Vishwakhabram: China-Pak रिश्तों में आई नई गर्माहट, Bangladesh भी बना बीजिंग का करीबी, Modi China Visit से पहले खड़ी हुई नई चुनौती

बांग्लादेश का पाकिस्तान और चीन के साथ जुड़ाव बढ़ रहा है जिसके तहत बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच डिप्लोमैटिक व ऑफिशियल पासपोर्ट धारकों के लिए वीज़ा-फ्री यात्रा का समझौता, पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्री का ढाका दौरा तथा बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष का चीन दौरा शामिल है।
दक्षिण एशिया में दो अहम घटनाक्रम सामने आये हैं। इस्लामाबाद में पाकिस्तान और चीन के विदेश मंत्रियों की 6वीं रणनीतिक वार्ता हुई है जिसमें दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय संबंधों की विस्तृत समीक्षा की और विशेष रूप से CPEC 2.0, ग्वादर पोर्ट और काराकोरम हाईवे परियोजना पर काम की गति तेज करने पर जोर दिया है। इसके साथ ही चीन ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने का वादा करते हुए आतंकवाद से निपटने के उसके प्रयासों की सराहना की है।
इसके साथ ही, बांग्लादेश का पाकिस्तान और चीन के साथ जुड़ाव बढ़ रहा है जिसके तहत बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच डिप्लोमैटिक व ऑफिशियल पासपोर्ट धारकों के लिए वीज़ा-फ्री यात्रा का समझौता, पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्री का ढाका दौरा तथा बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष का चीन दौरा शामिल है। ये दोनों घटनाएँ भारत के लिए चिंताजनक हैं, खासकर उस समय जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन यात्रा पर जाने वाले हैं।
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हम आपको बता दें कि चीन और पाकिस्तान लंबे समय से खुद को “आयरन ब्रदर्स” कहते हैं। अब CPEC के “अपग्रेडेड वर्ज़न” और ग्वादर पोर्ट के संयुक्त विकास पर सहमति भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि ग्वादर पोर्ट हिंद महासागर के द्वार पर चीन की पकड़ को मज़बूत करेगा। इसके अलावा, काराकोरम हाईवे का पुनर्निर्माण पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिस पर भारत पहले ही आपत्ति जता चुका है। साथ ही पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को सहारा देकर चीन उसे अपने और नज़दीक लाता जा रहा है, जिससे भारत के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनने का खतरा है।
वहीं बांग्लादेश की बात करें तो भारत-बांग्लादेश के बीच जल वितरण, सीमा विवाद और राजनीतिक मुद्दों को लेकर तनाव बना हुआ है। ऐसे में बांग्लादेश का चीन और पाकिस्तान से नज़दीकी बढ़ाना भारत के लिए चेतावनी भरा संकेत है। देखा जाये तो वीज़ा-फ्री समझौता पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों को नई ऊर्जा देगा। साथ ही ढाका और बीजिंग के बीच सैन्य सहयोग भारत की पूर्वी सीमाओं पर नई चुनौतियाँ पैदा कर सकता है। इसके अलावा, पाकिस्तान के साथ आर्थिक साझेदारी का बढ़ना भारत-बांग्लादेश व्यापारिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
भारत को क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिएं यदि इसका जिक्र करें तो कहा जा सकता है कि नई दिल्ली को ढाका और बीजिंग दोनों के साथ संतुलित संवाद बनाए रखना होगा। खासकर बांग्लादेश के साथ रिश्तों को और मज़बूत करना होगा ताकि वह चीन-पाक धुरी का हिस्सा नहीं बने। इसके अलावा, CPEC और ग्वादर जैसी परियोजनाएँ चूंकि सीधे भारत की सुरक्षा और समुद्री रणनीति को प्रभावित करती हैं इसलिए भारतीय नौसेना और खुफ़िया तंत्र को इस गतिविधि पर करीबी नज़र रखनी होगी। इसके अलावा, पड़ोसियों के साथ आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को गहराकर भारत उनकी चीन पर निर्भरता कम कर सकता है।
ऐसे में जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय के अंतराल पर चीन जाने वाले हैं, तब पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ चीन की बढ़ती नज़दीकी इस यात्रा को और संवेदनशील बनाती है। इसलिए भारत को चीन के साथ बातचीत में PoK में CPEC गतिविधियों और ढाका-इस्लामाबाद-बीजिंग समीकरण पर अपनी चिंता साफ़ तौर पर रखनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी को अपनी यात्रा का उपयोग यह संदेश देने के लिए करना चाहिए कि भारत-चीन सहयोग तभी टिकाऊ होगा जब चीन पड़ोस में भारत की सुरक्षा और संप्रभुता संबंधी चिंताओं का सम्मान करे।
बहरहाल, पाकिस्तान-चीन साझेदारी और बांग्लादेश का झुकाव भारत की कूटनीति और सुरक्षा दोनों के लिए नए इम्तिहान खड़े कर रहा है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा इस परिप्रेक्ष्य में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत को अब संतुलित, सतर्क और सक्रिय कूटनीति के साथ-साथ मज़बूत आर्थिक व सुरक्षा रणनीति अपनानी होगी, ताकि वह पड़ोस में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच अपनी स्थिति मज़बूत बनाए रख सके।
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