"राष्ट्र चेतना" (कविता)

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आम जन मानस को राष्ट्र भक्ति के रस में डुबोती और देश के प्रति अपने कर्तव्यों के लिए जागरूक करती कवि कर्नल प्रवीण त्रिपाठी की कविता। कवि ने प्रयास किया कि इन शब्दों के माध्यम से राष्ट्र की एकता और अखंडता और मजबूत हो।

देश दुश्मनों के मस्तक को, आज झुकाना ही होगा।

भारत रक्षा हित खायीं जो, कसम निभाना ही होगा।1

चीरा लगा बहा दें सारा, दूषित रक्त प्रवाहित हो,

राष्ट्र प्रेम का हर धमनी में, रुधिर समाना ही होगा।।2

तार-तार कर डाली जिसको, चंद कुटिल नेताओं ने,

भारत माँ की अनुपम छवि को, पूज्य बनाना ही होगा।3

संचालित करते गतिविधियाँ, शत्रु कई बाहर बैठे,

बाहर बैठे आकाओं को, सबक सिखाना ही होगा।4

घृणा अस्मिता से जो करते, तज कर राष्ट्र प्रतीकों को,

राष्ट्र गीत चाहे-अनचाहे, उनको गाना ही होगा।5

जोड़ सके जो सभी नागरिक, देश गान सब मिल गायें,

वंदे भारत की प्यारी धुन, उन्हें बजाना ही होगा।6

देशघात जो करें शक्तियाँ, उनसे मिलकर जब लड़ना,

राष्ट्रवाद की उज्ज्वल धारा, आज बहाना ही होगा।7

कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

नोएडा/उन्नाव

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