Book Review: कुछ अपनी कुछ उनकी (साक्षात्कार संग्रह)
विष्णु प्रभाकर जी से साक्षात्कार में उन्होंने आवारा मसीहा के लेखन की रोचक पृष्ठभूमि का खुलासा किया है। कैसे हिंदी ग्रंथ रत्नाकर ने शरद बाबू की अनुमति से अनुवाद किया और बाद में उनकी जीवनी लेखन के लिए विष्णु जी को चुना।
बोधि प्रकाशन के तले सन् 2018 में प्रकाशित प्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका कृष्णा कुमारी की यह दसवीं पुस्तक है। कृष्णा जी का लेखन विविधमुखी है उन्होंने कविता, निबंध, ग़ज़ल, यात्रा वर्णन, बाल साहित्य सब पर कलम चलायी है। यह उनकी साहित्यिक रेंज और परिश्रम का परिचायक है।
इस पुस्तक में स्वयं लेखिका सहित कुल 16 महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों के साक्षात्कार हैं। यह व्यक्तित्व अपने अपने क्षेत्र के जाने पहचाने नाम हैं। भीष्म साहनी, विष्णु प्रभाकर, नरेंद्र कोहली, कमल किशोर गोयनका, डा रामचरण महेंद्र जैसी साहित्यिक विभूतियों से रोचक बातचीत की गई है तो दूसरी ओर संगीत की दुनिया के सितारों उदित नारायण, डा रोशन भारती, गीतकार इब्राहिम अश्क़ के भी इंटरव्यू लिए गए हैं। शिक्षाविद प्रो जमनालाल बाहेती, डा रवींद्र अग्निहोत्री से भी उनके शैक्षणिक अनुभवों, शिक्षा विषयक समस्याओं पर चर्चा की गई है जो पुस्तक को उपयोगी बनाती है। जितेंद्र निर्मोही, एयर इंडिया के पायलेट से भी संवाद किया गया है हालाँकि उनके नाम का खुलासा नहीं किया गया है वो कौन शख्स थे।
विष्णु प्रभाकर जी से साक्षात्कार में उन्होंने आवारा मसीहा के लेखन की रोचक पृष्ठभूमि का खुलासा किया है। कैसे हिंदी ग्रंथ रत्नाकर ने शरद बाबू की अनुमति से अनुवाद किया और बाद में उनकी जीवनी लेखन के लिए विष्णु जी को चुना। चौदह वर्ष तक लेखक सामग्री की तलाश में घूमता रहा और अंततः कैसे आवारा मसीहा के लेखन ने उनको रचनात्मक संतुष्टि और अपार ख्याति दी इस सबका वर्णन विष्णु जी ने अपने इंटरव्यू में किया है। जब लेखिका ने यह बातचीत की होगी प्रभाकर जी की आयु 92 वर्ष थी उनकी रचनात्मक सक्रियता को देखकर किसी को भी आश्चर्य होगा। मूलतः विष्णु जी अपने को कहानीकार मानते हैं और रेडियो लेखन से जुड़ाव भी रहा है उनका इसका उल्लेख भी करते हैं।
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नरेंद्र कोहली जी का साक्षात्कार संक्षिप्त लेकिन दो टूक है वो अपने मांसाहारी होने और लेखन का मूल करुणा तत्व को मानते हैं। शिक्षाविद् रवीन्द्र अग्निहोत्री जी ने शिक्षा व्यवस्था पर प्रेरक विचार प्रस्तुत किए हैं, वनस्थली विद्यापीठ की विशेषताओं, वहाँ की संस्कृति और शिक्षा की शुचितापूर्ण कार्यप्रणाली का भी उल्लेख उनसे संवाद में मिलता है। शतपथ ब्राह्मण का उल्लेख करते हुए वो कहते हैं कि मनुष्य तभी ज्ञानवान बनता है जब माता-पिता और शिक्षक ज्ञानवान हो। यद्यपि यह विचार आंशिक ही सत्य माने जा सकते हैं… गुदड़ी के लाल और अभावग्रस्त बच्चे भी कभी जीवन में अपने परिश्रम और मनोबल से जीवन में ऊँचाई तक पहुँचते रहे हैं। लेकिन अग्निहोत्री जी का इंटरव्यू विचारोत्तेजक है।
भीष्म साहनी का साक्षात्कार अत्यंत संक्षिप्त है और उनके विषय में पाठक की क्षुधा को कम शांत कर पाता है। जानकारी ज़्यादा दे दी गई है और लेखिका ने बातचीत कम की है। संभव है लेखक पर समयाभाव रहा हो। डा रोशन भारती ने अपनी संगीत साधना और संगीत से उनकी जुड़ी हुई ख़ानदानी विरासत का उल्लेख ही नहीं किया है बल्कि अपनी शालीनता और हर प्रश्न का बहुत ईमानदारी से जवाब दिया है…यह एक स्मरणीय इंटरव्यू है। शिक्षाविद् डा जमनालाल बाहेती से शिक्षा विषयक प्रश्न सारगर्भित रहे हैं उनके विचार और संस्मरण पाठकों के लिए अमूल्य उपलब्धि की तरह हैं जिनसे अवश्य एक नयी दृष्टि पाठकों को मिलेगी।
बाहेती जी के नैतिक शिक्षा से लेकर आरक्षण तक पर उनके बेबाक़ विचार पढ़ने को मिलते हैं। कहो न प्यार से प्रसिद्ध हुए गीतकार इब्राहिम अश्क़ का साक्षात्कार भी रोचक है और फ़िल्मी दुनिया के स्ट्रगल को सामने रखता है कैसे डेढ़ दशक के संघर्ष के बाद उनको सफलता मिली, ग़ज़लों पर उनके लंबे काम का पता भी चलता है।
अंत में एक बात ज़रूर चुभती रही वो यह कि लेखिका स्वयं का साक्षात्कार दुर्गाशंकर त्रिवेदी जी द्वारा संग्रह में जोड़ने के लोभ का संवरण नहीं कर पायीं… यह ज़रूर थोड़ा खटकता है। साथ ही लेखिका कृष्णा जी का बार-बार मैं की जगह हम सर्वनाम का प्रयोग… वैसे साधारण बातचीत में भी वो मैं की जगह हम बोलती हैं लेकिन व्याकरण की दृष्टि से पुस्तक में यह दिया जाना कम ठीक लगा। लेकिन 196 पृष्ठ की यह पुस्तक न केवल रोचक है बल्कि कृष्णा जी की मेधा और परिश्रम का उदाहरण भी है।
इतनी सारगर्भित और महत्वपूर्ण संग्रह का यूँ चर्चाहीन रह जाना दुखद है। कहीं न कहीं इसके लिए प्रकाशन संस्थान और लेखक भी दोषी हैं। हिंदी साहित्य जगत् तो अहो रूपम और अहो ध्वनि के रोग से ग्रस्त है ही। हिंदी साहित्य में साक्षात्कार विधा पर बहुत कम काम हुआ है और उसमें इतनी वैविध्यपूर्ण शख़्सियतों से बात करना आसान काम नहीं इसके लिए कृष्णा कुमारी जी और उनकी वैविध्यमुखी प्रतिभा को नमन करना ही पड़ेगा। मूल्य 300₹ अवश्य थोड़ा अधिक है बाक़ी मुद्रण और प्रकाशन उत्कृष्ट है। लेखिका को इस अमूल्य कृति के लिए साधुवाद!
प्रकाशन- बोधि प्रकाशन, जयपुर
#मूल्य- 300₹
- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल,
कोटा
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