Imran की पार्टी अपने गठन के 27 साल बाद सबसे मुश्किल वक्त का सामना कर रही

Imran khan
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आसिफ ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘संघीय सरकार के सभी गठबंधन सहयोगियों को इस मुद्दे पर साथ लाया जाएगा।’’ इमरान ने 25 अप्रैल 1996 को लाहौर में पार्टी का गठन किया था, जो अब तक के सबसे मुश्किल समय का सामना कर रही है।

लाहौर। क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी अपने गठन के 27 साल बाद सबसे मुश्किल समय का सामना कर रही है। इस महीने की शुरुआत में सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमलों के मद्देनजर पीएमएल-एन के नेतृत्व वाली मौजूदा गठबंधन सरकार द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री की पार्टी पर पाबंदी लगाये जाने की संभावना है। सैन्य प्रतिष्ठानों द्वारा समर्थित एवं मुख्यधारा के दल--पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान-फजल (जेयूआई-एफ)--चरमपंथ और हिंसा को बढ़ाने देने को लेकर इमरान की पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में हैं। रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने शुक्रवार को कहा था कि इमरान की पार्टी पर प्रतिबंध लगाने का विषय जल्द ही संसद में उठाया जाएगा।

आसिफ ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘संघीय सरकार के सभी गठबंधन सहयोगियों को इस मुद्दे पर साथ लाया जाएगा।’’ इमरान ने 25 अप्रैल 1996 को लाहौर में पार्टी का गठन किया था, जो अब तक के सबसे मुश्किल समय का सामना कर रही है। पार्टी अपने गठन के बाद, पहले 15 वर्षों में संसद में एक छोटी पार्टी या एक सीट वाली पार्टी रही थी। इमरान ने 2002 के आम चुनाव में पंजाब जिले में अपने गृहनगर मियांवाली से नेशनल असेंबली चुनाव जीता। उनकी पार्टी ने यही एकमात्र सीट जीती थी। इसके बाद, इमरान की पार्टी ने 2008 के चुनावों का बहिष्कार करते हुए कहा था कि वह सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ के तहत चुनाव नहीं लड़ेगी। हालांकि, इसके बाद पार्टी के लिए ऐतिहासिक क्षण आया, जब 30 अक्टूबर 2011 में लाहौर के मीनार-ए-पाकिस्तान में आयोजित जलसा (सार्वजनिक बैठक) में हजारों लोग खासकर युवा और महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल हुईं।

न ने कहा कि उस रैली ने पार्टी में नई जान फूंक दी और 15 साल के संघर्ष के बाद उसे एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में पहचान मिली। खान ने अपने आंदोलन की तुलना पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के (पाकिस्तान आंदोलन) से की। वह इसे नए पाकिस्तान के लिए संघर्ष कहेंगे। हालांकि, उनके राजनीतिक आलोचक तत्कालीन आईएसआई (इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस) प्रमुख जनरल शुजा पाशा को ‘‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ में नयी जान फूंकने और इसके लिए प्रचार’’ करने का श्रेय देते हैं। इमरान खान के नेतृत्व में पार्टी ने ‘‘चोर और भ्रष्ट’’ के नारे के साथ अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाना शुरू किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक अभियान छेड़ा। उनके नेतृत्व में पार्टी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ 2013 की चुनावी धांधली को लेकर पद छोड़ने के लिए उन पर दबाव डालने के लिए 2014 में इस्लामाबाद में 126 दिन तक धरना दिया था। वहीं, 2018 के चुनाव में इमरान की पार्टी पहली बार केंद्र में सत्ता में आई।

चुनाव से पहले 60 से अधिक शीर्ष नेता पार्टी में शामिल हो गए थे। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने सेना पर इन नेताओं को इमरान की पार्टी का साथ देने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था। हालांकि, इमरान के सैन्य नेतृत्व के साथ संबंध मुख्य रूप से आईएसआई प्रमुख नदीम अंजुम की नियुक्ति के साथ बिगड़ते चले गए। बाद में, उन्हें अप्रैल 2022 में अविश्वास प्रस्ताव के जरिए प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया। अपने निष्कासन के बाद खान ने सेना विरोधी एक अभियान शुरू किया, जिसे देश में सैन्य प्रतिष्ठानों पर नौ मई के हमलों के पीछे का मुख्य कारण बताया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सैन्य प्रतिष्ठान ने अब सैद्धांतिक रूप से इमरान खान और उनकी पार्टी को ‘‘खत्म’’ करने का फैसला किया है, ताकि उसे राजनीति से बाहर किया जा सके।

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राजनीतिक विश्लेषक ज़ाहिद हुसैन ने कहा कि नौ मई की घटनाओं ने देश के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है, जिससे इमरान की पार्टी और सुरक्षा प्रतिष्ठान के बीच गतिरोध चरम पर पहुंच गया है। उन्होंने कहा, ‘‘शायद खान का मानना था कि सड़कों पर ताकत दिखाकर सैन्य प्रतिष्ठान को पीछे हटने के लिए मजबूर किया जा सकता है। उन्होंने उन पर हुए हमले के लिए सेना प्रमुख को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर पर सत्ता हासिल करने के उनके रास्ते में बाधा डालने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।’’ हिंसा के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने हाल में इमरान की पार्टी के समर्थकों पर कड़ी कार्रवाई की है। रक्षा विश्लेषक डॉ. हसन अस्करी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि भले ही इमरान की पार्टी पर अब तक प्रतिबंध नहीं लगाया गया हो, लेकिन कई नेताओं के उसका साथ छोड़ने और पूर्व प्रधानमंत्री के भविष्य को लेकर अनिश्चितताओं के बीच पार्टी अगले चुनाव में अप्रासंगिक हो सकती है।

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