Arunachal को लेकर भारत के जवाब से Xi Jinping का चेहरा तमतमाया, भारतीय कंपनियों की राह में अडंगा डालने लगा China

वैसे तो भारत-चीन संबंध पिछले एक दशक में लगातार तनाव और सहयोग के बीच झूलते रहे हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों की घटनाओं ने एक बार फिर यह रेखांकित कर दिया है कि बीजिंग के साथ किसी भी प्रकार की साझेदारी केवल आर्थिक पैरामीटर पर नहीं चल सकती।
अरुणाचल प्रदेश की महिला को शंघाई हवाई अड्डे पर रोके जाने के विरोध में भारत की तीखी प्रतिक्रिया से चीन तिलमिला उठा है जिससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव एक बार फिर उभर कर सामने आ गया है। हम आपको बता दें कि ताज़ा घटनाओं ने भारत-चीन संबंधों के दो सबसे संवेदनशील क्षेत्रों— आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय-संप्रभुता, को एक साथ सुर्खियों में दिया है। एक ओर भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग चीन की नीतिगत अस्पष्टताओं और तकनीकी सहयोग में बाधाओं से परेशान है; दूसरी ओर शंघाई एयरपोर्ट पर अरुणाचल प्रदेश की एक भारतीय महिला को “अवैध पासपोर्ट” के नाम पर रोके जाने संबंधी घटनाक्रम ने कूटनीतिक तनाव को नई ऊंचाई दी है। भारत ने बेहद स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अरुणाचल प्रदेश उसका अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है और चीन की किसी भी अस्वीकृति से यह तथ्य बदलने वाला नहीं है। देखा जाये तो आर्थिक असहजता और कूटनीतिक टकराव की यह दोहरी परिस्थिति भारत-चीन संबंधों की वास्तविक जटिलताओं को सामने लाती है।
वैसे तो भारत-चीन संबंध पिछले एक दशक में लगातार तनाव और सहयोग के बीच झूलते रहे हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों की घटनाओं ने एक बार फिर यह रेखांकित कर दिया है कि बीजिंग के साथ किसी भी प्रकार की साझेदारी केवल आर्थिक पैरामीटर पर नहीं चल सकती। इसमें राजनीति, सुरक्षा, भू-राजनीति, और सबसे बढ़कर, संप्रभुता की व्याख्या का मुद्दा निर्णायक रूप से शामिल है।
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सबसे पहले इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर की चिंताओं पर नजर डालें तो भारतीय कंपनियों को चीन से उन्नत तकनीक, कंपोनेंट्स और निवेश की आवश्यकता है, जिसे पूरा करने के लिए कई योजनाएं बनाई गईं। लेकिन इन साझेदारियों में अचानक लगा ब्रेक यह संकेत देता है कि चीन भारत के साथ तकनीकी और पूंजी साझेदारी में पहले से कहीं अधिक सतर्क हो गया है।
PG Electroplast की तकनीकी साझेदारी महीनों से अटकी पड़ी है; Hisense ने अपनी भारतीय मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में 26% हिस्सेदारी लेने की योजना रोक दी है और Bharti Group द्वारा Haier India के 49% अधिग्रहण का मामला भी चीनी अनुमोदन के इंतजार में ठहरा हुआ है। ये घटनाएं आकस्मिक नहीं हैं। चीन स्पष्ट रूप से किसी भी ऐसी गतिविधि को अनुमति देने से पहले दो बातों पर गंभीरता से विचार कर रहा है— पहला, उसकी तकनीक और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा; और दूसरा, भारत-चीन संबंधों की वर्तमान राजनीतिक संवेदनशीलता।
यहां यह याद रखना होगा कि भारत ने 2020 में सीमा तनाव के बाद Press Note 3 लागू किया था, जिसके तहत पड़ोसी देशों के किसी भी निवेश पर सरकारी मंजूरी अनिवार्य कर दी गई। चीन इसे एक राजनीतिक संदेश की तरह देखता है। अब वह भी वैसी ही कड़ी जांच-पड़ताल भारत से जुड़ी हर तकनीकी व पूंजीगत परियोजना के लिए लागू कर रहा है। परिणाम यह है कि भारतीय उद्योग दो तरफ से फंस गया है— भारत की सराहनीय ‘वैल्यू एडिशन’ और ‘लोकलाइजेशन’ की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए चीन की तकनीक और मशीनरी जरूरी है, लेकिन चीन की मंज़ूरी और व्यवहार अनिश्चित होता जा रहा है।
दूसरी ओर, आर्थिक मोर्चे की उलझनें कूटनीति में उभरते तनाव से गहराई से जुड़ी हैं। शंघाई एयरपोर्ट पर अरुणाचल प्रदेश की भारतीय नागरिक पेमा वांगजोम थोंगडोक को 18 घंटे तक रोके जाने की घटना सिर्फ एक यात्री के साथ हुआ अनुचित व्यवहार नहीं थी; यह चीन के उस राजनीतिक दावे का परिचायक है जिसमें वह अरुणाचल को “दक्षिण तिब्बत” कहकर भारत के हिस्से के रूप में मानने से इंकार करता है। यह दावा केवल मानचित्र पर नहीं, बल्कि अब यात्रियों के अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय नियमों तक में दखल देने लगा है।
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया इसलिए भी आवश्यक थी क्योंकि यदि कोई देश किसी भारतीय नागरिक की वैध पहचान को ही चुनौती देने लगे, तो यह महज़ कूटनीतिक असहमति नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान और संप्रभुता पर प्रश्नचिह्न है। विदेश मंत्रालय का यह कहना कि चीनी अधिकारियों की कार्रवाई “अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा संबंधी कई संधियों तथा स्वयं चीन के अपने नियमों का उल्लंघन” है, केवल तथ्यात्मक आरोप नहीं है, यह एक चेतावनी भी है कि भारत अब ऐसी हरकतों को महज ‘घटनाएं’ मानकर छोड़ने वाला नहीं।
उधर, चीन का आधिकारिक बयान, जिसमें उसने यात्री के साथ किसी भी ‘हिरासत’ या ‘उत्पीड़न’ से इंकार किया और साथ ही अरुणाचल को “अवैध रूप से स्थापित भारतीय राज्य” बताया, वही पुराना दोहरा स्वर है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के पासपोर्ट-संबंधित निर्देश उसकी लंबी अवधि की रणनीति का हिस्सा हैं। यह प्रत्यक्ष रूप से भारतीय नागरिकों को असुविधा में डालने के साथ-साथ अपने दावे को बार-बार व्यवहारिक स्तर पर लागू करने का तरीका है।
देखा जाये तो ताज़ा घटनाएं यह बताती हैं कि भारत-चीन संबंधों में सुधार केवल बैठकों या बयानबाजी से नहीं होगा; इसके लिए एक लंबी, सावधानीपूर्वक और बहुस्तरीय रणनीति की आवश्यकता है। इसके लिए कुछ कदम उठाने होंगे। जैसे- भारत को हर ऐसे मामले में न केवल द्विपक्षीय रूप से बल्कि ICAO, IATA और अन्य वैश्विक मंचों पर औपचारिक शिकायत दर्ज करनी चाहिए। इससे चीन की सीमा-व्यवहार नीतियों की वैश्विक जांच बढ़ेगी। साथ ही चीन द्वारा तकनीकी सहयोग रोकने से भारत को अपनी “टेक इकोसिस्टम” को और तेज़ी से विकसित करने का अवसर मिलता है। PLI स्कीम्स और R&D में निवेश को अब रणनीतिक प्राथमिकता बनाना होगा। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि कूटनीति केवल विरोध का नाम नहीं है। वार्ता जारी रखनी ही होगी, लेकिन स्पष्ट लाल रेखाओं के साथ। यह संदेश बीजिंग को समय-समय पर और तीखेपन से मिलता रहना चाहिए कि संप्रभुता और भारतीय नागरिकों की सुरक्षा पर भारत किसी भी समझौते को स्वीकार नहीं करेगा।
बहरहाल, भारत-चीन संबंधों की आज की तस्वीर में सबसे बड़ी कमी ‘विश्वसनीयता’ की है और यह कमी दोनों दिशाओं से उत्पन्न होती है। जब बीजिंग तकनीकी सहयोग रोकता है, निवेश में देरी करता है और भारतीय नागरिकों की पहचान पर ही प्रश्न खड़ा करता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि संबंधों में अनिश्चितता बढ़ रही है। भारत के लिए यह समय भावनाओं का नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण दृढ़ता का है। आर्थिक साझेदारी जरूरी है, लेकिन सम्मान और संप्रभुता सर्वोपरि हैं। भारत ने शंघाई एयरपोर्ट घटना पर जो तीखी प्रतिक्रिया दी है, वह भविष्य के लिए आवश्यक संकेत है कि चाहे तकनीक की जरूरत हो या व्यापार की, भारत अपने नागरिकों और अपने क्षेत्रीय दावे पर किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा।
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