सही तरीके से इलाज का रोग (व्यंग्य)

corona virus cure

संजीदगी से देखा जाए तो यह हमारे राजनीतिज्ञों की तरह है जिनका असली चरित्र समझ में एक दम नहीं आता। कईयों का तो उम्र भर तक पता नहीं चलता, बार बार हीहीही करते हुए, रंग बदले वायरस की तरह आते रहते हैं और विश्वास का टीका लगाकर जाते हैं।

जब ऐतिहासिक, अंतर्राष्ट्रीय कोरोना का जन्म असली गुरु चीन में हुआ तो विश्वगुरु होने के नाते हमें पूरी आशा ही नहीं पूरा विश्वास भी था कि वह हमारी पवित्र धरती पर घुसने की हिमाकत नहीं करेगा लेकिन उसने भी चीनियों की तरह घुसपैठ की। हमारी ज़िंदगी घटिया चीनी सामान से लदी रही लेकिन कोरोना असली निकला। निश्चय ही उसे पता चल गया होगा कि वायदाकरू, झूठे आश्वासनदेऊ, यशस्वी देशभक्त  राजनीतिज्ञ अभी तक बेहद ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवा पाए हैं। यह सेहत का कोरोना समय तो है ही, संजीदा वोट समय भी है तभी तो ऐसे में स्वास्थ्य के मामले में लापरवाही नहीं बरत सकते। वैसे जिन बीमारियों से ज्यादा बच्चे मरते हैं उनमें बच्चों और अभिभावकों की ग़लती होती है और जिन दुर्घटनाओं में बहुत बंदे दुनिया छोड़ते हैं उनमें दुर्घटना स्थल पर आने वालों की नासमझी होती है, क्यूं मरने जाते हैं वहां। 

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संजीदगी से देखा जाए तो यह हमारे राजनीतिज्ञों की तरह है जिनका असली चरित्र समझ में एक दम नहीं आता। कईयों का तो उम्र भर तक पता नहीं चलता, बार बार हीहीही करते हुए, रंग बदले वायरस की तरह आते रहते हैं और विश्वास का टीका लगाकर जाते हैं। हमेशा चौकस, स्वस्थ ब्यान देते हैं। ‘स्थिति नियंत्रण में हैं’, बहुत प्रसिद्ध व स्थापित संवाद है. बार बार भरोसा, भरोसा, बोलते हैं तो भरोसा उगने लगता है। ‘अपील’ एक बेहद मानवीय, संयमित क्रिया है तो ‘प्रतिबद्धता’ प्रचलित व सांस्कृतिक आयाम लगता है। यह सब मिलकर ऊपर से नीचे तक भारतीय संस्कृति वितरित करने का जागरूक काम करते हैं। अब देखिए, नमस्ते कितनी जल्दी विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सचेतक हो गया है। वोटनायक अपने अपने  कार्यक्षेत्र में जाकर कर्फ्यू सफल बना रहे हैं यह अलग बात है कि वह आम आदमी से ज्यादा डरे और सहमे हुए हैं। उन्हें लगता है अगर कीटाणु खत्म हो गए तो कहीं नई मुश्किलें पैदा न हो जाएं। अगर हमारी संक्रमित व्यक्तिगत, पारिवारिक, सांप्रदायिक, धार्मिक, राजनीतिक सोच को भी लगे हाथ कर्फ्यू में डाल दिया जाए तो नया इतिहास रचा जा सकता है। हो सकता है इस प्रक्रिया में हमारा राष्ट्रीय चरित्र करवट लेकर आत्मपरीक्षण करते हुए, उच्च स्तरीय नवीनीकरण कर बैठे।  

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कुछ भी हो कोरोना हमारे वीआईपी नखरे खत्म नहीं कर पाया। जिन प्रशासकों  के कार्यसमय में यह महामारी आई उन्होंने कितनी समझदारी, पारदर्शी तरीके से कार्ययोजना बनाई और कर्मठता व पूर्ण ईमानदारी से लागू करवाई। सामान खरीदने में असली ईमानदारी व पारदर्शिता बरती गई। कहीं लग रहा है, यह वास्तव में गर्व की बात है क्यूंकि ऐसा इतिहास में पहली बार हो रहा है। ऐसी विकट स्थिति में किसी पर शक नहीं करना चाहिए क्यूंकि आमतौर पर कोई भी इंसान जानबूझकर हेराफेरी नहीं करता। विकासजी के फैलते  साम्राज्य में बीमारी ने भी तो तरक्की करनी है। घबराने की ज़रूरत नहीं है हमारे यहां बड़ी से बड़ी बीमारियां आई और चली भी गई, कोरोना के जाने के बाद भी कुछ बीमारियां ऐसी बच जाएंगी जो हमें सताएंगी मगर मारेंगी नहीं। बीमारी का सही तरीके से इलाज न करने का रोग भी तो हमारा अपना है।

संतोष उत्सुक

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