Health Tips: कम उम्र के युवा भी हो रहे ऑस्टियो आर्थराइटिस का शिकार, खतरनाक होता है रिप्लेस

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शरीर में विटामिन डी, कैल्शियम की कमी के साथ लो फिजिकल एक्टिविटी ऑस्टियो आर्थराइटिस के लिए जिम्मेदार होती है। यह सारी चीजें फ्यूचर में घुटनों के कार्टिलेज को नुकसान पहुंचाते हैं।

आज से 30 साल पहले 1990 में हमारे देश में ऑस्टियो आर्थराइटिस के करीब 2.3 करोड़ मामले थे। लेकिन साल 2019 में यह संख्या 6.2 करोड़ के पास पहुंच गई है। लेकिन ऐसी क्या वजह है कि ऑस्टियो आर्थराइटिस के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इस बीमारी का सिर्फ बूढ़े ही लोग नहीं बल्कि युवा भी शिकार हो रहे हैं। हांलाकि लोग सोचते हैं कि हम जितनी सीढ़ियां चढ़ेंगे और जितना अधिक चलेंगे, हमारे ज्वाइंट्स उतने ज्यादा मजबूत होंगे।

लेकिन बता दें कि घर, ऑफिस और रोड आदि पर मौजूद हार्ड सरफेस, हील, बिना कुशन वाले जूते और सख्त सोल वाले फुटवियर की वजह से घुटनों का कार्टिलेज जल्द खराब हो जाता है। ऑस्टियो आर्थराइटिस एक तरह का गठिया होता है। यह समस्या पहले अधिकतर बुजुर्गों में देखने को मिलती थी। लेकिन आज के समय में कम उम्र के लोगों में भी यह समस्या देखने को मिल रही है। इसका मुख्य और सबसे बड़ा कारण हमारी लाइफस्टाइल है।

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शरीर में विटामिन डी, कैल्शियम की कमी के साथ लो फिजिकल एक्टिविटी ऑस्टियो आर्थराइटिस के लिए जिम्मेदार होती है। यह सारी चीजें फ्यूचर में घुटनों के कार्टिलेज को नुकसान पहुंचाते हैं। उम्र के साथ या ज्यादा काम करने से घुटनों का कार्टिलेज नहीं घिसता है। कई बार बुजुर्गों में भी यह एकदम दुरुस्त रहता है, तो कई बार यह कम उम्र में भी खराब हो जाता है। लेकिन अगर यह एक बार खराब हो जाता है, तो यह दोबारा रिजनरेट नहीं होता है। 

इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं हड्डी एक बार टूट जाए, तो वह दोबारा जुड़ सकती है, लेकिन ऑस्टियो आर्थराइटिस में खराबी हो जाए तो कार्टिलेज दोबारा रिपेयर नहीं हो सकता है। इसलिए इस समस्या से बचने के लिए आपको समय रहते कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको ऐसी कुछ बातों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनको ध्यान में रखकर इस समस्या से बचा जा सकता है।

जानिए क्या है ऑस्टियो आर्थराइटिस

जैसे कार के पहियों में स्टील के फ्रेम में टायर लगे होते हैं, जो रोड पर पड़ने वाले झटकों को कम करते हैं और एक कुशन (गद्दी) का काम करते हैं। वैसे ही हमारी हड्डियों के बीच में कार्टिलेज की गद्दी होती है, जो इन्हें सेफ रखने में मदद करती है। वैसे तो ये सभी जॉइंट्स के बीच में होता है, लेकिन पैरों के कार्टिलेज ऑस्टियोआर्थराइटिस के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। दरअसल गाड़ी के टायर की तरह ये कार्टिलेज भी घिसते रहते हैं। और अगर ये पूरी तरह खराब हो जाएं तो दर्द भी बढ़ जाता है और घुटने बदलने भी पड़ सकते हैं।

युवाओं को भी हो रही ये बीमारी

बुजुर्गों को होने वाली ऑस्टियो आर्थराइटिस जैसी बीमारी आजकल युवाओं में भी तेजी से देखने को मिल रही है। युवाओं में इस बीमारी के होने का मुख्य कारण खराब लाइफस्टाइल, इंडियन टॉयलेट, स्मोकिंग और फिजिकल एक्टिविटी है। जिसकी वजह से युवाओं की मसल्स कमजोर हो जाती हैं। लेकिन नीचे बताए गए तरीकों को फॉलो कर इसे मैनेज किया जा सकता है।

एक्सरसाइज है जरूरी

हमारे शरीर का पूरा भार घुटनों पर पड़ता है। वहीं शरीर के सबसे ज्यादा मूवमेंट वाला हिस्सा भी पैर के जॉइंट्स होते हैं। इसलिए कार्टिलेज को बचाने के लिए पैरों के मसल्स का मजबूत होना जरूरी होता है। जिससे कि जॉइंट्स पर ज्यादा दबाव न पड़े और वह हेल्दी रहे।

वेट ज्यादा होना

शरीर के वजन का सीधा असर घुटनों और कार्टिलेज पर पड़ता है। इस पर हमारे शरीर का जितना अधिक वजन पड़ता है, यह उतना घिसता जाता है। इसलिए वेट लॉस कर घुटनों को समय से पहले खराब होने से बचाया जा सकता है।

अनदेखी न करें चोट

चोट लगने के कारण कार्टिलेज डैमेज होने की संभावना होती है। ऐसे में अगर समय रहते इसकी जांच न करवाई जाए, तो स्थिति काफी गंभीर हो सकती है। इसलिए कभी भी चोट को हल्के में नहीं लेना चाहिए। खासकर जब वह चोट घुटने की हो। जोड़ों में हड्डी के अलावा कार्टिलेज, लिगामेंट और मसल्क के हिस्से भी होते हैं। ऐसे में चोट आदि लगने पर फौरन डॉकेटर से संपर्क करना चाहिए। 

हल्के में न लें दर्द

अगर आपको बिना वजह कुछ दिनों से दर्द होने लगा है, तो इसको भूलकर भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि खराब डाइट व लाइफस्टाइल, इंडियन टॉयलेट और खराब फुटवेयर के कारण आजकल घुटनों में कार्टिलेज की समस्या होने लगती है। न सिर्फ बड़े व बूढ़ों बल्कि कम उम्र के लोगों में भी यह समस्या देखने को मिल रही है। इसलिए युवा वर्ग के लोगों को अभी से इन सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए। हमारे शरीर के घुटने कार के टायरों की तरह होते हैं। ऐसे में समय के साथ इनका घिसना भी लाजमी हो जाता है। इसके अलावा ठोस सतह पर चलने के कारण भी घुटनों पर अधिक दबाव पड़ता है। इसलिए रनिंग या एक्सरसाइज आदि ठोस सतह पर नहीं करना चाहिए। 

स्मोकिंग को कहें न

आज के समय में लगभर हर दूसरा व्यक्ति स्मोकिंग की लत का आदी है। स्मोकिंग से हड्डियां कमजोर होती हैं। बता दें कि स्मोकिंह करने से कैल्शियम का अब्सॉर्प्शन होता जाता है। ऐसा कॉफी पीने वालों के साथ भी होता है। जो व्यक्ति जरूरत से ज्यादा कॉफी का सेवन करता है। उसके शरीर में कैल्शियम की कमी होने लगती है। जिससे हड्डियां भी कमजोर हो सकती हैं। कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए विटामिन डी काफी जरूरी होती है। वहीं एक सर्वे के मुताबिक 70% भारतीयों में विटामिन-डी की कमी है। ऐसे में इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

शरीर का पॉश्चर

दिनभर लेटे या बैठे रहने से भी आपके शरीर का पॉश्चर खराब हो सकता है। शरीर के खराब पॉश्चर का सबसे ज्यादा असर घुटनों पर पड़ता है। ऐसे में समय से पहले घुटने खराब होने का एक मुख्य कारण यह भी हो सकता है। इसलिए बॉडी पॉश्चर का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है।

जूते खरीदते समय बरतें सावधानी

जब भी हम रोड पर चलते हैं, तो सतह कठोर होने के साथ ठोकर सीधे पैरों पर पड़ती है। ऐसे में अगर आप गलत हील्स या जूते पहनते हैं, तो इसका घुटनों पर ज्यादा दबाव पड़ता है। इसलिए हमेशा मुलायल सोल वाले जूते या चप्पल पहननी चाहिए। जो आपके पैरों के लिए आरामदायक होने के साथ ही आपके लिए भी सुविधाजनक हों।

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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