गणेश चतुर्थी पर क्यों निषेध है चन्द्र दर्शन

Ganesh Chaturthi moon

गणेश चतुर्थी के अवसर पर एक अनोखी बात भी सुनने में आती है जिसे आप सभी ने भी घर-परिवार में रहते हुए अपने बड़े-बुजुर्गों से सुना होगा कि इस दिन चन्द्रमा नहीं देखना चाहिए, इस दिन चन्द्रमा देखने से कलंक लगता है।

पुराणों के अनुसार विघ्नहर्ता श्रीगणेश जी का जन्म भाद्रपद मासके शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन हुआ था, इस दिन गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार गणेश चतुर्थी पर घर-घर में मंगल कामना के साथ गणेश जी की स्थापना कर उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी के अवसर पर एक अनोखी बात भी सुनने में आती है जिसे आप सभी ने भी घर-परिवार में रहते हुए अपने बड़े-बुजुर्गों से सुना होगा कि इस दिन चन्द्रमा नहीं देखना चाहिए, इस दिन चन्द्रमा देखने से कलंक लगता है। धार्मिक दृष्टि से देखेंतो यह बात सही भी लगती है, पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है।

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विष्णु पुराण की एक कथा में वर्णन आता है कि श्रीकृष्ण ने भी एक बार चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देख लिया था जिसके कारण उन पर स्यमंतक नाम की मणि की चोरी का आरोप लगा था। 

गणेश चतुर्थी को चन्द्रमा क्यों नहीं देखना चाहिए इसके पीछे कई कथाएं कही जाती हैं, एक कथा के अनुसार एक बार गणेश जी कई सारे लड्डुओ को लेकर चंद्रलोक से आ रहे थे, रास्ते में उनको चंद्रदेव मिले, गणेश जी के हाथों में ढेर सारे लड्डू और उनके बड़े उदर को देखकर चंद्र देव हंसने लगे जिससे गणेश जी को क्रोध आ गया और उन्होंने चन्द्रमा को श्राप देते हुए कहा की तुम्हें अपने रूप पर बहुत घमंड है न जो मेरा उपहास उड़ाने चले हो, मैं तुमको क्षय होने का श्राप देता हूं। 

ऐसी ही एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार एक बार गणेश जी अपने वाहन मूषक पर सवार थे। मूषकराज को अचानक एक सांप दिखाई दिया जिसे देखकर वे डर के मारे उछल पड़े जिसकी वजह से उनकी पीठ पर सवार गणेश जी भी भूमि पर जा गिरे। गणेश जी तुरंत उठे और उन्होंने इधर-उधर देखा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा। तभी उन्हें किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी। यह चंद्रदेव थे। गणेश जी अपने गिरने पर चंद्रदेव को हंसता देख रूष्ट हो गए और चन्द्रमा को श्राप दिया की तुम्हारा क्षय होगा।

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इस तरह गणेशजी के श्राप से चंद्रमा और उसका तेज हर दिन क्षय होने लगा और वह निरंतर मृत्यु की ओर बढ़ने लगा। चन्द्रमा की यह दशा देखकर देवताओं को चिन्ता हो गई उन्होंने चंद्रदेव से शिवजी की तपस्या करने को कहा। चंद्रदेव ने गुजरात के समुद्र तट पर शिवलिंग बनाकर कठिन तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको अपने सिर पर बैठाकर मृत्यु से बचा लिया और चंद्रमा की प्रार्थना पर वे वहीं ज्योर्तिलिंग रूप में प्रकट हुए, जिसे सोमनाथ के नाम से जाना गया। 

इसके बाद सभी देवों ने मिलकर गणेश जी को समझाया और चंद्रदेव ने भी उनसे क्षमा मांगी. गणेश जी ने चंद्रदेव को क्षमा कर दिया लेकिन कहा कि मैं अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकता, महीने में एक बार ऐसा अवश्य होगा जब क्षय होते-होते एक दिन आपकी सारी रोशनी चली जाएगी लेकिन फिर धीर-धीरे प्रतिदिन आपका आकार बड़ा होता जाएगा और माह में एक बार आप पूर्ण रूप में दिखाई देंगे। आपका दर्शन लोग हमेशा कर सकेंगे किन्तु भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो भी आपके दर्शन करेगा, उसको झूठा कलंक लगेगा।

भाद्र पक्ष की चतुर्थी को इसीलिए ही गणेश चतुर्थी के साथ कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है, धार्मिक मान्यता है कि तभी से चंद्रमा घटता-बढ़ता है।

अमृता गोस्वामी

जयपुर

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