अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी को लेकर स्पष्ट था बाइडन का नजरिया...

Biden

अफगानिस्तान को लेकर राष्ट्रपति जो बाइडन महीनों पहले या फिर वास्तव में कहें तो सालों पहले अपना मन बना चुके थे। बाइडन एक दशक से भी ज्यादा समय से अफगानिस्तान में अमेरिका की उपस्थिति खत्म करने की वकालत करते रहे हैं।

वाशिंगटन। अफगानिस्तान को लेकर राष्ट्रपति जो बाइडन महीनों पहले या फिर वास्तव में कहें तो सालों पहले अपना मन बना चुके थे। बाइडन एक दशक से भी ज्यादा समय से अफगानिस्तान में अमेरिका की उपस्थिति खत्म करने की वकालत करते रहे हैं। वह तब एक बाहरी के तौर पर ऐसा करने की मांग करते थे क्योंकि एक सीनेटर के तौर पर उनकी शक्तियां कैपिटल हिल (अमेरिकी संसद) में महज एक वोट तक सीमित थीं या उपराष्ट्रपति रहने के दौरान उनकी भूमिका राष्ट्रपति को परामर्श देने भर की ही थी।

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अमेरिका के सबसे लंबे समय तक चले युद्ध को खत्म करने का अधिकार बाइडन के हाथों में इस साल आया और उन्होंने 31 अगस्त की समयसीमा तय करते हुए जोर दिया कि अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से वापस आ जाना चाहिए। अफगान सरकार के तेजी से बिखरने, मानवीय संकट गहराने तथा अपने यहां व परंपरागत सहयोगियों की तीखी आलोचना के बावजूद वो दृढ़ रहे। उन्होंने जिम्मेदारी ली और अपने पूर्ववर्ती पर इस मामले के लिये दोष मढ़ा।

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सत्ता संभालने के बाद महीनों तक महामारी को काबू में करने तथा अर्थव्यवस्था को गति देने के प्रयासों पर काफी हद तक ध्यान केंद्रित करने वाले बाइडन का सामना अफगानिस्तान में मची अफरा-तफरी के कारण अपने शासन में विदेश नीति से जुड़े पहले संकट से हुआ। हालात ऐसे बने की उन्हें अपनी प्राथमिकताओं का अस्थायी तौर पर पुन:निर्धारण करना पड़ा। उनकी प्रतिक्रिया दर्शाती है कि बाइडन अपने काम को कैसे देखते हैं, दशकों तक एक सांसद के तौर पर सत्ता के गलियारों के दांव-पेच को समझने के बाद बनी अपनी राजनीतिक समझ पर उनका भरोसा नजर आता है। युद्ध को समाप्त करने के भार को बाइडन कैसे संभाल रहे हैं, यह 40 वर्षों के उनके सार्वजनिक जीवन का ही नतीजा है। इसमें से लंबा वक्त उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मामलों को देखते और समझते हुए बिताए हैं। उन्होंने मतदाताओं को दिखाया कि वह सीनेट में चर्चा के दौरान अपनी राय नहीं रख रहे बल्कि फैसला कर रहे हैं और उनका आकलन फैसले के नतीजे के आधार पर होगा। नतीजा स्पष्ट होने में अभी समय लगता नजर आ रहा है। अमेरिका इस संकट के दौरान बाइडन का एक अलग ही रूप देख रहा है। उनका सख्त और जल्द क्रोधित हो जाने वाला अवतार भी लोगों को इस बार दिखा जबकि आम तौर पर वह अपनी सहानुभूति के लिये जाने जाते हैं। उन्होंने यह स्वीकार किया कि तालिबान ने उम्मीद से कहीं तेजी से अपने पांव पसारे है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर अपने सहयोगियों और कुछ सार्वजनिक संबोधनों में अमेरिकी लोगों से कहा कि अफगानिस्तान सरकार के शीघ्र पतन ने युद्ध के प्रयासों को लेकर उनके लंबे समय से चले आ रहे संदेह को सही साबित कर दिया है।

उन्होंने सोमवार को कहा, “पिछले हफ्ते के घटनाक्रम ने अगर कुछ भी पुष्ट किया तो वह यह कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य भागीदारी को समाप्त करने का फैसला सही था।” इसके साथ ही अमेरिकी सैन्य शक्ति को लेकर बाइडन का यह रुख भी सामने आया कि अमेरिकी बलों का इस्तेमाल विदेशों में राष्ट्रीय आदर्शों को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। बाइडन के आकलन के मुताबिक सैनिकों को अपने देश में खतरों पर अपना ध्यान ज्यादा केंद्रित करना चाहिए जबकि देश की कूटनीतिक व आर्थिक शक्तियां विदेशों में उसके मूल्यों को कायम रखने का उचित जरिया हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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