40 ट्रक माल लेकर अफगानिस्तान में धड़धड़ाते हुए घुसा भारत, देखते रह गए ट्रंप-शहबाज

Afghanistan
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अभिनय आकाश । Oct 24 2025 1:45PM

अफगानिस्तान जहां अमेरिका ने अपने अरबों डॉलर के साथ सपनों को भी दफना दिया। वहां बस भूख, डर और बारूद की गंध बची थी। लोगों के चेहरों पर उम्मीद नहीं हार का भाव लिखा था। लेकिन अब वही धरती भारत के भरोसे से नई सुबह देख रही है। जहां कभी अमेरिकी फौजे हार मानकर भाग गई। वहां अब भारतीय ट्रक उम्मीद लेकर पहुंच रहे हैं। भारत ने फिर साबित कर दिया है कि जब बाकी देश कहने में लगे थे। तब भारत करने में लगा था।

जो सच्चे दिल से साथ देता है, उसका नाम सदियों तक इतिहास में लिखा जाता है। आज इसी कहावत को भारत ने उस अफगान जमीन पर सच कर दिखाया जहां कभी गोलियों की गूंज हुआ करती। आज वहां पर भारत की मदद और इंसानियत की आवाज सुनाई दे रही है। वही अफगानिस्तान जहां अमेरिका ने अपने अरबों डॉलर के साथ सपनों को भी दफना दिया। वहां बस भूख, डर और बारूद की गंध बची थी। लोगों के चेहरों पर उम्मीद नहीं हार का भाव लिखा था। लेकिन अब वही धरती भारत के भरोसे से नई सुबह देख रही है। जहां कभी अमेरिकी फौजे हार मानकर भाग गई। वहां अब भारतीय ट्रक उम्मीद लेकर पहुंच रहे हैं। भारत ने फिर साबित कर दिया है कि जब बाकी देश कहने में लगे थे। तब भारत करने में लगा था। 

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अफगानिस्तान में जब भूंकप और भूख ने तबाही मचाई। दुनिया के बड़े बड़े देश मीटिंग और बयानों में उलझे रहे। लेकिन भारतने रातों रात सन्नाटे में 40 ट्रकों का एक काफिला रवाना कर दिया। इनमें गेंहू, दालें, दवाईयां, टेंट और इंसानियत का जज्बा भरा था। इन ट्रकों की रफ्तार में राहत नहीं बल्कि उम्मीद की गूंज थी। काबुल की सड़कों पर भारतीय झंडे वाले ट्रक पहुंचे तो वहां के बच्चों ने कहा कि अब भारत आया है। वहां के बच्चों में चमक लौट आई। महिलाओं के चेहरों पर मुस्कान खिल गई और अफगान गलियों में हिंदुस्तान जिंदाबाद गूंज उठा। भारत ने कोई प्रचार नहीं किया। कोई घोषणा नहीं की और चुपचाप मदद भेज गी। यही भारत की साइलेंट डिप्लोमेसी है।  

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ऐसी कूटनीति जो कैमरों में नहीं। दिलों में बात करती है। जब विदेश मंत्री एस जयशंकर की मुलाकात तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से हुई। तो दुनिया की निगाहें उस छोटे से कमरे में टिक गई। अमेरिका जो तालिबान से बात करने से डरता था, भारत वही जाकर विश्वास की डोर बुन रहा। मुत्ताकी ने कहा था कि भारत ने बिना किसी स्वार्थ के हमारा साथ दिया। ये बात सिर्फ शुक्रिया नहीं बल्कि भारत की कूटनीतिक जीत की मुहर है। भारत पहले अफगानिस्तान को 20 एंबुलेंस गिफ्ट कर चुका है और अब एमआरआई व सीटी स्कैन मशीने भेजने की तैयारी में जुट चुका है।  

बाकी देश जब चेतावनी देने में लगे थे तब भारत वहां अस्पताल, स्कूलों का निर्माण कर रहा है। भूखे बच्चों के हाथों में रोटी रख रहा था। ये सिर्फ राहत नहीं थी। बल्कि दिलों को जीतने की डिप्लोमेसी थी। भारत ने दिखा दिया कि असली ताकत हथियारों में नहीं मानवता में होती है। रूस ने भारत के कदम को मानवता की मिसाल बताया। चीन चौकन्ना हो गया क्योंकि उसे समझ आ गया कि भारत का दिलों में उतरने वाला मॉडल उसके बेल्ट एंड रोड एनिसिएटिव से कहीं ज्यादा असरदार है। अमेरिकी थिंक टैंक भी मानने लगे हैं कि भारत की ये नीति एशिया की नई धुरी बन सकती है।  

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