कोरोना महामारी ने ब्रिटेन में बढ़ाई खाने की कमी, 84 लाख लोगों के पास नहीं पर्याप्त भोजन

britain hunger stike

महामारी के कारण, पहले से कहीं अधिक लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त नहीं है। शुरुआती आंकड़े 2018 की तुलना में 2020 में खाद्य असुरक्षा के चौगुने होने की तरफ इशारा करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन के लगभग 84 लाख लोगों को अपने लिए पर्याप्त खाना जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जो ब्रिटेन को लातविया और हंगरी जैसे देशों के बराबर खड़ा कर देता है। इस स्थिति को खाद्य असुरक्षा कहा जाता है और यह 2008 के वित्तीय संकट और उसके बाद के दशक की मितव्ययिता के बाद से बढ़ रहा है। लेकिन पिछले एक साल में, कोविड-19 ने हालात और खराब कर दिए हैं। महामारी के कारण, पहले से कहीं अधिक लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त नहीं है। शुरुआती आंकड़े 2018 की तुलना में 2020 में खाद्य असुरक्षा के चौगुने होने की तरफ इशारा करते हैं। यह खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होने से लेकर, भोजन तक पहुंच होने में कठिनाइयों, वास्तव में भूखा होने की चिंता से जुड़ा है।

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‘‘सामान्य’’ हालात में, इस तरह की खाद्य असुरक्षा का जोखिम समाज के सबसे कमजोर तबके को झेलना पड़ता था। इसमें कम आय वाले या गरीबी में रहने वाले और किसी तरह के सहायता नेटवर्क से वंचित लोग शामिल हैं। महिलाओं को विशेष रूप से खाद्य असुरक्षा का खतरा होता है क्योंकि वे एकल अभिभावक वाले अधिकांश घरों (86%) की प्रमुख होती हैं, जो ब्रिटेन में ट्रस्सेल ट्रस्ट भोजन बैंक की सबसे बड़ी उपयोगकर्ताओं हैं। यूडब्ल्यूएस-ऑक्सफैम भागीदारी के लिए किए गए हमारे हालिया शोध में, हमने पता लगाया कि कैसे महामारी ने ब्रिटेन में खाद्य असुरक्षा के पैमाने को बढ़ा दिया है। हमने इस दौरान स्कॉटलैंड के चार समूहों पर ध्यान केंद्रित किया। यह समूह हैं- बेघर, युवा देखभालकर्ता, शरण चाहने वाले और विकलांग लोग। इन समूहों को सामान्य समय में भी पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं रहने का खतरा अधिक होता है। हमने कोविड-19 पर उभरते आंकड़ों और शोध के साथ साथ महामारी के कारण पूरे ब्रिटेन में खाद्य असुरक्षा पर पड़े प्रभाव को भी देखा।

खाद्य असुरक्षा हमारे अपने और मौजूदा शोध के माध्यम से, हमने यह पता लगाया कि संकट के दौरान मुख्यत: तीन कारणों से खाने की कमी बढ़ जाती है:1. बढ़ती जरूरत,जो मुख्य रूप से आमदनी न होने या इससे कमी से जुड़ी है। 2. भोजन तक पहुंच हासिल करने में नई और बढ़ती चुनौतियां। 3. खाद्य बैंकों के संचालन पर लॉकडाउन का असर। हमने विकलांग, बेघर, युवा देखभालकर्ताओं और शरण चाहने वालों की मदद करने वाले संगठनों से जुड़े लोगों से इस बारे में बात की कि कैसे महामारी ने घरेलू वित्तीय प्रणाली को प्रभावित किया। कई युवा देखभालकर्ताओं को लॉकडाउन के कारण रोजगार का तत्काल नुकसान हुआ। क्योंकि वे अक्सर कम वेतन और आकस्मिक रोजगार से जुड़े होते हैं, उन्हें छुट्टियों में वेतन मिलने जैसी योजना का लाभ नहीं मिलता। इसी के साथ, जीने की कीमत भी बढ़ गई। बाहर निकलने पर लगी बंदिशों ने उन दुकानों तक जाना दूभर कर दिया जहां सस्ता भोजन मिलता था। इसलिए स्थानीय स्तर पर खरीदारी करने में पैसा कम पड़ गया। विकलांग लोग - विशेष रूप से जिन्हें बसेरो भीतर रहने के लिए कहा गया था - ऑनलाइन खरीदारी पर अधिक निर्भर हो गए। सामान पहुंचने में लंबा वक्त लगा और विकलांग लोगों के पास इंटरनेट तक पहुंच होने की संभावना कम होती है, घरों तक सामान पहुंचाने की सेवाएं भी अतिरिक्त लागत के साथ आती हैं। ग्लासगो में शरण चाहने वालों की संख्या ब्रिटेन में सबसे ज्यादा है और अधिकांश को महामारी की शुरुआत में होटलों में या रहने की पूर्ण सुविधा देने वाले आवासों में स्थानांतरित कर दिया गया। इसका मतलब है कि उन्होंने अपनी सीमित नकदी पात्रता खो दी, वे होटल के भोजन पर निर्भर थे और स्वास्थ्य या सांस्कृतिक कारणों से उन्हें जो भोजन चाहिए था वह उसे खरीद पाने में असमर्थ थे। लॉकडाउन चुनौतियां कोविड-19 ने महामारी की स्थिति में ब्रिटेन की खाद्य प्रणाली की कमियों को उजागर किया। 2020 के शोध में उल्लेख किया गया कि ब्रिटेन की खाद्य प्रणाली पर ‘‘जरूरत के समय खरीदारी’’ आपूर्ति श्रृंखलाओं का एकाधिकार था, जो महामारी के पहले हफ्तों में सामान के भंडारण और डर के मारे की गई अधिक खरीदारी के कारण दबाव में आ गई।

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लॉकडाउन ने ब्रिटेन की आपातकालीन खाद्य सहायता प्रणाली की कमजोरी और खाद्य बैंक बंद होने के विनाशकारी परिणामों को भी उजागर कर दिया। दूसरे शब्दों में, महामारी ने दिखाया कि भोजन तक पहुंच की समस्याएं कितनी जल्दी सामने आ सकती हैं। स्थानीय अधिकारियों ने भोजन से वंचित लोगों के घरों में खाने के डिब्बे पहुंचाए, लेकिन गुणवत्ता, मात्रा और विश्वसनीयता के मामले में इन्हें मिश्रित सफलता मिली। हमने पाया कि कई बेघर और विकलांग लोगों के पास गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों के बावजूद आधिकारिक तौर पर बसेरे में रह पाने का दर्जा नहीं था, जिसका अर्थ था कि उन्हें भोजन की आपूर्ति की योजनाओं से बाहर रखा गया था। इन सभी मुद्दों से पता चलता है कि कैसे पहुंच और आय की चुनौतियां उन लोगों के लिए भोजन की उपलब्धता पर गंभीर प्रभाव डालती हैं जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है। बढ़ती खाद्य असुरक्षा का सीधा सीधा मतलब खाद्य सहायता की मांग में वृद्धि से जुड़ा था, लेकिन सामाजिक दूरी और लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए खाद्य बैंकों को बंद करने या उनका पुनर्गठन करने के लिए मजबूर किया गया।

कोविड-19 और इससे जुड़े नियमों के कारण उन जरूरतमंदों को खाद्य बैंकों से मदद नहीं मिल पाई, जब उन्हें इसकी जरूरत सबसे ज्यादा थी। कई खाद्य सहायता सेवाएं जो लॉकडाउन के दौरान काम करती रहीं, उनके संचालन के तरीके में काफी बदलाव आया। वे बड़े पैमाने पर खाद्य वितरण सेवाएं बन गईं। यह उनके कई उपयोगकर्ताओं के लिए एक बड़ी समस्या थी। उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि बेघर और युवा देखभालकर्ता इन खाद्य बैंकों की मदद से खुद के अलग थलग होने के एहसास को तो कम करते ही थे, उन्हें वहां लाभदायक सलाह और मानसिक स्वास्थ्य सहायता भी मिलती थी। यह सब लॉकडाउन के साथ गायब हो गया। खाद्य बैंकों के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, संकट के दौरान पता चला कि आपातकालीन खाद्य सहायता क्षेत्र कोविड-19 की वजह से बढ़ी खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए अक्षम था। सामान्य समय में और संकट के समय दोनों में खाद्य असुरक्षा से निपटने का सबसे अच्छा तरीका यह सुनिश्चित करना है कि लोगों के पास अपनी जरूरत का भोजन खरीदने के लिए पर्याप्त धन हो।

जिन लोगों को आर्थिक साधन होने के बावजूद भोजन नहीं मिल पा रहा है, उनकी आपूर्ति के लिए बेहतर तैयारी की भी आवश्यकता है। भोजन का अधिकार आंदोलन, जो कानून में लोगों के उचित भोजन के अधिकार की वकालत करता है, रफ्तार पकड़ रहा है। शायद इस संकट से नीति परिवर्तन होगा - निश्चित रूप से, कुछ जन विचारधारा शोध बताते हैं कि ब्रिटिश जनता एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के पक्ष में है। प्रशासन ने अवैतनिक देखभालकर्ताओं की सहायता के लिए अधिक धन उपलब्ध कराने और संकट अनुदान बजट बढ़ाने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग किया है। ये सरकारें बेघर लोगों की मदद के लिए भी जरूरी बदलाव कर सकती हैं। शरण चाहने वालों को भी पूरे ब्रिटेन में हो रही चर्चा में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि कानून में ‘‘भोजन के अधिकार’’ का समर्थन किया जा सके। शायद तब खाद्य असुरक्षा गुजरे जमाने की बात हो जाएगी।

-हार्टविग पौट्ज़, यूनीवर्सिटी ऑफ द वेस्ट ऑफ स्कॉटलैंडऔर डेमियन डेम्पसी, यूनीवर्सिटी ऑफ द वेस्ट ऑफ स्कॉटलैंड पैस्ले (स्कॉटलैंड) (द कन्वरसेशन) 

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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