आदरणीय न्यायजी की चाहत (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Jul 12 2021 3:33PM

युवा लोग परिवार, समाज और देश का भविष्य होते हैं यह तो जानी बूझी बात है। यह ठीक है कि उन्हें सभ्यता, संस्कृति और नैतिकता से वास्ता कम है, उनमें ईर्ष्या, द्वेष, अंधी प्रतिस्पर्धा बिना कूटे भर दी गई है। अब उन्हें बिना परीक्षा पास होने, लापरवाह ज़िंदगी, मनोरंजन में व्यस्त रहने की आदतें डाल दी गई हैं...

विकट समय में न्यायजी ने सलाह दी है कि बुज़ुर्ग लोगों की सेहत और भविष्य बारे संजीदगी से सोचा जाना चाहिए। वास्तव में सभी जानते हैं फिर भी एक लोकप्रिय आंकडा पका लेना चाहिए कि तंगदिल समाज को उनकी ज़रूरत है या नहीं। युवा लोग परिवार, समाज और देश का भविष्य होते हैं यह तो जानी बूझी बात है। यह ठीक है कि उन्हें सभ्यता, संस्कृति और नैतिकता से वास्ता कम है, उनमें ईर्ष्या, द्वेष, अंधी प्रतिस्पर्धा बिना कूटे भर दी गई है। अब उन्हें बिना परीक्षा पास होने, लापरवाह ज़िंदगी, मनोरंजन में व्यस्त रहने की आदतें डाल दी गई हैं फिर भी उन्हें बचाना ज़रूरी है। देश और समाज का भविष्य ऐसा ही रहना है और वे इसे संभालने को तैयार हैं। बढ़ती उम्र के लोग कहां फिट होते हैं इस सांचे में, अनेक वरिष्ठजन तो जीवित भूत हो जाते हैं। बैंक वाले तो उनसे नामांकन फॉर्म भी भरवा लेते हैं ताकि उनके उतराधिकारी उनकी आत्मा को कोसें नहीं।

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न्यायजी को एक सख्त आदेश जारी कर उम्रदराज़ हो रहे सभी लोगों से नामांकन करवा देना चाहिए ताकि भविष्य में कोर्ट कचहरी का काम कम हो जाए। कुछ वरिष्ठ लोग तो अपनी जीवन शैली, निरंतर सक्रियता, अनुशासन के कारण युवाओं के लिए भी चैलेंज होते ही हैं, लेकिन अधिकांश लोगों के बारे सोचा जाना ज़रूरी है इसलिए न्यायजी  का इशारा सही है। बुढाती उम्र के लोग राजनीति और धर्म को छोड़कर दूसरे क्षेत्रों के लिए अवांछित होते हैं। वहां से खांसते, उंघते, टकराते मॉडल हटा दिए जाएं तो नयों को अवसर मिल सकता है। बहुत से लोग अपनी ज़िंदगी जी चुकने के बाद फ़िज़ूल हो चुके होते हैं क्यूंकि आदर्श स्थिति लागू नहीं हो पाती। वे दुनिया से चले भी गए तो किसी को परेशानी नहीं होगी वैसे भी बदलते वक़्त में बुजुर्गों का स्थान उदास ज़िंदगी का कोना है।  

यह प्रेरित न्याय संकेत विदेशों से आया है जहां बीती परिस्थितियों में युवा शरीरों को तरजीह दी गई। वैसे तो हम विश्वगुरु हैं फिर भी अच्छी बातें सीखने में क्या हर्ज़ है। व्यवहारिक आधार पर भी देखा जाए तो ज्यादा बीमारियां, ज़मीन जायदाद से जुडी पारिवारिक दिक्कतें बुढापे में ही होती हैं। उनसे बचा जा सकता है। कठिन समय में कठिन चुनाव करना ही पड़ता है। अगर यह योजना समयबद्ध तरीके से लागू की जाए तो बहुत से ऐसे लोग जो अपनी जिम्मेवारियां पूरी कर चुके हैं स्वेच्छा से रुखसत होना चाहेंगे। बढ़ती उम्र के साथ योग्य वरिष्टजनों पर रहम करते हुए इच्छा मृत्यु का क़ानून भी न्यायजी की इस चाहत में मिला देना चाहिए। उन लोगों को चुन लेना चाहिए जो खुद अपना, परिवार, समाज, राष्ट्र और दुनिया का भविष्य नहीं है तभी समाज के लिए देनदारी हैं।

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यह तो समाज सुधार भरा निर्णय है। कई समझदार रिपोर्ट्स भी यही इशारा करती हैं। ऐसा करने से पेंशन राशि बचेगी जिसे युवाओं को बेरोजगार भत्ते के रूप में दे सकते हैं। वृद्धाश्रम की जगह पार्किंग बन सकेगी।  कहीं थोड़ी बहुत शर्म प्रयोग की जाती है तो उसकी भी ज़रूरत नहीं रहेगी। हमारी संस्कृति भी तो वानप्रस्थ की बात करती है इस बहाने यह योजना भी लागू हो जाएगी।

- संतोष उत्सुक

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