Book Review: छत्रपति महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की संकल्पना व दुर्ग की समझ विकसित करती है पुस्तक 'हिन्दवी स्वराज्य दर्शन'

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Prabhasakshi

पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ में लेखक अपनी यात्रा के अनुभवों को आधार बनाते हुए हमें दुर्गों के बारे महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। पुस्तक में पहले ही बताया गया है कि यह अपने इतिहास को, स्वराज्य के लिए हुए संघर्ष एवं बलिदान को समीप से जानने-समझने की एक अविस्मरणीय यात्रा को समर्पित है।

पुस्तकों का लेखन जितना सरल हो, उतने ही अधिक लोग उसे पढ़ते हैं। पत्रकार, मीडिया शिक्षक एवं बेहतरीन लेखक लोकेंद्र सिंह ने सरल शब्दों में अधिक संदर्भों के सहारे बड़ी ही तथ्यात्मक पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ लिखी है। यह पुस्तक हिन्दवी साम्राज्य के संस्थापक एवं स्वराज्य के उद्घोषक श्री शिव छत्रपति महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की संकल्पना एवं दुर्गों को समझने में महत्वपूर्ण दस्तावेज है। पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ पाठकों से बड़ी ही सहजता से अपने विषय पर संवाद करती है। यात्रा वृतांत के रूप में लिखी गई इस पुस्तक में हिन्दवी स्वराज के दुर्गों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा की गई है।

हमें ज्ञात है कि हिन्दवी स्वराज्य में दुर्ग केंद्रीय तत्व हैं। जब विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों एवं दासता के अंधकार से देश घिरता जा रहा था, तब हिन्दवी स्वराज के इन्हीं दुर्गों से स्वराज्य का संदेश देनेवाली मशाल जल उठी थी। स्वराज्य की स्थापना हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज अपने इन्हीं दुर्गों से गर्जना कर मराठों में आत्मविश्वास और ‘स्व’ से प्रेम जाग्रत करते थे।

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पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ में लेखक अपनी यात्रा के अनुभवों को आधार बनाते हुए हमें दुर्गों के बारे महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। पुस्तक में पहले ही बताया गया है कि यह अपने इतिहास को, स्वराज्य के लिए हुए संघर्ष एवं बलिदान को समीप से जानने-समझने की एक अविस्मरणीय यात्रा को समर्पित है। पुस्तक पढ़ने से पहले हिन्दवी स्वराज के दुर्गों के बारे में आपकी जो धारणा होगी, उससे अलग और अधिक जानकारी इस पुस्तक में है। दुर्ग, जिन्हें हम किले, गढ़ और कोट के नाम से भी जानते हैं। पुस्तक में दुर्गों के प्रकारों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ पढ़ने के बाद दुर्गों के विभिन्न स्वरूपों की समझ विकसित होती है। इस पुस्तक में हिन्दवी स्वराज की प्रतिज्ञाभूमि की स्मृतियां ताजा होंगी। 

श्रीशिव छत्रपति के राज्याभिषेक से लेकर उनके देवलोकगमन के अवसरों के साक्षी बने ‘श्री दुर्गदुर्गेश्वर- रायगढ़’ के किले की दास्तान सुनने को मिलेगी। मिर्जा राजा जयसिंह और छत्रपति के मध्य हुई ऐतिहासिक और रणनीति पुरंदर संधि की जानकारी प्राप्त होगी। इसमें तानाजी के शौर्य की गाथा कहते सिंहगढ़ की चर्चा होगी तो छत्रपति शंभूराजे की समाधि के महत्व सहित अनेक पहलुओं की बात है।

पुस्तक में छत्रपति शिवाजी महाराज का अपने बच्चों की तरह दुर्गों का ध्यान रखकर उनके प्रति स्नेह दिखता है। साथ ही उनकी चतुराई की समझ का भी ज्ञान होता है, जहां वह दुर्गों की सुरक्षा देखने के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित करवाते थे। महाराज ऐसा क्यों करवाते थे, यह आपको पुस्तक पढ़ने के बाद समझ आएगा। आप लेखक लोकेंद्र सिंह की पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ को अवश्य पढ़ें। उनकी यह पुस्तक काफी चर्चाएं बटोर रही है। यह पुस्तक अमेजॉन पर उपलब्ध है, जिसे आप आसानी से घर बैठे ही ऑर्डर कर सकते हैं। 

- सौरभ तामेश्वरी 

(लेखक पत्रकार एवं स्तम्भकार है।

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