बड़े लोगों की बातें (व्यंग्य)

दुनियावालों ने ख़ास दुनिया वालों से अध्ययन करवाया और बताया कि इस भूख भरी दुनिया में भोजन से सम्बंधित जितना भी उत्सर्जन होता है, उसमें से सत्तर प्रतिशत के लिए सबसे अमीर लोगों में से, तीस प्रतिशत लोग ज़िम्मेदार हैं। दुनिया भर की दौलत भी तो कुछ प्रतिशत लोगों के पास है और ज्यादा उत्सर्जन भी वही कर रहे हैं।
हमारी प्यारी दुनिया में रहने वाले समझदार लोग, अजब अध्ययन और सर्वे करते और करवाते हैं। ऐसा लगता है सर्वे करने वाले हमारे राजनेताओं की तरह हर विषय के विशेषज्ञ होते हैं। इन्हें ख़ास तरह के सर्वे करने होते हैं क्यूंकि इन्हें ऐसे सर्वे करने ही आते हैं। ख़बरें देने वालों का भी ऐसा ही बढ़िया हाल है। ऐसी ऐसी खबरें परोसते हैं, लगता है किसी ख़ास रंग और ढंग के बर्तन में पकाते हैं। बर्तन अपनी ही किस्म के होते होंगे जिनमें दूसरी किस्म की ख़बरें पक नहीं सकती। वैसे सब्जी के मामले में नहीं दाल के मामले में ऐसा कहा जाता है कि दाल नहीं गलती। शायद भाप के दबाव का फर्क पड़ता होगा। दाल के पूर्वजों ने बर्तनों से वायदा किया होगा कि हमारा साथ हमेशा बना रहे। लोग हमारे बारे चर्चा करें, तारीफ़ करें और स्वाद का ज़िक्र हो। इसलिए ख़ास किस्म की दाल उसी ख़ास बर्तन में पकेगी और अच्छी तरह से गलकर स्वाद भी बनेगी। तारीफ़ होना तो उसकी किस्मत में है।
दुनियावालों ने ख़ास दुनिया वालों से अध्ययन करवाया और बताया कि इस भूख भरी दुनिया में भोजन से सम्बंधित जितना भी उत्सर्जन होता है, उसमें से सत्तर प्रतिशत के लिए सबसे अमीर लोगों में से, तीस प्रतिशत लोग ज़िम्मेदार हैं। दुनिया भर की दौलत भी तो कुछ प्रतिशत लोगों के पास है और ज्यादा उत्सर्जन भी वही कर रहे हैं। भोजन और प्रदूषण के आपसी संबंधों पर अध्ययन करने वाले यशस्वी विशेषज्ञ ऐसा बताते हैं कि अमीर लोग खाना बर्बाद कर रहे हैं इसलिए धरती ज़्यादा गर्म हो रही है। ज़्यादा पैसा भी क्या क्या गुस्ताखियां करवाता है। उन्होंने बहुत स्वादिष्ट समाधान बताए, जैसे रेड मीट का उत्पादन कम हो, सब्जी, मेवे और शाकाहार बढ़े। गाय और बकरियां ज्यादा न हों। अब कौन सा अमीर इन्हें खाएगा और कौन सा छोड़ देगा, कोई सर्वे करने वाला बता सकता है। बड़े लोगों की बातें ज़्यादा होती हैं।
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ज्यादा बड़े लोगों की बातों का आकार ज्यादा बड़ा होता है। मारे देश के बुद्धिमान लेखक राजनेता ने अमेरिका के सबसे बड़े आदमी से मुलाक़ात की तो बात भी होनी थी। सुना है उन्हें सहायक बुलाना पडा जो हमारे राजनेता की अंग्रेज़ी को अंग्रेज़ी में ट्रांसलेट कर उन्हें समझा सके। वैसे अमेरिका वाले जनाब अपने आप को ज़्यादा अंग्रेज़ समझते हैं। बात तो वही है जो एकदम पल्ले पड़ जाए या कभी पल्ले न पड़ सके। बड़े लोगों की बातें वास्तव में कितनी बड़ी होती हैं कह नहीं सकते। कुछ समय पहले प्रसिद्ध वरिष्ठ अभिनेता रजनीकांत, सादे सफ़ेद पारम्परिक कपड़ों में एक आध्यात्मिक यात्रा के दौरान अपने मित्रों के साथ सड़क किनारे पत्तल में खाते दिखे। कोई नखरा, अंदाज़ या दिखावा नहीं। क्या इस बात का अर्थ यह भी है कि आम आदमी चाहे थोड़ा सा ही सही, प्रसिद्ध होना चाहता है। उसके लिए काफी कुछ करता है। सुपर प्रसिद्ध होने के बाद इंसान, कभी कभी आम आदमी की तरह रहना चाहता है। ऐसे अवसर सृजन भी करता है लेकिन सभी ऐसा नहीं कर सकते।
बड़े लोगों की बातों को समझना बड़ी बात है। आम आदमी तो यही कर सकता है कि स्वादिष्ट दाल और भात खाने जाए और सीमित शगुन में पूरे परिवार को असीमित खिला दे।
- संतोष उत्सुक
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