Char Dham Yatra 2025: यमुनोत्री मंदिर से शुरू होती है चारधाम की यात्रा, जानिए इसके पीछे की पौराणिक मान्यता

Yamunotri temple
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चारधाम की यात्रा करने से पहले लोग रजिस्ट्रेशन करवा लेते हैं। चारधाम यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री मंदिर के दर्शन होते हैं। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर यमुनोत्री मंदिर से चारधाम की यात्रा क्यों शुरू होती है।

गर्मियों का मौसम शुरू होते ही चारधाम के कपाट खुल जाते हैं। जिसके बाद श्रद्धालु चारधाम की यात्रा करते हैं। चारधाम की यात्रा करने से पहले लोग रजिस्ट्रेशन करवा लेते हैं। जिससे कि उनको यात्रा के दौरान किसी तरह की कोई दिक्कत न हो। हिंदू धर्म में चारधाम की यात्रा बहुत पवित्र मानी जाती है। यह यात्रा उत्तराखंड के चार पवित्र स्थानों जिसमें यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम शामिल हैं। हर साल लाखों की संख्या में लोग चारधाम की यात्रा के लिए आते हैं। चारधाम यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री मंदिर के दर्शन होते हैं। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर यमुनोत्री मंदिर से चारधाम की यात्रा क्यों शुरू होती है।

यमुनोत्री से यात्रा शुरू होने का कारण

बता दें उत्तराखंड में यमुनोत्री मंदिर स्थित है, जहां से यमुना नदी निकलती है। हिंदू धर्म में यमुना नदी को देवी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यमुनोत्री नदी यानी की यमुना जी मृत्यु के देवता यमराज की बहन है। माना जाता है जो भी जातक यमुनोत्री नदी के दर्शन व स्नान करता है, उसको मृत्यु का भय नहीं रहता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि यमुनोत्री से  चारधाम यात्रा की शुरूआत करना शुभ माना जाता है।

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वैज्ञानिक रूप

वहीं अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो चारधाम में यमुनोत्री मंदिर पश्चिम दिशा में स्थित है। ऐसे में जब भी श्रद्धालु चारधाम की यात्रा करते हैं, तो पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ते हैं। वहीं पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर यात्रा करना सही माना जाता है। इससे रास्ता आसान और सुविधाजनक रहता है। पहाड़ी रास्तों में इसी क्रम से यात्रा करने पर थकान नहीं होती है।

पौराणिक मान्यता

चारधाम यात्रा के यमुनोत्री दर्शन के पीछे एक काफी पुरानी परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि पुराने समय में ऋषि-मुनि और साधु-संत भी अपनी यात्रा की शुरूआत यमुनोत्री से करते थे। तब से लेकर यह आज भी चलता आ रहा है। इसको लोग एक परंपरा की तरह मानते हैं और इसी तरह से यात्रा पूरी करते हैं।

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