बिजली का बिल -440 वोल्ट है छूना है मना... (व्यंग्य)

वैसे सरकार भी लोगों की चिल्लपों से बड़ी परेशान थी। जब बिजली का बिल दो महीने में आता था तो सुरसा के मुँह की तरह दिखाई देता था। इसलिए उसे हर महीने कर दिया गया, ताकि बिल आधा लगे। लेकिन जैसे ही बिल आधा हुआ, लोगों का बजट गड़बड़ा गया।
आजकल बिजली का करंट सिर्फ पागलखाने में या बिजली के तारों में ही नहीं दिया जाता, बल्कि आपके घर में हर महीने बिल के रूप में भी आता है। यह पागल का इलाज करने के लिए नहीं, बल्कि आपको पागल बनाने के लिए है!
पहले यह बिल दो महीने में आता था। लेकिन सरकार को लगा कि लोग कम पागल हो रहे हैं, इसलिए इसकी आवृत्ति बढ़ाकर मासिक कर दी गई। सरकार की महावारी की तरह यह भी हर महीने बिना नागा के आता है — इसमें मीनोपॉज़ की कोई गुंजाइश नहीं!
वैसे सरकार भी लोगों की चिल्लपों से बड़ी परेशान थी। जब बिजली का बिल दो महीने में आता था तो सुरसा के मुँह की तरह दिखाई देता था। इसलिए उसे हर महीने कर दिया गया, ताकि बिल आधा लगे। लेकिन जैसे ही बिल आधा हुआ, लोगों का बजट गड़बड़ा गया। बचे हुए पैसों से गृहिणियाँ अपनी शॉपिंग करने लगीं, बच्चों की फीस भरने लगीं। सरकार को यह फिजूलखर्ची पसंद नहीं आई। नतीजतन उन्होंने बिजली के रेट बढ़ाकर, इधर-उधर के सरचार्ज और न्यूनतम स्थाई शुल्क जोड़कर, मध्यमवर्गीय आदमी का बजट फिर से स्थिर कर दिया।
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तारों में भले ही पूरे वोल्टेज हों या न हों, लेकिन बिजली के बिल में पूरे 440 वोल्ट आते हैं। जैसे ही बिजली का बिल घर में दाखिल होता है, लोग उसे हाथ लगाने से ऐसे घबराते हैं जैसे किसी नंगे तार को छूने से। बिजली विभाग के कर्मचारी बिल को ऐसे पकड़कर लाते हैं जैसे गिरफ्तारी का वारंट पकड़ा रहे हों। बिजली जलाने का अपराध अब नॉन-बेलेबल वारंट के समान है।
जिस दिन बिजली का बिल आता है, घर का माहौल शोकसभा जैसा हो जाता है। बीवी के मुँह से "उफ़ माँ!", माँ के मुँह से "मरो निकम्मों, ये बिजली विभाग वाले!", और पापा के मुँह से तो माँ-बहन एक करने वाली गालियों के साथ प्रतिशोध की पूरी कहानी सुनाई ही देती है। एक मिडिल क्लास आदमी और कर भी क्या सकता है?
और मैं? मेरा तो उस दिन का काम यही होता है कि भाग-भाग कर सारे पंखे, लाइटें, इस्त्री, एसी और जितने भी मेरी समझ में बिजली के उपकरण आते हैं, सबके बटन ऑफ कर दूँ। तभी श्रीमती जी का बिजली-विलाप पुराण शुरू होता है —
“तुम्हें तो कुछ ध्यान रखना ही नहीं आता, स्टाफ बेपरवाह है, दिनभर कंप्यूटर चलाते रहते हो, मोबाइल चार्ज करते रहते हो… सब बिजली खाती है। तुम्हें पता है?”
इतना सूक्ष्म ज्ञान इलेक्ट्रॉनिकी का सुनकर मुझे श्रीमती जी पर गर्व होता है।
अब तो बिजली विभाग ने जो मीटर लगाए हैं, वे इतने स्मार्ट हैं कि मजाल है एक भी इलेक्ट्रॉन इनकी निगरानी से छूट जाए! सेकंड के हजारवें हिस्से में भी इलेक्ट्रॉन की मूवमेंट को पकड़कर यूनिट में बदल देते हैं।
बिल आने के दिन अचानक लगता है कि पंखे की हवा शरीर के लिए हानिकारक है, फ्रिज का ठंडा पानी बीमारियों की जड़ है, और वॉशिंग मशीन कपड़ों की उम्र घटाने वाली मशीन है।
उसी समय पड़ोस के शर्मा जी दौड़े-दौड़े आते हैं और ताना कसते हैं —
“अरे गर्ग साहब! आप तो बिजली के बिल से इतना डरते हैं! बताइए, टॉप मर्द होकर भी बिल के झटकों से घबरा गए। अपने आहाते की सारी लाइटें बंद कर दीं! चोरी-चकारी का डर बढ़ जाएगा भाई, आपके मकान की दीवार से कई बार चोर हमारे यहाँ कूदे हैं। लाइट जली रहेगी तो कम से कम पहचान में आ जाएँगे।”
मुझे तो लगने लगा अगली बार शर्मा जी मुझ पर यह इल्जाम लगाने वाले हैं कि बिजली बचत के नाम पर मैं दरअसल चोरों से मिला हुआ हूँ, ताकि उन्हें अंधेरे में उनके घर कुदवा सकूँ।
बाद में असलियत का पता चला—दरअसल मेरे आहाते की निचली मंज़िल से निकला उधारी का उजाला उनके आहाते तक भी पहुँच रहा था। यही वजह थी कि शर्मा जी को मेरी अंधेरी-रोशनी की नीति की इतनी चिंता रहती थी!
बिल देने वाला ठेकेदार बिल पकड़ाते हुए बोला—
“क्या गर्ग साहब, गर्मी चरम सीमा पर है और आपका बिल पिछली बार से सौ रुपये कम कैसे आया? क्या बात है, कहीं कोई बिजली चोरी तो नहीं कर रहे? वैसे ये आपको शोभा नहीं देता। ये तो हम हैं जो आपका लिहाज करते हैं, वरना दो मिनट लगेंगे, सर्वेलांस वाले तो तैयार बैठे हैं आप जैसे मुर्गों की गर्दन दबोचने के लिए।”
मैं अपराधी-सा खड़ा अपनी दलीलें दे रहा था, पर उस पर कोई असर पड़ने वाला नहीं था। इस बार दस दिन गर्मियों की छुट्टियों में बाहर चले गए थे। लेकिन बाहर गए तो लाइटें बंद कर जाने के बजाय चालू रखकर जाना चाहिए था न? बिल में कमी यानी गड़बड़ी का साफ संकेत!
अब अगर मैं कहूँ कि इस बार बिजली की कटौती भी ज़्यादा हुई थी, तो वो भी पचने वाली नहीं। बिजली की कटौती तो विभाग की स्थाई इकाई करती है, जबकि बिजली का बिल निजी कंपनी का ठेकेदार बनाता है। उसे तो बिल में कटौती करने का कोई प्रावधान है ही नहीं। मीटर उसने ही लगाए हैं, जो स्थितप्रज्ञ भाव से अपने कर्तव्य पथ पर बिना रुके, बिना डिगे घूमते रहते हैं। उन्हें तो ठेकेदार की ही सुननी है—आख़िर उसने ही उन्हें पाला-पोसा है, तो बजाएँगे भी मालिक की ही धुन!
बिल पकड़ाने वाले की यह धमकी उसके लिए चाय-नाश्ते की राह बनाती है। आगे चलकर उसके रिश्तेदारों के लिए निःशुल्क जाँच, एक्स-रे और परामर्श की राह भी साफ करती है।
अब बिजली विभाग से छूट तो आपको मिलने से रही। आप मिडिल क्लास लोगों को छूट लेने की बड़ी बीमारी है। हर जगह छूट चाहिए। लोन के इंटरेस्ट में छूट मिले तो दस लाख की जगह बीस लाख का लोन ले लोगे। कपड़ों की सेल में छूट मिले तो एक शर्ट की जगह दो शर्ट उठा लोगे। टैक्स में छूट मिले तो और ज़्यादा कमाओगे और ज़्यादा का रिटर्न भरोगे। यह छूट की बीमारी ही है, इसलिए सरकार आपको बिजली में छूट नहीं देती। ताकि आप बिजली बचाओ, वरना ज़्यादा बिजली जलाकर सब गुड़-गोबर कर दोगे।
सरकार तो कितने इंतज़ाम करती है—फ्यूल सरचार्ज, सेस सरचार्ज और न जाने कौन-कौन से सरचार्ज आपके माथे मढ़ देती है ताकि आप बिजली की अहमियत समझो। रोज़ लाइट कटौती करती है ताकि आपको देश की पुरातन परम्पराओं का ज्ञान हो। वो घृत और तेल से रोशन दीपक, केरोसीन और फटे चिथड़ों से बनी बाती से अलंकृत ढिबरी, कपड़े से जलने वाली मशालें… देखो, जब ये सब घर रोशन करेंगे तो घर को कितना एथनिक फील देगा!
बिजली की जगह बीजनी (हैंड फैन) पकड़ो। हवा भी मिलेगी और हाथ की कसरत भी हो जाएगी। बिजली होगी तो तुम पानी वेस्ट करोगे। बाहर नदी-नाले हैं न, कब से बुला रहे हैं। वापस वही सामूहिक मल-मूत्र दान और सामूहिक स्नान की परम्परा अपनाओ। इससे सामुदायिक भावना बढ़ेगी। एक ही घाट पर स्त्री और पुरुष दोनों नहाएँगे तो जेंडर इक्वालिटी का रोना-धोना भी कुछ कम होगा।
बिजली नहीं होगी तो पानी न आने का रोना भी खत्म। जल विभाग के माथे पर खाली मटके फोड़ने का काम भी खत्म। जलस्तर गिरने का रोना भी खत्म। अब जलस्तर बढ़ जाएगा तब भी कौन रस्सी-बाल्टी से पानी निकालने वाला है? एसी बंद होंगे तो कार्बन उत्सर्जन का रोना बंद। ओज़ोन की परत में छेद का रोना भी खत्म। पता नहीं क्यों, ये छेद सिर्फ एसी-फ्रिज से ही बड़ा होता है, बड़े-बड़े औद्योगिक कारखानों से निकलने वाली गैसें तो दोषरहित होती हैं!
बिजली कटौती इसलिए भी की जाती है कि बिजली की दर बढ़ने पर भी आपका बिल ज़्यादा न बढ़े। देखो, सरकार को कितनी चिंता है आपकी! बिजली न होगी तो नंगे तारों से उलझकर पशु-पक्षी और इंसानों की मौतें भी कम होंगी।
कुल मिलाकर देखा जाए तो यह बिजली का आधुनिकीकरण है। वोल्टेज अब तारों से नहीं, बल्कि बिलों से प्रवाहित होगा। थोड़े दिनों में देखना, बिजली के रिचार्ज कूपन मिलने लगेंगे। और हो सकता है पागलखाने में बिजली के करंट वाले मशीन की जगह सीधे बिजली का बिल माथे पर रखकर काम चलाया जाने लगे!
– डॉ. मुकेश असीमित
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