर किसी भी मानसिक परेशानी को सीधेतौर पर पागलपन कह दिया जाता है, जो बेहद गलत व्यवहार होता है। आज के समय में भी मानसिक बीमारी खासतौर से डिप्रेशन के संबंध में लोग अधिक जागरुक नहीं है। मानसिक स्वास्थ्य में दवाई, लाइफस्टाइल संबंधित कई मामलों पर हमनें बात की है चाइल्ड एंड अडोलेसेंट साइकैट्रिस्ट डॉ. शिल्पा अग्रवाल से।

डिप्रेशन से पीड़ित की करें मदद

भारत में आज भी डिप्रेशन की समस्या पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है, जबकि वर्षों से ये परेशानी देश में है। आमतौर पर डिप्रेशन को लोग नजरअंदाज कर देते है। लोगों का व्यवहार है कि नजरअंदाज कर इस बीमारी से निजात पाई जा सकती है, मगर ऐसा नहीं होता है। कई रिसर्च में सामने आया है कि डिप्रेशन की स्थिति का सही समय पर इलाज होने से मरीज को आत्महत्या करने से भी रोका जा सकता है। अगर किसी डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति की जानकारी है तो उससे बात करें। मानसिक स्वास्थ्य की जानकारी करने के लिए मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल की मदद लेनी चाहिए। 

डिप्रेशन से ग्रसित व्यक्ति के लिए जरुरी है कि उसकी पहचान की जाए। डिप्रेशन की पहचान कर उसके कारणों के बारे में जानना चाहिए ताकि ये पता चल सके की स्थिति माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर स्तर पर है। किसी भी पीड़ित व्यक्ति के लिए जरुरी है कि वो अपना रुटिन बनाए रखे। डिप्रेशन की स्थिति से निकलने के लिए रोजाना कम से कम 30 मिनट की मॉडरेट एक्सरसाइज जरुर करे। हेल्दी खानपान और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाकर भी मानसिक समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। डाइट में ओमेगा 3 फैटी एसिड, फोलिक एसिड को शामिल करने से भी लाभ होता है।

डिप्रेशन को दूर करने के लिए बनाएं रूटिन

डिप्रेशन की स्थिति से निजात पाने के लिए व्यक्ति को अपना रूटिन बनाना होगा, जिसके जरिए वो उन एक्टिविटी को कर सकेगा जो उसके दिमाग को रिलैक्स करने में मदद करती है। अगर पीड़ित व्यक्ति जीवन में स्ट्रक्चर्ड एक्टिविटी को शामिल करता है तो उसे मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद मिलती है। इसके अलावा प्रोग्रेसिव रिलेक्सेशन एक्सरसाइज करना भी लाभदायक होता है। रोजाना सोने से पहले कम से कम 15 मिनट तक ये एक्सरसाइज करनी चाहिए। इसे करने से नींद ना आने की समस्या से धीरे धीरे छुटकारा मिल सकता है। इसके अलावा जिन लोगों को घबराहट या अत्यधिक चिंता होती है वो भी ये एक्सरसाइज कर राहत पा सकते है।

सेल्फ हेल्प बुक्स भी मददगार

आज कल इंटरनेट के जमाने में कुछ लोग सेल्फ हेल्प बुक्स पढ़ने पर भी जोर देते है। ऐसे में सिर्फ फेमस किताबों को ही पढ़ने पर जोर दें जो असल में मानसिक स्थिति को सुधारने में मदद कर सकें। माइल्ड से मॉडरेट डिप्रेशन में सेल्फ हेल्प बुक्स मददगार साबित हो सकती है। सेल्फ हेल्प बुक्स को चुनने से पहले डॉक्टर की सलाह भी जरुर लें ताकि वो स्थिति के अनुसार भी किताब का सुझाव दे सके। सेल्फ हेल्प बुक के जरिए डिप्रेशन पूरी तरह से गायब हो ये प्रमाणित नहीं है मगर इसमें कुछ किताबें मदद कर सकती है। वहीं इंटरनेट पर उपलब्ध हर जानकारी पर भरोसा करना भी नुकसानदायक हो सकता है। ऐसे में इंटरनेट पर उपलब्ध अनफिल्टर्ड जानकारी को अपनाने से पहले उसे वेरिफाई करें और फिर किताब चुनें।

इन बातों से ट्रिगर होता है डिप्रेशन

डिप्रेशन की स्थिति काफी गंभीर होती है, जिसपर लगातार मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल की मदद लेते हुए नजर बनाए रखना आवश्यक होता है। ऐसे में जरुरी है कि व्यक्ति नेगेटिव विचारों से दूर रहे। कई सिचुएशन में मामूली बात भी तकलीफ दे जाती है। किसी खास घटना का जिक्र कर भी समस्या को दूर करने पर फोकस किया जा सकता है। मानसिक स्थिति को दूर करने के लिए पूरा फोकस रखें।

लाइफस्टाइल में बदलाव भी महत्वपूर्ण

किसी भी पूरानी स्थिति से बाहर निकलने के लिए रूटिन और लाइफस्टाइल में बदलाव लाना जरुरी होता है। उसी तरह से मानसिक स्थिति को सुधारने के लिए पीड़ित को सेल्फ हेल्प के उपाय अपनाने चाहिए। लाइफस्टाइल को हेल्दी बनाएं और नियमित एक्सरसाइज करें। जंक फूड से परहेज करते हुए हेल्दी खाना खाएं। एंटी डिप्रेसेंट मेडिकेशन और साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट की मदद से स्थिति बेहतर होती है। मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल की मदद से कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी ले सकते हैं, जिसके जरिए नकारात्मक विचारों को रोकने में मदद मिल सकती है। इस थेरेपी की मदद से पीड़ित की सोच, फीलिंग और एक्शन के बीच सामंजस्य बैठाया जाता है। 

दवाई लेने से पहले लें प्रोफेशनल की मदद

बीमारी चाहे मेंटल हेल्थ से जुड़ी हो या फिर शारीरिक स्वास्थ्य से, किसी भी स्थिति में पीड़ित को डॉक्टर की सलाह के बिना दवाई का उपयोग नहीं करना चाहिए। हर स्थिति में डॉक्टर द्वारा प्रिस्क्राइब की कई दवाई का ही सेवन करें। आमतौर पर मेंटल हेल्थ में सुधार देने के लिए जिन दवाईयों का उपयोग होता है उनकी डोज काफी हैवी होती है, ऐसे में इनका सेवन करने के दौरान ऐहतियात ना बरतने पर इसके गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते है। इन साइडइफेक्ट पर प्रोफेनल की मदद से ही निगरानी की जा सकती है।

डिप्रेशन को नजरअंदाज करना खतरनाक

किसी भी तरह का डिप्रेशन हो, उसे नजरअंदाज करना बेहद घातक होता है। डॉक्टर का कहना है कि डिप्रेसिव एपिसोड टाइम बाउंड होता है यानी डिप्रेशन देने वाला कारण किसी समय तक ही इस स्थिति में रखता है। कुछ समय बाद व्यक्ति इस स्थिति से निकलता जरुर है क्योंकि जीवन लगातार आगे बढ़ता रहता है। हालांकि पीड़ित को सीवियर डिप्रेशन होने पर स्थिति गंभीर हो सकती है। अगर पीड़ित सही समय पर और सही दिशा में उपचार नहीं लेता है तो ये घातक भी सिद्ध हो सकता है। ऐसे में सही समय पर मेडिकल हेल्प लेने से जीवन भी बचाया जा सकता है।

क्या दवाइयों की होती है आदत

डिप्रेशन के मामलों में आमतौर पर डॉक्टर मरीज की स्थिति को देखने और आंकलन करने के बाद ही दवाइयों को चालू करते है। आमतौर पर एंटी डिप्रेशन टेबलेट का उपयोग कर ही मरीज का इलाज किया जाता है। ये दवाइयां मरीज का डिप्रेशन कम करने के लिए दी जाती है। अमूमन इन दवाइयों को लेने से छह से नौ सप्ताह में मरीज में डिप्रेशन के लक्षण कम होने लगते है। हालांकि डॉक्टर छह महीनों तक दवाइयों को चालू रखते हैं, जिसके पीछे ठोस कारण दिया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार 40 प्रतिशत लोगों में एक बार डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति में दो साल में डिप्रेशन फिर से लौटने की संभावना बनी रहती है। ऐसे में डॉक्टर दोबारा डिप्रेशन से बचाने के लिए नियमित तौर पर दवाइयां चालू रखते है, ताकि डिप्रेशन का खतरा टल सके। 

नहीं होते हैं गंभीर साइ़ड इफेक्ट

डिप्रेशन से निजात पाने के लिए खाई जाने वाली दवाइयों के भी गंभीर साइड इफैक्ट देखने को नहीं मिलते है। डॉक्टर के अनुसार एंटी डिप्रेसेंट दवाइयों की लत नहीं होती है। इन दवाओं का सेवन करने से मरीज को बेहतर महसूस होता है। कुछ मरीजों को दवाई लेने से मामूली साइड इफैक्ट देखने को मिल सकते है।

मरीज के लिए ट्रीटमेंट लेना जरुरी

मरीज के लिए जरुरी है कि वो नियमित रूप से अपना इलाज कराए। मरीज के लक्षण कम होने पर उसकी मानसिक स्थिति में सुधार हो सकता है। मानसिक स्थिति को सुधारने के लिए मरीज को मेंटेनेंस ट्रीटमेंट लेना चाहिए, जिससे मरीज की स्थिति में सुधार हो। मरीज को कोशिश करनी चाहिए कि फिर से डिप्रेशन की स्थिति में ना जाए। ऐसे में दवाई का सेवन करना मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मददगार साबित होती है। हर मरीज की स्थिति के अनुसार अलग अलग समय तक इन दवाइयों का उपयोग किया जा सकता है, जो खुद डॉक्टर मरीज की स्थिति के अनुसार तय करता है।

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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