जानिए क्यों बढ़ जाता है श्राद्ध पक्ष में कौए का महत्व

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मंगलेश सोनी । Sep 24 2019 3:53PM

इन्द्र के पुत्र जयन्त ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेतायुग की है, जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था। तब भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी।

श्राद्ध पक्ष ही वह 16 दिवस है जब हमें श्याम वर्ण के इस पक्षी की महत्ता का ज्ञान होता है, कौआ यम का प्रतीक है, मृत्यु का वाहन है, जो पुराणों में शुभ-अशुभ का संकेत देने वाला बताया गया है। इस कारण से पितृ पक्ष में श्राद्ध का एक भाग कौओं को भी दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बड़ा ही महत्व है। श्राद्ध पक्ष में कौआ यदि आपके हाथों दिया गया भोजन ग्रहण कर ले, तो ऐसा माना जाता है कि पितरों की कृपा आपके ऊपर है, पूर्वज आपसे प्रसन्न हैं। इसके विपरीत यदि कौआ भोजन करने नहीं आए, तो यह माना जाता है कि पितर आपसे विमुख हैं या नाराज हैं।

श्राद्ध में कौए का महत्व

भारतीय मान्यता के अनुसार, व्यक्ति मरकर सबसे पहले कौआ के रूप में जन्म लेता है और कौआ को खाना खिलाने से वह भोजन पितरों को मिलता है। इसका कारण यह है कि पुराणों में कौए को देवपुत्र माना गया है।

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इन्द्र के पुत्र जयन्त ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेतायुग की है, जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था। तब भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी। जब उसने अपने किए की माफी मांगी, तब राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा। तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परम्परा चली आ रही है। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौओं को ही पहले भोजन कराया जाता है।


श्राद्ध में करते हैं कौओं को आमंत्रित 

श्राद्ध पक्ष पितरों को प्रसन्न करने का एक उत्सव है। यह वह अवसर होता है, जब हम खीर-पूड़ी आदि पकवान बनाकर उसका भोग अपने पितरों को अर्पित करते हैं। इससे तृप्त होकर पितर हमें आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कई परम्पराएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। ऐसी ही एक परम्परा है, जिसमें कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाते हैं।

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कौवे एक प्रकार से प्राकृतिक सफाई कर्मी है, अप्रकृतिक म्रत्यु या जीव जंतु की सड़ी गली देह को ग्रहण कर प्रकृति को निर्मल रखने का काम भी इन्हें सौंपा गया है, मोबाइल में इंटरनेट व 4G नेटवर्क के कारण टावरों की बढ़ी हुई रेडियो धर्मी तरंगों से इनका जीवन संकट में है, करीब 2 दशक पहले कौवे हर जगह विचरण करते थे, श्राद्ध पर इन्हें खोजना नही पड़ता था, किन्तु अब तो शहरों में ये लगभग समाप्त ही हो गए है, यह प्राकृतिक संतुलन मनुष्य के लिए भी हानिकारक है। समय रहते हम यह समझ सकें, वरना अतिथि के आगमन की सूचना देने वाला यह प्राणी हमें किताबों में ही देखने को मिलेगा।

मंगलेश सोनी

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