सफलता मिले या असफलता, हमें अपना अनवरत प्रयास जारी रखना चाहिए (पुस्तक समीक्षा)

book review
Prabhasakshi
कमलेश पांडेय । Apr 19 2022 2:40PM

पुस्तक में देखा जाए तो लेखक ने बात में, व्यापार में, व्यवहार में, संस्कार में, चाहे अनचाहे प्यार में, आदर-सत्कार में या यदा कदा महसूस किए गए तिरस्कार के बहाने जिन जिन पहलुओं की विवेचना करने की कोशिश की है, उससे हर किसी का रोज का नाता रहता है।

एक सफल उद्यमी और कुशल लेखक प्रमोद गुप्ता लिखित "कुछ यादें-कुछ बातें" पुस्तक में सामान्य जीवन-यापन से लेकर देश-समाज के दर्शन से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं को जितनी सरलता व सहजता से प्रस्तुत किया गया है, वह किसी भी पाठक को न केवल शुरू से अंत तक जोड़े रखने में सक्षम है, बल्कि बातों ही बातों में गुदगुदाते हुए मन को रहस्य व रोमांच से भर देती है। यह पुस्तक लेखक के मन के उद्गारों और जीवन के तल्ख अनुभवों की एक सरल और सहज अभिव्यक्ति भी समझी जा सकती है।

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कहना न होगा कि किसी भी व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास के लिए और प्रभावशाली चरित्र के निर्माण के लिए शिक्षा, अभावों के संग संघर्ष और जीवन के हर मोड़ पर संयुक्त परिवार की जो जरूरत पड़ती है, उसका बारिकीपूर्वक चित्रण करने की एक सफल कोशिश लेखक ने की है, ताकि लोगों को सही व्यवहारिक शिक्षा मिल सके। इस पुस्तक को पृष्ठ दर पृष्ठ पढ़ते रहने से यही आभाष होता है कि लेखक ने आदि से अंत तक इसी दुविधा में कुछ न कुछ जोड़ते रहने की एक सार्थक पहल की कि क्या भूलुं क्या याद करूँ। 

कुल मिलाकर 74 पृष्ठ और 4 आवरण पृष्ठ अंतर्गत 42 शीर्षक में उन्होंने जीवन के हरेक खट्टे मीठे पहलुओं, घनिष्ठ या हल्के-फुल्के रिश्तों को समेटने और सफलता-विफलता के हरेक कटु-मधु पलों को सहेजने की चेष्टा सिर्फ इसलिए कि है ताकि पाठक कुछ सबक ले सकें और अपने जीवन व्यवहार में उन गलतियों को दुहराने से बच सकें। खासकर गुस्ताखियां, युद्ध स्वयं से, मेरा क्या कसूर है, अच्छा नहीं लगता है, आज सुबह सुबह मेरी प्रभु से बात हो गई, वो लड़ती है मुझसे, छोटी सी खुरपी, प्रश्न एक विभीषण का और मुलाकात के क्षण जैसे एक से बढ़कर एक चैप्टर हैं जो पाठकों में पढ़ते रहने और गढ़ते रहने की जिज्ञासा पैदा करते हैं। 

वहीं, बढ़कर, शिल्पकार, 'ममता' फिर, सम्भाल लेना, कविता, आत्ममंथन, मेरी बगिया, बहाने, वो लड़ती है मुझसे, मैं, आभार, मेरी पहचान, बैंक मैनेजर से मुलाकात और निमंत्रण पत्र चैप्टर को पढ़कर पाठकों को लगता है कि कहीं यह उनसे जुड़ी हुई बात तो नहीं है। वहीं, आ नानी की गुड़िया, चांद और सूरज, आदरणीय जैन साहब, राजेन्द्र सब्जी वाला, मंजू बाई, आदरणीय पाटोदिया जी, आदरणीय समधी जी और समधन जी, ससुराल का सफल, मेरे मम्मी पापा, पाठक जी की पाठशाला, मेरी खुशियों के सुनहरे क्षण बच्चों के संग, मेरे जन्मदिन पर मेरे पापा को भेंट और प्रिय रेयांश चैप्टर को पढ़कर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की बहुत सारी संजीदगियों को सीख सकता है।

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पुस्तक में देखा जाए तो लेखक ने बात में, व्यापार में, व्यवहार में, संस्कार में, चाहे अनचाहे प्यार में, आदर-सत्कार में या यदा कदा महसूस किए गए तिरस्कार के बहाने जिन जिन पहलुओं की विवेचना करने की कोशिश की है, उससे हर किसी का रोज का नाता रहता है। इसलिए इस पुस्तक से सायास-अनायास बहुत कुछ सीखा समझा जा सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन संघर्षों के बाद मिली अप्रत्याशित सफलता को किस तरह से मिल बांट कर भोगा जाता है, इसकी एक अच्छी सीख पाठकों को देने में यह पुस्तक सफल प्रतीत हो रही है।

लेखक ने इस पुस्तक में काव्य, कहानी या पत्राचार आदि की शैली में जीवन-यापन और कार्य व्यवहार से जुड़े प्रत्येक इंद्रधनुषी बात को हल्के फुल्के ढंग से लेकर कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वाजिब समाधान ढूंढने के अभ्यस्त होने की जो जिज्ञासा पैदा की है, वह अमूल्य है। उन्होंने अपनी खट्टी मीठी यादों के पुलिंदा यानी याददाश्त गुलदस्ता को अपने जीवन के विभिन्न पड़ावों पर नजदीकी रिश्तों व मित्रों से मिली ऊर्जा या जीवन की नित्य नवीन अनुभूति को शब्दों में क्रमबद्ध रूप से पिरोने की जो सकारात्मक चेष्टा की है, उससे यह लगता है कि यह पुस्तक अपने मिशन में सफल रही है।

सच कहा जाए तो संवाद में शालीनतापूर्वक सबके चेहरे पर मधुर मुस्कान बिखेरते रहने के लिए उन्होंने जो जद्दोजहद की है, उससे उनका उद्देश्य सफल हुआ है। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने यही शिक्षा देने की कोशिश की है कि चाहे सफलता मिले या असफलता, लेकिन हमें अपना अनवरत प्रयास जारी रखना चाहिए। क्योंकि यही सफलता की कुंजी है। 

कुल मिलाकर यह पुस्तक बातों ही बातों में व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और पेशेवर जिंदगी के साथ साथ लोक व्यवहार से जुड़ी हुई एक से बढ़कर एक सीख देने में सफल प्रतीत हुई है। इसमें निहित सबक यानी नसीहतों को यदि नजरअंदाज नहीं किया जाए, तो भविष्य की बहुत सारी मुसीबतों से पाठक बच सकते हैं। इसलिए जब भी आपको समय मिले तो कुछ यादें-कुछ बातें नामक पुस्तक अवश्य पढ़िए। रोजमर्रा की जिंदगी को समझने व उसके अनुकूल व्यवहार करने में यह गागर में सागर है। 

पुस्तक का नामः कुछ यादें-कुछ बातें

लेखकः प्रमोद गुप्ता

प्रकाशनः व्यक्तिगत प्रकाशन

- पुस्तक समीक्षक: कमलेश पांडेय

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