गिलहरी, हंस और ऐज़ल की छुट्टियां (बाल कहानी)

एक दिन ऐज़ल नहा धोकर अपने नानू के साथ बाग़ में गई। उसने देखा वहां आम, अमरूद और लीची के पेड़ हैं जिनके आस पास गिलहरियां फुदक रही हैं। वह झट से वृक्ष पर चढ़ जाती हैं फिर सरपट उतर भी जाती हैं। खाने के लिए इधर उधर ढूंढती रहती हैं।
ऐज़ल के स्कूल में सर्दियों की छुट्टियां हुई तो वह अपनी नानी के घर आई। नानी एक छोटे पहाडी शहर में रहती है। वहां एक बहुत पुराना बाग़ है जिसे रानीताल बाग़ भी कहते हैं। बाग़ में मंदिर है जिसके सामने विशाल तालाब है जिसमें मछलियां भी हैं। बाग़ में सुन्दर क्यारियां बनी हुई हैं जिनमें खूब सारे खूबसूरत फूल खिले हए हैं। पीले रंग के गुलाब भी हैं।
एक दिन ऐज़ल नहा धोकर अपने नानू के साथ बाग़ में गई। उसने देखा वहां आम, अमरूद और लीची के पेड़ हैं जिनके आस पास गिलहरियां फुदक रही हैं। वह झट से वृक्ष पर चढ़ जाती हैं फिर सरपट उतर भी जाती हैं। खाने के लिए इधर उधर ढूंढती रहती हैं। ऐज़ल को उनका फुदकना, एक दूसरे के साथ खेलना, लड़ना बहुत अच्छा लगा। उसने पूछा, नानू यह मेरी दोस्त हैं इनको हम क्या खिला सकते हैं। नानू ने कहा, इन्हें मूंगफलियां अच्छी लगती हैं, हम कल इनके लिए लाएंगे।
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अगले दिन वह कागज़ के लिफाफे में उनके लिए मूंगफलियां लेकर गई। उनके आगे पीछे घूमती रही, ज़मीन पर मूंगफलियां रखती रही। गिलहरियों से कहती रही, प्लीज़ मेरी मूंगफली खा लो। थोड़ी देर बाद जब एक गिलहरी दोनों हाथों में मूंगफली पकड़कर खाने लगी तो ऐज़ल खुद गिलहरी की तरह उछलकर कहने लगी नानू, गिलहरी ने मेरी मूंगफली खा ली। वह बहुत खुश हुई और गिलहरी को थैंकयू कहा।
अगले दिन रविवार था। अच्छी धूप खिली हुई थी। वह अपनी नानी और नानू के साथ बाग़ में पहुंची तो उसने जीवन में पहली बार हंस पक्षी देखे। एक दो नहीं छ हंस बाग़ में इक्कठे यहां वहां घूमते मिले । रविवार की छुट्टी के कारण काफी अभिभावक और बच्चे आए हुए थे। जब लोग हंसों के ज़्यादा पास जाते तो वे पक्षी परेशान दिखते, मिलकर आवाजें निकालते मानो एक दूसरे को समझा रहे हों कि चौक्कने रहो, चलो यहां से चलते हैं। तभी कुछ देर बाद सभी हंस तालाब में तैरने लगे। ऐज़ल, नानी और नानू वहां बनी सीढ़ियों पर बैठ गए। हंस तैरते रहे, नहाते, कलाबाजियां खाते, मस्ती करते रहे।
ऐज़ल ने ऐसा दृश्य, अपनी आँखों के सामने पहली बार देखा तो उसे बहुत खुशी हुई। हंस जब पूरे पंख फैलाते तो कहती, इनके पंख कितने सुन्दर हैं, उन पर डिजाईन भी अलग अलग हैं। वे लम्बी चोंच से कीड़े या छोटी छोटी मछलियां पकड़ कर खाते रहते। कुछ बच्चे खाने के लिए उन्हें चिप्स दे रहे थे तो ऐज़ल ने उनसे कहा, प्लीज़ आप उनको चिप्स न दें, यह उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं।
किसी दिन सभी हंस ज़मीन पर बैठ, गर्दन दुबकाकर धूप में सोए रहते, कई बार तो एक टांग पर खड़े खड़े ही सुस्ताते दिखे। यह देखकर ऐज़ल को बहुत हैरानी होती। वह नानू से कहती, हंस कितने क्यूट हैं, क्या मैं भी इस तरह खड़े खड़े सो सकती हूं और वह उनकी तरह करने लगती। उसे सचमुच अच्छा लगता।
उस दिन ऐज़ल नानी के साथ आई। उसने हंसों को बाग़ में बहती नाली में पानी पीते देखा तो पूछा, ये गंदा पानी क्यूं पी रहे हैं नानी, क्या हम इनको साफ़ पानी नहीं दे सकते। हमारी टीचर कहती है हम सब को साफ़ पानी पीना चाहिए। उसे बाग़ में फेंका कूड़ा भी अच्छा नहीं लगा। चिप्स के कुछ खाली रैपर तो उसने अपने नन्हें हाथों से उठाकर कूड़ेदान में फेंके। कुछ शरारती बच्चे हंसों को भगा रहे थे, उनसे कहा, हमें पक्षियों को तंग नहीं करना चाहिए। वे कितने सुन्दर हैं।
एक दिन ऐज़ल को हंस कम लगे, उसने गिने, पांच हंस ही घूम रहे हैं। उसने नानू से पूछा, एक हंस कहां गया तो नानू उसे माली के पास ले गए। उन्होंने बताया कि वह हंसनी अलग बैठी है और अंडे देने की तैयारी कर रही है। यह सुनकर तो ऐज़ल कल्पनाओं की दुनिया में पहुंच गई, खुश होकर कहने लगी, पहले यह अंडे देगी फिर उन्हें प्रोसेस करेगी, कुछ दिन बाद उनमें से बच्चे निकलेंगे फिर वे सभी अपने मम्मी पापा के साथ इस बाग़ में घूमेंगे और पानी में खेलेंगे।
नानू ने बाग़ में उसके कई फोटो खींचे। ऐज़ल को छुट्टियों में गिलहरियों और हंसों से मिलकर बहुत मज़ा आया। आज उसने अपने मित्रों, गिलहरियों और हंसों से वायदा किया कि अगली छुट्टियों में फिर उनसे मिलने आएगी। उसकी छुट्टियां खत्म हो गई हैं। कल सुबह उसने वापिस चंडीगढ़ जाना है।
- संतोष उत्सुक
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