शांति समिति की बैठक का आयोजन (व्यंग्य)
पुलिसजी ने सभी सम्प्रदायों के प्रतिनिधियों से शांति विषय पर गहन मंत्रणा की। शांति व्यवस्था सजाए रखने की अपील की। हुआ यूं कि एक शरारती वीडियो ने भावनाओं को परम्परानुसार ठेस पहुंचा दी। कुछ देर बाद समाज के नायकों ने असहनीय शब्दों में इसका ठोस खंडन किया।
लो जी, प्रशासन ने नवनिर्मित सामुदायिक भवन में, शांति समिति की पहली बैठक आयोजित करने का पुण्य कार्य कर डाला। हमारी सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार शांति की ज़रूरत हल्ला गुल्ला, दंगा या बड़ा पंगा होने के बाद ही होती है जी। इस बार लोग ज़्यादा थे और पुराने भवन में बिठाने की जगह कम पड़ती थी। समिति की पिछली बैठक में कुछ लोग बुरा मान गए थे कि उन्हें ढंग से बैठने की जगह भी नहीं मिली । वैसे तो ऐसी बैठक उसी तरह की होती है कि दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय....। सभी बैठकों की तरह सच्चे गुस्से और बनावटी विरोध के बाद, ज़ोरदार झप्पियां डालते हुए झूठी मुस्कुराहटें भेंट की गई। दिखाया गया कि सबसे ज़्यादा आहत होने वाली वस्तु ‘भावना’ संतुष्ट हो गई है। भावना अब एक मूल्यवान वस्तु हो गई है जिसे बहुत संभल और संभाल कर रखना पड़ता है।
पुलिसजी ने सभी सम्प्रदायों के प्रतिनिधियों से शांति विषय पर गहन मंत्रणा की। शांति व्यवस्था सजाए रखने की अपील की। हुआ यूं कि एक शरारती वीडियो ने भावनाओं को परम्परानुसार ठेस पहुंचा दी। कुछ देर बाद समाज के नायकों ने असहनीय शब्दों में इसका ठोस खंडन किया। कठोरतम कार्रवाई की जाने की इच्छा व्यक्त की। किसी भी स्तर तक जाने, बाज़ार बंद करवाने की बात कही। वीडियो किसी और जगह का रहा, वहां वालों की भावनाएं आहत हुई इस बारे पता नहीं किया गया जी। एक और नवनायक ने ब्यान दिया कि उनकी भावनाएं भी काफी आहत हो चुकी हैं। इस बीच कई उभरे हुए, दबे हुए और उभरते हुए वीडियो पत्रकारों ने खबर को नए स्वादों में खूब पकाया। स्क्रीन के कोने में बड़े आकार का खंजर दिखाया जी। उधर पुलिसजी जांच शुरू कर चुकी थी। कानून अपना काम चुपचाप कर रहा था। अच्छी तरह से जांच करने में वक़्त तो लगता है जी।
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तनाव उकसाता है, जुलुस धरना करवाता, झंडे उठवाता है। नारे लगवाता, ताले तुड़वाता, दुकानें लुटवाता है । ज़रुरतमंदों को मुफ्त में सामान दिलवाता है और भावनाओं को लगी चोट ठीक होती दिखती है।
बाज़ार में खूब वीडियो बनाई ताकि वायरल हो सकें। पुलिसजी ने एक तरफ खड़े होकर शांतिदूत होने का प्रदर्शन किया। क़ानून और सच छिपकर, सब देखते रहे जी। भावनाएं आहत होने पर बने प्रभावशाली वीडियो फेसबुक, वह्त्सेप और यूटयूब पर छा चुके थे और समझदारों ने मूल्यवान विचार फेंकने शुरू कर दिए थे। लो जी, सैंकड़ों लोगों ने अपने अस्त व्यस्त जीवन से वक़्त निकाला और प्रशासन का घेराव किया। लेडी पुलिस ने कुछ भावनात्मक इंसानों को समझाया लेकिन वे लोहे के गेट पर चढ़कर भावनात्मक नारे लगाते ही रहे। प्रशासन ने श्रेष्ठ आदत के अनुसार आश्वासन दिया जो नायकों को स्वादिष्ट नहीं लगा। दोनों को पता था कि ऐसी कार्रवाई असंभव है कि भविष्य में कोई दूसरों की भावनाओं को ज़रा सा भी नुकसान पहुंचाने की जुर्रत न करे।
गरमी के जलते मौसम में, मामला पूरी तरह ठंडा न होने पर बेचारे प्रशासन को, चाहते न चाहते हुए फिर से शांति समिति की बैठक आयोजित करनी पड़ सकती है। उस बैठक में, निदा फाजली का यह शेर कोई सुनाए न सुनाए लेकिन सभी को याद ज़रूर रखना होगा, ‘दुश्मनी लाख सही, खत्म न कीजे रिश्ता, दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए’। अब आप ही बताइए, शांति समिति की बैठक अग्रिम कैसे कर सकते हैं जी।
- संतोष उत्सुक
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