यदि फैजाबाद फैसले पर अमल हो जाता तो बाद में गंभीर घटनाएं नहीं होतीं : पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश

Qazi Faiz Isa
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पीठ द्वारा पूछे गये प्रश्नों का संभवत: संतोषजनकर उत्तर नहीं दिये जाने के कारण शेख राशिद के वकील ने सुनवाई को स्थगित करने को कहा जिसे न्यायालय ने स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई एक नवंबर को तय की। बहरहाल, न्यायालय ने प्रतिवादियों के वकीलों को उनका पक्ष लिखित रूप से 27 अक्तूबर तक जमा कराने का निर्देश दिया।

पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने बृहस्पतिवार को कहा कि अगर फैजाबाद धरने में शामिल होने के लिए एक कट्टरपंथी इस्लामी समूह और अन्य के खिलाफ उनके फैसले को लागू किया गया होता, तो गंभीर घटनाओं को रोका जा सकता था। उन्होंने फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई एक नवंबर तक स्थगित कर दी। मुख्य न्यायाधीश ईसा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ जिसमें न्यायमूर्ति अमीनुद्दीन खान और न्यायमूर्ति अतहर मिनल्लाह शामिल थे, फैजाबाद धरना मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

न्यायालय के फैसले में खुफिया एजेंसियों को उनके संवैधानिक कार्यक्षेत्र से आगे नहीं बढ़ने का निर्देश दिया गया था। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) और अन्य ने फैसले की भारी आलोचना की थी और बाद में फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिकाएं दायर की गईं। फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिकाएं दायर करने वालों में पीटीआई, रक्षा मंत्रालय, इंटेलिजेंस ब्यूरो, पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी, पाकिस्तान निर्वाचन आयोग, मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी, पूर्व आंतरिक मंत्री शेख राशिद और पूर्व सैन्य तानाशाह जिया-उल हक के बेटे इजाजुल हक शामिल हैं। ईसा 2019 का फैसला जारी करने वाली तीन सदस्यीय पीठ के सदस्य थे।

ईसा ने फैजाबाद धरने के खिलाफ शीर्ष अदालत के 2019 के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाले कई याचिकाकर्ताओं की याचिका वापस लेने का फैसला करने के बाद नाराजगी व्यक्त की। चुनौती देने वालों ने अपनी दलीलों में कहा था कि फैसला खामियों से भरा था। मुख्य न्यायाधीश ने आश्चर्य जताया कि वे याचिकाएं वापस क्यों ले रहे हैं, और पूछा कि “हर कोई सच बोलने से इतना डरता क्यों है”। संघीय सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी-जनरल मंसूर उस्मान अवान ने अदालत को आश्वासन दिया कि फैजाबाद फैसले के फैसले लागू किए जाएंगे लेकिन मुख्य न्यायाधीश खुश नहीं थे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यदि इस निर्णय को उस समय लागू कर दिया गया होता तो उस समय गंभीर घटनाएं नहीं हुई होतीं।’’

उनका संकेत जरानवाला घटना की ओर था जिसमें कट्टरपंथी इस्लामिक लोगों ने ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए 22 गिरजाघरों में तोड़फोड़ की थी और कई ईसाइयों के घरों को आग के हवाले कर दिया था। भले ही उस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ हो किंतु मुस्लिम बहुल देश में यह ईसाइयों पर हुआ सबसे भीषण हमलों में से एक था। पीठ द्वारा पूछे गये प्रश्नों का संभवत: संतोषजनकर उत्तर नहीं दिये जाने के कारण शेख राशिद के वकील ने सुनवाई को स्थगित करने को कहा जिसे न्यायालय ने स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई एक नवंबर को तय की। बहरहाल, न्यायालय ने प्रतिवादियों के वकीलों को उनका पक्ष लिखित रूप से 27 अक्तूबर तक जमा कराने का निर्देश दिया।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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