सेना हो या सरकार, लाख हाथ-पैर मार घुटनों पर नहीं ला पाए, पाकिस्तान में आखिर इतने लोकप्रिय क्यों हैं इमरान

Imran
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । May 12 2023 5:04PM

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) प्रमुख को अपने अनुयायियों के बीच भारी लोकप्रियता का संकेत देता है।

मंगलवार यानी 9 मई को इमरान खान को हाई कोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया। ये गिरफ्तारी पाकिस्तान रेंजर्स के सैनिकों द्वारा की गई जो वहां का एक नागरिक सुरक्षा बल है। बड़ी बात ये है कि इमरान खान जमानत लेने के लिए इस्लामाबाद की हाई कोर्ट आए थे। अदालत में पेशी से ठीक पहले उन्हें अदालत के रिकॉर्ड रूम में अपने फिंगर प्रिंट दर्ज कराने थे। वो वहां बैठे हुए थे। लेकिन इसी दौरान पाकिस्तान के 50-60 रेंजर्स एक तरह के अदालत के अंदर मौजूद रिकॉर्ड रूम पर हमला कर दिया। शीशे तोड़ दिए गए और अंदर घुसकर इमरान को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद जो हुआ शायद उसकी कल्पना खुद इमरान खान ने भी नहीं की होगी। न ही प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर को होगा। लोग लाखों की तादाद में सड़कों पर उतर आएंगे। हालात ऐसे बन गए कि पाकिस्तान में पहली बार नागरिका और सेना आमने-सामने नजर आए। पिछले तीन दिनों में करोड़ों की संपत्ति स्वाहा हो गई। सेना के हेडक्वार्टर से लेकर प्रधानमंत्री के ऑफिस तक को निशाना बनाया गया। ये पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) प्रमुख को अपने अनुयायियों के बीच भारी लोकप्रियता का संकेत देता है। लेकिन इमरान खान इतने लोकप्रिय क्यों हैं कि सेना और सरकार लाख हाथ पैरर मारकर भी उन्हें घुटनों पर नहीं ला पा रही है। आइए सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं। 

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मसीहा जैसी छवि

खान अपने अनुयायियों के लिए सिर्फ एक राजनीतिक नेता नहीं हैं, बल्कि उन्होंने उनके बीच अपनी शख्सियत एक 'मसीहा बनाई है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के अनुसार, पीटीआई अध्यक्ष के समर्थक उन्हें न केवल एक राजनीतिक नेता के रूप में देखते हैं, बल्कि राजनीतिक मसीहा के रूप में देखते हैं। 'बर्बाद राष्ट्र'की एकमात्र आशा। डेली टाइम्स ने गैलप पाकिस्तान द्वारा किए गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण का हवाला देते हुए बताया कि खान पाकिस्तान में सबसे लोकप्रिय नेता हैं, जिनके बारे में 61 प्रतिशत लोगों के सकारात्मक विचार हैं। 1996 में पीटीआई का गठन करके राजनीति में एंट्री से पहले ही इमरान पाकिस्तान में एक सम्मानित क्रिकेट आइकन थे। जिन्होंने 1992 के विश्व कप में अपनी ऐतिहासिक जीत के लिए देश का नेतृत्व किया। उनके समर्थकों को ऐसा लगता है कि खान कोई गलत नहीं कर सकते। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में सेंटर फॉर मुस्लिम स्टेट्स एंड सोसाइटीज की निदेशक समीना यास्मीन ने टाइम पत्रिका को बताया कि वह जो भी कहानी लेकर आते हैं, सही या गलत, तर्कसंगत या तर्कहीन, लोग उनका समर्थन करते हैं। उसके पास लोगों को समझाने की यह आदत है कि वह पूरे देश में एकमात्र ईमानदार व्यक्ति है। पीटीआई वास्तव में एक राजनीतिक दल नहीं है जो समय के साथ स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ है। इमरान के मुख्य समर्थक अधिक वैचारिक हैं, जिन्हें पाकिस्तानी पाठ्यपुस्तक राष्ट्रवाद में सफलतापूर्वक सिखाया गया है और इमरान द्वारा मंत्रमुग्ध हैं, जो उनकी राय में देशभक्ति और धार्मिक भक्ति का अवतार हैं। 

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सीधे आरोप लगाना

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के अनुसार खान की रणनीति देश के भ्रष्ट राजनीतिक दलों पर एक कहानी बनाकर और समाज को शुद्ध लोगों और भ्रष्ट अभिजात वर्ग में विभाजित करके दबाव बनाए रखने की रही है। 2018 में प्रधानमंत्री बनने के बाद भी खान अपनी पूर्ववर्ती सरकार के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते रहे। ऐसे में उनकी गिरफ्तारी और भी अहम हो जाती है क्योंकि ये भ्रष्टाचार के एक मामले में है। खान और उनकी पत्नी पर एक गैर-सरकारी कल्याण संगठन अल-कादिर ट्रस्ट के माध्यम से एक रियल एस्टेट फर्म से रिश्वत के रूप में लाखों डॉलर की जमीन प्राप्त करने का आरोप लगाया गया है। पीटीआई प्रमुख ने आरोपों से इनकार किया है। तथ्य यह है कि खान को मानहानि या किसी अन्य आरोप के बजाय भ्रष्टाचार के लिए गिरफ्तार किया गया था। लेकिन समीना यासमीन की माने तो ये कदम कदम "बैकफायर" कर गया। वास्तविकता यह है कि उन्हें पाकिस्तान में बहुत समर्थन प्राप्त है।

यंग जेनरेशन का साथ

इमरान खान के 'नया पाकिस्तान' के वादे को देश के युवाओं ने बेहद गंभीरता से लिया। पाकिस्तान की एक स्वतंत्र राजनीतिक और सुरक्षा विश्लेषक सितारा नूर का कहना है कि उनकी पार्टी ने युवाओं को जोड़ने के लिए प्रभावी ढंग से सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है, जो कुल आबादी का लगभग 65 प्रतिशत है। अहमद ने कहा कि खान की लोकप्रियता सेना के स्वतंत्र रूप से विकसित हुई है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि नवाज शरीफ से छुटकारा पाने के लिए इसी सेना ने 2018 में खान को सहारा दिया था। हालांकि, पीटीआई प्रमुख सर्व-शक्तिशाली सेना की कृपा से कब दूर होते गए ये पता ही नहीं चला। उन्होंने अधिकारियों पर खुले तौर पर हमला करना शुरू कर दिया था, यहां तक ​​कि पूर्व सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा को उनकी बर्खास्तगी के लिए दोषी ठहराया था।

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